RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
फ़िर मैंने साड़ी और ब्लाउज़ पहने. साड़ी दो तीन बार उतारना और पहनना पड़ी पर आखिर में जम गयी. अंत में सैंडल पहने और लिपस्टिक लगा ली. अब हेमन्त आने का इंतजार था.
बेल बजी और मैंने धड़कते दिल से दरवाजा खोला. हेमन्त चकरा गया कि कहीं गलत घर तो नहीं आ गया. "आप
कौन? अनिल कहां है?"
मैंने दरवाजा लगा लिया और उससे लिपट कर चूमते हुए बोला. "हाय सैंया, अपनी रानी को नहीं पहचाना?"
उसकी आंखों में वासना छनक आयी. "क्या दिखता है यार तू अनिल, सारी, मैं कहना चाहता था कि क्या दिखती है तू अनू रानी, एकदम ब्यूटी क्वीन. साला रतन, अब देखता हूँ कैसे शादी नहीं करता!" कहकर वह मुझे खींच कर पलंग पर ले गया और मुझे पटक कर मुझ पर चढ़ कर मुझे बेतहाशा चूमने लगा. जल्द ही उसका तन्नाया लंड मेरी
गांड में था.
दो घंटे बाद जब वह रुका तो लस्त हो गया था. दो बार उसने मेरी गांड मारी थी. मुझे पूरा नंगा नहीं किया था, ब्रा और पैंटी रहने दिये थे. मेरा अर्धनग्न रूप उसे बहुत उत्तेजित करता था. पैंटी में छेद करके उसीमेंसे उसने मेरी गांड मारी थी.
जब उसने मेरी गांड में से लंड निकाला तो मैं उसे मुंह में लेता हुआ बोला. "अपनी रानी की प्यास नहीं बुझायेंगे क्या स्वामी? मैंने कब से पानी नहीं पिया. आपका इंतजार करती रही." मैं जान बूझ कर घर की बहू जैसा बोल रहा था.
मेरा सिर पकड़कर पेट पर दबाते हुए वह मेरे मुंह में मूतने लगा. "पेट भर कर पी मेरी जान. मैं भी दिन भर नहीं मूता. सुबह जल्दी में तुझे पिलाना भूल ही गया."
मेरा लंड अब बुरी तरह से खड़ा था. हेमन्त ओंधा लेट गया और मैं उस पर चढ़कर उसकी गांड मारने लगा. आइने में यह दृश्य बड़ा ही कामुक दिख रहा था कि एक युवती एक जवान मर्द की गांड मार रही है.
हेमन्त भी उत्तेजित होकर बोला. "मां की याद दिला दी तूने. उसके पास भी दो तीन डिल्डो हैं. जब मूड में आती है। तो मेरी या रतन की गांड मार लेती है. आज तुझसे मरवा कर ऐसा लग रहा है जैसे उसीसे मरवा रहा हूं."
रात को दो बार और उसने मेरी मारी. इस बार मुंह में चप्पल ठूस कर मेरी गांड को उसने चोदा. मेरा लंड चूस कर
आखिर उसने मुझे झड़ाया और फ़िर प्यार से मेरा मूत पिया.
जब मैं अपनी ब्रा, पैंटी और विग उतारने लगा. हेमन्त मेरा हाथ"रहने दे यार, बहुत प्यारा लगता है. अब घर में ऐसा ही रहा कर. आदत डाल ले."
रात को हेमन्त ने मुझे कहा, "आ यार, देखेगा मेरी मां और रतन की तस्वीर?"
मैं उछल पड़ा. मैं हमेशा की तरह गांड में उसका लंड लेकर उसकी गोद में बैठा था. वह वैसे ही उठ कर मुझे बाहों में उठाकर अपनी सूटकेस के पास आया और एक लिफ़ाफ़ा निकालकर वापस सोफे पर आ गया. तब तक मैं पैर उठाकर उसकी गर्दन में बांहें डालकर लटका रहा. अब गांड में उसका लंड न हो तो मुझे अटपटा लगता था.
