Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:31 AM,
#28
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (15)

गतान्क से आगे.......

बहू तू अब बाथ रूम हो आ. फ्रेश हो ले, फिर तुझे तेरे पति की चप्पल खिलाते हैं, तू बड़ी बेताब है उस'के लिए मुझे मालूम है. मैं किसी तरह बाथ रूम गया. अंग अंग दुख रहा था. आँखों में आँसू आ गये थे. अब तक मेरी मस्ती हवा हो गयी थी. मन में रुलाई छूट रही थी कि कहाँ फँस गया. पर अब मैं कहाँ जाता, इस परिवार से मेरी छुट्टी इस जनम में तो नहीं होगी ये मुझे मालूम हो गया था.

पंद्रह मिनिट बाद भी मैं जब नहीं निकला तो प्रदीप बुला'ने आया. मैने दरवाजा खोला तो पहले उस'ने मुझे एक करारा तमाचा मारा. मैं रोने लगा. वह बोला.

माधुरी रानी, मुझे लगा था कि आप'ने पातिदेव की चप्पल खा'ने को तू फटाफट खुशी खुशी आएगी पर तू तो रो रही है! यह नहीं चलेगा. तू गुलाम है हमारी, जैसा कहते हैं वैसा करना नहीं तो तेरी ऐसी हालत करेंगे कि तुझसे सहन नहीं होगी. तुझे चप्पल खा'ने का शौक है ना? आज खिलाता हूँ तुझे अपनी चप्पलें. ख़ास सुहागरात के लिए महीने भर से दिन रात पहन कर घूम रहा हूँ

मुझे गर्दन से पकड़'कर दबोच कर वह पकड़'कर बिस्तर पर लाया और मुझे पटक दिया. मुझे लिटा'कर मेरे मुँह में चप्पल देने की तैयारी होने लगी.

एक साथ देना प्रीतम की एक एक करके. प्रदीप ने पूच्छा.

अरे पूरी जोड़ी दो मेरी भाभी के मुँह में. मेरे साथ थी तो मुझे बार बार कह'ती थी कि प्रीतम राजा, जोड़ी दे दे मेरे मुँह में. मैने वादा किया था कि सुहागरात के दिन खिलाऊँगा. एक एक खा'ने में उसे मज़ा नहीं आएगा

प्रीतम मेरी ओर देख'कर बोला. बात तो सच थी पर आज चुदा चुदा कर मेरी हालत खराब थी. मुँह भी दुख रहा था. और प्रदीप की उन दस नंबर की चप्पालों को देख कर जहाँ मन में गुदगुदी होती थी वहीं बहुत डर भी लग रहा था. प्रीतम की चप्पलें तो पतली थी. प्रदीप की एक साथ लेकर तो मैं दम घुट कर मर जाऊँगा. मैं भयभीत होकर चुप रहा.

मा ने मेरे हाथ पकड़े और प्रीतम ने पाँव. प्रदीप तैयार होकर मेरा सिर गोद में लेकर बैठ गया. दोनों चप्पलें उस'ने जोड़ कर पंजे मेरे मुँह पर रखे. मैने चुपचाप मुँह खोल दिया. और क्या करता? पर उन बड़ी ज़रा मोटी रबड की चप्पालों की साइज़ देख'कर मैं घबरा गया था. एक एक चप्पल प्रीतम की पतली दो चप्पालों के बराबर थी जो उस'ने मुझे पहली बार खिलाई थी.

प्रदीप ने चप्पालों के पंजे मेरे मुँह में ठूंस दिए. फिर दबा दबा कर उन्हें मेरे मुँह में और घुसेड'ने लगा. मैं दर्द और दम घुट'ने से तडप'ने लगा. मा बोलीं

अरे धीरे धीरे प्यार से, नाज़ुक बहू है, उसे समय लगेगा तेरी बड़ी चप्पलें निगल'ने में.

