RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
हेमन्त ने मेरे लंड को अपने चूतड़ों की गहराई में पूरा झड़ जाने दिया और फ़िर मुझे अपनी पीठ से उतार कर उठ बैठा. उसकी आंखें अब वासना से लाल हो चुकी थीं. उसका लंड उछल उछल कर फुफ़कार रहा था.
बिना कुछ कहे उसने मुझे बिस्तर पर ओंधा लिटा दिया और फ़िर मेरी गांड पर टूट पड़ा. मेरे नितंबों को चाटता हुआ
और चूमता हुआ वह उन्हें ऐसे मसल रहा था जैसे चूचियां हों. मस्ती में उसने जोर से मेरे नितंब को काट खाया. मेरी हल्की सी चीख निकल गयी. फ़िर झुक कर सीधा मेरा गुदा चूसने लगा. अपने हाथों से मेरे नितंब खींच कर उसने मेरी गांड खोली और उसमें अपनी जीभ उतार दी. हेमन्त की लंबी जीभ गहरी मेरे चूतड़ों में गयी और मैं सुख से सिहर उठा.
"यार अब तू ही मेरे लंड पर मक्खन लगा. तेरे मुलायम हाथों से जरा लौड़ा और मस्त होगा साला, देख तो कैसा उछल रहा है तेरी गांड लेने को. जा मख्खन ले आ यार" हेमन्त ने मुझपर से उठाते हुए कहा.
पर मैं उठकर पहले टेबल के पास गया और स्केल ले कर आया. मन में बहुत कुतूहल था कि उस मतवाले लंड की
आखिर साइज़ क्या है! मैं स्केल से हेमन्त का लंड नापने लगा. वह मुस्करा दिया. "नाप ले मेरी रानी. आखिर गांड में लेना है, तुझे भी गर्व होगा कि इतना बड़ा तूने लिया है."
उसका शिश्न पूरा सवा आठ इंच लंबा था. डंडे की मोटाई दो इंच से थोड़ी ज्यादा थी और सुपाड़ा तो करीब करीब ढाई इंच के व्यास का था. मेरे कौमार्य को कुछ ही देर में भंग करने को मचलते उस हथियार को मैंने फ़िर एक बार चूमा और फ़िर हथेली पर ढेर सा मख्खन लेकर उसके लंड में चुपड़ने लगा. लोहे के डंडे जैसे उस लौड़े को हाथ में लेकर उसकी फूली नसों को महसूस करके जहां एक तरफ़ मेरी वासना फ़िर भड़कने लगी वहीं मन में डर सा लगने लगा. घोड़े के लंड जैसे इस लौड़े को क्या मैं ले पाऊंगा?
पांच मिनिट मालिश करवा कर हेमन्त की सहनशक्ति भी जाती रही. उसने मुझे फ़िर बिस्तर पर मुंह के बल पटका और मेरे गुदा में मख्कन लगाना शुरू किया. दो तीन लोंदे उसने अंदर डाल दिये और फ़िर मेरे शरीर के दोनों ओर घुटने टेक कर बैठ गया. "बस मेरी रानी, अब नहीं रहा जाता, तैयार हो जा अपनी कुंवारी गांड मरवाने को. ऐसा कर अपने चूतड़ जरा खुद ही फ़ैला, इससे आसानी से अंदर जायेगा, तुझे तकलीफ़ भी कम होगी"
मैंने अपने चूतड़ फैलाये और मेरे गुदा पर उसके सुपाड़े का स्पर्श महसूस करके आंखें बंद करके प्रतीक्षा करने लगा. आज मुझे महसूस हो रहा था कि सुहागरात में पहली बार लंड चूत में लेते हुए दुल्हन पर क्या बीतती होगी. दिल जोरों से धड़क रहा था. बहुत डर लग रहा था. पर छूट कर भागने की मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी.
हेमन्त ने हौले हौले लंड पेलना शुरू किया. अपनी धधकती वासना के बावजूद वह बड़े प्यार से लंड अंदर डाल रहा था. पर मेरा गुदा अपने आप सिकुड़कर मानों अंदर घुसने वाले शत्रु को रोक रहा था. हेमन्त ने मुझे समझाया "यार अनिल, मेरी रानी, गांड खोल, जैसे टट्टी के समय करता है, तब घुसेगा अंदर आसानी से नहीं तो तकलीफ़ देगा तुझे मेरी जान."
मैंने जोर लगाया और गांड ढीली छोड़ी. एक सेकंड में मौका देखकर हेमन्त ने मंजे खिलाड़ी जैसे सुपाड़ा पचाक से अंदर कर दिया. मेरा गुदा ऐसा दुखा जैसे फ़ट गया हो. मैं चीख पड़ा. हेमन्त इसके लिये तैयार था, मेरा मुंह दबोच कर उसने मेरी चीख बंद कर दी. मैं छटपटाने लगा. आंखों में आंसू आ गये. हेमन्त ने लंड पेलना बंद किया और एक हाथ मेरे पेट के नीचे डाल कर मेरा लंड सहलाने लगा.
"बस मेरे राजा, हो गया, रो मत, हाथी तो चला गया, अब पूंछ आराम से जायेगी. तू गांड मत सिकोड़ ढीली छोड़ पांच मिनिट में ऐसा मरवाएगा कि कोई रंडी भी क्या चुदवाती होगी." कहकर वह मेरी गर्दन चूमने लगा. उसकी मीठी पुचकार ने और मेरे लंड में होती मीठी चुदासी ने आखिर अपना जादू दिखाया. मेरी यातना कम हुई और मैंने सिसकना बंद करके गांड ढीली छोड़ी. बहुत राहत मिली.
"बस अब दो मिनिट में पूरा डालता हूं, दुखे तो बताना, मैं रुक जाऊंगा." कहकर हेमन्त ने इंच इंच लंड मेरे चूतड़ों के बीच पेलना शुरू किया. आधा तो मैंने ले लिया और फ़िर दर्द होने से सिसक पड़ा. वह रुक गया. कुछ देर बाद दो इंच और डाला तो मुझे लगा कि पूरी गांड ट्रंस ढूंस कर किसीने भर दी हो. अंदर जगह ही नहीं थी.
हेमन्त कुछ देर और धीरे धीरे लंड पेलने की कोशिश करता रहा पर अब वह अंदर नहीं जा रहा था. वह जोर लगाता तो मुझे बहुत दर्द होता था. एकाएक उसने मेरा मुंह दबोचा और एक शक्तिशाली झटके से बचा हुआ तीन चार इंच का डंडा एक ही बार में अंदर गाड़ दिया. मुझे लगा कि जैसे मेरी गांड फ़ट गयी.
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