Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:32 AM,
#38
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
मस्त कर गया पार्ट --07

राशिद भैया का ख्याल आने पर मैं अपनी कमसिन जवानी के दिनों की एक बात नहीं भूल पाता था! वैसे अब वो बात पुरानी हो चुकी थी मगर मुझे अभी भी उनकी बीसवीं बर्थ-डे भली भांति याद थी! मानों बस अभी कल ही की बात हो! मैं तब स्कूल की कच्ची कमसिन कली की तरह चिकना और मासूम हुआ करता था! राशिद की बर्थ-डे हमेशा धूम-धाम से मनायी जाती थी! उस बार भी वही हुआ था! उनके घर के सामने टैंट हाउस की कुर्सियाँ वगैरह पडीं थीं और छत पर शामियाना लगा था जिसमें मैं और लडकों के साथ खेल रहा था! हालाँकि तब तक मेरी सील नहीं टूटी थी मगर मैं दो-तीन लँड चूस चुका था और तीन चार लडकों से ऊपर ऊपर अपनी गाँड की दरार में लँड रगडवा चुका था! उनमें से एक लडका तो राशिद भैया का कजिन सनी भी था!

उस दिन राशिद भैया के फ़ादर ने मुझे सिगरेट लाने के लिये पैसे दिये! मैं अक्सर उनके लिये सिगरेट लाया करता था! उस दिन भी मैं एक लडके के साथ बाज़ार से सिगरेट लाने चला गया मगर जब लौटा तो राशिद भैया के फ़ादर यानी हुमेर चाचा नहीं दिखे! मैने उनको इधर उधर ढूँढा और फ़िर सिगरेट पॉकेट में रखकर खेलने लगा! कुछ देर बाद राशिद भैया वहाँ आये!
"क्यों, तुम पापा की सिगरेट लाने गये थे क्या?" उन्होने पूछा!
"जी भैया" तो मैने कहा!
"जाओ वो ऊपर कमरे में हैं, उनको दे दो, वो तुम्हारा वेट कर रहे हैं..."
ऊपर वाले कमरे का मतलब उनकी तीसरी मन्ज़िल पर बना एक छोटा सा कमरा था, जहाँ हुमेर चाचा अक्सर बैठा करते थे और सामने की छत पर पडे गमलों में पानी डाला करते थे! उस दिन राशिद भैया नयी नयी टाइट सी पैंट पहने थे जिसमें उनका जिस्म बडा खूबसूरत लग रहा था!

मैं और लडकों के साथ खेल रहा था इसलिये बडा मन मार के ऊपर की तरफ़ गया! दोपहर का समय था, ऊपर कमरे में कूलर चल रहा था, लाइट ऑफ़ थी! मैं सिर्फ़ एक छोटी सी निक्‍कर और टी-शर्ट पहने था, जो तब शायद मेरे कमसिन बदन और चिकनी गोल गाँड पर टाइट हुआ करती थी! जब मैने दरवाज़ा खोला तो कुछ नहीं दिखा! कुछ देर में जब आँखें अँधेरे में अड्जस्ट हुयीं तो देखा कि हुमेर चाचा सिर्फ़ एक लुँगी पहने चारपायी पर लेटे थे! उनके पैर मेरी तरफ़ थे और सर दूसरी तरफ़! उनकी जाँघें फ़ैली हुई थी! उनका जिस्म भी राशिद की तरह मज़बूत और गोरा था, उस समय उनकी उम्र कोई 42-45 के करीब रही होगी क्योंकि उनके घर में शादियाँ जल्दी हो जाती थी!

