Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:32 AM,
#36
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
5

!अगली सुबह गौरव वापस आ गया! इस बार उससे आराम से बात-चीत हुई! वो भी यू.पी. का सैक्सी सा देसी लौंडा था जो बातों और हुलिये से काफ़ी स्मार्ट और हरामी लगा! मुझे शक़ सा होने लगा कि शायद उसके और निशिकांत के बीच भी कुछ है!

अगले दिन जब कॉलेज में धर्मेन्द्र मिला तो उसने और लडकों की तरह नाटक नहीं किया और हाथ मिलाते ही मेरा हाथ दबाया और बोला! "क्यों डार्लिंग रात में याद आयी?"
"हाँ बहुत" मैने कहा!
"बस अब कभी साथ में रात गुज़ार भी ले जानेमन... तो मज़ा आ जाये..."
"ठीक है" उस साले ने मुझे सुबह सुबह ही ठरका दिया!
"आज आजा... आज वो लडका नहीं है..."
"नहीं यार, आज मेरे मामा आये हुए है... उनके जाते ही..."

उस दिन विनोद नहीं आया था, बस कुणाल था! उस दिन हम जब कैन्टीन में बैठे तो लडकों की बातों से सैंट्रल पार्क के बारे में पता चला और मैने सोचा कि वहाँ भी जाकर देखूँगा! कुणाल भी काफ़ी चुदायी की बातें करता था! मगर मैं उससे और विनोद से सिर्फ़ बदनामी के डर से डरता था! वो मुह फ़ट टाइप के थे!
उस रात का खाना मैने निशिकांत और गौरव के साथ खाया! विशम्भर अब बहुत खुश होकर खाना लगाता था और मैं मस्ती से उसकी कमसिन चिकनाहट निहारता था! जब गौरव इधर उधर हुआ तो निशी बोला!
"यार आज तेरी याद आयेगी..."
"हाँ यार... मुझे भी..." मैने असद को देखा वो काम में लगा था! उस दिन भी मैने विशम्भर को दस रुपये दिये! वो अब मेरा फ़ैन हो गया था! मैने मौका निकाल के कहा "रूम पर आया करो ना... आराम से बैठेंगे..."
"जी, आऊँगा..." उसने कहा और जब मुडा तो उसकी पैंट के ऊपर से उसकी गाँड देखकर मैं मस्त हो गया... उसके गुलाबी रसीले होंठ, मादक मुस्कुराहट और नशीला चेहरा... खैर इसी बहाने मेरी गौरव से भी जान पहचान हो गयी और दोस्ती फ़्रैंकनेस की तरफ़ बढने लगी!

फ़िर राशिद भाई के आने का दिन आने लगा! उनके आने के दो दिन पहले फ़िर लैटर आया कि मैं टैक्सी लेकर जाऊँ क्योंकि शायद उनके पास ज़्यादा सामान है! अब मुझे इसका आइडिआ तो बिल्कुल नहीं था कि वहाँ टैक्सी कहाँ से मिलेगी! टैक्सी की तलाश में विनोद ने मुझे प्रदीप नाम के एक लडके से मिलवाया और उसको देखते ही मैं तो बस देखता ही रह गया! जब वो मिला था वो व्हाइट जीन्स और स्वेटर पहने हुये था और उसका स्लिम ट्रिम जिस्म बडा सैक्सी लग रहा था! वैसे उसका चेहरा भी बडा सुंदर और प्यासा सा था! उससे सैटिंग हो गयी! उसने कहा कि वो जाने वाले दिन शाम के 7 बजे मेरे रूम पर आ जायेगा क्योंकि भैया की ट्रेन रात में पहुँचने वाली थी! जब मैने विनोद से 'थैंक यू' कहा तो वो बोला!
"मेरी कटारी... तू 'थैंक यू' क्यों बोलता है... एक बार अपनी बुँड दे दे..."
"अबे रहने दे यार..." मैने हल्के से शरमाते हुये कहा तो देखा कि प्रदीप भी मुस्कुरा रहा था! प्रदीप ओरिजिनली विनोद के घर के आसपास कहीं रहता था! बडा हरामी सा कमीना लडका था, जो रह रह कर अपना लँड खुजा और सहला रहा था! जब मैने एक दो बार उसकी ज़िप पर नज़र डाली तो देखा वहाँ उसका उभार अच्छा खासा था मगर तब तक मैं उस टाइप के मुह फ़ट लडकों से दूर ही रहता था!

