RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (10)
गतान्क से आगे........
हां प्रीतम राजा, मैं सच कह रहा हूँ. प्लीज़, मिटा दे मेरी भूख. तेरी गान्ड के हालूए के आगे दुनिया की कोई भी मिठायी फीकी है उसे भी अब जल्दी हो रही थी, लंड ऐसा खड़ा था कि जैसे फट जाएगा. मेरे शरीर के दोनों ओर पैर जमा कर वह नीचे बैठ और खिसक'कर निशाना जमा'ने लगा. उस'के मासल भारी भरकम चूतड अब मेरे चेहरे के ठीक ऊपर थे.
मैने अप'ने हाथों से उस'के नितंब चौड़े किए और पास से गुदा के अंदर देखा. मज़ा आ गया. अंदर ठोस टट्टी दिख रही थी. गुदा को चूम'कर मैने उस'में अपनी जीभ डाली उस हालूए का स्वाद लेने को. मेरी जीभ का छ्होर उस ठोस माल में गया और उस कसाले खटमिट्ठे स्वाद से और इस घिनौने काम की कामुक भावना से मेरा लंड लोहे के डंडे जैसा तंन गया.
राजा, मेरे स्वामी, एक एक नीवाला खिलाना, जल्दी नहीं करना, मैं स्वाद ले लेकर खाऊंगी अप'ने प्राणनाथ की टट्टी. कहते हुए मैं मुँह फाड़ कर इंतजार कर'ने लगा. प्रीतम उत्तेजना में मेरे खुले मुँह पर अपना गुदा जमा कर बैठ गया और शुरू हो गया.
ले माधुरी रानी, मज़ा कर, खा मेरी टट्टी. उस'की गान्ड का छेद खुला और एक मोटी ठोस लेंडी मेरे मुँह में उतर'ने लगी. मेरे यार की वह गरम गरम ठोस टट्टी मेरे मुँह में गयी तो मैं झड'ने को आ गया. पूरी बड़ी लेंडी मेरे मुँह में जा'ने के बाद मैने आँखों से उसे इशारा किया और प्रीतम ने गुदा सिकोड कर लेंडी मेरे मुँह में गिरा दी.
मैं मुँह बंद कर के उसे चबा कर खूब स्वाद ले लेकर खा'ने लगा. कड़वे से और कसाले स्वाद के बावजूद मेरी उस कामुक हालत में मुझे वह किसी पकवान से कम नहीं लग रही थी. जब मैने टट्टी निगल ली तो प्रीतम मेरा लंड पकड़'कर बोला.
कैसी लगी रानी, ज़रा ब'ता तो! मज़ा आया? रोज खा सकेगी? मैं होंठ चाटते हुए बोला.
मेरे राजा, अब बाथ रूम में तुम सिर्फ़ नहा'ने को आना. बा'की सब काम मेरे मुँह में ही करना. बहुत अच्च्छा लग रहा है यार, पर अभी बंद मत करो, मैं पेट भर कर खाना चाह'ती हूँ
फ़िक्र मत कर मेरी रानी, अब तो रोज तुझे पेट भर'कर खिलाऊँगा. कह'कर प्रीतम'ने ज़ोर लगा'कर अगला नीवाला अपनी गान्ड से निकाला और मेरे मुँह में डाल दिया. उस'की साँसें ज़ोर से चल रही थी, अप'ने लंड को पकड़ कर वह कस कर मुठिया रहा था. मैने हाथ बढ़ा'कर उसका हाथ थाम कर उसका हस्तमैथुन बंद किया नहीं तो साला वैसे ही झड जाता.
प्रीतम की गान्ड खाली कर'ने में दस मिनिट लग गये. बीच में एक दो बार प्रीतम अपना पूरा वजन देते हुए मेरे मुँह पर ही बैठ गया. गांद हिला हिला कर वह मेरे मुँह पर अपना गुदा रगड़ रहा था.
खा रानी, ये ले , और टट्टी खा मेरी जानेमन. मेरी रानी के लिए मेरी टट्टी हाजिर है, तुझसे मैं इतना प्यार कर'ता हूँ कि आज के बाद तेरा पेट दिन में दो बार भर दूँगा इस हालूए से वह सिसक सिसक कर हाँफटे हुए कह रहा था.
जब उस'की गान्ड खाली हो गयी तो उस'ने एक गहरी साँस ली. मैने उसका गुदा चाट चाट कर सॉफ किया और अपनी जीभ गहराई तक उस'की गान्ड में डाल कर कण कण ढूँढ कर खा लिया.
