RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
विनोद ने केवल वेट ही गैन नहीं किया था, उसने शिखा की चूत में दबा दबा के अपना लौडा और भी मस्त कर लिया था! उसका जिस्म और ज़्यादा गदरा गया था! जहाँ पिछली बार हड्डी दिख रही थी, अब मसल्स थे! उसकी गाँड और मज़बूत हो गयी थी, दरार और ज़्यादा गहरी हो गयी थी! हम दोनो ने एक दूसरे की तरफ़ करवट ली और फ़िर अपने लँड आपस में टकरा के लेट गये और धक्के दे दे कर एक दूसरे का मुह किस करने लगे! मैं लगातार उसकी गाँड सहला रहा था, उसकी फ़ाँकें फ़ैला के जब मैने उसके छेद पर उँगली रखी तो वो मस्त हो गया!
फ़िर मैने उसके साथ वो भी किया जो पहले नहीं किया था! मैने उसको पलट के लिटाया और उसको तकिया बना के उसकी कमर पर सर रख कर लेट गया और एक हाथ से उसकी गाँड की फ़ाँकों के बीच सहला के उसकी बीवी का नाच देखने लगा, जो अब 'इश्क़ समुन्दर' पर नाच रही थी!
"ओये, पैंटी खोल के चूत दिखा दे रानी..." मैने विनोद की कमर पर दाँत काटते हुये उसकी बीवी से कहा! शिखा ने अपनी दो उँगलियाँ कमर पर अपनी पैंटी की इलास्टिक पर फ़ँसा दीं और वैसे ही कमर मटकाती रही फ़िर उसने पैंटी हल्के से नीचे खिसकायी तो उसकी झाँटें दिखीं!
"वाह... हाँ, खोल दे..." कहकर मैने उँगली विनोद की गाँड पर रखी! उसका छेद गर्म था और कुलबुला रहा था! उसकी जाँघें फ़ैल गयी थी! मैने उनके बीच हाथ डाला हुआ था! कभी कभी मैं हाथ में उसके आँडूए थाम लेता था!
शिखा पूरी नँगी हो गयी और अपनी चूत लचका लचका के नाचने लगी! उस सीन के कारण उसकी चूत से पानी निकल के उसकी जाँघों पर बह रहा था! मैने वो सीन देख के विनोद की गाँड की फ़ाँकों को फ़ैला के उनके बीच मुह घुसा दिया और उसकी मर्दानी खुश्बू सूंघने लगा!
"कैमरा निकाल ना साली..." विनोद ने अपनी बीवी से हैंडीकैम पर हमारी फ़िल्म बनाने को कहा!
मैने उसकी गाँड उठवा दी थी! अब उसका खुला हुआ छेद मेरे होठों और ज़बान का शिकार बन चुका था! मैं उसको खूब चाट रहा था! पीछे से मुह घुसा के मैने उसके आँडूए चाटे, फ़िर उनको चूसने लगा! उसने टाँगें और फ़ैला दीं तो मैने उसका लँड भी थाम लिया! मैने उसको सीधा किया और उसका लँड चूसने लगा! फ़िर वो भी मेरे लँड की तरफ़ मुह करके पैर मोड के लेटा तो वो मेरा और मैं उसका लँड चूसने लगे!
"आजा, ज़रा गाँड चाटेगी क्या?" मैने शिखा को बुलाया!
"हाँ, साली कुतिया चाटेगी क्यों नहीं..."
शिखा ने जब पहली बार मेरी गाँड पर मुह लगाया तो मैं मस्त होकर पागल हो गया! कुछ देर में वो आराम से मेरी गाँड चाटने लगी!
"आज, एक बार इसकी चूत भी चोदूँगा..."
"हाँ, चोद लियो यार... अब क्या पूछना है..." विनोद ने कहा तो मैने शिखा से अपने लँड पर तेल मालिश करवायी और उसको फ़ाइनली विनोद की गाँड में डाल दिया और शिखा के बाल पकड के उसका सर वहाँ लगा दिया!
"देख, तेरे पति की गाँड कैसे मार रहा हूँ, देख... साली राँड, इसकी फ़िल्म बना, देख..."
