RE: Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत
दूर वाला उरोज़ थोड़ा दूर पड़ रहा था तो प्रिया बिना कहे खुद ही सरक कर मेरी ओर ख़िसक आई।
अब ठीक था।मैंने अपना हाथ ब्रा के ऊपर से ही परले उरोज़ पर ऱखा और उरोज़ को थोड़ा सा दबाया। प्रिय के मुंह से बहुत ही हलकी सी ‘सी… सी’
की सिसकारी निकली।
मैंने अपना हाथ उठा कर धीरे से ब्रा के अंदर सरकाया और परले उरोज़ पर कोमलता से हाथ धर दिया। परले उरोज़ का निप्पल अभी
दबा दबा सा था लेकिन जैसे ही मेरे हाथ ने निप्पल को छूआ, निप्पल ने सर उठाना शुरू कर दिया और एक सैकिंड में ही अभिमानी
योद्धा गर्व से सर ऊंचा उठाये खड़ा हो गया।
अचानक मुझे लगा की मेरे परले हाथ की हथेली पर कुछ नरम-नरम, कुछ गरम-गरम सा लग रहा है, देखा तो अपनी चादर के अंदर
प्रिया मेरा हाथ बहुत शिद्दत से चूम रही थी, पूरे हाथ पर जीभ फ़िरा रही थी।
जल्दी ही प्रिया ने मेरे हाथ की उँगलियाँ एक एक कर के अपने मुँह में डाल कर चूसनी शुरू कर दी। मैं प्रिया के होंठों की नरमी और
उस की जीभ का नरम स्पर्श अपनी उँगलियों पर महसूस कर कर के रोमांचित हो रहा था।मेरा लिंग 90 डिग्री पर चादर और पजामे का तंबू बनाये फौलाद सा सख्त खड़ा था, मारे उत्तेज़ना के मेरे नलों में तेज़ दर्द हो रहा था।
अब सहन करना मुश्किल था, लेकिन इस से और आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था।
अपने ही बैडरूम में, अपनी ही पत्नी की कुंवारी भांजी के साथ शारीरिक संबंध बनाते या बनाने की कोशिश करते, अपनी ही पत्नी के
हाथों रंगे-हाथ पकड़े जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ और हो नहीं सकता था।मैं ऐसी बेवकूफी करने वाला हरगिज़ नहीं था।जिंदगी रही तो आगे ऐसे बहुत मौक़े मिलेंगे जब आदमी अपने दिल की कर गुज़रे और प्रिया तो राज़ी थी ही!बेमन से मन ममोस कर मैं उठा और बाथरूम में जाकर पेशाब करने के लिए पजामा खोला तो मेरा लिंग झटके से बाहर आया।
जैसे ही मैंने लिंग का मुंह कमोड की ओर पेशाब करने के लिए किया, मेरे पेशाब की धार कमोड में नीचे जाने की बजाए कमोड के ऊपर
सामने दीवार कर पड़ी, मैं अपने लिंग को नीचे की ओर झुकाऊं पर मेरा लिंग नीचे की ओर हो ही ना!
जैसे तैसे पेशाब करके मैं वापिस बैडरूम में आया ही था कि सुधा ने मुझ से टाइम पूछा, मेरी तो फट के हाथ में आ गई।ख़ैर जी!सुधा को टाइम बता कर A.C का टेम्प्रेचर थोड़ा बढ़ा कर मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, उधर प्रिया भी चुपचाप चित पड़ी सोने का
बहाना कर रही थी।
बहुत रात बीतने के बाद मुझे नींद आई।
अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। जो कुछ और जितना कुछ प्रिया के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादाहोने की गुंजाईश बहुत कम थी और ऐसा होना भी बहुत दिनों तक ऐसा होना मुमकिन नहीं था।
आज नहीं तो कल, प्रिया के कमरे का A.C ठीक हो कर आना ही था। ऊपर से अपने ही बैडरूम में सुधा के किसी भी क्षण उठ जाने का डर हम दोनों को खुल कर खेलने नहीं देता था।
मुझे जल्दी ही कुछ करना था।किसी दिन प्रिया को ले कर किसी होटल में चला जाऊं?ना… ना! यह निहायत ही बकवास आईडिया था, आधा शहर मुझे जानता था और प्रिया को होटल ले कर जाने के अपने खतरे थे।
और… घर में? घर में मेरे बच्चे थे, सुधा थी… नहीं नहीं! ऐसा होना भी मुमकिन नहीं था।तो फिर… क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाज़ा मैं चिड़चिड़ा सा हो रहा था।
रात को डिनर करने के बाद फिर बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैं अपना अंडरवियर उतार कर पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर के सीधे अपने बिस्तर पर जा पड़ा। आज प्रिया और सुधा दोनों अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी।
अपने आप में उलझे हुए मेरी कब आँख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला।
अचानक मेरे कान में कुछ सुरसुरी सी हुई, मैंने नींद में ही हाथ चलाया तो मेरे हाथ में प्रिया का हाथ आ गया, प्रिया चुपके से मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी।
मैंने प्रिया का हाथ अपनी छाती पर रख कर ऊपर अपना हाथ रख दिया और प्रिया की साइड वाला हाथ चादर के अंदर से उसके चेहरे पर फेरने लगा।माथा, गाल, कान, आँखें, नाक, होंठ, ठुड्डी, गर्दन… धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे की ओर अग्रसर था और प्रिया की साँसें क्रमशः भारी होती जा रही थी और प्रिया मुझे पिछले रोज़ की तरह से रोक भी नहीं रही थी, लगता था कि प्रिया खुद ऐसा चाह रही थी।
जैसे ही मेरा हाथ गर्दन के नीचे से होता हुआ प्रिया कंधे से होता हुआ प्रिया की छातियों तक पहुंचा तो मैं एक सुखद आश्चर्य से भर उठा। आज प्रिय ने नाईट सूट के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, बस एक पतली बनियान सी पहनी हुई थी। मेरा हाथ उरोज़ को छूते ही प्रिया के शरीर में वही परिचित झुनझुनाहट की लहर उठी।
कहानी जारी रहेगी
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