RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (13)
गतान्क से आगे.......
वो ब्रा बिलकुल छोटी और तंग थी और मेरे बदन पर चढ़ा'ने के लिए उसे खूब तानाना पड़ा. ब्रा ने मेरी चूचियाँ और छा'ती कस'कर जकड लिए. मेरे मम्मे तन के फूले थे इस'लिए रबड से जकड'ने के बाद थोड़े दुख रहे थे पर रबड के मुलायम स्पर्श से उन'में अजीब सी सुखद सनसनी हो रही थी. उस'के बाद काले रबड की पैंटी पहना'कर मेरा खड़ा लंड उस'में दबा दिया गया. पैंटी पीछे से गुदा पर खुली थी. मा ने समझाया.
तू अधनन्गी इतनी प्यारी लग'ती है कि तेरी गान्ड मार'ने के लिए यह पैंटी नहीं उतारना पड़े इस'लिए ऐसी है. अब तेरे लंड का काम होगा तभी यह उतरेगी. प्रीतम मुझसे चिपकना चाह'ता था पर मा ने उसे डाँट दिया.
चल दूर हो, तेरी भाभी है, आज पहले प्रदीप चोदेगा मन भर कर, तू मेरे साथ आ जा दूसरे पलंग पर. मेरी गान्ड मारना और प्रदीप के करतब देखना. फिर बहू पर करम करेंगे.
मुझे आज उन्हों'ने पूरा सजाया था. हाथों में चूड़ियाँ, कान में बूंदे, पाँव में पायल और बनारसी साड़ी चोली पहनाई. मेरे बाल कंधे तक लंबे हो ही गये थे. उस'में माजी ने फूल गूँध कर चोटी बाँध दी.
अरे प्रदीप अब ज़रा चप्पल ले आ बहू की, खुद ही पसंद कर ले मा ने आवाज़ लगाई. प्रदीप एक गुलाबी चप्पल ले आया. मेरी वही प्यारी घिसी हुई चप्पल थी, प्रदीप ने अचूक चुना ली थी. उस'ने प्यार से मेरे पैर में पहनाई. फिर झुक कर उसे चूम लिया. मेरा रोम रोम रोमाच से सिहर उठा, क्या प्रदीप को भी मेरी चप्पालों से वही करना था जो मुझे उन'की चप्पालों से ये करवा'ने वाले थे!
अरे अभी नहीं, चुदाई तो शुरू होने दे, फिर लेना बहू का प्रसाद मा ने उसे झटकारा.
चलो अब खा लो कुच्छ. फिर बेड रूम में चलते हैं. मा बोलीं. प्रदीप और प्रीतम के साथ वे रसोई में आईं. मुझे परोस'ने को कहा गया.
चल आज से ही काम पर लग जा. ह'में परोस. खाना तो तू खा चुकी है. आगे प्रदीप भी प्यार से खिलाएगा. कल से धीरे धीरे घर का काम भी सिखा दूँगी. घर का पूरा काम करना और हम सब की सेवा करना यही तेरा काम है अब. मा ने कहा.
खाना खाते खाते सब मुझे नोंच रहे थे. जब भी मैं किसी को परोस'ने जाता, कोई मेरी चूची दबा देता या चूतड या जाँघ पर चूंटी काट लेता. धीरे नहीं, ज़ोर से कि मैं तिलमिला जाउ. एक बार रोटी ला'ने में मुझे देर हुई तो प्रदीप ने मज़ाक में ज़ोर से मेरी चूची मसल दी.
जल्दी जानेमन, नखरा नहीं चलेगा. ठस्स भरी होने से पहले ही मेरी चूचियाँ दुख रही थी. अब मैं कसमसा गया और रोने को आ गया.
रोती क्यों है बहू, तेरा पति है, तेरे जवान शरीर को मसलेगा ही. और पिटायी भी करेगा! हमारे यहाँ बहुओं की कस कर पिटायी होती है. इस'लिए जो भी तुझसे कहा जाए, तुरंत किया कर. हम सब भी तेरे शरीर को मन चाहे वैसे भोगेंगे. हमारा हक है. और जब प्रदीप का लॉडा लेगी तो क्या करेगी? मर ही जाएगी! बड़ी नाज़ुक बहू है रे प्रदीप. मा बोलीं.
ऐसी ही चाहिए थी मा, सही है. ज़रा रोएगी धोएगी तो चोद'ने में मज़ा आएगा. मैं तो मा रुला रुला कर चोदून्गा इसको! प्रदीप अपना लंड सहलाता हुआ बोला. खाना खा'ने के बाद मा बोलीं.
चलो अब बहू से एक रस्म भी करा लेना. ले बहू, दूसरे टायलेट में ताला लगा दे. और मुझे एक बड़ा ताला उन्हों'ने दिया. मैने संडास में ताला लगा'कर चाबी उन्हें दे दी.
