RE: vasna story जंगल की देवी या खूबसूरत डक�...
एक परी सी हसीन लड़की साड़ी में लिपटी हुई छोटे से झरने के पास खड़ी थी ,वो उससे अभी दूर ही थी लेकिन अजय की नजर उसपर जम गई ,
साड़ी उसके शरीर से चिपकी हुई थी और गोरा रंग खिलकर दिख रहा था.पूरी तरह भीगी हुई अपने धुन में गाने गा रही थी,वो मस्त थी और उसकी मस्ती को देखकर अजय भी मस्त हुए जा रहा था …
दूर से ही उसे लड़की के स्तनों का आभास हुआ ,उसने कोई भी अंतःवस्त्र नही पहने थे ,अजय का दिल धक कर रह गया …
लेकिन उसे अचानक ख्याल आया की वो क्या कर रहा है ,एक स्त्री के रूप से ऐसा मोहित होकर उसे इस तरह छुप कर देखना क्या सही होगा ,उसके अंदर की नैतिकता अचानक से जाग गई और वो मुडकर तुरंत ही जाने लगा…
झाड़ियों में हुए शोर से जैसे लड़की का ध्यान उधर गया ,और उसका गाना बंद हो गया ,
अजय जैसे ठिठक गया और मुड़ा..
लड़की उसे डरकर घूरे जा रही थी साथ ही उसने अपने हाथो से अपने स्तनों को भी छुपा लिया था जैसे उसे अंदेशा हो की हो ना हो वो उसे ही घूर रहा था …
ऐसे उसके जिस्म का हर अंग घूरने के लायक था,उसके पुष्ट पिछवाड़े भी निकल कर सामने आ रहे थे,और पेट में नाभि की गहराई भी खिल रही थी ,लेकिन अजय को बस उसकी आंखे दिखी ..
बड़ी बड़ी आँखे जैसे अजय को सम्मोहित ही कर जाएगी ..
और उसमे लिपटा हुआ डर देखकर अजय को अपने स्थिति का बोध हुआ ..
वो वही से चिल्लाया
“डरो नही मैं गलती से यंहा आ गया था,मुझे माफ करो “
ये बोलता हुआ अजय वँहा से चला गया लेकिन लड़की के होठो में मुकुरहट फैल गई ….
अजय को पास ही एक छोटा सा मंदिर दिखा,छोटे से चबूतरे में एक पत्थर रखा हुआ था,जिसपर लोगो ने तिलक लगा दिया था,वो जगह साफ सुथरी थी जिससे ये अनुमान लग रहा था की यंहा लोग अक्सर आते होंगे,आस पास किसी बस्ती का नामोनिशान नही था बस वो झरना था और दूर तक बस जंगल का फैलाव …
अजय पास ही एक पत्थर में जा बैठा ..
तभी उसे पायलों की आवाज सुनाई दी ,झम झम की आवज से अजय जैसे मोहित ही हो गया ,उसने देखा वही लड़की थी ,और वही साड़ी पहने आ रही थी ,वो साड़ी अब भी गीली थी थी और उसके बदन से चिपकी हुई भी थी लेकिन लड़की के चहरे में अजय को देखकर भी डर नही था बल्कि एक मुसकान थी ,उसके हाथो में एक छोटा सा पात्र था ,वो आकर पहले तो उस छोटे पत्थर पर जल चढ़ाती है ,और फिर थोड़ी देर हाथ जोड़े जैसे भाव मग्न हो जाती है …
अजय उसके उस सौदर्य को बाद देखता ही रह गया ,गोरा कसा हुआ बदन लेकिन बेहद ही मासूम सा और आकर्षक चहरा था उसका ,चहरे के नीचे ठोड़ी में गोदना था,जो की हल्के नीले रंग में कुछ बिंदियों की तरह दिख रहा था ,नाक में छोटी सी नथनी उसके सौदर्य को और भी बढ़ा रही थी ,हाथ पाव भरे हुए थे लेकिन कही से भी चर्बी की अधिकता नही थी ,लग रही थी जैसे जंगल में जंगल की देवी उतर आयी हो ,पाव में पायल था और छोटी सी एक साड़ी उसके शरीर का एक मात्रा कपड़ा था,वो भी गीला ही था और उसके शरीर से चीपक कर उसके एक एक अंग को निखार कर सामने ला रहा था …
सबसे आकर्षक थे उसकी आंखे ,तेज आंखे,बड़ी बड़ी और बिल्कुल काली पुतलियां,अजय के जेहन में अभी भी वो आंखे घूम रही थी जो उसने झरने में देखी थी …
थोड़ी देर तक लड़की यू ही बैठी रही और अजय भी फिर वो खड़ी हुई और पास पड़ी झाड़ू उठाकर उस जगह में पड़े कुछ पत्तो को झड़ने लगी …
पास से ही कुछ फूल तोड़ लायी और उस पत्थर में चढ़ा दिया ..