मैने अँधेरे में और आँखें गडा के देखा! हुमेर चाचा की लुँगी उनकी जाँघों तक उठी हुई थी, एक तरफ़ उनकी जाँघ के बीच तक और दूसरी टाँग पर उनकी जाँघ के ऊपरी हिस्से तक! मेरी साँसें और दिल की धडकनें तेज़ चलने लगीं! एक मन हुआ की उल्टे पैर वहाँ से वापस आ जाऊँ, मगर फ़िर भी अँधेरे में देखता रहा और जब मेरी आँखें अँधेरे की पूरी "यूज़्ड-टू" हुयीं तो फ़टी की फ़टी रह गयी क्योंकि मैने देखा कि हुमेर चाचा का एक हाथ तो उनकी आँखों के ऊपर मुडा हुआ था, मगर दूसरी अपनी नँगी जाँघ पर ऊपर की तरफ़ था और वो ना सिर्फ़ अपने आँडूए को हल्के हल्के सहला रहे थे बल्कि उनका लँड भी पूरा खडा हुआ हवा में लहरा रहा था! उन्होने लुँगी के नीचे कुछ नहीं पहन रखा था और उतनी सी रोशनी में भी मैं उनके मज़बूत भयावान लँड के साइज़ को साफ़ देख सकता था! मैने तब तक किसी मर्द का उतना बडा मज़बूत और पूरा खडा हुआ लँड नहीं देखा था! मैं उनके हथौडे जैसे भयन्कर लँड को देख के एकदम से पैनिक हो गया और जैसे ही वहाँ से मुडना चाहा हुमेर चाचा ने मुस्कुराते हुये अपनी आँखों से हाथ हटाया और कहा!
"अरे, अम्बर सिगरेट ले आये क्या? लाओ... मैं कब से इन्तज़ार कर रहा था... लाओ सिगरेट दे दो..."

मैने उनका वो रूप पहली बार देखा था इसलिये शरमा के हकला गया!
"जी हुमेर... चाचा... जी ले आया... लीजिये..." कहकर मैं जब उनके पास पैकेट लेकर गया तो भी ना जाने क्यों उनके मज़बूत लँड पर से, जिसको छुपाने की उन्होने कोई कोशिश नहीं की थी, नज़र नहीं हटा पा रहा था! जैसे जैसे मैं उनके पास जाता गया उनके लँड का असली भयन्कर साइज़ मेरे सामने आता गया! उस दौर में भी और ना जाने कितनी चुदायी के बाद भी उनके लँड में भरपूर फ़्रेशनेस और सख्ती थी! मैने काँपते हुये हाथों से सिगरेट का पैकेट उनकी तरफ़ बढाया तो उन्होने पैकेट के बजाये मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और उनकी मर्दानी उँगलियाँ मेरे चिकने और मुलायम और काँपते हुये हाथ को सहलाने लगीं!
मेरा हलक सूखा जा रहा था और मैं बार बार अपना थूक निगल रहा था!

"डर गये क्या?" उन्होने पूछा तो मैने फ़िर थूक निगला!
"...नहीं... जी.. जी.. हाँ..."
"अरे डरो नहीं, इसमें डरने की क्या बात है?" कहकर उन्होने लेटे लेटे ही मुझे अपने करीब खींचा और अपने हाथ को मेरी कमर में डाल दिया!
"लो ज़रा पकड के तो देखो..." अब तो मैं बिल्कुल डर के हकला गया और मेरा गला कांटे की तरह सूख गया "जी... चाचा.. जी.. मतलब नहीं... मुझे खेलना है.. जी नहीं... जाना है..."
"अरे खेल लेना... ये भी तो खेल है... देखो बिल्कुल बैट की तरह है... लो, मैं किसी से पकडवाता नहीं हूँ, तुम बहुत अच्छे हो इसलिये तुमको पकडवा रहा हूँ... लो पकड के तो देखो... आओ, डरो नहीं..."
वैसे इतनी सब बात हो जाने के बाद मेरे बदन में भी आग सी लगने लगी थी! मेरे अंदर गे सैक्स का कीडा कुलबुलाने लगा था! तब तक मैने बस मोहल्ले के लडकों, नौकर और कजिन्स के साथ ही किया था मगर यहाँ इतने बडे मर्द के सामने मैं घबरा गया था!

उन्होने खुद ही मेरा काँपता हुआ हाथ पकडा और बडे प्यार से उसको अपने लँड पर रखा तो मैं उनके लँड की सख्ती और गर्मी से दँग रह गया...
"अआह शाबाश..." उन्होने सिसकारी भरते हुये कहा!
"हाँ ज़रा उँगलियों से पकड लो... डरो मत, पकड लो ना... डरते नहीं है..." कहकर उन्होने ना सिर्फ़ मुझे अपना लँड पकडा दिया बल्कि मेरी कमर को रगड के सहलाने लगे और बीच बीच में अब उनका हाथ सीधा मेरी गोल गाँड की चिकनी गाँड की फ़ाँकों पर जाने लगा!