अब सब'के पैर पड़ और उन्हें बोल कि अब से तेरा मुँह ही इन सब का टायलेट है, उसीमें सब किया करें. मा के कह'ने पर मैने बारी बारी से सब'के पैर च्छुए और बोला.
मेरे प्राणनाथ, मेरे देवराजी, सासूजी, आज से आप'के शरीर से निकली हर चीज़ पर मेरा हक है. मेरे मुँह को आप टायलेट जैसा इस्तेमाल कीजिए.
सब'के पैरों में रबड की चप्पलें थी. उन्हें देख'कर मुझे अजीब सी मीठी सनसनी हुई. मा वही पतली हरी चप्पल पहनी हुई थी जो मेरे मुँह में ठूंस कर मुझे गाँव लाया गया था. प्रीतम के पैर में मैने ही खरीदी हुई नीली चप्पल थी. और मेरे पति के पैरों में सफेद क्रीम रंग की चौड़े पत्तों वाली चप्पलें थी, मोटी और हाई हील स्टाइल की. मुझे रोमाच हो आया. सोच'ने लगा कि सबसे पहले कौन इन्हें मेरे मुँह में देगा? शायद प्रदीप! मैने पैर छूते समय झुक'कर उन सब चप्पालों को छुआ और फिर चूम लिया. माजी मेरी इस हरकत पर खुश होकर बोलीं.
बड़ी प्यारी है मेरी बहू. घबरा मत बेटी, ये सब चप्पलें तेरे लिए हैं. हम तो तुझे खूब खिलाएँगे, बस तू खा'ती जा फटाफट. प्रदीप, चलो अब देर ना करो. बहू को उठा कर ले चलो. वो बेचारी कब से तडप रही है तुझसे चुद'ने को! मैं सिहर उठा. मेरी सुहागरात शुरू होने वाली थी!
सुहागरात, बहू का प्रसाद और पति का आशीर्वाद
प्रदीप मुझे उठा कर चूम'ता हुआ पलंग पर ले गया. मा और प्रीतम भी पीछे थे. मुझे पलंग पर पटक कर प्रदीप मुझपर चढ गया और ज़ोर ज़ोर से मुझे चूम'ने लगा. उस'के हाथ मेरी चूचियाँ और नितंब दबा रहे थे. मुझे बहुत अच्च्छा लगा. आख़िर वह मेरा पति था और अब मेरे शरीर को भोग'ने वाला था. आँखें बंद कर'के मैं उस'की वासना भरी हरकतों का आनंद लेने लगा.
बहू को नंगा करो प्रदीप. बहुत लाड हो गया. अपना काम शुरू करो. और अप'ने अप'ने कपड़े भी उतारो माजी ने हुक्म दिया.
सब फटाफट नंगे हो गये. प्रीतम को तो मैने बहुत बार देखा था. माजी का नग्न शरीर भी आज नहाते समय देख लिया था. पर प्रदीप को मैं पहली बार देख रहा था. उस'के हट्टे कट्टे पहलवान जैसे शरीर को देख'कर मैं वासना से सिहर उठा. क्या तराशा हुआ चिकना मास पेशियों से भरा हुआ बदन था! चूतड़ बड़े बड़े और गठे हुए थे. मैं सोच'ने लगा कि अप'ने पति की गान्ड मार'ने को मिले तो मैं तो खुशी से पागल हो जाऊँगा.
पर प्रदीप का लंड देख'कर मैं घबरा गया. मन में कामना के साथ एक भयानक डर की भावना मन में भर गयी. प्रदीप का लंड आदमी का नहीं, घोड़े का लंड लग'ता था एक फुट नहीं तो कम से कम दस ग्याराह इंच लंबा और ढाई-तीन इंच मोटा होगा!. सुपाड़ा तो पाव भर के आलू जैसा फूला हुआ था! और नसें ऐसी की जैसे पहलवान के हाथ पर होती हैं! घबरा कर मैं थरथर काँप'ने लगा.
मेरी घबराहट देख कर सब हंस'ने लगे. प्रीतम तुरंत मेरी ओर बढ़ा. उस'की आँखों में भी मेरे प्रति प्यार और वासना उमड आई थी.
अरे घबरा गयी माधुरी भाभी? मैने पहले ही कहा था कि प्रदीप का लंड झेलना आसान काम नहीं है. आ तेरे कपड़े उतार दू! भैया, कहो तो मैं चोद लूँ भाभी को?
