RE: Indian Porn Kahani मेरे गाँव की नदी
कल्लु : तूने मेरी माँ और चाची के चूतडो को कब देखा है।
बीरजु : अरे दादा नदी के किनारे के पेड़ के ऊपर चढ़ कर जब माँ और बड़ी माँ नहाने आती है, तब कई बार दोनों नंगी होकर ही नदी में नहा लेती है, दादा मै तो जब बड़ी माँ के मोटे मोटे चूतडो को घाघरे के उपर से मटकते देखता हु तो मुझे उनकी गाण्ड मारने का बड़ा मन करता है।
कालू : और क्या क्या देखा तूने जरा खुल के बता ना।
बीरजु : दादा मैंने तो दोनों को गन्दी बाते करते हुए भी सुना है और तो और अपनी माँ को मैंने अपनी चुत में ऊँगली पेल कर मुट्ठ मारते हुए भी देखा है।
कालू : कहा वही झोपडी के पीछे जाकर मुट्ठ मारती है क्या।
बीरजु : हाँ।
कल्लु : तूने मेरी माँ को मुट्ठ मारते हुए नहीं देखा।
बीरजु : नहीं पर एक बार बड़ी माँ को मैंने ऐसी हालत में देखा की क्या बताऊ मै तो मस्त हो गया था, जानते हो बड़ी माँ एक बार झोपडी के पीछे मुतने गई और खड़े खड़े ही अपनी चुत से मोटी धार मारने लगी
सच दादा बड़ी माँ को खड़ी खड़ी मुतते देखने पर ही मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया था।
कालू : साले तू तो बड़े मजे मार रहा है, अब मेरा भी कुछ करवा दे।
बीरजु : दादा मै क्या करवा सकता हु तुम अपने हिसाब से देख लो और वैसे भी कौन सा तुम्हारी या मेरी माँ हमसे चुदवा लेगी।
कालू : साले तू तो कोशिश कर रहा है न अपनी माँ को पटाने की।
बीरजु : अरे तुम क्या जानते नहीं मेरी माँ को वह मुझसे क्या पटेगी, उलटे मैंने कोई हरकत की तो मारेंगी अलग।
कालू : अच्छा एक बार चाची की मस्त चुत के दर्शन तो करवा दे, देख तूने तो काँटा निकालने के बहाने अपनी माँ की चुत को खूब फैला फैला कर देखा है एक बार हमें ही दिखा दे।
बीरजु : चलो कुछ मोका लगा तो बताऊँगा अभी तो मै जाता हु।
कालू : सुन माँ और गीतिका को भेज देना।
थोड़ी देर बाद माँ और गीतिका आ रही थी और मै खेतो के काम में लग गया, तभी माँ मेरे पास आकर बैठ गई और घास काटने लगी उसका मुह मेरी ओर था और उकडू बैठ कर घास काटते हुए जब वह थोड़ी आगे बढ़ी तो उसकी जाँघो में फसा घाघरा निचे सरक गया और माँ की मस्त फुली हुई बड़ी बड़ी फाँको वाली चुत एक दम से खुल कर मेरे सामने आ गई, बिलकुल गुलाबी और उसकी चुत का बड़ा सा दाना ऐसे तना हुआ था की दिल कर रहा था की उसकी पूरी चुत को
मुह में भर कर चूस लु और खूब कस कस कर नंगी करके चोदूं अपनी माँ को।
मा का चेहरा लाल हो रहा था और उसकी नजर मेरे धोती में छूपे हुए मस्त काला लंड पर थी, पर मै उस समय बहुत उत्तेजित हो गया जब मैंने गौर से देखा की
मा की चुत से हलके हलके पानी रिस रहा है, मेरा लंड धोती फाड कर बाहर आने को उतावला हो रहा था।
निर्माला : कल्लु तुझे चाची ने शाम को बुलाया है उसे कुछ काम था।
कालू :क्या काम था।
निर्माला : मुस्कुरा कर अब यह तो खुद ही पूछ लेना, न जाने उसे तुझसे क्या काम है दो तीन दिन से रोज तेरे बारे में पूछती है।
कालू : होगा कुछ बोझा उठाने का काम।
निर्माला : अब तेरे चाचा तो यहाँ रहते नहीं और बिरजु भी अभी छोटा ही है, हो सकता है चाची के पास तेरे लायक कोई काम हो, यह कह कर माँ मुस्कुरा दी
मेरा लंड माँ की बातो से और भी खड़ा हो रहा था, खेर माँ कोई भी काम हो करना तो पड़ेगा ही आखिर मेरी सागी चाची जो है।
निर्माला : कभी अपनी माँ का भी ख़याल आता है तुझे अपनी माँ का भी काम कर दिया कर।
कालू : माँ की मस्त फुल्ली चुत देखते हुये, तू बोल तो सही तेरे तो सारे काम सबसे पहले करुँगा।
निर्माला : कल्लु के लंड को देखते हुये, जा पहले चाची का काम तो कर दे फिर मेरा भी कर देना, उस दिन शम को मै चाची के खेतो में चला गया और सामने चाची
झोपडी के बाहर बैठ कर एक ट्यूबवेल के पानी से अपने घाघरे को जांघो तक चढ़ाये हुए अपनी गोरी गोरी जांघो और पिण्डलियों को धो रही थी, मेरा लंड चाची की गदराई जाँघो को देख कर मस्त खड़ा हो गया, चाची की जाँघे बिलकुल मेरी माँ की तरह ही खूब मोटी और गदराई हुई थी और उनकी जंघे और पिण्डलिया बिलकुल मेरी माँ की मदमस्त जांघो के जैसी गोरी और खूब चिकनी थी, हलाकि माँ की जाँघे और भी ज्यादा मोटी थी लेकिन चाची पूरी मस्ती में अपनी जांघो को रगड रगड कर धो रही थी, उसे बिलकुल भी मेरा ध्यान नहीं था।
और मै भी चाची की गदराई मोटी जांघो को देख कर पागल हो रहा था मेरा लंड धोती में बड़ा सा तम्बू बनाये खड़ा हो गया था और मै अपने लंड को हलके हलके मसल रहा था तभी चाची ने एक दम मेरी ओर देखा और उनकी नजर मेरे मस्त फौलादी लंड पर पड़ गई, चाची को देख हम दोनों की नजरे मिली और फिर मैंने लंड पर से हाथ हटा लिया लेकिन चाची ने अपने घाघरे को निचे नहीं किया और मेरी और मुसकुराकर देखति हुई बोलि, आ कल्लु क्या बात है आज कल तो तू अपनी चाची से बात भी नहीं करता है मेरे पास आना तो दुर की बात है.
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