RE: vasna story जंगल की देवी या खूबसूरत डक�...
इधर गांव में सरपंचों की बात आग की तरह फैल गई,पुरुष जमीदार के घर के नॉकर थे और महिलाये उनकी रखैल, ये ही उनकी नियति बन गई थी,
लेकिन इसे सभी तो स्वीकार नही कर सकते थे,बुराई जब अपने चरम में होती है तभी न्याय के लिए भी आवाज उठाई जाती है,विद्रोह के स्वर बुलंद होने लगे थे जिसमें सबसे ऊपर नाम था कालिया का…
सभी सरपंच जब सर गड़ाए बैठे थे तब कालिया दहाड़ रहा था,
“शर्म आती है मुझे तुम जैसे नपुंसको को अपना बुजुर्ग कहते हुए,उससे अच्छा अपनी बेटियों को मार ही डालो और साथ मे तुम लोग भी मर जाओ,यू नपुंसको की तरह जीने से तो कही अच्छा होगा कि तुम सभी मर जाओ,मुझे तुम्हारा फैसला स्वीकार नही है,तुम लोगो के हाथो में चूड़ियां होंगी लेकिन मैंने अपनी माँ का दूध पिया है और उसी दूध की कसम है मुझे किसी भी लड़की की ओर अगर ठाकुर या उसके आदमीयो ने छुआ भी तो उनके हाथ उखाड़ देंगे ,हम उनके खेतो में मजदूरी करते है उनके लिए फसल उगाते है,हमारी मेहनत से वो अमीर है और उसी पैसे के जोर पर हमारी ही इज्जत से खेल रहे है,कौन कौन मेरे साथ है हाथ उठाओ या नपुंसको की तरह अपनी जिंदगी चलाओ ,मेरे साथ आने पर तुम्हे अपना खून बहना पड़ेगा लेकिन मौत भी तुम्हारी शानदार होगी,”
कालिया के काले चहरे पर पसीने की बरसात हो रही थी,पूरा तन भीग चुका था,उसके एक एक शब्द मानो शोलो की तरह धधक रहे थे,गांव के कुछ नवजवान अपना हाथ उठाते है और उठकर कालिया के साथ हो जाते है,वँहा बैठे हुए बुजुर्ग बस देखते ही रहते है कि कैसे उनके बच्चे अपने हाथों में टंगिया भाले पकड़ कर ठाकुर के पिस्तौल का सामना करने निकल पड़े है,
महिलाएं जिन्होंने इन्हें दूध पिलाया था वो अपने बच्चों की बहादुरी पर अपना सीना फुलाये बैठे उन्हें दुवा दे रही थी लेकिन दिल के किसी कोने में वो डरी हुई भी थी,लगभग पूरे 3-4 गांव के कुछ जवान लड़के आगे आये ,
“उनके हाथो में बंदूख है और तुम्हारे हाथो में कुल्हाड़ी “
वही बुजुर्ग जो पुलिस स्टेशन में रोया था आंखों में पानी लाकर कालिया को देख रहा था
“बापू अब नही बहुत डर लिए हम लोग अब और नही ,उस ठाकुर ने तो हैवानियत पर उतर आया है,मैं मर जाना पसंद करूंगा लेकिन अपनी बहन और बीवी को उसके सामने नही परोसूंगा….”
कालिया की आंखे लाल थी लेकिन उसकी बात से घर के अंदर से झांकती उसकी बहन और बीवी की आंखों में भी पानी आ गया और दिल में कालिया के लिए सम्मान और भी बढ़ गया …
सभी युवक जो भी हथियार मिला उसे इकठ्ठा कर अपने अपने घरों में चले गए थे,लगभग सभी नवजवान कालिया के बात से सहमत था लेकिन वँहा कितने ही बचे थे ,सभी तो ठाकुर के पास बंधुआ मजदूर थे ,कुछ थोड़े से युवक गांव में थे …
रात की शांति में घोड़ो की आवाज ने सभी के कान खड़े कर दिए ,ठाकुर के हवस मिटाने के लिए उसके आदमी लड़की लेने आ चुके थे,आते ही उन्होंने दो तीन गोली आसमान में चला दी ,वो अभी सरपंच के ही घर के सामने थे जो की कालिया का पिता था ,
“अबे सरपंच निकल बाहर ,ठाकुर के पास कोई भी लड़की अभी तक क्यों नही पहुची …”
गरजती हुई आवाज से पूरा गांव ही गूंज गया ,नवजवानों ने पहले ही घात लगा लिया था ,वो बस इसी इंतजार में थे की कब वो लोग आये और उनपर हमला किया जाए ,20 युवक अपने हथियार के साथ कोई 10 बन्दूकधारी गुंडों का मुकाबला करने को तैयार थे ,कालिया ने एक पेड़ के ऊपर से अपने साथी को संकेत किया और उसके साथी जहर में अपने तीर को डूबा कर सीधे उस हट्टे कट्टे गुंडे के ऊपर निशाना साधा लेकिन चलाया नही ,तब तक बाकी के तीरंदाज भी अपने अपने जगह पर तीर कमान सम्हाले खड़े हो चुके थे ,कालिया के एक इशारे पर वँहा तीरों की बारिश को गई ,चीखे गूंजने लगी थी की कुछ युवक कुल्हाड़ी और लोहे के रॉड लेकर गुंडों के ऊपर टूट पड़े ,सभी इतने गुस्से में थे की उनके धड़ो से सर अलग कर भले की नोक मे लगा दिया गया था ,उत्साह उन्माद में बदल गया था और अपनी पहली जीत पर कालिया खून को अपने चहरे में मल रहा था ,,
सालो की दासता का अंत और आजादी की शुरुवात का जश्न मनाया जा रहा था ,घोड़े और बंदुखों को अपने पास रख लिया गया और एक घोड़े पर उसी गुंडे के सर को बांधकर ठाकुर के हवेली की ओर भेज दिया गया ……
पूरे गांव में मानो खुसी की लहर दौड़ गई थी ,लेकिन एक बूढ़ी आंख अभी भी चिंतित थी ,वो कालिया के पिता और गांव के सरपंच थे और कालिया के इस विद्रोह से उठाने वाली कत्लेआम को सोच कर सिहर जा रहे थे ………..
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