Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:32 AM,
#34
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
उस दिन विनोद थोडा दूर बैठा था मगर फ़िर भी मैं उसको देखता रहा! इन्फ़ैक्ट मेरा बस चलता तो मैं क्लास के हर लडके से गाँड मरवा लेता मगर मजबूरी थी! उस दिन क्लास के बाद कैन्टीन में विनोद फ़िर मिला वो अब मुझसे काफ़ी फ़्रैंक हो चुका था, मुझे बार बार उसकी विशम्भर के बारे में कही हुई बात याद आती रही और मैं अन्दाज़ लगाता रहा कि क्या वो सीरिअस था या बस ऐसे लडकों वाला मज़ाक किया था! असल में स्कूल - कॉलेज में हरामी लडकों की बातों से उनकी सैक्शुएलिटी का अन्दाज़ लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है!

कुछ देर में कुणाल भी आ गया और उसके साथ एक और क्लासमेट था! बातें करते करते विनोद बोला
"बहनचोद, अब चलता हूँ... बहुत थक गया यार..."
"ऐसा क्या किया साले, जो थक गया..."
"बहनचोद रात में तीन बार मुठ मारी यार... बहन का लौडा, मेरा लँड मुरझा ही नहीं रहा था..."
"अपने घर वालों से कह दे, तेरी शादी करवा दें..." उस दिन फ़िर विनोद ने गे बात कही!
"शादी क्यों कर लूँ साले... तू चिकना है ना, चल तेरी गाँड मार दूँ..."
"बेटा मेरी गाँड में घुसने की ताक़त नहीं होगी तेरे लँड में..." कुणाल ने कहा!
"बेटा ताक़त तो एक बार में दिखा दूँगा... साले, सुबह तक फ़ाड के रख दूँगा..."
"रहने दे गाँडू, जा कोई लौंडिया पटा ले..."
"लौंडिया ही तो नहीं मिलती है साले... तभी तो तुझे डार्लिंग बनने को कह रहा हूँ..."
"कहा ना, मेरी नहीं ले पायेगा..."
"बेटा दे तो एक बार..."
"साले, जा इसकी ले ले..."
"अबे रहने दे, मुझे क्यों इस में शामिल कर रहे हो..." कुणाल ने मेरी तरफ़ इशारा करते हुये कहा तो मैने नाटक में कहा!
"देखा, साला डर गया..."
"डर वर तो एक बार में निकल जायेगा..." विनोद बोला!
"रहने दे, तू इसकी ही ले ले..." मैने कुणाल की तरफ़ इशारा करते हुये कहा!
"हाय... चिकने... बात करने में ही फ़ट गयी तेरी?" कुणाल बोला!
"हाँ साला चिकना है... चिकने डर जाते हैं..." विनोद ने कहा!
"हा हा हा हा हा..."

कुछ भी हो, मुझे विनोद का आइडिआ लगने लगा था! मैं उस दिन धर्मेन्द्र को मिस कर रहा था! फ़िर कुणाल और विनोद ने पास के कम्युनिटी सेन्टर पर जाकर बीअर पीने का प्रोग्राम बनाया तो मैं सिर्फ़ इसलिये तैयार हो गया कि मैं उन दोनो को नशे में देखना चाहता था! फ़्रैंड्स कॉलोनी का कम्युनिटी सेन्टर काफ़ी भीड भाड वाला है, मगर वहाँ बहुत सी जगहें ऐसी हैं जहाँ चुपचाप अँधेरे में बैठा जा सकता है! हमारे कॉलेज के बहुत लडके वहीं जाते थे! वहाँ जामिया के बहुत लौंडे घूमते रहते थे, सब एक से एक करारे और जवान... टाइट पैंट्स और जीन्स पहने, वहाँ लडकियाँ देखते थे और अपने लँड मसलते थे!