लिफ़ाफ़े से निकालकर उसने अपनी मां और रतन की फ़ोटो दिखायी. पहली फ़ोटो में तीनों पूरे कपड़ों में एक साथ खड़े थे. रतन हेमन्त जैसा ही दिखता था, जरा और लंबा और तगड़ा था. उनकी मां को देखकर तो मैं दीवाना हो गया. सांवले रंग की भरे हुए शरीर की उस नारी को देखकर ही मन में असीम कामना जागती थी. सादी सफ़ेद साड़ी और चोली में उसके भारी भरकम उरोज आंचल के नीचे से भी दिख रहे थे. बालों में कुछ सफ़ेद लटें भी थीं. आंखों में छिनालपन लिये वह बड़े शैतानी अंदाज से मुस्करा रही थी.
बस दो फ़ोटो और थीं. उनमें चेहरा नहीं था, पर साफ़ था कि किसकी हैं. एक में अम्मा का सिर्फ जांघों और गले के बीच का नग्न भाग था. ये बड़े बड़े नारियल जैसे लटके मम्मे और उनपर जामुन जैसे निपल. झांटें ऐसी घनी कि आधा पेट उनमें ढक गया था. दूसरे फ़ोटो में अम्मा की झांटों से भरी चूत में धंसा एक गोरा गोरा लंड था. सिर्फ जरा सा बाहर था इसलिये लंबाई तो नहीं दिख रही थी पर मोटाई देखकर मन सिहर उठता था. किसी बच्चे की कलाई जैसा मोटा डंडा था.
मेरे चेहरे पर के भाव देखकर वह हंसने लगा. "मजा आयेगा जब तेरी गांड में यह लंड उतरेगा, तेरा मुंह बांधना पड़ेगा नहीं तो ऐसा चीखेगा जैसे हलाल हो रहा हो. मुझे भी बहुत दुखा था. मैं तो तुझसे भी बहुत छोटा था जब रतन ने मेरे मारी थी. रात भर बेहोश रहा था मैं. बोल अब भी तैयार है रतन की बहू बनने को या डर गया?"
मैं डर तो गया था पर उसकी अम्मा के सेक्सी देसी रूप और रतन के लंड की कल्पना से लंड में ऐसी मीठी कसक हो रही थी कि मैं मचल उठा. "हेमन्त मेरे राजा, मैं मर भी जाऊं तो भी चलेगा! मुझे गांव ले चल और तुम तीनों का गुलाम बना ले."
दूसरे ही दिन हेमन्त ने मेरे तीन फ़ोटो खींचे. एक पूरे कपड़ों में लड़की के रूप में और एक सिर्फ़ ब्रा, पैंटी और विग में. पैंटी के ऊपर के भाग से मेरा लंड बाहर निकलकर दिख रहा था. तीसरे में मैं पूरा नग्न अपने स्वाभाविक लड़के के रूप में था. फ़ोटो के साथ एक चिट्ठी लिखकर उसने रतन को बताया कि उसके मन जैसी 'शी मेल' बहू मिल गयी है।
और उसे पसंद हो तो आगे जुगाड़ किया जाये.
उसके एक माह बाद की बात है. आज खास दिन था क्योंकि रतन की चिट्ठी आई थी कि उसे और मां, दोनों को लड़की पसंद है. शादी का इंतजाम करके हेमन्त जब बुलायेगा वे आ जायेंगे. हेमन्त ने तुरंत दो हफ़्ते के बाद उन्हें बुला भी लिया था. अब हेमन्त की सलाह के अनुसार मैं लड़की बनके रहने का अभ्यास कर रहा था.
मैं आइने के सामने नंगा खड़ा था. बस हाई हील की सैंडल और पैडेड ब्रा पहनी थी जिनके कंपों में मैंने अंदर दो रबर की आधी गेंदें भर ली थीं. हेमन्त मेरे पीछे खड़ा हो कर मेरी नकली चूचियां दबा रहा था और उनकी मालिश
कर रहा था. मेरे बाल अब तक कंधे के नीचे आ गये थे जिनमें मैं क्लिप लगा लेता था.
"चल आज घूमने चलते हैं. अब बाहर भी लड़की के रूप में घूमना तू शुरू कर दे. आदत डाल ले. वैसे गांव में तुझे बाहर निकलने का मौका नहीं आयेगा. पर यहां शहर में तो तू घूम सकती है अनू रानी." वह मुझे चूम कर बोला. अब वह मुझे अनू या अनुराधा कह कर बुलाता था.
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