RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
जब हम मेरे रूम पर पहुँचे तो ठँड से जम चुके थे! रूम लॉक करके जब आकाश मेरे सामने अपने कपडे एक एक करके खोलने लगा और जब मैने आहिस्ता आहिस्ता उसका गोरा, गदराया, कटावदार चिकना नमकीन देसी बदन नँगे होते देखा तो और टाइम वेस्ट नहीं किया और खुद भी फ़टाफ़ट अपनी अँडरवीअर में आ गया! अब हम दोनो की चड्डियों में लँड तम्बू की तरह खडे थे! हम रज़ाई में घुसे और फ़िर देखते देखते हमने किसिंग शुरु कर दी!
आकाश का नँगा बदन सहलाने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! अब मैं आराम से उसका पूरा बदन, उसकी गाँड और जाँघें सब दबा रहा था! और फ़िर हमारी चड्डियाँ भी उतर गयी!
"एक बात बताऊं? गाली तो नहीं देगा?" आकाश ने कहा!
"बता..."
"उस दिन बस में मेरा किसी ने नहीं पकडा था... मैने सब झूठी कहानी बनायी थी, तुम्हें फ़ँसाने के लिये..."
"अच्छा, बडा कमीना है तू..."
"क्यों, तू उस दिन वो सब सुन कर गर्म हुआ था ना?"
"हाँ बहुत..."
"और आज कुणाल के साथ क्या क्या हुआ?"
"होगा क्या... वही सब, जो होता है..."
"इसके पहले भी हुआ है क्या उसके साथ?"
"नहीं आज पहली बार था..."
"मज़ा आया?"
"हाँ मगर जल्दी जल्दी करना पडा..."
"तो अब आराम से कर लो" कह कर उसने फ़िर मेरा चुम्बन लेना शुरु कर दिया! फ़िर वो नीचे हुआ और उसके होंठ मुझे अपने सुपाडे पर महसूस हुये और फ़िर वो मेरे लँड को चूसने लगा तो मैने उसका सर पकड के उसका मुह चोदना शुरु कर दिया! वो चूसने में एक्स्पर्ट था! उसने मेरे आँडूए अपने मुह में लिये और फ़िर उनको दबा के चूसने लगा और मेरे लँड पर अपना थूक मलने लगा!
"मुझे भी चुसवा ना..." कुछ देर के बाद मैने कहा!
"आजा, नीचे होकर मुह में ले ले जानेमन... मेरी रानी आजा ना... तुझ पर तो अपनी जवानी न्योछावर कर दूँगा..." उसके कहा!
"हाये आकाश..." मैने कहा और जब उसका लँड अपने मुह में लिया तो लगा कि किसी मर्द का खम्बा लिया है! उसमें उतना ही देसी जोश था जितने की मुझे उम्मीद थी! साला सीधा अंदर तक घुस घुस कर मेरा मुह गर्म कर रहा था! मैने उसकी गाँड दबोच रखी थी और मैं उसका लँड खाये जा रहा था! फ़िर मैने उसको घुमाया और उसकी दरार में मुह डाल के उसका छेद किस करने लगा तो वो मचलने लगा! उसकी गाँड की खुश्बू बढिया थी! साले की गाँड पर हल्के से रेशमी बाल थे जिनको मैने थूक में लपेड के साइड में चिपका दिया था और फ़िर मैने उसकी गाँड में ज़बान घुसानी शुरु कर दी! कुछ देर बाद वो मेरी गाँड चाटने लगा!
"मुझे भी गाँड चूसने में मज़ा आता है..." हम काफ़ी देर, बारी बारी एक दूसरे की गाँड चूसते रहे और फ़िर उसने कहा!
"पलट ना, तेरी गाँड मारूँगा..."
"आ ना राजा... आ मार ले, सही से मारीयो..."
"हाँ रानी, तेरी गाँड में बच्चा डाल दूँगा... पलट..."
