RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
हम बाहर खाना खाने गये. रतन तो मुझे ऐसे घूर रहा था कि कच्चा खा जयेगा.
घर आकर सबने सामन बांधना शुरू हुआ. हेमन्त के दो सूटकेस थे. अम्मा और रतन बस एक बैग लाये थे. मेरा कोई सामान नहीं था क्योंकि अब मेरे पुराने कपड़े मेरे किसी काम के नहीं थे.
गांव का सफ़र बारा घंटे का था. रास्ते भर मैं अजीब मदहोशी में रहा. अम्मा मुझे बार बार चूम लेतीं और जब मौका मिले, रतन मेरी नकली चूचियां मसल लेता. वह इतनी जोर से मसलता था कि मैं सोचने लगा कि अगर सच में मेरी
चूचियां होतीं तो मैं जरूर रो देता.
आखिर हम घर पहुंचे. शाम हो गयी थी. अम्मा बोलीं. "हेमन्त और रतन बेटे, अब तुम लोग सो लो. मैं तब तक बहू को सुहाग रात के लिये तैयार करती हूं।"
हेमन्त बोला. "मां, अनू का लंड चूस लेना. बीस घंटे से खड़ा है. एक बार झड़ना जरूरी है नहीं तो बीमार हो जायेगी बेचारी."
"हां मैं समझती हूं. उसके वीर्य पर मेरा भी तो पहला हक है सास के नाते, आ बेटी" कहकर अम्मा मुझे बाथरूम ले गयी. मैं लंगड़ाता उनके पीछे हो लिया. कमर अब भी दुख रही थी.
अम्मा मुझे बाथरूम ले गयीं. मुझे नंगा करके खुद भी अपने कपड़े निकालने लगीं. मैं जैसे जैसे उनके पके गदराये शरीर को देखता गया, मेरा पहले ही खड़ा लंड और खड़ा होता गया. एकदम चिकने संगमरमर जैसा उनका सांवला
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तराशा शरीर याने जैसे खजाना था. चूचियां ये बड़ी बड़ी तरबूजों सी थीं और गांड तो मानों पहाड़ की दो चट्टानों जैसी थी. झांटें ऐसी लंबी कि चाहो तो चोटी बांध लो. कमर पर मुलायम मांस का टायर लटक आया था. जांघे किसी पहलवान जैसी मोटी मोटी और मजबूत थीं.
उन्होंने मुझे नहलाया और खुद भी नहायीं. मेरा शरीर खूब दबा कर देखा. वे मेरे शरीर का ऐसे मुआयना कर रही थीं जैसे कसाई काटने के पहले बकरी की करता है.
"बहुत प्यारी है बहू. हमें बहुत सुख देगी. चल अब तेरा लंड चूस लें. और ज्यादा खड़ा रहा तो टूट कर गिर जायेगा बेचारा." कहकर उन्होंने मुझे दीवार से सटाकर खड़ा किया और मेरे सामने बैठ कर मेरा लंड एक मिनिट में चूस डाला. इतनी देर के बाद जो सुख मुझे मिला उससे मैं गश खाकर करीब करीब गिर पड़ा.
अम्मा ने मुझे छोड़ा नहीं बल्कि नीचे बैठ कर मेरा सिर अपनी जांघों के बीच खींचती हुई बोलीं. "अब जरा अपनी सास की बुर भी चख ले बहू. तेरा पति और देवर तो दीवाने हैं ही इसके, अब तू भी आदत डाल ले."
मैंने उस गीली तपती बुर में मुंह डाला तो खुशी से रोने को आ गया. क्या स्वाद था! इतना गाढ़ा शहद बह रहा था जैसे अंदर बोतल रखी हो. चूत भी ऐसी बड़ी कि मेरी ठुड्डी उसमें आराम से घुस रही थी. मैंने मन भर कर उस रस को पिया. अम्मा दो बार झड़ीं और मुझे शाबासी भी देती गईं. "अच्छा चूसती है बेटी, मैं और सिखा दूंगी कैसे अपनी सास की बुर रानी की पूजा की जाते है."