"बढिया है... शाबाश, ऐसे ही पकड के ज़रा सहलाओ ना..." हुमेर चाचा का लँड अब मेरी हथेली की गिरफ़्त में मेरी मुलायम उँगलियों के स्पर्श से उछल उछल के हुल्लाड मार रहा था! मुझे उनका लँड किसी बन्दूक की गर्म नाल की तरह लग रहा था! मैने पहली बार थोडा सहम के और थोडा शरमा के उनके लँड को पकड के हल्के से सहलाते हुये रगडा तो उनकी सिसकारी निकल गयी!
"सी... अआहहह... बेटा अआह... वाह... शाबाश... वाह..." कहते हुये उन्होने अपनी लुँगी पूरी ऊपर उठा के अपनी जाँघें काफ़ी फ़ैला दीं!

उनका नँगा बदन, उसकी उभरती बल खाती मसल्स और जिस्म के कटाव अब मुझे साफ़ दिख रहे थे! उनकी जाँघें भी गदरायी हुई माँसल थी और उनके बीच उनके बडे बडे काले आँडूए थे! उन्होने एक झटके से मेरी निक्‍कर को कमर से सरका के मेरे घुटनों के नीचे कर दिया! मैं इम्पल्ज़ पर उसको पकडने के लिये झुका मगर तब तक देर हो चुकी थी! उनका हाथ मेरी झुकी हुई नँगी गाँड की मदमस्त फ़ाँकों पर आ चुका था और वो मेरी गाँड मसलने लगे थे! मैने अपने एक हाथ से उनके हाथ को पकड के हटाना चाहा मगर उन्होने जवाब में मुझे ही अपने ऊपर गिरा लिया और बिस्तर में खींच के मुझे अपने आप से लिपटा लिया! इस लिपटा लिपटी में मेरी जाँघें उनकी जाँघों के बीच घुस गयी और उन्होने मुझे वहाँ दबा के दबोच लिया और फ़िर अपने एक हाथ से मेरी गाँड को दबा के रगडना जारी रखा!

उनकी उँगलियाँ मेरे छेद के पास और मेरी चिकनी दरार के दर्मियाँ बडे ही एक्स्पर्ट तरीके से घूम रही थीं जिससे मेरा गाँडू सुराख और मेरा गे जिस्म कुछ ही देर की रगड में उनकी रगड से रेस्पॉंड करने लगा! उनके ऊपर खींचने के दर्मियाँ मेरी निक्‍कर मेरे बदन से पूरी तरह अलग हो चुकी थी! अब मेरी शरम थोडी कम हुई मगर बिल्कुल खत्म नहीं हुई थी जिस कारण मैं डायरेक्टली उनकी आँखों में नहीं देख पा रहा था! उन्होने अचानक मुझे अपने तरफ़ खींचा, जिससे मेरा मुह सीधा उनके मुह से चिपक गया और उन्होने तुरन्त मेरे होंठ चूसना शुरु कर दिये! ये मेरी पहली किस थी! उसके पहले मैने गालों में दाँत कटवाये थे!

उन्होने मेरी पीठ पर हाथ रख कर मुझे अपने करीब जकड लिया था! और फ़िर दूसरे हाथ से मेरे पैर फ़ैला के अपने बदन के दोनो तरफ़ करवा दिये! अब मैं अपनी गाँड पूरी फ़ैलाये उनके जिस्म की सवारी कर रहा था! मुझे तब तक ये तो पता था कि गाँड मरवाने में बहुत दर्द होता है क्योंकि एक दो बार जब लडको ने अपना लँड मेरी गाँड के सुराख में घुसाना चाहा था तो मैं दर्द से चिहुँक गया था और उन्होने वैसा नहीं किया था! मगर यहाँ तो मैं किसी खरगोश की तरह एक चीते की गिरफ़्त में था, जो शायद मेरे साथ हर वो काम करने वाला था जो वो करना चाहता था!