"बोल, रूम पर दारू पिलायेगा क्या? चलूँ?" जब वहाँ से चले तो विनोद बोला! मैं चाहता भी था और नहीं भी!
"साले तू पीकर हरामीपना करेगा..."
"अरे मेरी मक्खन... एक बार हमारे हरामीपने का भी मज़ा ले ले..."
"देख... इसीलिये मना कर रहा हूँ..."
"अच्छा चल, कुछ नहीं करूँगा चल..." मैं धडकते दिल से रास्ते से दारू लेकर उसके साथ अपने रूम पर पहुँच गया! वहाँ वो जब जूते उतार के पलँग पर बैठा तो उसके सॉक्स की बदबू आयी जिस से मैं मस्त सा होने लगा!
"साले, तेरे पैरों से कितनी बदबू आ रही है..."
"बदबू नहीं बेटा... मर्द की खुश्बू है... बहुत से गाँडू तो पैरों पर नाक रगड के इसको सूंघते हैं..." हम अब पी रहे थे!
"क्यों, तुझे कहाँ मिले ऐसे लोग?"
"सालों को फ़ँसाना पडता है... वो तो हमारे जैसे नये लौंडों को ढूँढते रहते हैं..."
"क्यों?"
"सालों को नया नया लँड चाहिये होता है..."
"क्या बात करता है यार? तू उस टाइप का है?"
"उस टाइप का नहीं हूँ... जवान हूँ... थोडा मज़ा कर लेता हूँ..."

उस दिन वो क्रीम कलर की टैरीकॉट की पैंट पहने था और हमेशा की तरह वो इतनी चुस्त थी कि उसकी जाँघें और लँड उसमें समा ही नहीं पा रहे थे! आदत से मजबूर, मैं अक्सर उसकी जाँघों और उसके बीच के पहाड को देख रहा था! उसके आँडूओं के आसपास से ही पैंट में सलवटें पड रहीं थीं और ठीक उसके आँडूओ के नीचे उसकी पैंट की सिलायी बडी खूबसूरत लग रही थी! उसने दूसरा पेग बनाते हुये मुझे बताया!
"बहनचोद, एक दो तो पैसे भी देते हैं... पहले दारू पिला कर गाँड मरवाते हैं फ़िर गाँड मारने के पैसे देते हैं..."
"वाह यार... मुझे नहीं मिला कोई..."
"चलियो मेरे साथ किसी दिन..."
"अबे नहीं..."
"बहनचोद... फ़ट गयी तेरी? वो साले कुणाल की भी फ़टी थी पहली बार..."
"मतलब वो बाद में गया तेरे साथ?"
"अब तो हम साथ जाते हैं... अपना अपना आसामी पकड के वहाँ से निकल लेते हैं..." बातों में उसका लँड खडा हो गया था और अब टाइट पैंट के कारण साफ़ उभरा हुआ दिख रहा था!
"तूने मारी है कभी किसी की गाँड?"
"नहीं यार" ऐसे मामलों में साफ़ मुकर जाता हूँ!
"एक बार मार ले... ऐसा चस्का लगेगा कि डेली ढूँढेगा..." उसको क्या पता था कि मुझे वो चस्का लग चुका था!