शिखा फ़िल्म बनाती रही मगर बीच बीच में, मैं विनोद की गाँड से लँड निकाल कर सीधा शिखा के मुह में घुसेड देता था! अब वो हमारे साथ हमारी जैसी ही हो गयी थी!
हम कुछ देर के लिये रुके और एक एक पेग और पिया! इस बार मैने शिखा के हाथ से बॉटल लेकर सीधा सारी व्हिस्की उसके सर पर उँडेल दी तो वो शराब में नहा गयी! वो खुद भी मस्त होकर उसको अपने बदन पर रगडने लगी! मैने उसको खींचा और लिटा लिया... फ़िर मैने विनोद से बोला!
"ले बेटा, तू मेरा लौडा पकड के अपनी बीवी की चूत में डाल..." उसने एक हाथ से उसकी चूत फ़ैला दी जो अब पानी की टंकी की तरह बह रही थी और दूसरे से मेरा लँड पकड के दो फ़ाँकों के बीच लगाया! मैने जब धक्का दिया तो लँड सरसरा के अंदर घुस गया, जिसमें मुझे तो मज़ा नहीं आया मगर शिखा ने चूत से मेरा लँड जकड लिया और सिसकारियाँ भरने लगी!
"साली मस्त हो गयी... देखा ना, बोला था ना... मोटा लौडा है इसका..."
"हाँ... बहुत बडा है बहुत... आपसे भी बडा..."
"हाँ, तभी तो चुदवाने में मज़ा आता है, चुदवा ले रानी...."
इस बार विनोद मेरे पीछे आया और जब मैं उसकी बीवी की चूत में लँड दे रहा था, उसने अपना लँड मेरे छेद पर लगा दिया! इस बीच उसने भी तेल लगा लिया था! अब क्या था, उसने मेरी गाँड में अपना लँड डाल दिया! अब जब वो मेरी गाँड पर धक्का देता मेरे लँड का धक्का सीधा उसकी बीवी की चूत पर लगता!
मैने उस दिन दो बार विनोद की गाँड, एक बार उसके मुह और एक बार शिखा की चूत में वीर्य डाला! बदले में विनोद ने भी मुझे दो बार अपना वीर्य पिलाया और शिखा तो ऐसी चुदी कि सुबह तक उसकी कमर चरमरा गयी! फ़िर ये हमारा रेगुलर खेल हो गया!
आपको काशिफ़ तो याद ही होगा जिससे मैने एक रात हॉस्टल में गाँड मरवायी थी! पर उसके बाद वो मुझे मिला ही नहीं! अभी पता चला, उसी काशिफ़ की शादी है! मैं घर तो जाने ही वाला था, राशिद भाई के कहने पर सोचा, क्यों ना उसकी शादी अटेंड कर लूँ!
तब मैने ज़ाइन को देखा! अब वो बडा हो गया था और जवानी के नशे में था! इतने साल मैने उसको देखा था मगर इस बार, चार साल के बाद देखने में बात ही कुछ और थी... वो और सुंदर, मस्क्युलर, स्लिम सा सुंदर लडका हो गया था! ज़ाइन, राशिद भाई का बडा बेटा है! शादी के घर में मुझे उसके साथ काफ़ी समय बिताने को मिल जाता! मैं उसको खूब खिलाता पिलाता, जोक्स सुनाता, उसके साथ मेल चेक करने जाता, कभी कभी सैक्सी मज़ाक करता, हिरोइन्स की बातें करता, सैक्स तक की बात कर लेता और वो भी मुझसे फ़्रैंक होने लगा! उस शाम मैं और ज़ाइन छत के पास एक छोटे कमरे में अकेले बैठे थे! बाकी घर में शादी का शोर था!
मैने ज़ाइन को एक नज़र देखा और देखता ही रह गया! उसमें अपने दादा की सुंदरता, बाप की जवानी, माँ की चिकनाहट एक साथ मिल कर गज़ब ढा रही थी! उसके भूरे भूरे से, बिना तेल के बाल उड रहे थे! उसकी हाफ़ स्लीव व्हाइट शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुये थे और जीन्स तो मानो जगह जगह उसके जिस्म का चुम्बन ले रही थी! वो रह रह कर अपने मोबाइल से खेलने लग जाता था!