ये हुमेर चाचा का वो रूप था जो मैने पहले कभी नहीं देखा था! पर सच्चाई तो ये थी कि लौंडेय्बाज़ हुमेर चाचा बहुत दिन से मेरी ताक में थे और सही मौका ढूँढ रहे थे! उसके पहले भी बिना समझे हुये मैं उनके चँगुल से कई बार बच चुका था मगर उस दिन मैं उनके बिछाये जाल में फ़ँस ही गया! उनके हाथ अब मेरी पहले से फ़ैली हुई गाँड को और ज़्यादा फ़ैला के मेरे छेद पर आ रहे थे! उनके मज़बूत गदराये जिस्म के दोनो तरफ़ फ़ैलने के कारण मेरी जाँघें तो दुखने भी लगी थी!

"अब जाना है चाचा... अब जाने दीजिये" मैने कहा!
"अरे चले जाना... ऐसी भी क्या जल्दी है... कह देना, चाचा ने सोने के लिये कह दिया था..." उन्होने मुझे थोडा हिला डुला के ऐसा अड्जस्ट किया कि अब मेरी गाँड सीधा उनके लँड से रगडने लगी और वो अपना बदन हल्का हल्का ऊपर उठाने लगे और मेरी गाँड का भीना भीना आनन्द लेने लगे!

"वाह बेटा वाह... बिल्कुल जैसा सोचा था वैसा पाया..."
"क्या चाचा?" मैने मासूमियत से पूछा!
"तेरा चिकना बदन बेटा... और क्या?" उन्होने कहा और इस बार अपने एक हाथ से अपने लँड को पकड के अपने सुपाडे को मेरे गुलाबी छेद पर रगडा!
"अआई... नहीं... चाचा नहीं..." अब मैं थोडा घबराया!
"डरो मत..." कह कर उन्होने अपने सुपाडे को प्रीकम के साथ मेरे छेद पर हक्ला सा दबाया मगर उसकी टक्‍कर मेरी सीलबन्द गाँड के टाइट चुन्‍नटदार सुराख से हुई!
"साली कसी हुई सील बन्द है... क्यों कभी किसी से करवाया नहीं?"
"क्या चीज़?" मैने समझते हुये भी उनसे नासमझ सा सवाल पूछा!
"यही बेटा... गाँड में लँड और क्या?"
"जी नहीं..." और कहते कहते जब मैने उनका इरादा समझा तो मैं पैनिक हो कर बोला "नहीं चाचा... और कुछ मत करियेगा प्लीज... बस ऐसे ही..."
"हाँ हाँ, ऐसे ही ऊपर ऊपर करूँगा... डरो नहीं... वरना तुम्हारी फ़ट जायेगी.... बस थोडा तेल लगा लूँ तो रगडने में आराम रहेगा...." कहकर उन्होने पास रखा नारियल के तेल का डिब्बा उठाया और काफ़ी सारा तेल अपने लँड पर चुपड लिया और वही हाथ आराम से मेरी गाँड पर रगड के साफ़ करते हुये इस बार जब अपनी तेल लगी उँगली मेरे छेद पर रखी तो मेरी गाँड उतनी टाइटनेस से उसका मुकाबला नहीं कर पायी और उन्होने उँगली से मेरी कुछ चुन्‍नटें फ़ैला दीं!
"आई... चाचा नहीं... नहीं..." मैं घबराया!
"डरो मत बेटा, डरो मत..." इस बार उनका तेल में डूबा हुआ सुपाडा आराम से मेरे सुराख पर और मेरी दरार में फ़िसलने लगा! उनके लँड की मज़बूती से मेरी गाँड कुछ तो नेचुरली ढीली पड के कुलबुलाने लगी मगर मैं बार बार अपनी गाँड बचाने के लिये भींच लेता था!