हमने बीअर ली और एक कोने में चुपचाप बैठ गये! वो ऐसी जगह थी जहाँ से हम सब देख सकते थे, पर हमें कोई नहीं! एक बीअर के बाद विनोद बहकने लगा! मैने उतनी देर में कुछ ही घूँट पिये मगर कुणाल भी काफ़ी गटक गया! तभी पास से एक लडकी गुज़री तो विनोद ने मेरे सामने ही अपना लँड पकड के मसल डाला और बोला
"हाय... अब चढने के बाद किसी पर 'चढने' का दिल करता है यार... लौडा अपने आप फ़नफ़नाने लगता है..."
"क्यों, 'तेरा' खडा हो गया क्या?" मुझसे ना रहा गया और मैने पूछ ही लिया!
"'इसका' तो साला, किसी को भी देख के खडा हो जाता है... इसके सामने झुकना मत, वरना तेरी गाँड देख के भी खडा कर लेगा..." कुणाल बोला!
"मेरी देख के क्या करेगा यार..." मैने कहा!
"बेटा अगर करने पर आऊँ तो देख लियो... फ़िर हिलने नहीं दूँगा और टट्‍टे तक तेरी गाँड में डाल दूँगा..." इस पर विनोद बोला! कुणाल हँसा... मुझे कोई जवाब नहीं सूझा!

मगर मैं गर्म तो हो ही गया! अब मेरी गाँड विनोद के लँड के लिये कुलबुलाने लगी!
"अबे मैं होमो नहीं हूँ..." मैने कहा!
"होमो तो हम बना देते हैं बेटा... जब करने पर आते हैं..."
"तू इसकी ही मार..." मैने कुणाल की तरफ़ इशारा करके कहा! अब ना जाने क्यों मुझे लगने लगा था कि विनोद और कुणाल मिलकर मुझे फ़ँसाने की कोशिश कर रहे थे!
"किसी दिन अपने रूम में बुला तो दिखा दूँगा" विनोद बोला!
"तू अकेला रहता है क्या?" कुणाल ने पूछा!
"हाँ" मैने जवाब दिया!
"तो इससे बच के रहियो, साला बडा हरामी है..."
"रहने दे यार, इतना आसान नहीं है..." अभी मैने कहा ही था कि सामने से धर्मेन्द्र आता दिखा! उसने सिगरेट जला रखी थी! उसको देखते ही मैं मस्त हो गया!

"ओए, ये कहाँ से आ गया?" कुणाल बोला और उतनी देर में विनोद ने धर्मेन्द्र को आवाज़ लगा दी! धर्मेन्द्र का चेहरा भी मुझे देख के खिल गया, वो भी हमारे साथ बीअर पीने को तैयार हो गया! अब तो मैं मस्त हो चुका था! कुछ देर में धर्मेन्द्र को भी चढ गयी! फ़िर वहाँ से जाने की बारी आयी तो कुणाल बोला!
"अबे मैं तो चलता हूँ... तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?"
कुणाल के जाने के बाद विनोद मुझे और धर्मेन्द्र को अपनी बाइक पर छोडने के लिये तैयार हो गया, मगर ट्रिपल राइडिंग के कारण वो बोला कि गलियों से चलेगा! विनोद के गाडी स्टार्ट की और धर्मेन्द्र उसके पीछे बैठ गया और मैं उसके पीछे! पहली बार धर्मेन्द्र और मेरे बदन आपस में टच हुये तो बदन में एक सनसनी दौड गयी! मेरी जाँघें, धर्मेन्द्र की जाँघों से बिल्कुल चिपकी हुई थी! थोडा आगे बढे तो उसने अपने दोनो हाथ मेरी दोनो जाँघों पर रख दिये! उसकी हथेलियों की गर्मी से मेरा लँड तुरन्त खडा हो गया, जिसको मैं बहुत कोशिश करके उसकी कमर से दूर रखे हुये था! फ़िर धर्मेन्द्र ने कुछ पलट के मुझसे कुछ पूछा जो मैं बाइक की आवाज़ के कारण सुन नहीं पाया! इस बार उसने अपना मुह मेरे कान के पास लाकर जब मेरे कान के पास बोला तो मेरे चेहरे पर उसकी गर्म साँस टकरायी और तभी बाइक एक गढ्‍ढे से गुज़री तो उसकी जर्क से उसके होंठ ऑल्मोस्ट मेरे होंठों से छू गये! जर्क से बचने के लिये उसने मेरी जाँघ को भी दबा के पकड लिया!