"ऐसा क्या है मोबाइल में?"
"कुछ नहीं चाचा, बस ऐसे ही आदत है..."
"अच्छा..."
"कहीं, कुछ ऐसा वैसा तो नहीं है तुम्हारे मोबाइल में??"
"हे.हे.हे... नहीं चाचा नहीं... बस फ़्रैंड्स के मैसेजेज पढ रहा हूँ..." ज़ाइन सुंदर तो था ही, मेरी बातों से शरमा के उसका गोरा रँग गालों पर और लाल हो गया था!
"वैसे, आजकल तुम लोग मोबाइल का काफ़ी गलत इस्तेमाल करते हो..."
"नहीं चाचा, नहीं तो..."
"अरे देखा नहीं था वो डी.पी.एस. वाला एम.एम.एस.???" इस बार उसका चेहरा बिल्कुल लाल हो गया!
"वो तो बस वैसे ही लोग होते हैं चाचा..."
"कैसे होते हैं??? सब तुम्हारे जैसे ही तो थे... तुम्हारे साथ भी लडकियाँ पढती हैं क्या?"
"जी... मगर वैसी कोई बात नहीं है..."
"वैसी बात होने में टाइम लगता है क्या???" ज़ाइन मेरी बातों से शरमा रहा था, मगर साला हरामी खून था! मैं देख तो ज़ाइन को रहा था मगर मेरी आँखों के सामने कभी उसके दादा हुमेर का और कभी उसके बाप राशिद का लँड नाच रहा था और उनके साथ हुई चुदायी का मन्ज़र साफ़ दिख रहा था! जब मैं उन दोनों से, ज़ाइन को कम्पेअर कर रहा था तो उसकी कमसिन गदरायी चिकनी जवानी और ज़्यादा आग लगा रही थी!
"अब तुम बच्चे भी नहीं हो, जो इतना शरमा रहे हो..."
"शरमा कहाँ रहा हूँ..."
"शरमा तो रहे हो..."
"तुम्हारी उम्र में तो हमने खूब गुल खिलाये थे..."
"अच्छा??? कैसे गुल?" अब मैं उसको उसके दादा और बाप के बारे में क्या बताता!
"बस रहने दो, तुम वैसे ही शरमा रहे हो... कहीं शॉक से बेहोश ना हो जाओ..."
"अरे बताइये ना..."
"अब पता नहीं, तुम्हारी जनरल नॉलेज़ कैसी है... कहीं ज़ीरो हुई तो बेकार होगा..."
"जी.के. तो अच्छी है..."
"नम्बर वाली या बिना नम्बर वाली?"
"दोनो..."
सही था... साला था तो अपने बाप का बेटा और अपने दादा का पोता ही ना... लगता था, लौंडेबाज़ी का फ़ैमिली ट्रेडिशन कायम रखने वाला था... या शायद ये बस मेरी उम्मीद थी! मैने फ़िर ज़ाइन का जिस्म देखा, उसके हाथ पैर सच बडे नमकीन थे... दिल किया, बस उसको पकड के पूरा चाट डालूँ! उसके पैर के बीच में हल्का सा उभार था! मैने सोचा, पता नहीं उसका लँड कितना बडा होगा!
"अच्छा ये बताओ ज़ाइन, जब लडकी का ध्यान आता है तो तुम्हें क्या दिखता है?" एक बार को तो वो एकदम तमतमा गया! फ़िर थूक निगलता हुआ बोला!
"मतलब?"
"मतलब की तुम फ़ेल..."
"नहीं नहीं, इतनी जल्दी नहीं... अच्छा बताता हूँ..."
"बताओ..."
"किस सैन्स में पूछ रहे हैं आप?"
"डी.पी.एस. के एम.एम.एस. वाले सैन्स में..." वो फ़िर शरमाया तो मुझे लगा कि लौंडा कहीं अपने बाप दादा का ट्रेडीशन तोड ना दे!
"उस सैन्स में???"
"अब इतना टाइम लोगे तो सुबह हो जायेगी..."
"उस सैन्स में तो चाचा, एक ही चीज़ ध्यान आयेगी ना..."
"क्या चीज़?"
