Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:31 AM,
#32
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
2उसके करीब हफ़्ते भर बाद मेरे घर से लैटर आया जिसमें लिखा था कि वहाँ के मोहल्ले के एक भैया अपनी जॉब के इंटरव्यु के लिये आ रहे हैं और मेरे रूम पर 2-3 दिन रुकेंगे! राशिद भैया मुझे बहुत पसंद भी थे इसलिये मैं खुश हो गया! वो मुझसे 7 साल बडे थे और काफ़ी सुंदर और हैंडसम थे! रँग गोरा और कद लम्बा था, चेहरा सैक्सी, बदन गठीला और मस्क्युलर... टाइट कपडों में बडे लुभावने लगते थे! वो डिस्ट्रिक्ट लेवल के बॉलर थे और काफ़ी नॉर्मल से अग्रेसिव मर्द थे! मैने कभी उनके साथ कुछ ट्राई तो नहीं किया था मगर बस वो उनमें से थे जिनको मैं सिर्फ़ देख कर ही नज़रें गर्म कर लेता था! मैं लास्ट उनसे उनकी शादी के वक़्त चार साल पहले मिला था, उसके तुरन्त बाद पता चला कि उनको एक लडका भी हो गया और अब तो शायद उनको दो लडके थे और उनकी बीवी फ़िर प्रैगनेंट थी! वाह क्या मर्द था, साला शादी के बाद चूत का भरपूर इस्तेमाल कर रहा था! वैसे उसकी कसमसाती हुई मज़बूत जवानी से इससे कम की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिये थी!

वो लैटर पढते ही मैं खुश हो गया, उस दिन क्लास में भी बहुत दिल लगा और क्लास के लडके भी बहुत ज़्यादा अच्छे लगे... स्पेशिअली मर्दाना और अक्खड विनोद सिशोदिया, जो एक बडा हरामी जाट लडका था और कभी कभी ही क्लास में दिखता था! साले की भरपूर जवानी उससे संभाले नहीं संभलती थी! उस दिन वो बेइज़ कलर की टाइट सी पैंट में मेरे ही आगे बैठा अपने बगल वाले लडके से गन्दी गन्दी बातें कर रहा था! अचानक टीचर ने उसको खडा किया तो मेरी नज़र उसकी मज़बूत गाँड पर पडी! अचानक उठने के कारण उसकी गाँड पर पैंट की कुछ सलवटें थी, उसके गोल गोल चूतड गदराये और भरे हुये थे! उनके बीच उसकी पैंट की सिलाई सीधी उसके छेद के पास से घुसती हुई उसके आँडूओं के नीचे की तरफ़ जा रही थी! उसने एक हाथ से अपनी बैक पॉकेट सहलायी! उसका हाथ भी मस्क्युलर और बडा था! एक एक उँगली गदरायी हुई थी! जब वो सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो टीचर ने उसको खडे रहने के लिये कहा! अब मेरा ध्यान क्लास में कहाँ लगता क्योंकि मुझसे कुछ ही दूर पर विनोद की जवानी खुल के मेरे सामने जो थी! मैने उस दिन उसकी गाँड और पिछली जाँघ की जवानी और कशिश को खूब जी भर के निहारा! फ़ाइनली लैक्चर के बाद सब बाहर आये तो विनोद टीचर को गन्दी गन्दी गालियाँ देता रहा! उस दिन वो मेरे साथ ही कैन्टीन में चाय पीने के लिये बैठ गया, साथ में कुछ और लडके भी आ गये मगर मैं सिर्फ़ विनोद की जवानी ही निहारता रहा क्योंकि वो कभी कभी ही मिलता था!

'यार, ये बहन का लौडा, सर मेरी गाँड मारता रहता है...' विनोद बोला तो कुणाल ने उसका साथ दिया!
'हाँ, लगता है... उसको 'तेरी' पसंद आ गयी है...' बाकी लडके हँसे!
'साला मूड घूम गया ना तो किसी दिन पलट के उसकी गाँड में लौडा दे दूँगा...' सब फ़िर हँसे!
'हाँ, साला जब देखो, गाँड मारता रहता है...' उसके मुह से वैसी बातें बडी सैक्सी लग रहीं थी, साथ में वो कभी कभी अपने आँडूए और लँड भी अड्जस्ट करता जा रहा था! बिल्कुल स्ट्रेट, मादक और अग्रेसिव जाट था! मैं बस मन मसोस कर उसको ही देखता रहा, और कभी कभी कुणाल को... जो था तो हरामी मगर उसमें मासूमियत और चिकनापन भी था! कुणाल विनोद के एरीये में ही कहीं रहता था इसलिये दोनो कुछ फ़्रैंक थे!
'साले ने ज़्यादा परेशान किया तो इसकी बेटी की चूत में लौडा दे दूँगा...'
'इसकी बेटी कहाँ मिलेगी?' मैने पूछा!
'अरे यहीं आगे स्कूल में पढती है... साली बडा कन्टाप माल है, स्कर्ट कमर मटका के जाती है...' मेरा मन और मचल गया! मैं ये सोचने लगा कि अगर विनोद जैसे गबरू मर्द ने अपने शेर जैसे लौडे से सर की नाज़ुक सी बेटी को चोदा तो उसका क्या हाल होगा! मुझे तो विनोद की गाँड उठती और गिरती हुई दिखने लगी!
कुणाल ने अपना एक हाथ विनोद की जाँघ पर रखा और बोला 'अबे, मैं चलता हूँ...'
'ठीक है मादरचोद, मगर ये जाँघ क्यों सहला रहा है साले... लौडा पकडेगा क्या?'
'अबे हट भोसडी के... अभी इतने बुरे दिन नहीं आये हैं...' सब फ़िर हँसने लगे!