तू नहीं रे छोटे, तूने बहुत मज़ा लिया है. अब प्रदीप पहले इसे चोदेगा. फिर हम चखेंगे बहू का स्वाद. प्रदीप बेटे, इस'के सब कपड़े निकाल दे, सिर्फ़ ब्रा और पैंटी रह'ने दे. पैंटी में पीछे से च्छेद है, तू आराम से उस'में से इसे चोद सकेगा. देख अधनन्गी बहू क्या ज़ुल्म ढा'ती है. और हां चप्पलें भी पैरों में रह'ने दे, इस'के नाज़ुक पैरों में बहुत जच'ती हैं. माजी बोलीं.
प्रदीप ने फटाफट मेरी साड़ी और चोली उतार दी. काली रबड की ब्रा और पैंटी में सज़ा मेरा गोरा दुबला पतला शरीर देख'कर सब आअह, उफ़, मार डाला कह'ने लगे. प्रदीप मेरे सारे शरीर को चूमते हुए नीचे की ओर बढ़ा और मेरे पैरों और चप्पालों को चूम'ने लगा. फिर उस'ने मेरी एक चप्पल का सिरा मुँह में लिया और चूस'ने लगा.
प्रीतम और माजी भी मेरे दूसरे पाँव पर लगे थे. मेरे तलवे चाट रहे थे. माजी सिसक कर बोलीं.
अब नहीं रहा जाता, बहुत प्यारी हैं रे इस छ्हॉकरी की चप्पलें प्रीतम बेटे, तू सच कह'ता था. अब चलो बहू का प्रसाद पा लो, फिर उसे चोदेन्गे. मेरे पैरों से चप्पलें निकाल'कर वे उनपर टूट पड़े. प्रदीप ने सीधे एक छ्चीन ली.
मा, एक पूरी मेरी है, आप दोनों दूसरी बाँट लो, माधुरी रानी, आ, अप'ने हाथ से खिला मुझे. सुहागरात को अपनी प्यारी बीवी की चप्पल खा'ने मिली है, मज़ा आ गया. मा बोलीं.
ये ठीक नहीं है प्रदीप, सास के नाते मेरा हक ज़्यादा है, मैं सोच रही थी एक पूरी लेने की, पर जा'ने दे, आख़िर तेरी पत्नी है. बहू पहले तू इधर आ, इस चप्पल के पत्ते अलग कर और प्रीतम को दे, नीचे का सपाट चमचम मुझे दे दे, अप'ने नाज़ुक हाथों से मेरे मुँह में डाल दे.
मैं वासना से थारतरा रहा था. इतनी बार मैने प्रीतम की चप्पलें खाई थी पर अब पता चल रहा था कि किसी को अप'ने पैरों की चप्पल खिला'ने में क्या मज़ा आता है, वो भी अपनी सास को, पति को और देवर को एक साथ. प्रीतम बोला
जल्दी करो भाभी, आप'ने पैरों का प्रसाद ह'में दो, तुम घर की लक्ष्मी हो, तुम्हारा प्रसाद पा कर ही हम फिर तेरी भूख बुझायेँगे, तन की और पेट की.
माजी पलंग पर लेट गयीं. मैं उन'के सिराहा'ने बैठ गया. चप्पल हाथ में ले कर मैने खींच'कर उस'के पत्ते निकाले. प्रीतम पास ही बैठ था. उस'ने अपना मुँह खोल दिया.
पट्टे मुझे दे दे भाभी, फिर प्यार से मा को खिलाना.
मैने अप'ने हाथों से प्रीतम के मुँह में अपनी चप्पल के पत्ते दे दिए. वह आँखें बंद कर'के उन्हें चबा'ने लगा. एक असीम सन्तोष उस'के चेहरे पर झलक रहा था. पल भर को आँखें खोल कर उस'ने इशारों से मुझे कहा कि क्या मस्त माल है और फिर आँखें बंद कर'के चबा'ने लगा. माजी बोलीं.
देख बहू, हम सब को अपना प्रसाद देकर फिर जब तक हम इसे खाएँ, हमारी सेवा करो, अब देर ना करो, तेरी ये सास कब से तडप रही है तेरे नाज़ुक पाँव का स्वाद लेने को. और मुँह खोल कर मेरी जाँघ पर सिर रख'कर लेट गयीं. प्रदीप भी मेरी दूसरी जाँघ को सिराहा'ने लेकर लेट गया.
माधुरी रानी, जल्द मा को दे, फिर इस तरफ देख, तेरा ये गुलाम भी तो तरस रहा है, कब से भूखा है तेरी चप्पल के लिए.
मुझे कैसा कैसा हो रहा था. लंड ऐसा सनसना रहा था जैसे फट जाएगा. मैने झुक कर माजी के खुले रसीले मुँह में मुँह डाल दिया और उन'की जीभ चूस'ने लगा. फिर बड़ी मुश्किल से उस शहद को छोड'कर मुँह ऊपर किया और तारथराते हाथों से पत्ते निकाली चप्पल का सपाट सोल उन'के मुँह में दे दिया.