अब तक मेरा लंड फ़िर खड़ा होने लगा था. बहुत मीठी कसक हो रही थी. अम्मा ने फ़िर मुझे फ़र्ष पर लिटाया और मुझे मुंह खोलने को कहा. मेरे मुंह पर बैठ कर वे उसमें लोटा भर मूतीं और तभी उठीं जब मैं पूरा पी गया. मेरी भूख और प्यास पूरी मिट गयी थी. पेट गले तक भर गया था. मैं मानों जन्नत में था. लंड ऐसे खड़ा हो गया था जैसे बैठा ही न हो. उसे देख कर अम्मा ने मेरी बलायें लीं. "बहुत अच्छी बहू ढूंढी है हेमन्त ने. हमेशा मस्त रहती है! तुझे चोदने में मेरे बेटे को बहुत मजा आयेगा. चल अब तुझे सुहागरात के लिये तैयार करू."
बड़ा मन लगाकर उन्होंने मेरा सिंगार किया. ब्रा पहनाने के पहले मेरी छोटी गेंदें उन्होंने फ़ेक दीं और दो बड़ी बड़ी रबड़ की ठोस अर्ध गोलाकार गेंदें निकालीं. उन्हें मेरी छाती पर रख कर अम्मा ने एक रबड़ की काली ब्रा मुझे पहनाई. "खास तेरे लिये मंगवायी है. जरा बड़े और भरे हुए मम्मे हों तो दबाने में मजा आता है. और रबड़ की यह ब्रा लगती भी बड़ी प्यारी है, एकदम मुलायम है. देख इनमे तेरे मम्मे कसने के बाद कैसे ये दोनों झपटकर तेरी चूचियां मसलते हैं।"
वो ब्रा बिलकुल छोटी और तंग थी और मेरे बदन पर चढ़ाने के लिये उसे खूब तानना पड़ा. ब्रा ने मेरी चूचियां और छाती कसकर जकड़ लिये. मेरी छाती उन मम्मों से जकड़ने के बाद थोड़े दुख रही थी पर रबड़ के मुलायम स्पर्श से उसमें अजीब सी सुखद सनसनी हो रही थी. उसके बाद काले रबड़ की पैंटी पहनाकर मेरा खड़ा लंड उसमें दबा दिया गया. पैंटी पीछे से गुदा पर खुली थी.
अम्मा ने समझाया. "तू अधनंगी इतनी प्यारी लगती है कि तेरी गांड मारने के लिये यह पैंटी नहीं उतारना पड़े इसलिये ऐसी है. अब तेरे लंड का काम होगा तभी यह उतरेगी."
हेमन्त मुझसे चिपकना चाहता था पर अम्मा ने उसे डांट दिया. "चल दूर हो, तेरी भाभी है, आज पहले रतन चोदेगा मन भर कर, तू मेरे साथ आ जा दूसरे पलंग पर. मेरी गांड मारना और रतन के कर्तब देखना. फ़िर बहू पर करम करेंगे."
मुझे आज उन्होंने पूरा सजाया था. हाथों में चूड़ियां, कान में बुंदे, पांव में पायल और बनारसी साड़ी चोली पहनाई. मेरे बाल कंधे तक लंबे हो ही गये थे. उसमें मांजी ने फूल गुंध कर चोटी बांध दी.
"चलो अब खा लो कुछ. फ़िर बेडरूम में चलते हैं." अम्मा बोलीं. रतन और हेमन्त के साथ वे रसोई में आईं. मुझे परोसने को कहा गया.
"चल आज से ही काम पर लग जा. हमें परोस. खाना तो तू खा चुकी है. आगे रतन भी प्यार से खिलायेगा. कल से धीरे धीरे घर का काम भी सिखा दूंगी. घर का पूरा काम करना और हम सब की सेवा करना यही तेरा काम है अब." अम्मा ने कहा.
खाना खाते खाते सब मुझे नोंच रहे थे. जब भी मैं किसी को परोसने जाता, कोई मेरी चूची दबा देता या चूतड़ या जांघ पर चूंटी काट लेता. धीरे नहीं, जोर से कि मैं तिलमिला जाऊं. एक बार रोटी लाने में मुझे देर हुई तो रतन ने मजाक में जोर से मेरी चूची मसल दी और फ़िर नितंब पर जोर से चूंटी काटी. "जल्दी जानेमन, नखरा नहीं चलेगा." मैं कसमसा गया और रोने को आ गया.
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