मैं उनकी बातों से सिर्फ़ गर्म होता रहा, फ़िर जब लँड खडा हो गया तो सोचा, पिशाब कर लूँ तो शायद लँड थोडा बैठ जाये! मैं कैन्टीन के पीछे की तरफ़ ओपन एअर टॉयलेट के भी पीछे मूतने के लिये चल पडा! वहाँ मैं इसलिये जाता था कि वहाँ सूनसान में कोई होता नहीं था इसलिये मैं अपने लँड को आराम से खोल के उसकी ठनक कम कर सकता था! एक बार तो मैने वहाँ खडे खडे मुठ भी मारी थी मगर उसके बाद हिम्मत नहीं पडी थी! मैने वहाँ पहुँच कर अपनी पैंट से लौडा बाहर निकाला, जो उस समय पूरा मस्त ठनक के खडा था और मूतने के पहले विनोद की जवानी याद करके अपना लँड हल्के हल्के मसलने लगा! बिल्कुल ऐसा लगा कि विनोद मेरे सामने नँगा हो रहा है! मेरे लँड में उसके नाम की गुदगुदी हो रही थी! इतना मज़ा आया कि मेरी तो आँख एक दो बार बन्द सी होने लगी! अभी मज़ा मिलना ही शुरु हुआ ही था कि अचानक कुछ आहट हुई और एक और लडका उधर की तरफ़ आता दिखा!

मैं उसको जानता था, उसका नाम धर्मेन्द्र था और वो इलाहबाद का रहने वाला था जो मेरे साथ ही कोर्स करने वहाँ से आया था! धर्मेन्द्र मुझे देख के मुस्कुराया मगर कुछ पल में उसकी नज़र मेरे लँड पर पडी तो मैने देखा कि उसने कुछ ज़्यादा इंट्रेस्ट लेकर मेरे लँड को देखा! वैसे धर्मेन्द्र उस टाइप का लगता तो नहीं था, काफ़ी हट्‍टा कट्‍टा साँवला सा गदराया हुआ स्ट्रेट लौंडा लगता था जो नयी नयी जवानी में शायद किसी चूत की सील तोडने के सपने देखता होगा मगर शायद मेरे खडे लँड को देख के उसको कुछ अटपटा लगा! उसकी आँखों में एक झिलमिल सा नशा सा दिखा! उसके होंठ हल्की सी प्यास से थर्राये और फ़िर वो मुस्कुराते हुये मेरे कुछ ही दूर पर खडा होकर अपनी ज़िप खोल के जब मूतने लगा तो मुझ से भी ना रहा गया और मेरी नज़र भी उसके लँड पर पडी जो काफ़ी बडा और मोटा था!

उसने अपना लँड कुछ इस स्टाइल से पकडा हुआ था कि मुझे साफ़ दिख रहा था और जब उसने अपना लँड छुपाने की कोशिश नहीं की तो मैने भी उससे अपना लँड नहीं छुपाया! उसका लँड भी खडा सा होने लगा और कुछ देर में भरपूर खडा हो गया! हम एक दूसरे से कुछ बोले नहीं, बस चुपचाप प्यासी सी नज़रों से एक दूसरे का लँड देखते रहे! मस्ती इतनी छा गयी कि मूतने के बाद भी लँड अंदर करने का दिल नहीं कर रहा था! धर्मेन्द्र भी अपना लँड हाथ में लिये मुझे आराम से दिखा रहा था! तभी किसी और की आहट आयी तो हम दोनो ने ही अपने अपने लँड अपनी ज़िप में घुसा के बन्द किये और वहाँ से वापस हो लिये! जब मैं विनोद की तरफ़ जा रहा था तो धर्मेन्द्र मुझे गहरी नज़रों से देखता हुआ वहाँ से गुज़रा! उसकी आँखें मुझे कुछ इशारा कर रहीं थी! बस किसी तरह उसके साथ सैटिंग करनी थी, लगता था धर्मेन्द्र का काम तो हो गया था! एकदम अन-एक्स्पेक्टेड मगर सॉलिड लौंडा!