"चूत"
"शाबाश... अब जवाब दिया ना तुमने सही से..."
"चूत किस कलर की होती है?"
"गुलाबी"
"वाह ज़ाइन वाह..." उसके इन दोनो जवाबों से मेरा लँड बिल्कुल खडा हो गया! उसका चेहरा अब तमतमा के लाल हो गया था!
"चूत में क्या डाला जाता है ज़ाइन?"
"उन्हु चाचा..."
"नहीं पता क्या?"
"पता है..."
"तो बताओ"
"जी... जी... जी लँड..."
"अच्छा, बताओ कैसे डाला जाता है?"
"उन्हु... उन्हु.. अच्छा बताता हूँ, रुकिये एक मिनिट... बस प्लीज... जी वो... जी..."
"अब रहने दो... तुम फ़ेल..."
"जी, वो चूत की दोनो फ़ाँकों के बीच में डाला जाता है..."
"शाबाश... डीटेल में बताओ, सोचो तुम डाल रहे हो..."
"जी, दोनो फ़ाँकों को हाथ से फ़ैला के उनके बीच में..."
"लँड का कौन सा हिस्सा पहले अंदर जायेगा?"
"जी लौडे का सुपाडा..."
"अब बताओ, डी.पी.एस. का एम.एम.एस. कैसा था?"
"बहुत बढिया.."
"अगर उस लडके की जगह तुम होते तो क्या करते?"
"मैं चूत में लँड डाल देता चाचा..."
"तुम्हारा किता बडा है?"
"उस लडके से बडा..."
"इन्चेज़ में बताओ..."
"जी... अबाउट ६..."
"झाँटें आ गयी हैं?"
"हाँ..."
"गाँड पर बाल हैं?"
"नहीं..."
"लँड चुसवाने का ख्याल आया कभी?"
"हाँ..."
"लडकी की गाँड का सोचा कभी?"
"हाँ..."
"क्या सोचा?"
"यही कि गाँड में लँड डाल दूँ..."
"डाल पाओगे?"
"हाँ बिल्कुल..."
"क्या लगा के?"
"थूक..." अब शायद उसका भी लँड पूरा खडा था क्योंकि वो कसमसा कसमसा के अपने पैर आपस में भींच रहा था!
"माल झडता है?"
"हाँ..."
"मुठ मारते हो?"
"जी, मारता हूँ..."
"कभी गाँड के बारे में सोच के मुठ मारी?"
"जी..."
"कैसे?"
"एक लडकी जीन्स में दिखी थी उसका सोच के..."
"गाँड कैसी होती होगी?"
"छोटी.. गोल... टाइट..."
"गाँड के अंदर घुसा पाओगे?"
"क्यों नहीं... ट्राई तो कर ही सकता हूँ...."
"शाबाश... अब तक तुम्हारे सारे जवाब सही हैं... तुम्हें बम्पर प्राइज़ मिलेगा..." मैने कहा तो वो खुश हो गया! इस बार उसने अपने पैर थोडा शफ़ल किये तो मुझे उसकी जीन्स में उसका लँड उभरा हुआ दिखा!
"कितना खडा है?"
"पूरे का पूरा..."
हम उस कमरे के बहुत पास बैठे थे जिसमें किसी दिन ज़ाइन के दादा ने मेरी गाँड मारी थी! उस समय, मैं भी उसी की तरह कमसिन सा चिकना था!
"खडे लँड से क्या करते हैं?"
"चुदायी..."
"और अगर चूत ना मिले तो?"
"तो मुठ मारते हैं..." अब उसका चेहरा कामुकता की तपिश से तमतमा रहा था! ठरक के मारे वो अपने होंठ सिकोड रहा था! अभी ज़्यादा रात नहीं हुई थी! घर में हर तरफ़ लोग आ जा रहे थे, शोर शराबा था! बस मैं वहाँ अपने चिकने से लौंडे के साथ एक कोने में बैठा था! इतनी बातों के बाद अब मुझे समझ आ गया था कि थोडी और कोशिश में ज़ाइन पट जायेगा!
"डी.पी.एस. वाले के अलावा भी कुछ देखा है?"
