RE: Indian Porn Kahani मेरे गाँव की नदी
संतोष : अरे दीदी आज कल के लोंडो का कोई भरोषा नहीं हम उन्हें बच्चा समझते है और वह हमें नंगी करके चोदने का सोचने लगते है।
निर्माला : ऐसा क्या हो गया।
संतोष : अरे क्या बताऊ दीदी कल नदी पार करते हुए मेरे पेरो में काँटा लग गया तब मैंने बिरजु से कहा बेटा देख जरा काँटा कहा लगा है तो उसने मेरी टाँगो
को उठा कर देखना शुरू किया और फिर मैंने उसे ध्यान से देखा तो मुआ मेरे घाघरे के अंदर से मेरी चुत देखने की कोशिश कर रहा था।
निरमला : तूने कुछ कहा नही।
संतोष : मैंने कहा क्या कर रहा है जल्दी निकाल, तो कहने लगा माँ निकाल तो रहा हु बहुत गहरा लगा है थोड़ा पैर और ऊपर उठाओ, मुझे तो लगता है उसने मेरी पुरी फटी हुई चुत को खूब अच्छे से देखा है।
निर्माला : वह तो मस्त हो गया होगा तेरी फुली चुत देख कर।
संतोष : हाँ दीदी वह तो मेरा पैर छोड़ ही नहीं रहा था और मेरी टांगो को कस कर पकडे हुए ऊपर उठा रहा था।
निर्माला : तेरा बेटा अब जवान हो गया है उसे भी चोदने का मन करता होगा अब उसके लिए लुगाई का बंदोबस्त कर ले नहीं तो वह कही तुझे ही न छोड़ दे,
यह कहते हुए निर्मला हँस पडी।
संतोष : हसो मत दीदी, जिसके घर खुद शीशे के होते है उसे दूसरो के घरो में पथ्थर नहीं फ़ेकना चहिये।
निर्माला : क्या मतलब।
संतोष : मतलब की केवल मेरे ही घर जवान बेटा नहीं है, तुम्हारे भी एक जवान बेटा है और वह तो और भी मुस्टंडा हो गया है, कही ऐसा न हो की तुम
मुझ पर हसो और वह तुम्हे ही चोद दे।
निर्माला : नहीं मेरा बेटा बड़ा भोला है वह ऐसी नजरे मुझ पर डाल ही नहीं सकता।
संतोष : अरे दीदी ऐसे भोले ही तो ज्यादा खुराफ़ाती होते है, कभी गौर करना अपने बेटे की नज़रो पर, जरुर तुम्हारे चूतडो को घूरता होगा।
निर्माला : चुप कर गीतिका आ रही है।
गीतिका : कहो चाची कैसी हो।
संतोष : मै तो ठीक हु गीतिका तू बता जब से शहर पढने गई है अपनी चाची को तो भूल ही गई।
गीतिका : अरे चची भूली होती तो माँ को ले कर यहाँ क्यों आती, अब तो कभी आप आ जाओ तो आपको शहर घुमा देति हूँ।
सन्तोष : अरे बिटिया अपने ऐसे भाग्य कहा, तेरे चाचा रहते तो है पर मुझे ले जाने की उनको फुर्सत कहा है।
गीतिका : अरे वो नहीं ले जाते तो क्या हुआ आप ही चलो मेरे साथ।
संतोष : देख कभी मोका लगा तो जरुर चलुंगि।
निर्माला : चल संतोष अब मै चलती हु बड़ा काम पड़ा है और कल्लु अकेले लगा होगा आज तो उसके बाबा की भी तबियत ठीक नहीं लग रही थी तो वह भी घर
चले गए है।
थोड़ी देर बाद माँ वहाँ से वापस आ गई और फिर गुड़िया आराम से खटिया पर लेट गई और माँ अपनी गुदाज मोटी गाण्ड मेरे मुह की ओर करके निचे बेठी और घास काटने लगी।
थोड़ी देर बाद घास काटते काटते हम दोनों एक दूसरे के सामने आ गए तभी मेरी नजर माँ की दोनों जांघो की गैप में पड़ी तो मेरी आँखे खुली रह गई, मेरी माँ की मस्त फुली हुई चिकनी चुत अपनी फांके
फैलाये मेरी और देख रही थी, माँ की भोसडी पर एक भी बाल नहीं था और बहुत चिकनी लग रही थी, उसकी चुत की फाँके बहुत फुली हुई नजर आ रही थी, और माँ का ध्यान जमीन पर घास काटने में लगा हुआ था।
मा की मस्त बुर देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया था और धोती में बड़ा भारी तम्बू बनाये हुए था, मै टक टकी लगा कर माँ की मस्त चुत देख रहा था, घास
काटते हुए माँ जब बैठे बैठे आगे बढ़ती तो उसकी फुली चुत की फाँके और भी खुल जाती और माँ की चुत का गुलाबी रसीला छेद भी नजर आ रहा था, तभी माँ ने मुझे अपनी मस्त चूत को घुरते हुए देख लिया और पहले तो माँ ने ध्यान नहीं दिया फिर जब उसे मेरे लंड का तम्बू नजर आया तो उसकी नजरे मेरी नज़रो से मिली और मा मंद मंद मुस्कुराते हुए दूसरी ओर घुम गई और घास काटने लगी, मेरा लंड अकड़ा जा रहा था और मैंने अपने लंड को धोती के ऊपर से मसलते हुए माँ की चूत की कल्पना करने लगा।
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