फ़िर उसने बिना तेल ही, सिर्फ़ मेरे थूक से लिपटा अपना सुपाडा, देखते देखते मेरी गाँड में सरका दिया! उस रात का मेरी गाँड में वो दूसरा लँड था, जिस कारण मेरी गाँड तुरन्त ही खुल गयी! उसने काफ़ी देर तक मेरी गाँड मारी! पहले से गाँड खुली हुई होने के कारण, उसको इतनी सैन्सेशन नहीं हो रहीं थी, कि वो आसानी से झड जाता! फ़िर मैने उसको पलटा और जब उसकी गाँड में मेरा लँड घुसा तो मज़ा आ गया! घुसाते ही पता चल गया कि उसकी गाँड कुँवारी थी! फ़िर उसने अपनी गाँड उठा दी!
"ऐसे ही, मेरी गाँड में अपना लँड डाल के, हाथ नीचे करके मेरा लँड हिलाता रह..." मैने उसकी उठी हुई गाँड में पूरा लँड घुसाया और नीचे हाथ डाल कर उसका लँड पकड के उसको हिलाने लगा! फ़िर उसके लँड से वीर्य निकल पडा, जिस कारण उसकी गाँड भिंची और मेरा लँड भी उसकी गाँड में अपना माल झाडने लगा! उसका पूरा माल बिस्तर पर था और मेरा उसकी गाँड में! हम वैसे ही अपने अपने माल में सने हुये सो गये! सुबह जब आँख खुली तो पाया कि आकाश मेरे होंठ चूस रहा है! हम फ़िर लग लिये और फ़िर उसने मेरी गाँड मारी और उसके बाद मैने उसकी! फ़िर हम साथ में नहाये! आकाश का जिस्म बडा सुंदर था, उसको नँगा देख के मेरे चाहत पूरी हो गयी थी! मुझे उससे इश्क़ सा हो गया था!
धीरे धीरे मौसम बदला और फ़िर दोपहर में गर्मी होने लगी! वैसे अभी मार्च का महीना ही था मगर धूप तेज़ हो जाती थी! रात में थोडी बहुत ठँड पडती थी!
फ़िर एक दिन पता चला कि राशिद भैया को नौकरी मिल गयी है और वो वापस आ रहे हैं! मुझे लगा वो मेरे साथ रुकेंगे, मगर जब पता चला कि उनकी कम्पनी वालों ने एक गेस्ट हाउस में उनका इन्तज़ाम कर दिया है तो मेरा दिल टूट गया! वैसे नशे की उस दास्तान के बाद राशिद भैया के साथ कुछ हुआ भी नहीं था... और ना उन्होने कोई इच्छा जताई थी! फ़िर भी इतना हो जाने के बाद मेरे अंदर उनको पाने की चाहत पूरी जाग चुकी थी! वो सीधा सामान लेकर मेरे रूम पर आ गये और दिन भर साथ रहे! मैं जीन्स में बन्द उनकी जवानी का आनन्द लेता रहा और उस रात को याद करता रहा जब मैने उनका लँड ऑल्मोस्ट चूस ही लिया था और मेरे अंदर ठरक जागती रही! शाम को वो मुझे अपने साथ अपने गेस्ट हाउस ले गये जहाँ विक्रान्त भैया भी आ गये! अब उनके सामने तो कुछ होने की उम्मीद और भी नहीं थी! उस दिन उन्होने जब बॉटल खोली तो मुझे ज़बरदस्ती अपने साथ बिठा लिया! राशिद भैया ने बडी मादक तरह से मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा!
"अब तो जवान हो गये हो... ऐसे शरमाओगे तो कैसे बात बनेगी?" मैं उनके डबल मीनिंग डायलॉग का मतलब नहीं निकाल सका, मगर मेरा मन उनकी उस नज़र और बात करने के उस लहजे से गदगद हो गया!
