Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:07 PM,
#16
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
उधर अमन कॉलेज के पीछे गार्डन में एक कोने में गुमसुम सा बैठा था। अनुम उसे सारे कॉलेज में देख चुकी थी आख़िरकार उसने अमन के दोस्त से पूछा-तुमने अमन को देखा है? 

अमन के दोस्त ने कहा-“ शायद वो गार्डन में होगा…” 

अनुम गार्डन की तरफ चल देती है। अमन उसे गुमसुम बैठा नज़र आ गया। अनुम दिल में-“आज तो इससे इसकी खामोशी के वजह निकालकर रहूंगी…” 
अनुम अमन के पास बैठते हुए-“यहां क्यों बैठे हो देव बाबू?” 

अमन-कुछ नहीं। 

अनुम-“कुछ तो है। बता ना अमन क्या हुआ है तुझे? ठीक से बात भी नहीं करता मुझसे, कोई गलती हुई क्या या अम्मी ने तुझसे कुछ कहा है?” 

अमन का मूड पहले से आफ था… ऊपर से अनुम के इतने सारे सवाल। अमन झुंझलाकर-“तू क्या मेरी बीवी है, वो इतने सारे सवाल पूछ रही है?” 

अनुम अमन के इस तरह बात करने से ततलमिला जाती है। और अमन से मुँह मोड़ कर रोने लगती है-“मैं तो तुझसे इसलिये पूछ रही थी कि मुझे तू ऐसे अच्छा नहीं लगता…” 

अमन अनुम को इस तरह रोते देख अपना सारा गुस्सा भूल जाता है, और अनुम को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करता है। अनुम उसका हाथ झटक देती है। और सिसकने लगती है। 

अमन-“दीदी दीदी, मेरी प्यारी दीदी, मुझे माफ कर दो। मैंने किसका गुस्सा तुमपे निकाल दिया। मेरे प्यारी दीदी देखो अभी तुम्हारे कान पकड़ता हूँ…” 

अनुम-“हाँ गलती खुद कर और कान मेरे पकड़…” और अनुम अमन के सीने से लिपट के और रोने लगती है। 

अमन का दिल भी भर आता है। वो किसी भी तरह अनुम को हंसाना चाहता था-“दीदी, मैंने आपके लिये एक शेर लिखा है। सूनाऊँ?” 

अनुम अपना सिर बिना उठाये-हूँ। 

अमन-गौर से सुनिएगा। 

रोएं हम इस कदर उनके सीने से लिपटकर। 
रोएं हम इस कदर उनके सीने से लिपटकर 
की वो खुद अपनी टी-शट़ उतार के बोली। 
दबा ले साले अब नाटक मत कर। 

अनुम हाहाहाहा… मारे शरम के उसके सीने पे मुक्के बरसाती जाती है-“गंदा अमन, गंदा अमन…” 

दोनों की हँसी नहीं रुक रही थी और इसी बीच अमन अनुम को अपनी बाहों में कस लेता है। और अनुम भी अपने भाई की बाहों में सिमटतेी चली जाती है। 
अमन-“इतना प्यार करते हो मुझसे?” 

अनुम-यकीन ना हो तो आजमा के देख ले। 

अमन-“तेरी आँखों में तेरी मोहब्बत नज़र आती है। हमें ज़रूरत नहीं तुझे आजमाने की…” और अमन अनुम की पेशानी पे चूम लेता है। दोनों की सांसें तेज होने लगी थीं। 

अनुम-चलो घर चलो, देर हो जायेगी। 

अमन अनुम के गाल पे चिकोटी काटते हुए-हूँ। 

अनुम-“अह्म्मह… अमन्न्न गंदा…” और कुछ देर बाद दोनों अपने घर की तरफ चल देते हैं। 

रात 12:00 बजे-

फ़िज़ा और रेहाना के बीच कुछ खास बात नहीं हुई थी। फ़िज़ा रेहाना से बहुत नाराज थी। फ़िज़ा अपने रूम में बैठी हुई थी और रेहाना अपने बेडरूम में। रेहाना दिल में सोच लेती है कि अगर आज उसे फ़िज़ा से माफी भी माँगने पड़े तो वो माँगेगी, पर फ़िज़ा की खामोशी उसे अंदर ही अंदर मर रही थी। वो अपनी नाइटी में फ़िज़ा के रूम में चली जाती है। 

फ़िज़ा रेहाना को अपने रूम में देखकर बेड पे लेट जाती है, और लाइट आफ कर देती है, जैसे उसे सोना है। और रेहाना यहाँ से जाओ पर रेहाना उसके पास आकर बेड पे लेट जाती है। फ़िज़ा दूसरी तरफ मुँह करके लेटी हुई थी। 

रेहाना उसके पेट के पीछे से-“फ़िज़ा, मेरी तरफ देखो…” 

फ़िज़ा-“मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी, आप यहाँ से जाओ…” 

रेहाना-“एक बार मेरे बात सुन लो फ़िज़ा, उसके बाद चाहे जिंदगी भर मुझसे बात ना करना…” 

फ़िज़ा रेहाना के तरफ मुँह कर लेती है-“क्या बताएंगी आप कि मैंने वो देखा, वो सुना वो नज़रों का धोखा था और आपने अमन के साथ कोई गलत नहीं किया…” 

