RE: Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत
खैर जी ! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे TV देखने लगे, प्रिया और सुधा दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।
मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ सुधा ही रही थी और प्रिया तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।
खैर, धीरे धीरे प्रिया हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को प्रिया पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी प्रिया की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी प्रिया मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!
मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी पत्नी का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।
शुरू शुरू में तो प्रिया हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे प्रिया का अपने घर जाना कम होने लगा। अब प्रिया दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।
फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद प्रिया तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। करीब पांच हफ्ते बाद एक रात, एक रस्मी से अभिसार से असंतुष्ट सा मैं सुधा के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था कि सुधा ने मुझ से कहा- राज… चलो, कल जाकर प्रिया को ले आयें। प्रिया के बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं।
मैंने हामी भर दी।
अगले दिन हम दोनों जाकर प्रिया को ले आये। खुश सुधा ने उस रात अभिसार में मेरे छक्के छुड़ा दिए, सुधा ने मेरा लिंग चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लिंग पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लिंग अपनी गुदा पर रख कर मुझे गुदा मैथुन के लिए आमंत्रित किया, रतिक्रिया के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया।
ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब प्रिया सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी डेढ़ महीना बाकी था।
मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब प्रिया कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को ही सुधा को थाम लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!
प्रिया के आने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था?
फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं सुधा से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती सुधा के नितम्बों को सहला देना, उसके उरोजों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाती सुधा से सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने सुधा के कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसकी साड़ी के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर दबा देना।
मेरे ऐसा करने पर सुधा दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी।
दिन बढ़िया गुज़र रहे थे लेकिन मैं प्रिया में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था। मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर प्रिया की ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी प्रिया की नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।
मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती।
बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता, अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता।
एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी।
उसी मौसम में एक दिन प्रिया के कमरे के A.C की गैस लीक हो गई। बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक प्रिया के कमरे का A.C रिपेयर हो कर नहीं आता, प्रिया का बेड हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।
ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली रासलीला पर टेम्परेरी बैन लग गया था!
पर क्या करते… मज़बूरी थी।
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