थोडी और शराब नीचे उतरी तो वो अपने दोनो पैर मोड कर दीवार से टेक लगाकर बैठ गया! अब मुझे उसकी जाँघ का निचला हिस्सा और गाँड साफ़ दिखने लगी जिस कारण मैं अब वहाँ से नज़र हटाने में मुश्किल महसूस कर रहा था! साला था ही बडा ज़बर्दस्त!
"मुझे आती ही नहीं है यार मारनी..."
"मैं सिखा दूँगा राजा..."
"नहीं यार..."
"मुठ तो मारता है ना?"
"हाँ"
"कितनी बार?"
"एक बार... कभी कभी दो बार..."
"मतलब लौडा खुराक तो ढूँढने लगा है तेरा..."
"हाँ खडा हो जाता है तो बैठता ही नहीं है..."
"मेरा तो अभी भी खडा हो गया..."
"अभी कैसे खडा हो गया?" मैने पूछा!
"बस..."
"मतलब कोई लडकी वडकी भी नहीं है... क्या तू लडकी के बारे में सोच रहा था?"
"लडकी नहीं है तो क्या हुआ... तू तो है..." विनोद बोला!
वैसे तब तक मुझे भी चढ चुकी थी!
"मुझे देख के ही खडा हो गया??? क्या बात करता है यार..."
"तू मुझे हमेशा से बडा चिकना लगता है... बस एक बार तेरी मारने का दिल है..."
"क्या बोलता है यार... मैं कोई लौंडिया थोडी हूँ?"
"अरे यार... लौंडिया में ऐसा क्या है जो तुझ में नहीं है... तू वैसा ही गोरा, नमकीन और चिकना तो है..." मुझे उसकी बातें अच्छी लग रही थीं!
"अबे रहने दे, क्यों बकवास कर रहा है... तूने मना किया था ना कि इस टाइप की बातें नहीं करेगा..." उसकी बातें अच्छी लगने के बावज़ूद भी मैने कहा!
"तू बुरा क्यों मान रहा है... मैं तो तुझे सच्चाई बता रहा हूँ... बस एक बार गाँड दे दे जानेमन... तो मज़ा आ जायेगा... अब चढ भी गयी है, गाँड मारने में बहुत मज़ा आयेगा..."
"पहले कितनों की मार चुका है?"
"काफ़ी एक्स्पीरिएन्स है... सैटिस्फ़ाई करके मारूँगा..."
"अबे गाँड मरवाने में क्या मज़ा आता होगा किसी को?"
"बेटा जब सरक के बुँड के छेद में घुसता है तो ऐसा मज़ा देता है कि पूछ मत..."
"तू क्या पूरा लँड घुसा देता है?"
"पूरा का पूरा... साले, जड तक... एक बार मरवा... दिखा दूँगा..."

कहते हुए उसने मज़बूती से मेरा हाथ पकड लिया तो मैं थोडा और मस्त हो गया!
"एक बार लँड सहला दे ना अपने चिकने हाथ से..."
"अबे...." मैं मना कर पाता, उसके पहले ही उसने मेरा हाथ पकड के अपने लँड पर घुमा दिया! उसका लँड वास्तव में फ़ुँकार मार रहा था!
"देख देख... कैसा लगा... देख..." वो मेरा हाथ अपने लँड पर दबा के कह रहा था!
"अबे कैसा क्या?"
"खोल के थमा दूँ क्या?"
"नहीं यार..."
"अच्छा चल एक चुम्मा दे दे... एक किस अपने गाल पे..." और फ़िर इसके पहले कि मैं फ़िर उसे मना कर पाता, उसने मेरा चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया और मेरे सर के पीछे के बालों में हाथ फ़ँसा के अपने होंठ मेरे गालों पर रख दिये!
"उँहु... विनोद... अबे ये क्या... अबे पागल है?" मगर उसने कसमसा के मेरे गालों को अपने हाथ से पकड के अपने होंठों से चूस डाला! उसकी मज़बूत पकड के कारण मैं हिल नहीं पाया और कुछ मैने भी हिलना नहीं चाहा! और फ़िर अभी वो हटता, उसने वैसे ही मुझे थोडा और घुमाया और देखते देखते अपने होंठ मेरे होंठों पर रख के दबा दिये तो उसके होंठों की मज़बूती के कारण मेरे होंठों मेरे दाँत पर दबे! इससे दर्द हुआ और मेरे होंठ हल्का सा खुल गया तो उसने मेरे मुह को अपने मुह से पूरा सील कर के चूसना शुरु कर दिया!
"उंहु... उहहह... उंहु..." उसने करीब दो मिनिट तक लगातार मुझे किस किया!
"अआहहह... मज़ा आया ना बेटा?" मैं अब काफ़ी कमज़ोर पड चुका था!
"आह... आज दिली इच्छा पूरी हो गयी यार... तेरे होंठों का रस बडा शराबी है..."
"अबे तू बडा कमीना है..."
"अच्छा चल अब चलता हूँ..." जब उसने कहा तो अंदर ही अंदर मेरा दिल टूट गया!
"ज़रा मूत लूँ... फ़िर निकलता हूँ..." उसने ऐसा कहते हुये मेरा रिएक्शन देखा क्योंकि अपने डिस-अपॉइंट्मेंट को मैं छुपा नहीं पाया था!