अरे मा, कुच्छ नाज़ुक वाजुक नहीं है, नखरा कर'ती है, साली प्रीतम की चप्पलें कैसे गपा गॅप खा'ती थी! है ना प्रीतम? कहते हुए प्रदीप ने ज़ोर लगा'कर आधी चप्पलें मेरे मुँह में डाल दीं.

हां चप्पालों की बहुत शौकीन है माधुरी रानी. पूरी चप्पल जोड़ी मुँह में लेने को कब से आतुर है. मैने ही रोक दिया था कि अब पहले शादी के बाद अप'ने पति की चप्पलें खाना, बाद में मैं और अम्मा भी खिला देंगे.

प्रीतम ने मेरी ओर देख'कर मुस्कराते हुए कहा. पाँच मिनिट बाद जब बची खुची चप्पलें भी मेरे मुँहे में प्रदीप ने ठूंस दी तो मैं कराह कर बेहोश हो गया. आखरी दो तीन इंच मेरे मुँह में डाल'ने के लिए उसे अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करना पड़ा. वह मेरे सीने के ऊपर चढ कर मेरी चून्चियो पर बैठ गया और अप'ने दोनों हाथ रख'कर कस कर दबाया जैसे टायर में ट्यूब ठूंस रहा हो. पकाक से पूरी चप्पलें मेरे मुँह में चली गयीं. मैं दम घुट'ने से और गालों में होते भयानक दर्द से होश खो बैठा. मेरे मुँह पर टेप लगा'कर उसे बंद कर दिया गया कि मैं उन्हें निकल'ने की कोशिश ना करूँ और मेरे हाथ पैर भी कस कर बाँध दिए गये.

आधी बेहोशी में ही मैने सुना की मा ने आप'ने बिटो को मेरा रस पीने की आगया दे दी.

अरे अब बहू को आराम से अप'ने पति की चप्पलें खा'ने दो. अब हम लोग भी कुच्छ खा पी लें. बहू का दूध नहीं पीना है क्या? चलो बारी बारी से ये मज़ा ले लो. और मैं उसका लंड चूस'ती हूँ. देखो कैसे लहरा रहा है. दूध मुझे भी चखाना

मेरी ब्रा और पैंटी अब निकाल दी गयी. प्रीतम और प्रदीप मेरी चूचियों पर टूट पड़े और माजी मेरा लंड चूस'ने लगीं. मेरी चूचियों को दबा दबा कर मसल कर उन'में से दूध निकाल कर दोनों भाई पी रहे थे. उधर मा मेरे लंड को चबा चबा'कर चूस रही थी जैसे गंडरी खा रही हों. मैं तडप कर झड गया. मा'ने पूरा वीर्य पी कर ही मुझे चोदा. फिर प्रीतम और प्रदीप को हटा'कर मेरी दुख'ती चूचियों में बचा दूध दबा दबा कर निकाला और पिया जैसे पिच'के आमों को निचोड़ रही हों उनका बचा खुचा रस निकाल'ने को.

फिर वे आपस में चिपट कर संभोग कर'ने लगे. मुझे मेरी हालत पर छोड दिया गया. दोनों भाई अपनी मा को आगे पीछे से चोद'ने लगे.

खूब चोदो मेरे लाडलो पर झड़ना नहीं. मा उचक उचक कर प्रीतम से गान्ड मरवाते हुए बोलीं. प्रदीप आगे से उन्हें चोद रहा था.

झड़ना बहू की गान्ड में. उस'की गान्ड आज इतनी मारी जानी चाहिए कि कभी यह ना कह स'के कि सुहाग रात में उस'के साथ इंसाफ़ नहीं हुआ . बीच बीच में दोनों अलट पलट कर मेरी गान्ड मार'ने लगते. प्रदीप मेरे मुँह को टटोल'ता और कहता.