प्यास लगी है राजा, अब मूत भी पीला दे तो मेरा खाना पूरा हो जाए. मैने कहा. प्रीतम उठा और झट से उस'ने मुझे दबोच कर मेरा मुँह खोला और अपना बुरी तरह से सूजा हुआ लंड मेरे मुँह में घुसेड दिया. पूरा लॉडा मेरे गले तक उतार'ने के बाद उस'ने मेरा सिर पकड़'कर अप'ने पेट पर दबाया और ज़मीन पर लेट कर मेरे मुँह को घचाघाच चोद'ने लगा.
मैं दम घुट'ने से गोंगिया'ने लगा. गले के अंदर वह मोटा लॉडा घुस'ने से तकलीफ़ हो रही थी पर मज़ा भी आ रहा था. प्रीतम ने परवाह नहीं की और मेरा मुँह चोद'ता रहा. झड कर पहले उसका वीर्य मेरे पेट में गया और फिर बिना रुके उस'ने मेरे मुँह में मूत कर मेरी प्यास बुझा दी.
इस दौरान मैं उस'के चूतडो को बाँहों में भर'कर उस'की गान्ड में उंगली कर रहा था. टट्टी के बाद उस'की गान्ड एकदम गीली चिकनी और गरम हो गयी थी. क्या मज़ा आएगा मेरे यार की वह टट्टी की हुई गान्ड मार'कर, मैं सोच रहा था. इस'लिए मेरे मुँहासे लंड निकाल'कर जब प्रीतम आख़िर उठ'ने लगा तो उसे मैने खींच कर फर्श पर ऑंढा पटक दिया और उस पर चढ कर अपना लंड उस'की गान्ड में उतार दिया.
प्रीतम को आश्चर्य हुआ पर वह अब बहुत अच्छे मूड में था. चुपचाप पड़ा पड़ा मरावाता रहा. मैने मन लगा कर उस'की गान्ड मारी और प्रीतम ने भी मेरा आनंद बढ़ा'ने को अप'ने चूतड उच्छाल उच्छाल कर मरवाई. आख़िर जब हम बेड रूम में गये तो मैं अपनी ब्रा, पैंटी और विग उतार'ने लगा.
रह'ने दे यार, बहुत प्यारा लग'ता है. अब घर में ऐसा ही रहा कर. आदत डाल ले. रात को प्रीतम ने मुझे कहा.
आ यार, देखेगा मेरी मा और प्रदीप की तस्वीर? मैं उच्छल पड़ा. आख़िर उस'ने मुझे अप'ने घर की बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था, नहीं तो वह कभी नहीं दिखाता! मैं हमेशा की तरह गान्ड में उसका लंड लेकर उस'की गोद में बैठ था. वह वैसे ही उठ कर मुझे बाँहों में उठ'कर अपनी सूटकेस के पास आया और एक लिफ़ाफ़ा निकाल'कर वापस सोफे पर आ गया. तब तक मैं पैर उठ'कर उस'की गर्दन में बाँहें डाल'कर लटका रहा. अब गान्ड में उसका लंड ना हो तो मुझे अटपटा लग'ता था.
लिफाफे से निकाल'कर उस'ने अपनी मा और प्रदीप की फोटो दिखाई. पहली फोटो में तीनों पूरे कपड़ों में एक साथ खड़े थे. प्रदीप प्रीतम जैसा ही दिख'ता था, ज़रा और लंबा और तगड़ा था. उन'की मा को देख'कर तो मैं दीवाना हो गया. रंग सांवला था, करीब करीब काला ही था पर भरे हुए शरीर की उस नारी को देख'कर ही मन में असीम कामना जाग'ती थी. साड़ी सफेद साड़ी और चोली में उस'के भारी भरकम उरोज आँचल के नीचे से भी दिख रहे थे. बालों में कुच्छ सफेद लटे भी थी. आँखों में छिनालपन लिए वह बड़े शैतानी अंदाज से मुस्करा रही थी.
बस दो फोटो और थी. उन'में चेहरा नहीं था, पर सॉफ था कि किस'की हैं. एक में मा का सिर्फ़ जांघों और गले के बीच का नग्न भाग था. ये बड़े बड़े नारियल जैसे लट'के मम्मे और उनपर जामुन जैसे चूचुक. झाँटें ऐसी घनी कि आधा पेट उन'में धक गया था. दूसरे फोटो में मा की झांतों से भरी चूत में धंसा एक गोरा गोरा लंड था. सिर्फ़ ज़रा सा बाहर था इस'लिए लंबाई तो नहीं दिख रही थी पर मोटायी देख'कर मन सिहर उठ'ता था. किसी बच्चे की कलाई जैसा मोटा डंडा था. मेरे चेहरे पर के भाव देख'कर वह हंस'ने लगा.
