Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:52 PM,
#89
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी की बात बड़ी जोर से चुभी मुझे पर सच का घूंट तो कडवा ही होता है 

भाभी- कुछ गलत तो नहीं कहा मैंने ,दरअसल हम परेशान इसलियी होते है क्योंकि हम चीजों को उस तरह से देखते है जैसे हमे चाहिए होता है पर हकीकत कुछ जुदा ही होती है बस इतनी बात है तुम आज किस बात से परेशान हो मैं नहीं जानती पर क्या तुम्हे पता नहीं था की एक समय आएगा 

मैं- हर पल पता था मुझे हर पल .

भाभी- तो अब दुखी किसलिए होते हो वो कहावत तो सुनी ही होगी की जब बोया पेड़ नीम का तो कडवा कडवा ही होए .

मैं-काश आप समझ पाती.

भाभी- काश कोई मेरी समझ पाता . 

मैं- कुछ समझा नहीं 

वो- समझे नहीं या समझना नहीं चाहते हो. 

मैं- क्या कहना चाहती हो .

भाभी- बस इतना की, जिस हक़ की बाते तुम हमेशा करते हो आज जब उसी हक़ पर राणाजी के हुकुम की तलवार लटकी तो कायरो की तरह भाग आये तुम घर से .

मैं- भाभी आप तो जानती हो. 

भाभी- हमारे जानने से क्या होता है देवर जी, कौन सा हम कुछ फरक पड़ना है मैंने तो बस आपकी बातो को दोहराया है . 

भाभी की आँखों में देखते हु ना जाने क्यों आज मुझे ऐसा लगा की नियति जैसे उस खेल की बिसात बिछा रही थी जिससे मैं भागने की हर संभव कोशिश कर रहा था मेरी आँखों में वो हाहाकारी मंजर आने लगा जो मैंने पद्मिनी की जलती आँखों में देखा था , एक तरफ मेरा हक़ था, एक तरफ मेरा प्रेम था एक तरह किसी का विश्वास था तो एक तरफ किसी की आस थी और बीच मैं कुंदन ठाकुर जो भाग रहा था अपने आप से. 

भाभी- कहा खो गए . 

मैं- आपकी बात समझता हु पर आप भी तो ये ही करती है आप भी तो भागती है अपने आप से अपने हक़ से आप कोई कदम क्यों नहीं उठाती .

भाभी- क्योंकि नफरत से बस नफरत फैलती है और मैं नफरत करू तो किस से तुम से या राणाजी से , हाँ मैं सहती हु सब मेरी आत्मा इस कदर रक्त-रंजित है हर पल मैं टूट के बिखरती हु, मैं अपनी जिल्लत को मुस्कराहट के पीछे छुपा लेती हु पर कुंदन, मेरे अपने कारण है और ऊपर वाले पर मुझे पूरा भरोसा है , उसकी लाठी में आवाज नहीं होती पर मार बहुत जोर ही पड़ती है ,

हक़, जैसा मैं तुम्हे पहले भी बता चुकी हु की अब ये सब मेरे लिए मायने रखते नहीं क्योंकि न्याय भी अगर समय पर नहीं मिले तो उसका कोई मोल नहीं रहता पर मैं नियति को स्वीकार भी नहीं करुँगी,क्योंकि मैं स्वयं की नियति अपने हाथो से लिखूंगी , मेरी रगों में भी ठाकुरों का खून दौड़ रहा है पर उसके बाद होगा क्या हर रिश्ता तबाह हो जायेगा , तुम्हारी ही हवेली को घर मैंने बनाया था , 

पर अफ़सोस , खैर हम बस इतना ही चाहेंगे की तुम अपनी जिंदगी में खुश रहो क्योंकि आखिर कौन है तुम्हारे सिवा हमारा अपना , ना कोई तुम्हारे पहले था ना कोई तुम्हारे बाद .