अरे अभी तक नहीं खाई चप्पल? जल्दी खा रानी. सुबह हो जाएगी तो नाश्ता भी कराना है तुझे. कब से पेट में लिए घूम रहा हूँ! चल जल्दी चबा . और मुझे चबा'ने को मजबूर कर'ने के लिए कस कर मेरी चूची मरोड देता या चूचुक खींच'ने लगता.

वे दो तीन घंटे मेरे ऐसे गये जैसे मैं स्वर्ग नरक के अजीब से मिले जुले माहौल में हू. बदन और दुखते मुँह से मैं तडप तडप कर रो रहा था और चबा चबा कर प्रदीप की चप्पलें खा'ने की कोशिश कर रहा था. उधर इस विकृत कामक्रीड़ा से मेरे मन की अनकही चाहतों ने ऐसा सिर उठाया था कि लंड में बड़ी मीठी गुदगुदी हो रही थी. एक अपूर्व कामवासना मेरे रोम रोम में भर गयी थी. उन पुरानी पहन पहन कर मैली की हुईं चप्पालों का स्वाद भी मुझे बहुत मादक लग रहा था.

आख़िर रात को तीन बजे मेरा चप्पल खाना ख़तम हुआ. आखरी टुकड़ा मैने निगला और फिर लस्त पड आराम कर'ने लगा. प्रदीप, प्रीतम और मा चोद चोद कर सो गये थे. प्रदीप का लंड अब भी मेरी गान्ड में था. मेरी भी आँखें लग गयीं.

पहली सुबहा

सुबह मुझे झिन्झोड कर जगाया गया. अंग अंग दुख रहा था जैसे किसी ने रात भर तोड़ा मरोड़ा हो. गांद में अजब टीस थी, ज़ोर का दर्द था और कुच्छ मस्ती भी थी. मुँह ऐसे दुख रहा था जैसे गाल फट गये हों.

नींद खुलते खुलते मुझे अपनी बाँहों में उठा'कर चूमते हुए प्रदीप बाथ रूम ले गया. प्रीतम और माजी भी साथ में थे.

चलो बहू को भूख लगी होगी. प्रदीप जल्दी कर बेटा, मैं बहू को तेरी गान्ड में से तेरी टट्टी खाते देखना चाह'ती हूँ. फिर प्रीतम भी खिला देगा.

माजी बार बार प्रदीप से कह रही थी. आराम कर'ने से मेरा लंड फिर खड़ा हो गया था. पिच्छली रात की मेरे दुर्गति याद कर'के मुझे बड़ी मादक सनसनी हो रही थी. अब मैं अप'ने आप को कोस रहा था कि क्यों मैं रोया और चिल्लाया! यह तो मेरा भाग्य था कि इतनी तीव्र गंदी और विकृत कामवासना से भरी जिंदगी मुझे मिली थी. अब मुझे यह लग रहा था कि फिर से तीनों मेरे ऊपर कब चढ़ाएँगे!

अप'ने मसले दुखते बदन में होती पीड़ा को अनदेखा कर'के मैने प्यार से प्रदीप के गले में बाँहें डाल दीं और उसे चूम लिया. उस'की आँखों मे देखते हुए शरमा कर मैने कहा.

स्वामी, आप'ने, देवराजी और माजीने मुझे जो सुख दिया है, मैं कभी नहीं भूलूंगी. आप तीनों मुझे खूब भोगिए, अपनी सारी हवस निकाल लीजिए, मुझे चोद चोद कर मार डा'लिए प्लीज़, मुझसे यह चुदासी सहन नहीं होती अब. और मेरी एक और प्रार्थना है स्वामी! प्रदीप चूम कर मुझे बोला

बोल रानी, क्या चाह'ती है? क्या मुराद रह गयी तेरी सुहागरात में?

देवराजी की गान्ड तो मैने बहुत मारी है, माजी की भी मार ली, अब आप भी मरा लेना मेरे स्वामी, आप जो कहेंगे मैं करूँगी.