विनोद अब अकेला था, बाकी जा चुके थे!
'आजा बैठ ना... क्यों, तू जा नहीं रहा है क्या?'
'जाना तो है यार...'
'किस तरफ़ रहता है?' उसने पूछा तो मैने अपना एरीआ बताया!
'मुझे उसी तरफ़ जाना है, चल तुझे बाइक पर छोड दूँ...' उसने जब ऑफ़र दिया तो मैं तैयार हो गया! उसके पास बुलेट थी जो उसकी देसी जवानी को सूट कर रही थी, उसने किक मार के स्टार्ट की और जब टाँगें उठा के उस पर बैठा तो अचानक उसकी पैंट बहुत ज़्यादा टाइट हो गयी और टी-शर्ट भी पीछे से ऐसी उठी कि उसकी अँडरवीअर की इलास्टिक और कमर दिखने लगी! मैं जल्दी से उसके पीछे बैठ गया! मेरी जाँघ एक दो बार उसकी कमर से टच हुई और एक दो बार मैने बातों बातों में उसके कंधे और एक दो बार उसकी जाँघ पर भी हाथ रखा! ये पहला मौका था, जब मुझे वो सब करने को मिल रहा था!

उसने मेरी गली पर असद के ढाबे के सामने ही बाइक रोक दी तो मैने उसको चाय पीने के लिये रोक लिया! वो मेरे रूम पर आ गया!
'तू अकेला रहता है?'
'हाँ...'
'तब तो बढिया है... कभी अपने रूम की चाबी दे दियो यार...'
'क्यों क्या करेगा?' मैने मुस्कुरा के पूछा!
'रंडी लाऊँगा...'
'अच्छा यार, ले लेना चाबी...'
'अबे कभी दारू वारू का प्रोग्राम बना ना... यहाँ तो बढिया सैटिंग है...'
'हाँ यार, कभी भी बना ले...' वो भी एक्साइटेड हो गया!
'वाह यार, मज़ा आ जायेगा...' उस दिन हम थोडा फ़्रैंक हुये!
'चल तुझे किसी दिन अपना एरीआ दिखा दूँ... देख ले, जाटों का मोहल्ला कैसा होता है...'
'ठीक है यार, कभी भी बुला लेना... चल पडूँगा...'

अब तो मुझे विनोद और भी सैक्सी लगने लगा था! मेरे मन में तो कीडा घूमने लगा! अभी ढाबे से एक लडका चाय ले आया! वो नया सा था, मैने उसको पहले नहीं देखा था! कमसिन सा, गुलाबी, गोरा, नाज़ुक सा लौंडा था!

'क्यों, तू नया है क्या?'
'जी भैयाजी...'
'क्या नाम है?'
'विशम्भर...'
'कहाँ का रहने वाला है?'
'बीकानेर का...'
'ला बे, इधर रख दे चाय...' विनोद उससे बोला फ़िर जब वो चला गया तो वो अचानक बोला 'साला बडा चिकना सा था...'
'क्या मतलब यार... कौन चिकना था?' मेरे मन में तो उसकी बात से उमँग जग उठी!
'यही ढाबे वाला... साले के होंठ और कमर देखे थे लौंडिया की तरह थे...'
'अबे तू ये सब क्यों देख रहा था?'
'साले, जवान हूँ... देखने में क्या जाता है... हा हा हा हा...' फ़िर उसने बात पलट दी!

मुझे अँधेरे में उम्मीद की एक किरण दिखी! अब मुझे लगा उससे दोस्ती बढाने में फ़ायदा है! उससे जाते जाते मैने उसके घर जाने का प्रॉमिस किया और उससे भी अपने रूम में आते रहने के लिये कहा! उसके जाने के बाद विशम्भर ग्लास लेने आया तो मैने उसको तबियत से ऊपर से नीचे तक निहारा! वो एक टैरिकॉट की पुरानी सी व्हाइट पैंट पहने था और साथ में एक फ़ुल नैक का स्वेटर!
'क्यों, कब से आया है?'
'मैं यहाँ तो परसों से ही आया हूँ... पहले मालिक के घर पर काम करता था...'
'अच्छा, बढिया है... यहाँ आ जाया कर... बैठ के बातें करेंगे...'
'जी भैयाजी' वो सच में बिल्कुल मिश्री की डली की तरह मीठा और काजू की तरह मसालेदार लौंडा था! मैने उसकी नज़र के सामने ही उसको निहारा और अपने होंठों पर ज़बान फ़ेरी!
'रात में खाना ले आना...'
'कितने बजे?'
'कितने बजे सोता है तू?'
'जी आजकल तो 12 बजे...'
'ठीक है... उसके पहले जब टाइम हो, ले आना...'
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RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ - by sexstories - 05-14-2019, 11:31 AM

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