मज़ा आएगा जब तेरी गान्ड में यह लंड उतरेगा. तेरा मुँह बाँधना पड़ेगा नहीं तो ऐसा चीखेगा जैसे हलाल हो रहा हो. मुझे भी बहुत दुखा था. मैं बस आठ साल का था जब प्रदीप ने मेरी मारी थी. रात भर बेहोश रहा था मैं. बोल अब भी तैयार है प्रदीप की बहू बन'ने को या डर गया? मैं डर तो गया था पर उस'की मा के सेक्सी देसी रूप और प्रदीप के लंड की कल'पना से लंड में ऐसी मीठी कसक हो रही थी कि मैं मचल उठा.
प्रीतम मेरे राजा, मैं मर भी जाऊं तो भी चलेगा! मुझे गाँव ले चल और तुम तीनों का गुलाम बना ले. दूसरे ही दिन प्रीतम ने मेरे तीन फोटो खींचे. एक पूरे कपड़ों में लड़'की के रूप में और एक सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और विग में. पैंटी के ऊपर के भाग से मेरा लंड बाहर निकल'कर दिख रहा था. तीसरे में मैं पूरा नग्न अप'ने स्वाभाविक लड़'के के रूप में था. फोटो के साथ एक चिठ्ठी लिख'कर उस'ने प्रदीप को बताया कि उस'के मन जैसी 'शी मेल' बहू मिल गयी है और उसे पसंद हो तो आगे जुगाड़ किया जाए.
अगले कुच्छ दिन मज़े में गये. हर हफ्ते दो तीन बार प्रीतम एक चप्पल मुझे खिला देता. हां उस दिन के बाद उस'ने मेरे मुँह में टट्टी नहीं की. मैने बहुत मिन्नत की पर वह अडिग रहा. बोला.
अब एकदम तू बहू बन'ने के बाद होगा सब कुच्छ. अभी से तू उसका आदी हो जाएगा तो फिर सुहाग रात में मज़ा नहीं आएगा. मैं चाह'ता हूँ कि कम से कम कुच्छ ऐसे मामलों में तू कुँवारा रहे. इसीलिए चप्पल की जोड़ी भी अब तक मैने एक साथ तेरे मुँह में नहीं ठूँसी. अब गाँव में तीनों मिल'कर तेरे साथ ये सब घिनौने कुकर्म करेंगे तब आएगा मज़ा. और एक बात है, तेरी चप्पालों की कितनी जोड़ियाँ हैं तेरे पास मैने कहा कि आधा दर्जन हैं. मुँह बना'कर वह बोला
कम पड़ेंगीं. आज ही दर्जन भर और ले आते हैं, उन्हें पहनना शुरू कर दे. उस दिन जा'कर मेरे नाप की एक दर्जन चप्पलें हम ले आए. सब पतली नाज़ुक और एकदम पतले पत्तों वाली थी. मेरी पुरानी चप्पलें उस'ने अंदर रख दीं, और बोला कि ये सब नयी चप्पलें रोज बारी बारी से पहनूं, उन्हें घिसना और मेरे पैर का स्वाद लगाना ज़रूरी है.
मैने बॉल कटाना कब का छोड दिया था. पहले ही मेरे बाल काफ़ी लंबे थे, अब करीब करीब कंधे तक आ गये थे. जल्दी भी बढाते थे इस'लिए मुझे विश्वास था कि दो तीन माह में चोटी या जूड़ा बाँध'ने लायक हो ही जाएँगे.
मैं अर्धनारी बना
दो हफ्ते बाद प्रदीप का जवाब आया. पढ कर प्रीतम मुस्करा'ने लगा, फिर थोड गंभीर हो गया. मैने धडकते दिल से पूचछा
क्या हुआ यार? प्रदीप भैया को मैं पसंद आया या नहीं?
हां और ना. कह'ता है कि बड़ा प्यारा छोकरा है. देखते ही उसका लंड खड़ा हो गया. पर एक बात पर वह अड़ा है. कह'ता है की चूचियाँ नहीं हैं लड़'के की. प्रीतम बोला.
पर ब्रा तो मैं पहनूंगा ना? और बड़ी पहन लूँगा. मैने कहा.