प्रदीप ने मुझे चूमते हुए कहा. 'तो यह चाह'ती है तू, चल अभी मार लेना. पहले तेरे मुँह में गान्ड खाली कर लूँ, फिर उस'में अपना यह हसीन लंड डाल देना. और तू फिकर मत कर रानी, तुझे तो हम ऐसे ऐसे चोदेन्गे और ऐसे ऐसे कुकर्म तेरे साथ करेंगे, तूने सोचे भी नहीं होंगे. हर तरह की नाजायज़, गंदी, हरामीपन की क्रियाएँ तेरे साथ हम कर'ने वाले हैं. साल भर में तुझे पीलापिला ना कर दिया तो कहना. अब चल, तुझे अपनी टट्टी खिलाता हूँ.

मुझे बाथ रूम में फर्श पर पटक'कर वह मेरे मुँह पर बैठ गया. उसे अब सहन नहीं हो रहा था. उसका लंड भी फिर तन कर खड़ा हो गया था. अप'ने सैंया के विशाल गठीले गोरे चूतड मैने पास से देखे तो वासना से सिसक उठा. मेरे पति के गुदा का छेद खुल बंद हो रहा था और उस'में से अंदर की ठोस टट्टी बाहर आने वाली थी. मैने मुँह खोला और बिना और कुच्छ कहे मेरा पति मेरे मुँह में हॅग'ने लगा. मोटी ठोस लेंडी मेरे मुँह में उतर'ने लगी. मैं भाव विभोर होकर उसे चबा चबा कर खा'ने लगा. मेरा लंड फिर कस कर खड़ा हो गया था और उस मस्ती में प्रदीप की गान्ड की टट्टी मुझे प्रसाद जैसी लग रही थी.

पाँच मिनिट में मैने प्रदीप की गान्ड खाली कर दी. कम से कम आधा किलो टट्टी निकली होगी. मेरी मदहोश वासना देख'कर प्रीतम और मा भी मस्ती में आ गये थे. प्रदीप की गान्ड मैने चाट कर सॉफ की और फिर तुरंत प्रीतम मेरे मुँह पर बैठ गया. दस मिनिट बाद अपनी गान्ड खाली कर'के जब वह उठा तो उसका भी लंड तन कर खड हो गया था. मा भी मूठ मार रही थी.

बहू एकदम रति देवी की मूरत है प्रदीप. अब तुम लोगों से मूतना तो होगा नहीं अप'ने खड़े लंडों से, मैं ही इस'की प्यास बुझा देती हूँ. कह'कर वे मेरे मुँह में मूत'ने लगीं.

मेरा पेट लबालब भर गया था और वासना से मेरा सिर सनसाना रहा था. मेरी हालत देख कर अब दोनों भाई मेरे ऊपर फिर चढ़ना चाहते थे, मैं भी यही चाह'ता था. पर मा ने मना कर दिया.

बहू को क्या वादा किया था प्रदीप? चलो गान्ड मराओ उससे. प्रदीप ज़मीन पर ओँदा लेट गया और मैं उसपर झुक कर उस'के चूतड चूम'ने लगा. क्या चूतड थे एकदम गठीले, कड़े और मास पेशियों से भरे. मैने उस'के गुदा में नाक डाली और सूंघ'ने लगा. फिर जीभ डाल'कर चाट'ने लगा.

जल्दी कर रानी. प्रदीप बोला. उसे मेरी जीभ का स्पर्श मतवाला कर रहा था.

बहू को मज़ा कर'ने दे मन भर कर. तू कर बहू क्या करना है. मैने मन भर कर अप'ने पति की गान्ड चूसी और आख़िर जब मस्ती से पागल सा हो गया तब उसपर चढ'कर उस'की गान्ड में अपना लंड डाल दिया. तन कर ख़ड़ा होने के बावजूद लंड आराम से गया. आख़िर वह अप'ने छोटे भाई प्रीतम से मरावाता था, गान्ड ढीली होनी ही थी.

क्रमशः................
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RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ - by sexstories - 05-14-2019, 11:31 AM

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