Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:54 PM,
#95
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
चीख बेशक किसी इंसान की थी पर जिस तरह से वो चीख रहा था लगा की जैसे किसी पशु को काटा जा रहा हो एक पल में ही बदन पसीने पसीने हो गया , मैंने चाची को परे धकेला और अपने कपडे पहनते हुए बाहर आया पर अब चारो तरफ अँधेरे में घोर सन्नाटा पसरा हुआ था , ख़ामोशी ऐसी की मैं अपनी सांसो की आवाज दूर से भी सुन सकता था .

“क्या हुआ कुंदन,” चाची ने हाँफते हुए कहा 

मैं- पता नहीं पर कोई तो चीखा था 

चाची- मैं टोर्च लाती हु 

जैसे ही चाची टोर्च लेके आई हम आस पास देखने लगे और फिर कुछ ऐसा मंजर देखा मैंने की रीढ़ की हड्डी तक सिहर गयी मेरे खेत के डोले पर ठाकुर जगन सिंह का कटा हुआ सर पड़ा था आँखे जैसे बाहर को ही आ निकली थी पूरी तरह गर्म खून में सना हुआ चाची की तो घिग्घी ही बांध गयी ऐसा हाल देख कर पर अब इतनी रात को वो कही और जा भी तो नहीं सकती थी .

जगन सिंह का कटा हुआ सर मेरी जमीन पर मिलना टेंशन वाली बात थी मुझे अपनी फ़िक्र नहीं थी पर इससे दोनों गाँवों के हालत बिगड़ जाने थे , अब ऐसे कटे हुए सर को देख कर एक बार तो मैं भी सिहर गया था, मैं ही क्या अच्छे से अच्छे जिगर वाले भी घबरा जाए तभी मुझे कुछ सुझा चीख यही से आई थी तो इसको यही मारा गया है. 

मैंने बाकि की धड की तलाश शुरू की तो कुछ ही दुरी पर मुझे खूब टुकड़े मिले बड़ी बेरहमी दिखाई थी कातिल ने जैसे कोई पुराणी खुन्नस निकाली हो, खून ताज़ा हुआ था एक बात तो साफ़ थी की कातिल ज्यादा दूर नहीं गया होगा पर इस खुली जगह और अँधेरे में वो किसी भी दिशा में जा सकता था , कभी मैं जगन सिंह के शारीर के टुकडो को देखता तो कभी उसके सर को जिसकी आँखे जैसे मुझे ही घुर रही हो.

चाची- कुंदन तुम्हारे तो लग गए, अब एक ही रास्ता है की सुबह होने से पहले इस लाश को ठिकाने लगा दो , अगर लोगो को मालूम हुआ की जगन सिंह का खून यहाँ हुआ है तो ये ठीक नहीं होगा. 

मैं- बात तो सही है चाची पर बात ज्यादा दिन छुपेगी नहीं. 

चाची- बाद की बाद में देखना, कल को लाश तुम्हारी जमीन पर मिलेगी तो सबसे पहले सवालो के घेरे में तुम आओगे 

मैं- उसकी फ़िक्र नहीं है चाची, पर दोनों गाँवो में तनाव हो जायेगा वैसे ही मैंने थोड़ी ना मारा है इसको .

चाची- मैं जानती हु पर दुनिया 

मैं- दुनिया की किसे पड़ी है 

चाची- मेरी बात मान कुंदन, इतनी बड़ी जगह है कही भी गाड दे इसको 

मैं- एक मिनट, देखो इसके कातिल की तलाश तो करनी ही होगी उससे पहले सवाल ये है की आखिर इस वक़्त ये अर्जुन्गढ़ से इतनी दूर अकेला कर क्या रहा था और वो भी पैदल .

चाची- जासूस बाद में बन लेना मेरी बात मान पहले तू मामले की गंभीरता को समझ नहीं रहा है, अर्जुन गढ़ के ठाकुर की लाश देव गढ़ के ठाकुर की जमीन पर मिलना मामूली बात नहीं है , तलवारे खींच जाएँगी और खून की नदिया बह जाएँगी , लाश मिलने और गायब होने में फरक होता है कुंदन.

चाची की बात सोलह आने सच थी पर ये साला कौन था जो इस मुसीबत को मुझे चिपका गया था इतना तो पक्का था की जगन सिंह की मौत सुनियोजित तरीके से की गयी थी और कातिल कोई करीबी था , जिसके साथ वो अकेला ही चला आया था चाची की बात मान लेने में ही मुझे फायदा लगा और कुवे के पीछे जो जगह पूजा ने साफ़ की थी वहा पर मैंने लाश के टुकडो को गाड दिया. 


पर काम अभी खतम नहीं हुआ था बल्कि बढ़ गया था आखिर कौन होगा और जो भी था उसे ये जरुर पता होगा की मैं झोपडी में हु और जिस तरीके से उसने बदन के टुकड़े किये थे ये बात मुझे खटक गयी थी घुप्प अँधेरे में मैं कुवे की मुंडेर पर बैठा गहरी सोच में डूबा था, ये क्या स्यापा आ गया था जिन्दगी ने जैसे सोच ही ली थी की कुंदन की ही मारनी है हर पल.

बेशक लाश को छुपा दिया था पर बात नहीं छुप्नी थी एक एक सेकंड भारी हो रहा था आखिर इतनी बेरहमी और इतनी जल्दी कौन मान सकता था इसको और सबसे जरुरी बात इतनी बड़ी दुनिया थी फिर मेरी चौखट पर ही क्यों क्या कोई मुझे फ़साना चाहता था या फिर बस इतिफाक ही था पर जो भी था मेरे लिए परेशानी बढ़ गयी थी, सुबह हलके अँधेरे में ही मैं चाची को हमारे कुवे तक छोड़ने गया .

जब तक मैं वापिस आया तो भोर हो गयी थी दिन हल्का हल्का निकल आया था मैं खेत में आया और अब पूरी जगह का अवलोकन करने लगा , जगन का खून कई जगह पर बिखरा था अब उसको साफ़ करना जरुरी था पर तरीका कैसे क्या हो समझ नहीं आ रहा था मैं घूमते घूमते उस जगह पर आ गया जहा से चार रस्ते अलग अलग दिशाओ में जाते थे एक देवगढ़ और अर्जुन्गढ़ की तरफ और एक पूजा के घर की तरफ और मेरी जमीन की तरफ और उस चौराहे के बीच में खड़ा था मैं . 

तभी जैसे किसी चीज़ की चमक पड़ी मुझ पर तो मैंने देखा देखा और कसम से मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हु आखिर ये यहाँ कैसे हो सकती थी इसको मैं हज़ारो में भी पहचान सकता था ये ठाकुर अर्जुन सिंह की तलवार थी मैं दौड़ते हुए उस तक पंहुचा , तलवार को फेंका नहीं गया था बल्कि इस तरह जमीन में धंसाया गया था की नोक धरती में और बाकि हिस्स शान से ऊपर खड़ा था कायदे से तलवार को लाल मंदिर के मैदान में होना चाहिए था क्योंकि बरसो से इसकी जगह वही पर थी हैरत से मुह खोले मैं मामले को समझने की कोशिश कर ही रहा था की तभी मुझे मिटटी में कुछ गिरा हुआ दिखा 

और जैसे ही मैंने वो चीज़ उठाई एक पल को मुझे कुछ भी समझ नहीं आया आँखों की बात दिल ने मानने से इनकार कर दिया मेरे एक हाथ में तलवार थी और दुसरे में.
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