उन्हों'ने उसे झट से आधे से ज़्यादा निगल लिया. ये कोई मुश्किल काम नहीं था, मेरी चप्पल इतनी पुरानी और घिसी पीटी थी कि बस चॅपा'टी सी हो गयी थी. उन्हों'ने मेरा हाथ पकड़'कर चप्पल पर रखा और दबा'ने लगीं, मुझे इशारे से वह कह रही थी कि अंदर डालूं. मैने चूड़ियाँ खनकाते हुए चप्पल को दबा'कर माजी के मुँह में ठूंस दिया. वे थोड़ी कराही और फिर मुँह बंद कर'के चबा'ने लगीं. उनका एक हाथ अब अपनी ही बुर में चल रहा था.
अब मैने प्रदीप की ओर ध्यान दिया, मेरा सैंया अब तक पागल होने को आ गया था अपना लंड मुठिया रहा था. मैने उसका हाथ पकड़'कर आँखों आँखों में झूठे गुस्से से मना किया, कि अजी इसपर तो मेरा हक है, हाथ ना लगाना. फिर दूसरी पूरी चप्पल मैने मोड़ कर गोल रोल जैसी की, जैसा प्रीतम मेरे मुँह में अपनी चप्पल देते हुए किया कर'ता था. उस रोल को मैने प्रदीप के होंठों पर रगडा. जब वह अधीर होकर चाट'ने लगा तो मैने उसे उस'के मुँह में दे दिया. फिर अप'ने हाथों से उसे दबा दबा कर अंदर तक ठूंस दिया.
मेरे सैंया ने आराम से मेरी नाज़ुक पूरी चप्पल ले ली. फिर उसे चबा'ने लगा. उस'की आँखें वासना के अतिरेक से पथरा गयी थी. कमरे में अब चूस'ने और 'मच' 'मच' 'मच' कर'के चबा'ने की आवाज़ आ रही थी. मैं सातवें आसमान पर था, मेरे शरीर के ये सब मतवाले मेरी चप्पालों को खा'कर अप'ने आप को धनी मान रहे थे.
मैने अब सब को चूमना शुरू कर दिया. ऱबड की ब्रा में कसी मेरी चूचियाँ उन'के गालों पर रगड़ीं, माजी की बुर को चूसा और प्रदीप और प्रीतम के लंडों को बड़े लाड से हथेली में लेकर मुठियाया. प्रदीप का लंड तो मेरी दो मूठियो में भी नहीं समाता था. लंडों से खेलते समय मैने बहुत सावधानी बर'ती नहीं तो जिस हाल में वे थे, तुरंत झड जाते. बीच में माजी की विशाल चूचियाँ चूसी और उन्हें दबाया.
अंत में मैने आप'ने तलवे बारी बारी से उन सब'के चेहरों पर रगड़ना शुरू किया. मेरी पायलें 'छुम' 'छुम' कर'के बज रही थी. थोड़े नखरे करते हुए मैने अप'ने दोनों तलवे माजी के चेहरे पर जमाए और उन'के पूरे चेहरे को धक कर रगड़'ने लगा. वे सिर इधर उधर कर'ने लगीं. जब मैने यही प्रदीप के साथ किया तो उस'ने मेरे पैर पकड़'कर अप'ने गालों पर रगड़ना शुरू कर दिया. अंत में मैने अप'ने पैरों के बीच लंड पकड़ लिए और उन्हें रोल कर'ने लगा. माजी की बुर में मैने अप'ने पैर का अंगूठा डाल दिया और चोद'ने लगा.
वे सब अब ऐसे मेरी चप्पलें खा रहे थे जैसे जनम जनम के भूखे हों. सबसे पहले प्रीतम ने अपना नाश्ता ख़तम किया, क्योंकि वह सिर्फ़ पत्ते चबा रहा था, और फिर मुझे पकड़'कर मेरा मुँह चूस'ने लगा. उस'की आँखें गुलाबी हो गयी थी. पाँच मिनिट में ही माजी और प्रदीप ने भी मेरी चप्पलें निगली और मुझपर टूट पड़े. माजी बोलीं.
मैं धन्य हो गयी, मेरी कब की आस पूरी हो गयी, इतना मादक स्वाद आज तक मेरे मुँह ने नहीं चखा. ये मेरी बहू नहीं है, अप्सरा है अप्सरा. प्रदीप उठ, अब इस अप्सरा को दिखा दे कि इस जैसी सुंदर नाज़ुक नार को हमारे परिवार में कैसे भोगा जाता है, चल उठ, तेरा पेट भी भर गया होगा, अब चढ जा इस चाँद के टुकडे पर
क्रमशः................
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