"चलो डरो मत... ऐसा करो, तुम अपने आप ही अपनी गाँड को मेरे लौडे पर रगडो..." मैने पहली बार उनके मुह से इतने नँगे शब्द सुने थे! उनसे मैं थोडा उत्तेजित भी हुआ! मैने अपने आप अपने घुटने मोड के अपनी गाँड थोडा आराम से उठा ली और हल्का सा बैठ के अपनी गाँड को उनके लँड पर रख कर रगडने लगा! अब मुझे मज़ा भी आने लगा था क्योंकि मैं ऊपर था इसलिये मैं जानता था कि जब तक मैं नहीं चाहूँगा वो मेरी गाँड में लँड नहीं घुसा पायेंगे! मैं मज़ा ले ले कर अपनी गाँड पर उनके लँड का मज़ा लेने लगा! फ़िर कुछ देर बाद उन्होने मेरे हाथ अपनी छाती पर रखवा लिये! मैं उनके ऊपर उखडू बैठ के मज़ा लेता रहा! उन्होने इस बीच जब अपना लँड ऊपर को खडा किया तो उसको अंदर घुसने से बचाने के लिये मैं भी थोडा और उचक गया!

उनका सुपाडा अब मेरी इनर थाईज़ के बीच फ़ँस गया था और मेरे सुराख पर दस्तक दे रहा था! मैं अपने पैर उनके दोनो तरफ़ मोडे हुये था! तभी उन्होने बडी ज़ोर से मेरे घुटनों पर हाथ मारा! उनके वैसा करने से मैं डिस-बैलेंस्ड हुआ, मेरे घुटने हिले और मैं उनके ऊपर ऑल्मोस्ट बैठ सा गया जिससे मेरी गाँड पर रखा उनका सुपाडा बडे ज़ालिम तरीके से, निसंकोच, एक झटके से मेरे गुलाबी सुराख को फ़ाडता हुआ, मेरी चुन्‍नटों को फ़ैलाता हुआ, सीधा मेरी गाँड की गहरायी में घुस गया! दर्द के मारे मेरी चीख निकल गयी और मैं फ़ौरन उठना चाहता था! मगर मुझे अपना बैलेंस नहीं मिला और उन्होने भी ना सिर्फ़ एक हाथ से मेरा मुह बन्द करके मेरी चीख का गला घोंट दिया, बल्कि दूसरे से मुझे जकड के अपने लँड पर बिठाये रखा और अपनी गाँड झटके से ऊपर ऐसी उठायी कि उनका बचा खुचा लँड भी मेरी गाँड में समाता चला गया और मेरी जाँघें उनके जिस्म से चिपक गयी! मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने एक तलवार मेरी गाँड में घुसा दी हो! मेरी गाँड दर्द से गर्म हो गयी! तुरन्त बाद उन्होने मुझे लपेट के बेड पर लिटाया के पलट दिया और वैसे ही गाँड में लँड दिये दिये मेरे ऊपर चढ गये और मेरी गाँड मारने लगे! अब मेरा मुह उनकी तकिया में घुस गया! मेरी आँख से दर्द के मारे आँसू आने लगे! मैं रोने लगा! लग रहा था कि मेरी गाँड, मेरे जिस्म से फ़ट के अलग हो जायेगी! कुछ देर में उनके धक्‍के तेज़ हो गये!
"अआह बेटा... किसके... लिये बचा... के रख रहा... था... आज... तेरा जीवन सफ़ल... कर दिया... मर्द के हाथ... तेरी सील... टूटी है... अब जीवन भर... लँड की चाहत... लगी रहेगी..." उन्होने चोदते चोदते कहा और कुछ देर में उन्होने मेरी गाँड में अपना वीर्य भर दिया!

जब उन्होने अपना लँड मेरी गाँड से बाहर खींचा तो "फ़च्चाक" से आवाज़ आयी और एक बार फ़िर उनके लँड के फ़्रिक्शन से मेरी गाँड दुख गयी! एक बार को तो मुझे लगा, जैसे टट्‍टी निकल जायेगी!