रेहाना-“पहले मेरे बात सुन लो, उसके बाद तुम वो फैसला कारेगी मुझे मंजूर होगा। फ़िज़ा, जब मेरी शादी तुम्हारे अब्बू से हुई, उस समय मेरी उमर बहुत कम थी। मगर मैंने तुम्हारे अब्बू के लिये एक सुलझी हुई औरत की तरह जिंदगी गुजारी। तुम्हारे अब्बू शराब पीते थे और शराब पीकर मुझे मारते थे। उस वक्त भी अमन तेरे अब्बू को रोक लेता था। वो छोटा था, मगर तेरे अब्बू उसके सामने मुझे मारते नहीं थे। हमारी शादीशुदा जिंदगी में कुछ खास नहीं रहा। मैं हर पल तेरे अब्बू के लिये तड़पी हूँ और तेरे अब्बू बाहर की रंगरेलियों में मस्त थे। 

उस वक्त भी अमन मुझे समझाता था, एक मासूम बच्चे के तरह मेरे आँसू पोंछता था। मुझे उससे उस वक्त से मोहब्बत है। 
तेरे अब्बू मुझसे हमारी शादीशुदा जिंदगी में सिर्फ़ 20 से 25 बार ही मेरे साथ हमबिस्तर हुए है, चुदाई की है। वो तो तेरे बड़े अब्बू के साथ दुबई जाने से थोड़ा सुधरे हैं। आज भी जब वो यहाँ आते हैं तो मैं अकेले ही रहती हूँ। फ़िज़ा, अमन जब छोटा था तबसे मेरा ख्याल रख रहा है, और आज भी रखता है। क्या मैं औरत नहीं? मेरा जिस्म पत्थर का नहीं है। फ़िज़ा मुझे भी मर्द का एहसास चाहिए, मेरे चूत में भी वो चाहिए जिसके लिये औरत तड़पती है। अब अगर मैंने अमन के साथ वो सब किया तो मुझे लगता है कि मैंने सही किया। क्योंकी मैं अमन से सच्ची मोहब्बत करती हूँ। और मुझे इस बात का कोई पछतावा नहीं है। फ़िज़ा बेटी, जब बेटी बड़ी हो जाती है तो सहेली बन जाती है। तू एक सहेली की तरह सोच कि क्या मैंने गलत किया? और रेहाना की आँखों से आँसू निकलने लगते हैं। 

फ़िज़ा-“नहीं अम्मी, मुझे माफ कर दो। मैं आपको समझ नहीं पाई। प्लीज़ आप मत रोइये…” और फ़िज़ा रेहाना के सीने से चिपक जाती है। दोनों माँ बेटी एक दूसरे को समझा रही थी, दिलाशा दे रही थी और इस सब में उन्हें खयाल नहीं रहा कि वो किस पोजीशन में आ गई हैं। रेहाना और फ़िज़ा की नाइटी कमर के ऊपर हो चुकी थे। एक दूसरे की जाँघ में जाँघ रगड़ रही थी, चुचियाँ आपस में धँस गई थीं और एक दूसरे से इतने चिपके हुए थे कि एक दूसरे के होंठों से सिर्फ़ दो इंच का फासला था। 

रेहाना-“ना मेरा बच्चा तू ना रो…” और रेहाना फ़िज़ा के पेशानी पे, फिर गाल पे चूम लेती है। 

फ़िज़ा रेहाना से और चिपक जाती है। और अपनी चुचियाँ रेहाना की चुचियाँ पे घिसने लगती है-“अम्मी, मेरी अम्मी अह्म्मह…” 

रेहाना की चूत तो 7 दिन से अमन के लण्ड के बिना उसकी भी प्यासी थी। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखती हैं। और रेहाना फ़िज़ा के गुलाबी होंठों पे अपनी होंठ रख देती है। 

फ़िज़ा-“उंह्म्मह… मुआह्म्मह… मुआह्म्मह…” और अपना मुँह खोल देती है-“या अम्मी…” 

रेहाना फ़िज़ा की चुचियाँ पे डरते-डरते हाथ रख देती है। उसके हाथ पे फ़िज़ा अपना हाथ रखकर दबाने लगती है। दोनों की जाँघें एक दूसरे की चूत को छू रही थीं। 

“उंह्म्मह… नहीं ओह्म्मह… उंह्म्मह… अम्मी उंन्ह…” दोनों भूल गये थे कि वो कहाँ है, और कौन है? चूत की आग होती ही ऐसी है। 

रेहाना अपने नरम हाथों से फ़िज़ा की चुचियाँ मसलने लगती है, और फ़िज़ा की नाइटी उतारने लगती है-“उंह्म्मह… गलप्प्प-गलप्प्प… उंह्म्मह… ओह्म्मह…” 

फ़िज़ा भी ऐसा ही करती है। कुछ पलों में दोनों माँ-बेटी पूरे नंगे हो चुके थे। रेहाना फ़िज़ा की गर्दन पे फिर नीचे चुचियों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगती है गलप्प्प-गलप्प्प और एक हाथ से फ़िज़ा की अन चुदी चूत सहलाने लगती है। 
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