मैं श्योर था, धर्मेन्द्र मेरे साथ कुछ करने में ज़रुर इंट्रेस्टेड है! बैठने बैठने में मैने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि मेरा लँड अब उसकी कमर से चिपक गया था! मगर उसने इस बात पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया हुआ था! शायद उसको मज़ा आ रहा था! फ़िर मेरा एरीआ आ गया, मगर फ़िर भी वहाँ से लगभग 15 मिनिट की वॉक तो थी ही!
"यार, यहीं उतर जा... मेरा सर घूम रहा है... यहाँ से चले जाना... मैं जल्दी घर पहुँचना चाहता हूँ..." साला विनोद बोला!
"चल कोई बात नहीं..." मगर जब उतरा तो धर्मेन्द्र भी उतर गया!
"मैं भी उतर लेता हूँ, यहीं से चला जाऊँगा..." उसने कहा तो विनोद ने नशे के मारे ज़्यादा ध्यान नहीं दिया! उसके जाने के बाद मैं और धर्मेन्द्र साथ चल पडे! सडक पर अँधेरा था और ज़्यादा लोग नहीं थे! मैं उसके साथ एक अँधेरे कच्चे रास्ते से चला, जो शॉर्ट-कट भी था और मस्त भी! कुछ दूर पर ही धर्मेन्द्र ने मेरा हाथ पकड लिया!
"यार, अँधेरा बहुत है..."
"सही है यार... हाथ पकड के चलते हैं दोनो भाई..." मैने उसकी उँगलियों में उँगलियाँ फ़ँसा के उसकी हथेली से अपनी हथेली चिपका के उसका हाथ पकड लिया! कुछ देर के बाद वो मेरी हथेली पर अपनी उँगलियों से सहलाने लगा तो मैने भी अपनी उँगलियों से उसका हाथ और हथेली दबाना और सहलाना शुरु कर दिया!
"तू अकेला रहता है?"
"हाँ..."
"साथ चलूँ क्या? थोडी देर बातें करेंगे..."
"चल, मगर तुझे देर नहीं हो जायेगी?" मेरा दिल अब धडक रहा था! वो काफ़ी मस्त देसी आइटम था और लगातार मेरा हाथ दबाये और सहलाये जा रहा था! उसने बीअर के साथ साथ मुझे अपनी जवानी का नशा भी चढा दिया था!
"लेट तो हो गया है... थोडी देर में चला जाऊँगा..."
"चल, साथ बैठेंगे... मज़ा आयेगा..." मैने कहा!
"हाँ, थोडा नशे का मज़ा लेंगे..."

अब हम बिन्दास एक दूसरे का हाथ सहला रहे थे! थोडा आगे जाने पर उसने पहली बार मेरी कमर में हाथ डाल दिया और मुझे अपने करीब पकड के चलने लगा! उसने मेरी कमर को सिर्फ़ पकडा नहीं था बल्कि उसको हल्के हल्के सहलाना भी शुरु कर दिया था! शायद वो मेरा इरादा और रज़ामन्दी नाप रहा था! मैने भी बदले में उसके कंधे पर हाथ रख दिया! उसके कंधे अच्छे गदराये और मस्क्युलर थे! मैने उसकी बाज़ू और एक कंधा सहलाना और दबाना शुरु कर दिया!
"और कोई तो नहीं होता तेरे रूम पे?"
"नहीं यार..." उसका हाथ थोडा नीचे मेरी गाँड के पास सरका! वो बहुत फ़ूँक फ़ूँक के कदम रख रहा था!