फिर अजय की ओर मुड़ी जो बहुत देर से युही बैठा हुआ बस उसे ही देख रहा था…
और जाकर उसके पास बैठ गई ,अजय को जैसे कोई करेंट लगा हो ,
वो हड़बड़ाया और लड़की जोरो से हँस पड़ी .उसके साफ चमकते दांतो की पंक्तियां अजय के आंखों में झूम गई …
“अब तुम मुझसे डर रहे हो ,मैं कोई बहुत थोड़ी हु “
“तुम यंहा अकेले ..इतने घने जंगल में “
“जंगल तुम्हारे लिए होगा हमारे लिए तो घर है “
लड़की ने ऐसे कहा की अजय को अपनी ही बात पर पछतावा हुआ
“ओह और ये पत्थर “
अजय ने उस उस पत्थर की ओर इशारा किया जिसे अभी अभी वो लड़की पूज रही थी
“अरे ये पत्थर नही है ये तो देवी है जंगल की देवी ,और हमारी कुल देवी “
“ओह मुझे लगा की इस जंगल की देवी तुम हो “
अजय के मुह से अनायास ही निकल पड़ा ,
“क्या क्या कहा “
“कुछ कुछ नही “
थोड़ी देर तक कोई कुछ भी नही बोल पाया
“तुम्हारा नाम क्या है ,कहा रहती हो “
“चंपा ...मैं पास के ही कबिले के सरदार की बेटी हु और तुम ...तुम तो शहरी लगते हो यंहा क्या कर रहे हो “
“मैं इस चौकी का इंस्पेक्टर हु “
लड़की ने अजीब निगाह से उसे देखा
“ओह तुम हो नए इंस्पेक्टर ...लेकिन तुम तो पुलिस वाले नही लगते “
उसके चहरे में एक अजीब सी मुस्कान थी
“क्यो ??”
अजय को भी उसकी बात पर आश्चर्य हुआ
“क्योकि तुम इतने जवान हो और फिर भी तुमने मुझे नहाते देखकर मुह फेर लिया और यंहा के पुलिस वाले तो औरतों को देखकर लार टपकाते है ,वो पुराना इंस्पेक्टर भी वैसा ही था,सही किया मोगरा ने जो उसे मार दिया “
अजय बिल्कुल अवाक रह गया था ,वो हमेशा से शहरों में रहा था औऱ ये जगह भी उसके लिए अनजानी थी ,वो सोच रहा था की पुलिस को लेकर यंहा के लोगो का नजरिया ऐसा है …
“सभी लोग एक जैसे थोड़ी होते है “
उसने अपने बचाव में कहा
“हा लगता तो ऐसा ही है”
उस नाजुक बाला ने अपने बड़े बड़े नयनो में ऐसे चंचलता से नचाया की उसकी निगाहे सीधे अजय के दिल को छेद कर गई ,और वो उठकर भागने लगी अजय बस उसके रूप में खोया हुआ हुआ ठगा सा बैठा रह गया ...
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