RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
मेरा यार हेमन्त
हेमन्त से मेरा परिचय पहली बार तब हुआ जब मैं शहर में कॉलेज में पढ़ने के लिये आया. होस्टल में जगह न होने से मैं एक घर ढूंढ रहा था. तब मैं सोलह वर्ष का किशोर था और फ़र्स्ट इयर में गया था. शहर में कोई भी पहचान का नहीं था, इसलिये एक होटल में रुका था.
रोज शाम को कॉलेज खतम होते ही मैं घर ढूंढने निकलता. मेरी इच्छा शहर के किसी अच्छे भाग में घर लेने की थी. मुझे यह आभास हो गया था कि इसके लिये काफ़ी किराया देना पड़ेगा और किराया बांटने के लिये किसी साथी की जरूरत पड़ेगी.
एक दिन एक मित्र ने मेरी मुलाकात हेमन्त से करा दी. देखते ही मुझे वह भा गया. वह फ़ाइनल इयर में था; उम्र में मुझसे पांच छह वर्ष बड़ा होगा. उसका शरीर बड़ा गठा हुआ और सजीला था. हल्की मूछे थीं और नजर बड़ी पैनी थी. रंग गेहुआ था और चेहरे पर जवानी का एक जोश था.
मुझे अपनी ओर घूरते देख वह मुस्कराया. उसने मुझे बताया कि वह भी एक घर ढूंढ रहा है क्योंकि होस्टल से ऊब गया है. उसकी नजर मुझे बड़े इंटरेस्ट से देख रही थी. उसकी पैनी नजर और उसका पुष्ट शरीर देख कर मुझे भी एक अजीब सी मीठी सरसरी होने लगी थी.
हम ने तय कर लिया कि साथ साथ रहेंगे और आज से ही साथ साथ घर ढूंढेगे. शाम को उसने मुझे होस्टल के अपने कमरे पर आने को कहा. वहां से दोनों एक साथ घर ढूंढने जाएंगे ऐसा हमारा विचार था.
सारा दिन मैं उसके विचार में खोया रहा. सच तो यह है कि आज कल मेरी जवानी पूरे जोश में थी और मेरा इस बुरी तरह से खड़ा होता था कि रोज रात और दोपहर में भी दो तीन बार हस्तमैथुन किये बिना मन नहीं मानता था. लड़कियां या औरतें मुझे अच्छी तो लगती थी पर आज कल गठे हुए शरीर के चिकने जवान मर्द भी मुझे आकर्षित करने लगे थे.
मुट्ठ मारते हुए मैं अक्सर यही कल्पना करता था कि कोई जवान मेरी गांड मार रहा है या मैं किसी का लंड चूस रहा हूं. या फ़िर मां की उम्र की किसी अधेड़ भरे पूरे बदन की महिला की गांड मार रहा हूं.
मुझे अब ऐसा लगने लगा था कि औरत हो या मर्द, जो भी हो पर जल्दी किसी के साथ मेरी कामलीला शुरू हो. मुझे यहां नये शहर में संभोग के लिये कोई नारी मिलना तो मुश्किल लग रहा था, इसलिये आज हेमन्त को देखकर मैं काफ़ी बेचैन था. पर मुझे यह पक्का पता नहीं था कि वह मेरे बारे में क्या सोचता है. खुद पहल करने का साहस मुझमें नहीं था.
उस शाम इतनी बारिश हुई कि मैं बिलकुल भीग गया. मैं जब हेमन्त के कमरे में पहुंचा तो सिर्फ जांघिया और बनियान पहने हुए वह कमरे में रबर की हवाई चप्पल पहनकर घूम रहा था. मुझे देख उसके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई.
मेरे भीगे कपड़े देख कर वह बोला. "यार, तू सब कपड़े उतार के मुझे दे दे, यह टॉवेल लपेट कर बैठ जा, तब तक मैं प्रेस से ये सुखा देता हूं. नहीं तो सर्दी लग जायेगी तुझे, वैसे भी तू नाजुक तबियत का लग रहा है."
मैंने सब कपड़े उतारे और टॉवेल लपेटकर कुर्सी में बैठ गया. मेरे कपड़े उतारने पर मुझे देख कर वह मजाक में बोला. "अनिल, तू तो बड़ा चिकना निकला यार, लड़कियों के कपड़े पहन ले और बाल बढ़ा ले तो एक खूबसूरत लड़की लगेगा."