उसने चुपचाप मेरे चूतडों की गोलायी को अपनी उँगलियों से तराशा! मुझे उसका हर टच मदहोश कर रहा था! थोडा बीअर का नशा भी था, थोडी मेरी ठरक और थोडी उसकी कशिश का! फ़िर उसने मेरी पीछे की पॉकेट पर हथेली लगायी!
"क्या कर रहा है?" मैने कहा!
"डर मत, पॉकेट नहीं मारूँगा..."
"वैसे भी पर्स में कुछ नहीं है..."
"तुझे सिर्फ़ पॉकेट मारे जाने का डर रहता है क्या?"
"हाँ..."
"उसके अलावा चाहे कुछ मार ली जाये?"
"उसके अलावा है ही क्या?"
"बहुत कुछ..." उसने मेरी एक फ़ाँक को हल्के से दबाया!
"उसकी चिन्ता नहीं है..."
"सही है... तब तो हमारी दोस्ती लम्बी चलेगी..."
"हाँ" कहकर मैने इस बार उसकी कमर में हाथ दे दिया! अब मेरी गली आने लगी थी! हम वहाँ तक पहुँचते पहुँचते काफ़ी ठरक चुके थे!
"ओह शिट यार... आज तो मेरे रूम पर एक गेस्ट आने वाला है..." और तब मुझे याद आया!
"क्या यार... क्या बात करता है... तूने तो कहा था कि..."
"यार बिल्कुल दिमाग से उतर गया यार... मेरे पडौसी..." मैने उसको निशिकांत के बारे में वो सब बताया जो मैं बता सकता था! धर्मेन्द्र का तो जैसे सारा मूड ही चौपट हो गया! फ़िर भी एक उम्मीद थी, शायद निशी अभी वापस ना आया हो!

मूड तो मेरा भी खराब हो गया कि एक नया लौंडा इतनी नज़दीक आने के बाद हाथ से निकल ना जाये! मैने उसकी गाँड और उसने मेरी गाँड अब लगभग दबाना शुरु कर दिया था! हम दोनो ही डेस्परेट हो चुके थे!
"यार के.एल.पी.डी. हो गयी यार..." धर्मेन्द्र ने जैसे अपना इरादा साफ़ कर दिया!
मैने कहा "एक जगह है..."
"कहाँ?"
"सीदियों पर..."
"नहीं यार, वहाँ कोई देख सकता है..." वैसे वो सही कह रहा था!
"फ़िर किसी दिन का रख लेते हैं..."
"अब तो रखना ही पडेगा... आज मुठ मार लूँगा..."
"आ साइड में आजा... मुठ तो मार ही दूँ तेरी..." ये वो अनकही बातें थी जो अब हम एक दूसरे से कह रहे थे!
"ले पकड के देख ले... मगर यहाँ सेफ़ है?" उसने कहा!
"किसको पता चलेगा यार?"
"लोग बडे हरामी होते हैं अँधेरे होने में दो लडकों को देख के समझ जायेंगे..." मैने अब अपना हाथ उसकी गाँड से हटा के आगे उसकी ज़िप पर रखा! अंदर उसका लँड ठनक के हुलाड मार रहा था! मैने उसको कुछ बार दबाया!
"वैसे भी साला इतनी देर से खडा है... चड्‍डी तो भीग ही चुकी है... चल आजा..."

मेरी गली से थोडी दूर एक छोटा सा मैदान था, जहाँ शादी वगैरह के टैंट लगते थे! एक दिन पहले ही किसी की शादी हुई थी जिसकी टेबल्स वगैरह पीछे पडी थी! उनके पीछे बॉउंड्री वॉल थी और उससे पूरी आड हो गयी थी! वहाँ लोग पिशाब भी करते थे मैने उसको वो जगह दिखायी जहाँ उस समय अँधेरा था!
"चल पिशाब करने के बहाने वहाँ चलते हैं... पहले मैं जाता हूँ, पीछे से तू आजा..." मैने धर्मेन्द्र से कहा!
"चल तू जा.."
मैं नर्वसनेस और ठरक से विभोर होकर वहाँ गया! उस जगह से ही पिशाब की बदबू आ रही थी मगर मुझे उस समय सब अच्छा लग रहा था! कुछ ही देर में धर्मेन्द्र आ गया तो मैं उससे लिपट गया मगर वो बोला "आज बस मुठ मार दे, फ़िर किसी दिन सही से लिपट के मज़ा करेंगे..." मैने उसके पैरों के बीच अपना हाथ फ़ँसा दिया और सहलाने लगा मगर उसने टाइम खराब ना करते हुये तुरन्त अपनी ज़िप खोल के अपना मोटा काला नाग खोल दिया तो मैने प्यार से उसको पकड लिया और अपनी मुठ्‍ठी से हल्के हल्के दबाने लगा, हम दोनो सिसकारियाँ भरने लगे!

