RE: Porn Kahani हसीन गुनाह की लज्जत
मैंने प्यार से प्रिया को निहारा… कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है? प्रिया का रति-मंदिर अभी भी छोटा सा ही था बल्कि प्रिया का शरीर थोड़ा भर जाने की वज़ह से पहले से भी छोटा लग रहा था. एक साफ़-सुथरा छोटा सा, बीच में से फूला सा V का आकार, जिस पर किसी रोम या बाल का नामोनिशाँ तक नहीं, जिसकी भुजाओं का ऊपर का खुला फ़ासिला तीन इंच से ज्यादा नहीं और बिलकुल मध्य में जरा सा नीचे की ओर गोलाई लेती एक पतली सी दरार जिस के ऊपरी सिरे पर से ज़रा सा झांकता भगनासा.
उस वक़्त प्रिया की योनि में से एक बहुत ही मादक सी खुशबू उठ रही थी. मैं नारी शरीर के उस अत्यंत गोपनीय अंग को निहार रहा था जिसको कभी सूर्य चन्द्रमा ने भी नहीं देखा था. बहुत ही किस्मत वाले होते हैं वो लोग जिन पर कोई नारी इतना विश्वास करती है कि उन्हें अपने गोपनीय नारीत्व के प्रतीक अंगों को निहारने और छूने की इज़ाज़त देती है.
“आओ ना…” प्रिया की गुहार सुन कर मैं बेखुदी के आलम से वापिस पलटा. मैंने बहुत ही नाज़ुकता से प्रिया को अपनी गोदी में बिठा कर आगे-पीछे हिलना शुरू कर दिया. मेरा लिंग प्रिया के नितम्बों की दरार के साथ साथ बाहर की ओर से प्रिया के नितम्बों के साथ रगड़ खा रहा था, प्रिया की दोनों टांगें मेरी साइडों से मेरे पीछे सीधे फैली हुई थी. प्रिया की योनि से निकला काम-रस मेरे लिंग की जड़ पर से हो कर नीचे की ओर बह रहा था.
मेरे दोनों हाथों ने प्रिया की पीठ को कस के जकड़ा हुआ था और प्रिया के सुपुष्ट उरोज़ मेरी छाती में धंसे हुए थे और मैं प्रिया के मुंह पर, आँखों पर, माथे पर, गालों पर, होंठों पर प्यार की मोहरें लगाता ही जा रहा था और प्रतिक्रिया स्वरूप प्रिया के मुंह से कभी आहें कराहें और कभी लम्बी लम्बी सीत्कारें निकल रही थी.
अचानक प्रिया मेरी गोदी से उठी और बिस्तर पर लेट कर याचना भरी नज़रों से मुझे देखने लगी. मैं ऐसी नज़रों का मतलब बख़ूबी समझता था. तत्काल मैंने बहुत ही इज़्ज़त और प्यार से प्रिया की रति-तेज़ से धधकती योनि पर अपना दायाँ हाथ रख दिया; उसकी योनि तो पहले से ही कामऱज़ से सराबोर थी और अभी भी ऱज़स्राव चालू था. मैंने हथेली का एक कप सा बनाया जिस में मेरी उंगलियाँ नीचे की ओर थी और उससे प्रिया की योनि को पूरा ढाँप लिया. मेरी बड़ी उंगली प्रिया की योनि के पद्मदलों पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर विचरण करने लगी.
इधर प्रिया ने मेरा काम-ध्वज अपने हाथ में ले कर उस का मर्दन शुरू कर दिया था. मैंने भी प्रिया के ऊपर लेटते हुए उस के दोनों उरोजों के मध्य में अपना मुंह लगा कर चूसना शुरू कर दिया.
मेरी इस हरकत से प्रिया के छक्के छूट गये; प्रिया को अपने जिस्म में उठती मदन-तरंग को संभाल पाना असंभव हो गया, उसके के मुंह से जोर जोर से आहें-कराहें फूटनी शुरू हो गयी और प्रिया अपनी दोनों टांगें रह रह कर हवा में लहराने लगी- आई..ई..ई..ई.!!!! सी… ई… ई..ई..ई..ई..!!! आह..ह..ह..ह..ह… ह..ह..ह!!!! उफ़..आ..आ.. आ..आ..आ.आ!! जोर से करो… हाँ यहीं… ओ गॉड!… जोर से… आह… मर गयी! सी… ई..ई..ई!
यूं मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि प्रिया की आहों कराहों के बीच यह “जोर से करो… हाँ यहीं…!” वाली डायरेक्शन मेरे होंठों के लिए थी या प्रिया की योनि का जुग़राफ़िया नापती मेरी उँगलियों के लिए? बहरहाल… मेरा और प्रिया का काम-उत्सव धीरे-धीरे अपने चरमोक्षण की ओर अग्रसर था. मेरे ख्याल से प्रिया एक से ज्यादा बार पहले ही स्खलित हो चुकी थी लेकिन मैं अभी तक डटा हुआ था. तीव्र काम-उत्तेज़ना के कारण मेरे नलों में हल्का-हल्का सा दर्द भी हो रहा था लेकिन प्रिया को सम्पूर्ण रूप से पाने की लगन कुछ और सूझने ही नहीं दे रही थी.
फिर मैंने आहिस्ता से अपनी मध्यमा उंगली प्रिया की योनि की भगनासा सहलाई और अपनी उंगली जरा सी नीचे ले जा कर दरार के ज़रा सी अंदर घुसायी; तत्काल प्रिया के मुख से आनन्दमयी कराहटों के साथ “सी… ई… ई..ई..ई..ई..!” की एक तेज़ सिसकी निकल गयी जिस में दर्द का अंश भी शामिल था.
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