वो जब बाथरूम में मूतने के लिये गया तो उसने दरवाज़ा बन्द नहीं किया और अंदर से आती उसके मूतने की आवाज़ से मैं मस्त हो गया! फ़िर जब वो बाहर आया को मैने देखा कि उसने सिर्फ़ चड्‍डी पहन रखी थी और उसके निचले हिस्से से लँड बाहर खींच के हाथ में लेकर सहला रहा था! उसका लँड देख कर मेरी रही सही ना नुकुर गायब हो गयी! उसका लँड लम्बा और मोटा था और साँवला, उसने अपना सुपाडा खोल रखा था, काफ़ी सुंदर लौडा था!
"अरे यार... ये क्या?"
"तू भी खोल ले ना... तेरी किस ने खडा करवा दिया..."
"अरे यार किसी को पता चलेगा तो हँसेगा..."
"किसी बहन के लौडे को यहाँ अकेले मे हुई बात का कैसे पता चलेगा?" वो मेरे करीब आ गया था! मैं बैठा था, उसका लँड मेरे मुह के पास आ चुका था, मैं ठरक चुका था!
"चुप रह ना... अब देख, बहुत मज़ा आयेगा..." कहकर उसने मुझे पलँग पर धक्‍का दे दिया! मेरे पैर नीचे लटके थे और सर तकिये पर था! उसने मेरी पैंट खोल दी तो मैने बस हल्के से उसका हाथ पकडा!
"मत कर ना..."
"बेटा तुझे मज़ा दूँगा..."
उसने मेरी पैंट नीचे सरका के मेरे लँड पर हाथ रख के मसल दिया!
"तेरा तो काफ़ी बडा दिखता है..." कहते हुये उसने मेरी अँडरवीअर भी नीचे सरकाई तो मेरा लँड हवा में खडा हो गया!
"यार प्लीज..."
उसने मेरे सामने ही अपनी चड्‍डी भी उतार दी तो मैने देखा कि उसने झाँटें शेव की हुयीं थी! नँगा होकर उसका बदन और ज़्यादा मादक लग रहा था! उसकी जाँघें मस्क्युलर और हल्के हल्के बालों वाली थी! उसका रँग ऊपर से साँवला लगता था मगर अंदर से गोरा था! वो फ़िर मेरी तरफ़ आया और मेरे कंधों पर हाथ रख कर मेरे ऊपर झुक गया जिससे उसका लँड मेरे लँड से टकराया! इस बार मेरी साँस उस मस्ती से रुक ही गयी! उसने मेरी कमर के दोनो तरफ़ अपने घुटने मोड लिये और मेरे लँड पर अपनी गाँड रख के अपना वेट अपने हाथों पर डालते हुए बैठ गया और अपनी मज़बूत गाँड की दिलचस्प दरार को हल्के हल्के से मेरे लँड की लम्बाई पर रगडने लगा!
"अआह..." मेरी हल्की सी सिसकारी निकली! उसकी सुडौल जाँघें मेरी कमर को दोनो तरफ़ से अपनी गिरफ़्त में लिये हुई थीं!
"अआह..."
"देखा यार... मज़ा आया ना?" मैने पहली बार अपने दोनो हाथ से उसकी कमर पकड के उसकी रिदम के साथ उसको पकड लिया और फ़िर हाथ पीछे करके उसकी कमर और गाँड का उभार सहलाया!
"कैसी है?"
"क्या चीज़?"
"मेरी गाँड..."
"अच्छी है..."
