RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
चप्पल भोग
हमारे संभोग का अगला मादक मोड़, ख़ास कर मेरे लिए एक बड कामुक क्षण, करीब एक माह बाद एक रविवार को आया. अब तक हम रोज के क्रिया कलाप में ढल चुके थे. मैं बहुत खुश था. समझ में नहीं आता था कि प्रीतम के बिना कैसे इत'ने दिन रहा. मेरे बाल लंबे हो गये थे और प्रीतम अब प्यार से मुझे रानी कह'कर बुला'ने लगा था.
उस'की चप्पालों के प्रति मेरी आसक्ति भी चरम सीमा तक पहुँच गयी थी. जब मौका मिलता, उन्हें मैं चूम'ने और चाट'ने में लग जाता, ख़ास कर जब वे प्रीतम के पैरों में होतीं. प्रीतम अब दिन रात चप्पल पहनता. मेरे ज़िद कर'ने के कारण रात को भी पहन कर सोता था.
दो हफ्ते पहले प्रीतम ने अचानक अपनी चप्पल बदल ली थी. मुझे तो उसका कण कण पहचान का हो गया था. सहसा एक दिन उस'के पैर में उस क्रीम कलर की चप्पल के बजाय एक हल्के नीले सफेद रंग की चप्पल थी. थी यह भी रब्बर की हवाई चप्पल पर बड़ी ही नाज़ुक थी. इतनी पुरानी थी कि घिस घिस कर उस'के सोल ज़रा से रह गये थे. पट्टे भी घिस कर पतले हो गये थे और टूट'ने को आ गये थे. मुलायम तो इतनी थी जैसे रेशम की बनी हो. मुझे वह बड़ी पसंद आई. मैने पूचछा भी कि कहाँ से लाया तो कुच्छ नहीं बोला.
तुझे पसंद आई ना रानी, बस मज़ा कर. जहाँ से लाया हूँ वहाँ और भी हैं. रविवार को हम बाथ रूम में ही बहुत देर रहते और चुदाई करते. उस रविवार को हमेशा की तरह पहले मैं उस'के मुँह में मूता और उसे पेट भर'कर अपना मूत पिलाया. उस'ने मेरे मुँह में मूत'ने से इनकार कर दिया. बोला कि उसे पेशाब नहीं लगी. वह सिर्फ़ बहाना था यह मैं जान'ता था.
उस दिन उस'के दिमाग़ में ज़रूर कोई नयी शैतानी थी. वह साथ में रेशम की मुलायम रस्सी के दो टुकडे और रब्बर का एक बड चार पाँच इंच चौड छह सात इंच व्यास का बैंड लाया था. शायद किसी टायर ट्यूब में से काट हो. मेरे पूच्छ'ने पर, कि यह क्या है, कुच्छ ना बोला और हंस दिया.
मैने रोज की तरह प्रीतम की उन भीगी पतली चप्पालों के पंजे अप'ने मुँह में लिए और चूस'ने लगा. फिर वह मुझे दीवार से टिका कर मेरी गान्ड मार'ने लगा. ऊपर से गिरते शवर के ठंडे पानी के नीचे बहुत देर उस'ने मेरी गान्ड चोदी. झड'ने के बाद उस'की गान्ड मार'ने की बारी मेरी थी पर वह मुझ पर चढ़ा रहा और अपना झाड़ा लंड मेरे गुदा में ही रह'ने दिया. मुझे नीचे लिटा कर वह मेरे ऊपर सो गया. मेरा लंड टटोल कर बोला.
मस्त खड़ा है यार, अब और खड करूँ? मैने चप्पल मुँह में लिए हुए ही अस्पष्ट स्वर में कहा कि इससे ज़्यादा खड़ा वह क्या करेगा? उस'ने एक चप्पल मेरे मुँह से निकाल'कर नीचे रख दी और मुझे बची हुई चप्पल पूरी मुँह के अंदर लेने को कहा.
देख'ता जा कैसे तेरा और खड़ा कर'ता हूँ. पर पहले आज पूरी चप्पल मुँह में ले ले यार. यह पतली वाली है. तू ले लेगा. मैं कब से तेरे मुँह में अपनी पूरी चप्पल ठूँसी देखना चाह'ता हूँ. मेरी पुरानी वाली ज़रा मोटी थी, उसे तू नहीं ले पाता इसीलिए तो ये वाली मंगाई है मुझे भी यही चाहिए था. उस'की सहाय'ता से आधी से ज़्यादा चप्पल मैने आप'ने मुँह में आराम से ठूंस ली. बीच में वह बोला.
क्रमशः................
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