वह प्रेस ऑन करके कपड़े सुखाने लगा और मुझसे बातें करने लगा. बार बार उसकी नजर मेरे अधनंगे जिस्म पर से घूम रही थी. मैं भी टक लगा कर उसके कसे हुए शरीर को देख रहा था. मन में एक अजीब आकर्षण का भाव था. हम दोनों में जमीन आसमान का अंतर था और लगता है कि यही अंतर हमें एक दूसरे की ओर आकर्षित कर रहा था.
मेरे छरहरे चिकने गोरे दुबले पतले पचपन किलो और साढ़े पांच फुट के शरीर के मुकाबले में उसका गठा हुआ पुष्ट शरीर करीब पचहत्तर किलो वजन का होगा. मुझसे वह करीब चार पांच इंच ऊंचा भी था. भरी हुई पुष्ट छाती का आकार और निपलों का उभार बनियान में से दिख रहा था. छाती मेरी ही तरह एकदम चिकनी थी, कोई बाल नहीं थे.
मैं सोचने लगा कि आखिर क्यों उसके निपल इतने उभरे हुए दिख रहे हैं. फ़िर मुझे ध्यान आया कि औरतों की तरह ही कई मर्दो के भी निपल उत्तेजित होने पर खड़े हो जाते हैं. मैंने समझ लिया कि शायद मुझे देखकर उसका यह हाल हुआ हो. मेरा भी हाल बुरा था और मेरा लंड उसके अर्धनग्न शरीर को पास से देखकर खड़ा होना शुरू हो गया था.
मेरा ध्यान अब उसकी मांसल जांघों और बड़े बड़े चूतड़ों पर गया. उसका जांघिया इतना फ़िट बैठा था कि चूतड़ों के बीच की लाइन साफ़ दिख रही थी. जब भी वह घूमता तो मेरी नजर उसके जांघिये में छुपे हुए लंड पर पड़ती. कपड़े के नीचे से सिकुड़े और शायद आधे खड़े आकार में ही उसका उभार इतना बड़ा था कि जब मैंने यह अंदाजा लगाना शुरू लिया कि खड़ा होकर यह कैसा दिखेगा तो मैं और उत्तेजित हो उठा.
अब तक कपड़े सूख गए थे और हेमन्त ने मुझे पहनने के लिये वे वापस दिये. मुझे उसने अपने शरीर और चप्पलों की ओर घूरते देख लिया था पर कुछ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्करा दिया. मैं कुर्सी पर से उठने को घबरा रहा था कि उसे टॉवेल में से मेरा तन कर खड़ा लंड न दिख जाये. उसने शायद मेरी शरम भांप ली क्योंकि वह खुद भी मुड़ कर मेरी ओर पीठ करके खड़ा हो गया और कपड़े पहनने लगा.
हम लोग बाहर निकले. अब हम ऐसे गणें मार रहे थे जैसे पुराने दोस्त हों. उसने बताया कि पिछले हफ्ते उसने एक घर देखा था जो उसे बहुत पसंद आया था पर एक आदमी के लिये बड़ा था. वह मुझे फ़िर वहीं ले गया. फ़्लैट बड़ा अच्छा था. एक बेडरूम, बड़ा बैठने का कमरा, एक किचन और बड़ा बाथरूम, घर में सब कुछ था, फ़र्निचर, बर्तन, गैस, हमें सिर्फ अपने कपड़े लेकर आने की जरूरत थी. किराया कुछ ज्यादा था पर हेमन्त ने मेरी पीठ पर प्यार से एक चपत मार कर कहा कि घर मैं पसंद करू, ज्यादा हिस्सा वह दे देगा, कल से ही आने का पक्का कर के हम चल पड़े.
हम दोनों खुश थे. मुझे लगता है कि हम दोनों को अब तक मन में यह मालूम हो गया था कि एक साथ रहने पर कल से हम एक दूसरे के साथ क्या क्या करेंगे. हेमन्त मेरा हाथ पकड़कर बोला. "चल यार एक पिक्चर देखते हैं". मैंने हामी भर दी क्योंकि हेमन्त से अलग होने का मेरा मन नहीं हो रहा था.
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