"हाँ बहुत... मेरे तो फ़ोन में भरे हुये हैं.. और कई बार फ़ुल लेन्थ फ़िल्म भी देखी है..."
"तब तो तुम्हारा लँड हमेशा खडा रहता होगा?"
"हाँ अक्सर..."
"सेम सैक्स... मतलब बॉयज़-टू-बॉयज़ वाले सैक्स के बारे में सुना है?" अब मैने सीधा लाइन पर आने का ट्राई किया!
"हाँ... हाँ, सुना तो है..."
"वो क्या होता है?"
"यू मीन होमो सैक्स ना???"
"हाँ वही..."
"उसमें लडके ही आपस में करते हैं..."
"क्या करते हैं?"
"वही जो लडकी के साथ होता है..."
"मगर लडकों के चूत तो होती नहीं है?"
"चूत की जगह गाँड होती है ना चाचा..."
"शाबाश ये जवाब बैस्ट था..." वो अपनी तारीफ़ से खुश हो गया! अब तक तो मेरा लौडा पूरा फ़नफ़ना के टपकने लगा था और मेरी चड्डी से बाहर निकल गया था!
"आपका भी खडा है क्या?"
"हाँ..."
"कितना?"
"बिल्कुल पूरा फ़ुल..."
"आप क्या करते हैं ऐसे में?"
"मैं भी मुठ मारता हूँ..."
"मुठ मारोगे क्या?" मैने गीअर बदला!
"हटिए... नहीं..."
"क्यों... मारते तो हो ना..."
"हाँ, मगर अकेले में..."
"तो सोच लो अकेले हो..."
"नहीं नहीं... हो नहीं पायेगा..."
"ट्राई तो करो..."
"कैसे?"
"अपनी ज़िप खोल के बाहर निकाल लो..."
"अरे कैसे चाचा? नहीं..."
"ट्राई करो तो हर चीज़ पॉसिबल है..." मेरा दिल सीने में तेज़ी से धडक रहा था और साँसें एक्साइटमेंट के मारे तेज़ चल रहीं थी!
"अब... काशिफ़ के तो मज़े आ जायेंगे..."
"हाँ वो तो है..."
"इस समय उसका क्या हाल होगा?"
"हाल बुरा होगा... लँड खडा होगा..."
"हा हा हा हा हा..."
"आपकी शादी क्यों नहीं हुई अभी तक?"
"बस मेरी मर्ज़ी.."
"खडा तो खूब होता होगा..."
"हाँ मगर... यार क्या बताऊँ..."
"बताना क्या है... शादी कर लीजिये..."
"शादी कर के क्या करूँगा यार?"
"चुदायी करियेगा... खूब... आपने होमो के बारे में क्यों पूछा?"
"ऐसे ही... इतनी और बातें भी तो पूछीं यार..."
"मगर... कहीं आप मुझे कुछ वैसा..."
"नहीं... तुम डर क्यों गये?"
"डरता वरता नहीं हूँ..."
"तो लँड खोल के मुठ मार लो..."
"देखिये, बात करने की बात हुई थी... कुछ और करने की नहीं..."
"तो बात आगे भी तो बढ सकती है..."
"उसके लिये आपको शादी करनी होगी चाचा..."
"अब शादी के लिये लडकी तो नहीं है..."
वो अब अपने लँड को अपनी जीन्स के ऊपर से रगड रहा था!
"तो क्या हुआ?"
"तो क्या मतलब?"
"लडकी ढूँढ लीजिये..."
"नहीं यार..."
"तो किसी से कह दीजिये..."
"लँड खोलो ना..."
"क्या करेंगे लँड खुलवा के..."
"कुछ नहीं... तुम मुठ मारना, मैं देखूँगा..."
"तो क्या फ़ायदा?"
"फ़ायदा क्या... मज़ा आयेगा..."
"पहले किसी लडके का देखा है?"
"हाँ..."
"ये तो खुद होमो हरकत होती है ना..."
"हाँ... मगर बॉय्ज़ आपस में मज़ा लेने के लिये भी करते है कभी कभी..."
"आप मेरा देखना क्यों चाहते हो?"
"बस ऐसे ही..."
"अच्छा बस एक बार दिखाऊँगा..."
"ओके..."
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