मैने एक दिन पहले ही अपनी झाँटें और गाँड शेव किये थे और एक बडी चुदाक सी, लाल, लेडीज पैंटी पहने था जो मुझे आकाश ने दिलवायी थी! शेव करने के बाद लेडीज पैंटी पहनने में आसानी रहती थी क्योंकि उसका नर्म कपडा चुभता नहीं था और साथ में सैक्सी भी लगता था! वैसे में मुझे नँगा नँगा फ़ील होता था! मैने ऊपर एक टैरिकॉट की टाइट सी बेइज़ कलर की पैंट और एक हाफ़ आस्तीन की शर्ट पहनी हुई थी! उस दिन भैया ने लुँगी के बजाय सिर्फ़ एक छोटा सा गमछा ही पहना हुआ था और ऊपर केवल बनियान! मेरी नज़र रह रह कर उनके गदराये कटावदार जिस्म पर थिरकने लगती थी! उनकी छाती पर मसल्स के कटाव थे! चौडी सुडौल बाज़ू थी, चौडी कलाईयाँ और मस्त मस्क्युलर फ़ैली जाँघें... और वो 8 नम्बर का जूता पहनते थे! वो और विक्रान्त आमने सामने दो कुर्सियों पर बैठे थे और मैं बगल में बेड के कोने पर जिससे मैं डायरेक्टली उनके विज़न में नहीं था मगर वो दोनो ठीक मेरे सामने थे! इस बार राशिद भैया को बेटी हुई थी!
"चल, अब तो तूने काम शुरु कर दिया होगा?"
"नहीं यार, अभी चूत सही नहीं हुई..."
"बहनचोद, इतने दिन बिना लिये कैसे रह सकता है?"
राशिद भैया ने कतरा के मेरी तरफ़ देखा!
"अबे, ये कौन सा बच्चा है जो तू बात करने में शरमा रहा है..." अभी राशिद भैया को चढी नहीं थी इसलिये उनको शायद हल्का सा इन्हिबिशन था!
"क्या करूँ यार... रहना पडता है... मजबूरी है..."
"बहनचोद, ऐसे में तो मूड इतना खराब हो जाता है कि लौंडा मिले तो लौंडे की ही गाँड मार लूँ मैं तो..."
"हाहाहा... हाँ यार, अपनी भी हालत कुछ वैसी ही हो गयी है..."
"तो कोई चिकना सा लौंडा ही फ़ँसा ले... जा, सैंट्रल पार्क चला जा, वहाँ होमो लौंडे मिल जाते हैं... 40-50 रुपये दे दियो, कोई चिकना सा तेरे साथ आ जायेगा..."
"हाहाहा... नहीं यार, पता नहीं साला कौन होगा, कैसा होगा..."
"अबे पहले देख लेना, तेरी तो बॉडी देख कर साले खुद ही आ जायेंगे..."
"साले, तू लगता है पार्ट टाइम में यही करता है..."
"अबे मैं नहीं, वो साला अश्फ़ाक़ था ना अपने साथ... उस मादरचोद का अक्सर का यही काम था... हाहाहाहा..."
"अच्छा? साले को ये शौक़ भी था?"
"हाँ, अक्सर वहाँ से चिकने लौंडे लेकर, हॉस्टल में ही लाकर उनकी गाँड मारता था..." बातों के साथ साथ चुस्कियाँ भी चल रहीं थी!
"यार, मुझे आज जल्दी जाना है... कल मेरा टेस्ट है, अगर कल नहीं दिया तो एग्ज़ाम में अपीअर नहीं हो पाऊँगा..." फ़िर भी विक्रान्त भैया को जाते जाते 11 बज ही गये! तब तक मुझे और राशिद भैया दोनो को ही चढ चुकी थी और अब इतनी बेबाकी से बेशरम बातें सुन कर हमारी इन्हिबिटेशन भी खत्म हो चुकी थी!
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