RE: Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत
हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी पत्नी बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड प्रिया का फोल्डिंग बेड लगाया गया था। रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते।
सुधा मेरे बायें और प्रिया मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता।
दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि प्रिया बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था।
मैंने सिर उठा कर देखा तो सुधा को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से प्रिया का हाथ अपनी छाती से उठाया और उस हाथ उस की बगल पर रख दिया।
पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी।
क्या प्रिया ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या प्रिया मेरे साथ… सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लिंग में तनाव आ गया।
इसी उहपोह में जाने कब मेरी आँख लग गई।
दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर प्रिया के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लिंग में तनाव आ रहा था।
उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया।
अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, सुधा डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और प्रिया का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और प्रिया में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।
आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर प्रिया ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं।
पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल! पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि प्रिया का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा।
तीन चार मिनट बाद प्रिया ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी। उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह प्रिया की ओर ही था और मेरा और प्रिया का फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा।
अचानक मैंने अपने बायें हाथ को प्रिया पर रख दिया… मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था।
कोई हरकत नहीं.. ना मेरी ओर से… ना प्रिया की ओर से…
अचानक प्रिया ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, मींची आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने अपने हाथ पर जो मेरा हाथ थामे था, चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एकके बाद एक करके चूमने लगी।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लिंग जैसे फटने की कगार पर था। मैं प्रिया के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की।
करीब आधे घंटे बाद प्रिया ने ऐसा करना बंद किया।
मैंने सर उठा कर देखा तो लगा कि प्रिया सो गई थी शायद! मेरा हाथ अब भी उसके हाथ में जकड़ा हुआ था। ऐसे ही जाने कब मैं सचमुच नींद के आगोश में चला गया।
सुबह उठा तो पाया कि सुधा और प्रिया उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी सुधा अख़बार ले कर आ गई। दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया।
तभी प्रिया भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।
जैसे ही मेरी प्रिया की आँख से आँख मिली, प्रिया की नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई।
रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी।
जैसे ही प्रिया बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लिंग फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी सुधा का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लिंग पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।
सुधा चिंहुक उठी, लगी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! जैसे ही सुधा ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो प्रिया ने पूछा- क्या हुआ मौसी?
‘कुछ नहीं…’ कह कर सुधा ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लिंग जोर से पकड़ लिया।
मैं अपने मुक्त हुए हाथ से सुधा की जाँघ जांचने लगा।
सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और प्रिया के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे।
एक बात तो पक्की थी कि प्रिया की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था।
लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी।
उम्मीद है कि आपको मेरी इस पारिवारिक सेक्स स्टोरी में मजा आ रहा होगा।
कहानी जारी रहेगी।
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