"जा, वहाँ कोने में गाँड धो ले..." उन्होने मुझ से कहा और मुझे एक ग्लास पानी दे दिया! जब मैने गाँड धोयी तो वो बुरी तरह से चरमरा गयी!
"अआह..." मैं करहाया! चुदायी के बाद अब मेरी गाँड ज़्यादा दुख रही थी! मुझसे चला भी नहीं जा रहा था! वहाँ से जाते जाते उन्होने मुझे 20 रुपये दिये!
"ये ले लो और ये सब किसी से कहना मत..." वो सब किसी से कहने का तो मेरा इरादा भी नहीं था! मैने चुप-चाप 20 रुपये ले लिये मगर जब सीढियों से उतरने में मेरे पैर हिले तो गाँड फ़ट के दुखने लगी! उस दिन मैं पैर फ़ैला के किसी तरह चला और ना उस दिन, ना उसके अगले दिन किसी के साथ खेला! तब कहीं जाकर मेरी गाँड थोडा ठीक हुई!अभी ट्रेन रुकी भी नहीं थी कि मुझे कम्पार्ट्मेंट के दरवाज़े पर ही राशिद भैया खडे दिख गये और मैने हाथ हिलाने के बाद जब उनको देखा तो पाया कि पिछले कुछ सालों में उनकी जवानी पर नमक की ज़बर्दस्त परत चढ चुकी थी! उनका जिस्म और जवानी पूरी तरह निखर चुके थे! वो मुस्कुराये तो मेरा मन मचल गया! उन्होने जब ट्रेन से उतर के मुझे गले लगाया तो उनकी जवानी के स्पर्श से मैं मस्त हो गया! मैने गले मिलने के बहाने उनका जिस्म और उनकी पीठ सहलायी और उनके मसल्स का मज़ा लिया!
"चलो, यार एक कुली कर लेते हैं, बहुत सामान है..." जब वो एक कुली से बात करने लगे तो मैं सिर्फ़ उनको देखता रहा और सोचता रहा कि काश उनके अंदर भी अपने बाप की आदत आ गयी हो तो मज़ा आ जाये! शादी के बाद तो शायद चूत लेकर सारा खुमार राशिद भैया की जवानी पर आ गया था!

मगर एक और सर्प्राइज़ अभी बाकी था! मैं जब कुली के साथ अंदर गया तो वहाँ एक ऐसा लडका बैठा दिखा कि मानो चाशनी में डूबा हुई रसमलाई हो! एक-दम कमसिन, नर्म, मुलायम, गोरा, चिकना, नमकीन और रसीला सा काशिफ़! काशिफ़, राशिद भैया के साले का बेटा था जो उसको अलीगढ से लेने आने वाले थे! इसलिये वो राशिद भैया के साथ वहाँ आया था! उस समय वो लाइट ब्लू कलर की डेनिम की कैपरी पहने था जो उसके घुटने के कुछ नीचे तक थी! ऊपर एक पिंक कलर की शर्ट, एक ब्लैक स्वेटर, एक कैप और एक सुंदर सी ब्लू जैकेट पहनी हुई थी! उसके होंठ गुलाब की पँखुडी की तरह थर्रा रहे थे! डार्क ब्राउन बाल, बिना किसी पार्टिंग के उड रहे थे! उससे हाथ मिलाने में ऐसा झटका लगा कि मुझे लगा कहीं मेरा लौडा चड्‍डी के अंदर ही ना झड जाये!

जब हम वहाँ से चले तो मैं आगे आगे कुली के साथ था और राशिद भैया एक सूटकेस लिये, हमसे पीछे चल रहे थे! मैने काशिफ़ के साथ मिलकर एक बैग पकडा हुआ था और लगातार उसको ही देखे जा रहा था! काशिफ़ को ठँड लग रही थी!
"क्यों पूरी पैंट नहीं है तुम्हारे पास?"
"जी है..."
"तो पहन के आते ना... यहाँ इतनी ठँड है..."
"जी पता नहीं था..." वो सर्दी से कंपकपा रहा था!
मैने सामान रखते समय प्रदीप को भी तरसी हुई नज़रों से काशिफ़ को काफ़ी देर तक घूरते हुये देखा! सामान रख कर राशिद भैया आगे बैठे! हमने कुछ सामान पीछे सीट पर भी रख लिया था जिस कारण मेरे और काशिफ़ के बैठने के लिये बहुत कम जगह बची! वो जब मुझसे चिपक के बैठा तो मज़ा आ गया! मैं उसे पहली ही नज़र में दिल दे बैठा! जैसे ही गाडी रोड पर आयी मैने हल्के से अपना हाथ काशिफ़ की जाँघ पर रख दिया! साला बडा नर्म और गर्म था! वैसे भी उसकी जाँघ काफ़ी देर से मेरी जाँघ से चिपक के मेरे अंदर ठरक पैदा कर चुकी थी! रास्ते में राशिद भैया इधर उधर की बातें करने लगे और प्रदीप और मैं उनकी बातों का जवाब देते रहे! मेरा दिल तो कर रहा था कि वहीं काशिफ़ के साथ चालू हो जाऊँ! मैने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रख दिया था! उसको शायद सर्दी में मेरे बदन की गर्मी अच्छी लग रही थी!