मैं- आके साथ उस घर में जो कुछ भी हुआ हम सब ही गुनेहगार है आपकी हर सजा वीकार है और सबसे बड़ा गुनेहगार तो मैं हु जिसे ये भान तक ना हुआ की आखिर हो क्या रहा है .

भाभी- वो मेरे और राणाजी के बीच की बात है और हम चाहेंगे की तुम इस मामले में न आओ

मैं- बिलकुल नहीं आऊंगा मेरा उस घर से रिश्ता उसी दिन टूट गया था बस एक डोर है जो आपसे जुडी है 

भाभी- खैर, जाने दो राणाजी ने वादा किया है जगन ठाकुर से 

मैं- अब आएगा मजा, राणाजी भी समझे की दुनिया दारी होती क्या है 

भाभी- कच्चे हो तुम दुनियादारी के कायदों में 

मैं- आप मेरे साथ हो,

भाभी- हमेशा 

मैं- बाकि मैं संभाल लूँगा .पर आप आखिर क्यों उस घर को नहीं छोडती है हम सब कही और चले जायेंगे आखिर कब तक आप 
घुटती रहेंगी आखिर ऐसी भी क्या मज़बूरी है जो आप इस बात पर मेरा साथ नहीं दे पाती है कही आपको लत तो नहीं हो गयी राणाजी की 

भाभी – कितनी बार कहा है हमे रंडी ही बोल दिया करो सीधे सीधे , क्यों घुमा कर कहते हो , वैसे लत तो हमे तुम्हारे भी है तो कहो तो उतार दे कपडे .

मैं- रुसवा होता हु मैं जब आप मुझे छोड़ कर राणाजी को चुनती है 

भाभी- मेरे अपने कारण है , और बात वही है एक दिन आएगा जब तुम समझ जाओगे की आखिर क्यों 

मैं- तो बता क्यों नहीं देती हो 

वो- ठाकुरों को अपने राज़ बताने की इजाजत नहीं होती है 

मैं- मैं तो बस नाम का ठाकुर हु 

भाभी- मैं भी, 

भाभी उठी पर बाहर जाने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड लिया .

मैं- आज यही रुक जाओ 

वो- क्या इरादा है 

मैं- कुछ नहीं . 

वो- तो क्यों रोकते हो. 

मैं- शायद इरादा बन जाये .

भाभी- सच में . 

मैं- आपकी कसम. 

भाभी- तो ठाकुर का खून जोर मारने लगा है . 

मैं- ठकुराईन जब इतनी जबर हो तो ठाकुर क्या करेगा . 

भाभी- और ना उतर आये मैदान में तो. 

मैं- मैदान की बात करते हो सारी जमीन ही हमारी है .

भाभी- वो तो है . 

मैंने भाभी की कमर में हाथ डाल कर खींचा तो वो मेरी बाँहों में आ गयी 

मैं- भाई के बिना कैसा लगता है.

भाभी- जैसा पहले लगता था मुझे उसके रहने से कोई फर्क नहीं था उसकी मौत से कोई फर्क नहीं . 

मैं- क्यों अब देवर को फांस ली हो इसलिय 

भाभी- क्या सच में, मैं तो मरे जा रही हु तुम्हारे निचे लेटने को जैसे. 

मैं- निचे नहीं तो ऊपर आ जाओ . 

भाभी- जिस दिन इस लायक हो जाओगे, टांगे खोल दूंगी वादा करती हु.

मैं- कहो तो अभी . 

भाभी- रहने दो, तुमसे न हो पायेगा.

मैं- कभी तो होगा. 

भाभी- होगा तो तैयार हु मैं . 

मैं- क्या लगता है इन्दर को किसने मारा होगा. 

भाभी- जिसने भी मारा उसका यही अंत होना था . 

मैं- बिलकुल बेशक भाई था पर फिर भी उसके कातिल की तलाश जारी है 

भाभी- क्या करोगे अगर मिल गया तो क्या उसे भी मार दोगे. 

मैं- भाई भी था वो मेरा.

भाभी- तो कातिल तुम्हारे सामने है कर दो कतल.....
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:52 PM

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