मेरे समझ में नहीं आया कि वो जब, अभी तक मेरी गाँड मारने की बात कर रहा था तो अब मेरे लँड पर अपनी गाँड क्यों रगडने लगा था! शायद वो मुझे सेड्‍यूस करके कम्फ़र्टेबल करना चाहता था ताकि जब मैं भी मज़ा लेने लगूँ तो उसका काम आसान हो जाये! वो अब हल्के हल्के मेरे लँड पर बैठ कर अपनी फ़ाँकों को भींच कर मेरे लँड को उनके बीच दबाने लगा था! मैने इस बार उसके छेद के पास उँगलियाँ लगायी तो पाया कि वहाँ एक भी बाल नहीं था!
"वहाँ भी शेव कर दिया..."
"क्यों?"
"बस ऐसे ही..."
"कैसे करता है?"
"करवाता हूँ किसी से... तू भी करवायेगा क्या?"
"कर देना..."
"तेरी तो ऐसे ही चिकनी है..."
मेरा सुपाडा अब प्रीकम से भीग चुका था!
"मज़ा आ रहा है ना?"
"हाँ थोडा थोडा..."
"हाँ राजा मज़ा ले..." अब वो ऐसी पोजिशन बना रहा था कि मेरा, प्रीकम से भीगा हुआ, ल्युब्रिकेटेड सुपाडा अक्सर उसके छेद पर फ़ँसने लगा था! वैसे ही एक बार मैने हल्का सा चूतड ऊपर उठा के उसके छेद पर ज़ोर बनाया तो उसने सिसकारी भरी!
"अआहहह... घुसेगा बेटा अंदर भी घुसेगा..." उसने कहा! फ़िर उसने एक बार इधर उधर देखा!
"क्या देख रहा है?" मैने पूछा!
"तेल है तेरे पास?"
"सामने है..." उसने भी ठीक वैसे ही तेल की बॉटल उठायी जैसे निशिकांत ने उठायी थी और मेरे लँड को तेल से भिगा के फ़िर अपनी गाँड को उस पर रगडने लगा!
"गाँड मरवाना चाहता है क्या?"
"तुझे क्या लगता है?"
अब मुझे वो सेफ़ लगने लगा था, अगर वो मुझसे गाँड मरवायेगा तो किसी से ये सब बतायेगा नहीं!
अब जब मेरा सुपाडा उसके छेद पर फ़ँसा तो मैने एक हाथ से अपने लँड को पोजिशन में बना कर रखा! वो भी हल्का सा उठ गया और जब मैने अपनी गाँड ऊपर करके ज़ोर लगाया तो उसने भी अपनी गाँड को ढीला छोड कर मेरे लँड पर अड्जस्ट कर दिया और नीचे की तरफ़ दबाया जिससे मेरा लँड सडसडाता हुआ उसकी गाँड के अंदर घुस गया! उसकी गर्म मज़बूत गाँड ने मेरे लँड को कस के जकड लिया और मुझे मज़ा आ गया! मैने लँड को और अंदर घुसाया और कुछ ही देर में वो मेरा पूरा लँड अपनी गाँड में घुसवा के मज़ा ले ले कर मेरे ऊपर, ऊपर नीचे होने लगा! मैने अब उसकी कमर कस के पकड ली और उसको अपने ऊपर झुका कर फ़िर उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसके साथ किसिंग शुरु कर दी! उसकी गाँड खुली हुई थी! मेरे एक्स्पीरिएन्स के हिसाब से उसने काफ़ी गाँड मरवायी हुई थी!