मैने रूम पर राशिद भैया के लिये गौरव से लेकर एक फ़ोल्डिंग कोट का इन्तज़ाम कर दिया था! मगर मुझे उनके साथ काशिफ़ के आने का बिल्कुल आइडिआ नहीं था! प्रदीप हमें छोड के चला गया! उसने रूम तक सामान पहुँचाने में भी मदद की और जब राशिद भैया उसको पैसे देने लगे तो वो बोला!
"जी पैसे बाद में ले लूँगा... अम्बर मेरा पुराना फ़्रैंड है, इतनी जल्दी भी क्या है?"
रूम में राशिद भैया ने चेंज किया! उन्होने जल्दी से एक लुँगी पहन ली... अआह... लुँगी देख कर मुझे उनके बाप के साथ गुरज़े हुये दिन याद आ गये! वो जल्दी से एक रज़ाई में घुस गये!

"भैया, मैं और काशिफ़ साथ में सो जायेंगे..." हम लोगों के सामने उस समय और कोई चारा भी नहीं था! लुँगी और स्वेटर में राशिद भैया तो कामदेव लग रहे थे! मेरी नज़र बार बार लुँगी में झूलते हुये उनके लँड पर जा रही थी! फ़िर काशिफ़ जब बाथरूम से लाल रँग का पजामा पहन के निकला तो मैं तो मस्त हो गया! फ़िर जब मैं बाथरूम में घुसा तो समझ नहीं आया कि क्या करूँ! मेरा लँड पूरा खडा था! मैने पहले राशिद भैया की पैंट टँगी देखी और उसके अंदर उनकी फ़्रैंची की ब्लू चड्‍डी... तो उसको लेकर मैने उसमें मुह घुसा के उनकी मर्दानगी की खुश्बू सूंघी! फ़िर मैने काशिफ़ की कैपरी को सूंघा और फ़िर उसकी लाइनिंग को चाटा, जहाँ शायद उसकी गाँड आती होगी!
अब मेरी ठरक पूरी बेक़ाबू हो चुकी थी! किसी तरह मैं एक लोअर और टी-शर्ट पहन के बाहर निकला! तब तक राशिद भैया ने काशिफ़ के लिये एक कम्बल निकाल दिया था! मैं अपनी पलँग पर रज़ाई में लेटा और वो कम्बल ओढ के! सोते सोते साढे तीन बज गये! कुछ देर बाद काशिफ़ ने मेरी तरफ़ मुह कर लिया तो उसकी साँसें सीधा मेरे चेहरे से टकराने लगीं! उसकी गर्म साँसों में गुलाब सी खुश्बू थी! कुछ देर में हम सब सो गये!