वह असली चूचियाँ चाह'ता है. तूने देखा है ना उन शी मेल फोटो में? वे लड़'के इंजेक्शन से और ऑपरेशन से सच मुच के मम्मे बढ़ा लेते हैं. प्रदीप चाह'ता है कि तेरी भी वैसी ही चूचियाँ हों. मैं उदास हो गया. असली चूचियाँ मैं कहाँ से लाऊँ? प्रीतम मुझे प्यार से चूम कर बोला.
तू तैयार है क्या चूचियाँ उगा'ने को? फिर मैं जुगाड़ कर'ता हूँ. एक डॉक्टर है मेरी पहचान का. वह ऐसा कर'ता है. बस दो घंटे का ऑपरेशन है. दो हफ्ते में टाँकों के निशाम भी भी गायब हो जाएँगे. फिर मज़ा ही मज़ा है. मैने पूच्छा.
पर यार, सिलिकॉन के इंजेक्शन से तो दस मिनिट में हो जाएगा. फिर ऑपरेशन की क्या ज़रूरत है?
सादे मम्मे थोड़े उगाएँगे तेरे! सच के मम्मे जिन'में दूध भी भरा जा सके. प्रीतम मुस्कराता हुआ बोला. मेरे चेहरे पर झलक आए आश्चर्य को देख'कर उस'ने समझाया.
तेरी छा'ती में चमडी के नीचे दो रब्बर की थैलियाँ भरी जाएँगी. उनका मुँह तेरे चूचुकों के छेद से जोड़ा जाएगा जिससे ऊपर से पिचकारी से उन'में दूध, बीयर, शराब कुच्छ भी भरा जा सके. फिर उन'के चारों ओर स्पंज की गद्दियाँ लगा'कर आख़िर में ऊपर से इंजेक्शन से चमडी के नीचे सिलिकॉन भर देंगे. मस्त बड़ी दुधारू भैंस जैसे थन हो जाएँगे तेरे. तेरी चूचियाँ चूस'ने में फिर बहुत मज़ा आएगा. प्रदीप की बहुत इच्च्छा है कि उस'की बाहू के ऐसे मम्मे हों. बोल, है तैयार? मुझे उलझन में पड देख'कर उस'ने समझाया.
लगा ले मेरी जान, चार पाँच साल ऐश करेंगे. फिर चाहे तो दूसरे ऑपरेशन से निकाल देंगे. तू पहले जैसा वापस हो जाएगा. मैने कल'पना की कि अपनी चूचियाँ मैं खुद मसल रहा हूँ या उन'में दूध भर'कर प्रीतम को चुसवा रहा हूँ. ऐसा लंड तन्नाया कि मैं सिसक कर प्रीतम से चिपट गया.
चल करवा दे यार आज ही, अब मुझसे नहीं रुका जाता. प्रीतम इतना खुश हुआ कि मुझे उठ'कर बाँहों में जकड'कर चूम'ने लगा. उस रात उस'ने मुझे इतना प्यार किया और हौले हौले मन लगा'कर मुझसे हर तरह की इतनी रति की कि मैं निहाल हो गया. उस'ने डॉक्टर को फ़ोन कर'के अगले ही हफ्ते का समय भी ले लिया.
ऑपरेशन आसानी से हो गया. डॉक्टर बूढा खूसट था पर था एकदम एक्स्पर्ट. उस'ने ज़रा भी नहीं पूचछा कि मैं यह क्यों कर रहा हूँ. वह यह भी समझ गया था कि प्रीतम मेरा कौन लग'ता है! उसी से उस'ने पूचछा कि कितनी बड़ी चूचियाँ बनाना है और कितनी केपेसिटी की रब्बर की थैलियाँ अंदर रखना है? प्रीतम तो तैश में बोला कि बना दो चालीस साइज़ की, मस्त एक एक लीटर की चूचियाँ. पर डॉक्टर ने समझाया कि मेरे छरहरे बदन और सीने की चमडी से वे नहीं संभालेंगे, जल्द ही लटक जाएँगे.
डॉक्टर की सलाह पर मेरे छत्तीस साइज़ के स्तन बनाए गये. अंदर पाव पाव लीटर की दो रब्बर की थैलियाँ डाली गयीं. इम्पोर्टेड थी, महँगी पर प्रीतम ने सारे पैसे दिए. लगे हाथ मेरी झाँटें बिलकुल सॉफ कर दी गयीं और एलेक्ट्रोलिसिस से उन्हें जड़ तक ख़तम कर दिया गया. मेरी टाँगें, कांखों के बाल सब जगह के बाल उड़ा दिए गये. सिर के बालों को छोड'कर अब मेरा शरीर एकदम चिकना था.
क्रमशः................
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