RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
मेरी ब्रा रहने दी गयी पर पैंटी अब निकाल दी गयी. हेमन्त और रतन मेरी नकली चूचियों पर टूट पड़े और अम्माजी मेरा लंड चूसने लगीं. उधर अम्मा मेरे लंड को चबा चबाकर चूस रही थीं जैसे गंडेरी खा रही हों. मैं तड़प कर झड़ गया. अम्माने पूरा वीर्य पी कर ही मुझे छोड़ा.
फ़िर वे आपस में चिपट कर संभोग करने लगे. मुझे मेरी हालत पर छोड़ दिया गया. दोनों भाई अपनी मां को आगे पीछे से चोदने लगे. "खूब चोदो मेरे लाड़लो पर झड़ना नहीं." अम्मा उचक उचक कर हेमन्त से गांड मरवाते हुए बोलीं. रतन आगे से उन्हें चोद रहा था. "झड़ना बहू की गांड में उसकी गांड आज इतनी मारी जानी चाहिये कि कभी यह न कह सके कि सुहाग रात में उसके साथ इन्साफ़ नहीं हुआ"
अब दोनों अलट पलट कर मेरी गांड मारने लगे. एक मिनिट को मुझे नहीं छोड़ा गया. एक का लंड मेरे मुंह में होता
और दूसरे का गांड में, मुंह में वे झड़ते नहीं थे. एक मेरी गांड में झड़ता तो दूसरा तुरंत मुझ पर चढ़ जाता.
वे दो तीन घंटे मेरे ऐसे गये जैसे मैं स्वर्ग नरक के अजीब से मिले जुले माहौल में होऊ.
आखिर रात को तीन बजे मेरी चुदाई समाप्त हुई. आखरी बार रतन ने मेरी गांड मेरी और फ़िर लस्त पड़ा आराम करने लगा. हेमन्त और अम्मा पहले ही सो गये थे. मेरी भी आंखें लग गयीं.
सुबह मुझे झिंझोड़ कर जगाया गया. अंग अंग दुख रहा था जैसे किसी ने रात भर तोड़ा मरोड़ा हो. गांड में अजब टीस थीं, जोर का दर्द था और कुछ मस्ती भी थी. नींद खुलते खुलते मुझे उठाकर रतन बाथरूम ले गया. हेमन्त और
अम्माजी भी साथ में थे.
आराम करने से मेरा लंड फ़िर खड़ा हो गया था. पिछली रात की मेरे दुर्गति याद करके मुझे बड़ी मादक सनसनी हो रही थी. अब मैं अपने आप को कोस रहा था कि क्यों मैं रोया और चिल्लाया! यह तो मेरा भाग्य था कि इतनी तीव्र गंदी और विकृत कामवासना से भरी जिंदगी मुझे मिली थी. अब मुझे यह लग रहा था कि फ़िर से तीनों मेरे ऊपर कब चलेंगे!
अपने मसले दुखते बदन में होती पीड़ा को अनदेखा करके मैंने प्यार से रतन के गले में बांहें डाल दीं और उसे चूम लिया. उसकी आंखों में देखते हुए शरमा कर मैंने कहा, "स्वामी, आपने, देवरजी और मांजीने मुझे जो सुख दिया है, मैं कभी नहीं भूलूंगी. आप तीनों मुझे खूब भोगिये, अपनी सारी हवस निकाल लीजिये, मुझे चोद चोद कर मार डालिये प्लीज़, मुझसे यह चुदासी सहन नहीं होती अब. और मेरी एक और प्रार्थना है स्वामी!"
रतन चूम कर मुझे बोला "बोल रानी, क्या चाहती है? क्या मुराद रह गयी तेरी सुहागरात में?"
"देवरजी की गांड तो मैंने बहुत मारी है, अम्माजी की भी मार ली, अब आप भी मरा लें मेरे स्वामी, आप जो कहेंगे मैं करूंगी."
रतन ने मुझे चूमते हुए कहा. तो यह चाहती है तू, चल अभी मार लेना. पहले अपनी गांड खाली कर लें, फ़िर उसमें अपना यह हसीन लंड डाल देना. और तू फ़िकर मत कर रानी, तुझे तो हम ऐसे ऐसे चोदेंगे और ऐसे ऐसे कुकर्म तेरे साथ करेंगे, तूने सोचे भी नहीं होंगे. हर तरह की नाजायज, गंदी, हरामीपन की क्रियाएं तेरे साथ हम करने वाले हैं. साल भर में तुझे पिलपिला न कर दिया तो कहना. अब चल, तैयार हो जा." वह जल्दी से संडास हो आया. तब तक अम्माजी ने और हेमन्त ने मिलकर मेरी मालिश की और मेरे दुखते शरीर पर क्रीम लगायी.
दस मिनिट बाद जब रतन वापस आया तो उसका भी लंड तन कर खड़ा हो गया था. अम्मा भी मुट्ठ मार रही थीं. "बहू एकदम रति देवी की मूरत है रतन. अब तुम लोगों से मूतना तो होगा नहीं अपने खड़े लंडों से, मैं ही इसकी प्यास बुझा देती हूं." कहकर वे मेरे मुंह में मूतने लगीं.
मेरा पेट लबालब भर गया था और वासना से मेरा सिर सनसना रहा था. मेरी हालत देख कर अब दोनों भाई मेरे ऊपर फ़िर चढ़ना चाहते थे, मैं भी यही चाहता था. पर अम्मा ने मना कर दिया. "बहू को क्या वादा किया था रतन? चलो गांड मराओ उससे."
रतन जमीन पर ओंधा लेट गया और मैं उसपर झुक कर उसके चूतड़ चूमने लगा. क्या चूतड़ थे एकदम गठीले, कड़े
और मांस पेशियों से भरे. मैंने उसके गुदा में नाक डाली और सूंघने लगा. फ़िर जीभ डालकर चाटने लगा.
|