उसके करीब घंटे भर बाद मुझे काशिफ़ करवट बदलता महसूस हुआ! उसका कम्बल, दिल्ली की सर्दी के सामने कुछ नहीं था! राशिद भैया तब तक सो चुके थे!
"क्या हुआ?" मैने पूछा!
"जी, सर्दी लग रही है..."
"अच्छा आओ, कम्बल और रज़ाई मिला के ओढ लेते हैं..." कहकर मैने उसको अपनी रज़ाई में सुला लिया! जब वो मेरे बगल में आया तो उसका गर्म जिस्म महसूस करके मुझसे ना रहा गया और मैने अपनी एक जाँघ सोने के बहाने उसकी जाँघ पर चढा दी! मैं तो साले की उसी समय गाँड मार देना चाहता था, मगर बगल में भैया सो रहे थे! इसलिये वैसे ही मज़ा लेता रहा और कुछ देर अपना लँड उसकी कमर से रगड के सो गया! अगले दिन से साला मुझे बडा सुंदर लगने लगा! अब मेरा दिल उस पर पूरी तरह से आ गया! उस दिन जब राशिद भैया अपने काम से गये तो वो काशिफ़ को भी अपने साथ ले गये! वैसे दोनो की जोडी बडी सैक्सी थी! एक मज़बूत लोहे का खम्बा... दूसरा मक्खन सा, गुलाबी नाज़ुक सी फ़ुलझडी...

कॉलेज में मेरी दोस्ती एक और ग्रुप से भी होने लगी क्योंकि उसमें एक लडका था आकाश गौड जिसको देखते ही मैं उसका आशिक़ हो गया था! उस दिन आकाश एक व्हाइट पैंट पहने था और ऊपर एक ग्रे स्वेटर! वो लम्बा और गोरा था और बडा सुंदर और चँचल सा मर्दाना चिकना लौंडा! उसके चक्‍कर में उसके बाकी ग्रुप से भी जान पहचान हो गयी!

उसमें अभिषेक त्यागी था, मॄत्युंजय, सूर्यकांत, इमरान और नफ़ीस! मेरा अगला निशाना आकाश था... मगर उसको फ़ँसाना मुश्किल था क्योंकि वो पूरा ग्रुप ही साला स्ट्रेट था! वो सब हमेशा लडकियों की बातें करते, बीअर पीते और गाली गलौच करते, मगर मैने भी अपना जाल डालना शुरु कर दिया! आकाश क्लासेज के बाद ग्राउँड पर क्रिकेट प्रैक्टिस करता था! आकाश के चेहरे पर लडकपन वाली चँचल सी कशिश थी और साथ में हल्का हल्का गुलाबी मर्दानापन, उसके बदन हाथ कटावदार और सुडौल थे! वो जब बॉलिंग करने के लिये रन-अप लेता तो मैं बस उसकी गाँड की फ़ाँकों को ही निहारता रहता! उसकी गाँड बडी मस्त होकर कभी टाइट होती कभी ललचाते हुये हिलती थी और साथ में उसकी मस्त जाँघें मुझ पर जादू करतीं!

मैं उस दिन आकाश को निहार ही रहा था कि पीछे से आवाज़ आयी "इसको मत देख, ये तेरे काम नहीं आयेगा.. हा हा हा हा..."
मैने जब पलट के देखा तो देखा, वहाँ धर्मेन्द्र था... उसके कमेंट से मैं झेंप गया!
"मैं तो बस..."
"हाँ हाँ बेटा, तेरे जैसों को खूब जानता हूँ... साले, चिकने को देख कर सपने देख रहा होगा हा हा हा हा... चल आज मेरी ठरक चढी हुई है, चल रूम पर ले चल... तेरी गाँड में लँड डाल दूँ जानेमन..." धर्मेन्द्र के सीधे प्रपोज़ल से मैं मस्त तो हो गया!
"अरे यार, आज भी कोई आया हुआ है..."
"बहन के लौडे, तू कमरे पर क्या गाँड मरवाने के लिये लौंडों को बुलाता रहता है?" धर्मेन्द्र हल्का सा इरिटेट हुआ!
"नहीं यार, घर से कोई ना कोई आ जाता है..."
"बेटा, गाँड कब देगा? साला लँड अब तेरे नाम से फ़नफ़नाता है... एक बार तो तेरी मारने का दिल है अब... साले, वैसे चूसता तो तू बढिया है... अब ज़रा तेरी गाँड की गहरायी में घुसने का मन है..."
"क्या बताऊँ यार..." अभी हमारी बात हो ही रही थी कि विनोद उधर आ गया और हमने टॉपिक चेंज कर दिया और उसके कुछ देर बाद इमरान और आकाश भी आ गये! इमरान भी पटना का खूबसूरत सा चिकना लडका था जिसमें काफ़ी नमक और सैक्स था!
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