मैं उसके बगल में उसकी कमर से अपना लँड भिडा के खडा था और एक तरह से उसकी कमर चोद रहा था और साथ में उसके लँड को मसल रहा था!
"उस दिन देखा था ना तूने?"
"हाँ..."
"पसन्द आया मेरा?"
"हाँ बहुत" उसने एक हाथ मेरी कमर में फ़ँसा के मेरी गाँड के छेद और फ़ाँकों को दबाना शुरु कर दिया! उसके हाथ में लँड की ताक़त थी, वो अपनी उँगली कसमसा कसमसा के मेरी दरार में फ़ँसा रहा था! मेरा छेद खुल चुका था, मेरे अंदर चुदने की चपास जग चुकी थी!
"राजा, तेरी गाँड मारूँगा..."
"हाँ राजा मार लेना" उसके बोलने का अन्दाज़ बिल्कुल देसी यू.पी. वाला था!
"तुझे डार्लिंग बना लूँगा..."
"हाँ बना ले ना मुझे डार्लिंग..."
"यही लौडा तेरी गाँड में घपाघप अंदर बाहर दूँगा राजा... पूरा चैन दे दूँगा तेरी गाँड को..." उसका लँड अब पूरे शबाब में आकर दहक रहा था! मेरी हथेली उसकी गर्मी से जलने लगी थी! उसका सुपाडा प्रीकम से भीगा हुआ था! मैं कभी उसको पकड के दबाता कभी उसके आँडूए पकड लेता और फ़िर उसकी मुठ मारता!
"चूसेगा?" उसने अचानक पूछा!
"ठीक है..." मैने कहा और उसके सामने घुटने के बल बैठ कर जब मैने अपने होंठ उसके लौडे पर लगाये और मुह खोल के उसके लौडे को चूसना शुरू किया तो वो घुटने मोड के मेरे मुह में अपना लँड धकेलने लगा और फ़िर कुछ देर बाद उससे ना रहा गया और उसके लँड का गर्म गर्म भयँकर नमकीन माल मेरे मुह में भरता चला गया! जिसको मैं प्रेम से पुचकार पुचकार के पी गया!

"अआह... राजा... अब थोडी ठँड पडी..."
"बस थोडी?"
"हाँ राजा, जिस दिन तेरी गाँड के अंदर माल डालूँगा ना... उस दिन पूरी चपास मिटेगी... स्वाद कैसा लगा?"
"उँहह... बढिया है..."
"चल अगली बार तक यही याद रहेगा... मगर यार, बात अपने तक रखना..."
"हाँ यार..."
"वरना साले इन लौंडों को तू जानता ही है..."
"हाँ यार जानता हूँ..."

हम जब वहाँ से ढाबे की तरफ़ आये तो निशिकांत वहाँ बैठा था!
"देख, वो बैठा है..." मैने उसको बैठा देख के दूर से धर्मेन्द्र को बताया!
"साला चिकना माल है... इसका भी चूस डाल..."
"नहीं यार, इज़्ज़त की बात होती है..."
"हाँ सही बात है, अब सबसे फ़्रैंक थोडी हो जाते हैं..." उसने मुझसे सहमती दिखायी!

वो फ़िर वहाँ से चला गया! मैने और निशी ने खाना खाया! इस बीच मैने फ़िर मौका निकाल के असद से बात कर ली!
"किसी दिन रूम पर आ ना यार..."
"हाँ, आऊँगा... देखते हो ना, दिन भर यहीं रहता हूँ..."
"हाँ मगर चाहे तो थोडा टाइम निकल ले यार..."
"ठीक है देखूँगा..."
"कब तक देखेगा यार?"
"क्या करूँ..." वो उस दिन के बाद फ़िर ऐसे बहाने कर रहा था जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और मैं उस पर लाइन मार रहा था! उस दिन खाने के बाद मैने एक दस का नोट निकाल के विशम्भर को दे दिया तो वो खुश हो गया! ये तो चिडिया फ़ँसाने के लिये पहला दाना था! मुझे पता था विशम्भर की गाँड गुलाब जामुन की तरह मुलायम होगी! मैं बस दो दिन तक उसकी गाँड में नाक घुसा कर उसको सूंघना और उसको किस करके चूसना चाहता था!
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