"क्यों, काफ़ी मरवा चुका है ना?" मैने पूछा!
"हाँ..." उसने कहा!
"कुणाल से भी मरवायी है क्या?"
"रहने दे यार... नाम क्यों लें किसी का..."
"ऐसे ही पूछ रहा हूँ यार... दोस्ती यारी में..."
"हाँ उससे भी..."
"उसकी मारी भी?"
"हाँ... तुझे मारनी है क्या उसकी?"
"देगा क्या?"
"दे देगा..."
"तो देखूँगा यार... अभी तो अपनी लेने दे..." कहकर मैं उसकी गाँड का मज़ा लेता रहा!
फ़िर मैने उसको सीधा करके लिटाया और उसके घुटने फ़ैला के आगे से उसकी गाँड बजाने लगा! अब मेरे धक्‍कों में ताक़त आ गयी थी!

कुछ देर बाद मैं रुक गया!
"क्या हुआ?"
"थक गया यार... तूने एकदम से शुरु करवा दिया ना..."
"हा हा हा..."
"लँड मुह में लेगा?"
"जा धोकर आ..."
"अपना नहीं चुसवायेगा?"
"आजा चुस ले..." 'अपना' धोने के पहले मैं उसके ऊपर झुका और उसका 'हथौडा' अपने मुह में भर लिया और उसको चूसने लगा!
"साले तू भी एक्स्पर्ट है..."
"अगर एक्स्पर्ट नहीं होता तो तुझे लँड की सवारी कैसे कराता?"
"तू मरवाता है?"
"हाँ..."
"वाह यार मैं समझता था कि तू इस लाइन का नहीं होगा इसीलिये तुझे पटाने में इतना टाइम लगाया..."
"होता है... होता है..." मैने कहा!

उसका लँड मर्दाना, भयन्कर और खुश्बूदार था! उसमें पसीने की खुश्बू और नमक था! उसकी बॉडी ओडर ज़बर्दस्त थी! फ़िर मैं उसकी छाती पर चढने लगा!
"अबे धो तो ले..."
"अबे क्या धोना... तेरी गाँड का ही गू तो है... चल मुह खोल..." मैने कहा और अपना लँड उसके मुह में घुसा के उसका मुह चोदने लगा!
"अब अपनी गाँड दे दे ना..." उसने कहा तो इस बार मैं पलट के लेट गया! उसका लँड मेरे छेद पर एक दो बार टिका और फ़िर सीधा अंदर घुसता चला गया! उसके साइज़ ने मेरा छेद फ़ैला दिया और मेरे मुह से आवाज़ निकल गयी!
"अआहह... ई... धीरे डाल यार..." उसका मज़बूत जिस्म मेरे चिकने बदन को ज़बर्दस्त थपेडे लगा रहा था! मैं उसके वज़न के नीचे दबा हुआ था!

"तेरी गाँड गुलाबी है यार... साली को चोद चोद के लाल कर दूँगा..." उसने कहा और तेज़ धक्‍के लगाता रहा!

अगले ब्रेक के बाद मैने फ़िर उसकी गाँड मारी! इस बार उसको पलट के लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ गया! उसकी गाँड मस्क्युलर और गोल थी, उसके बीच लँड फ़ँसाने में बडा मज़ा आ रहा था! फ़िर मैं रुक नहीं पाया और मेरा माल झड गया! उसके बाद मेरे कहने पर उसने अपना माल मेरे मुह में झाड के मुझे पिलाया!
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RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ - by sexstories - 05-14-2019, 11:32 AM

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