Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:12 PM,
#38
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सुबह 6:00 बजे- 

अमन उठ गया था वो रजिया को उठाकर उसके रूम में भेज देता है, और खुद कसरत करने लगता है। 
ख़ान साहब अभी भी सो रहे थे। 

एक घन्टे बाद जब अमन अनुम के रूम के सामने से गुजर रहा था तब उसकी नज़र अनुम पे पड़ी, वो बेड पे बैठी हुई थी। अमन उसके रूम में चला जाता है-“अरे वाह… आज तो जल्दी उठ गई अनुम…” 

अनुम गुस्से से-“जीभ संभालकर बात कर, मैं तेरी बड़ी बहन हूँ…” 

अमन ठिठक जाता है। वो दिल में-“इसे हुआ क्या है कि साली आग उगल रही है?” वो उसके पास जाकर बैठ जाता है, और उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाते हुए उसकी आँखों में देखते हुए-“क्या बात है, नाराज क्यों हो मुझसे?” 

अनुम-“मैं कौन होती हूँ तुझसे नाराज होने वाली? जा यहाँ से…” 

अमन-“नहीं जाऊँगा, पहले मुझे बता क्या बात है?” 

अनुम रोने लगती है, और अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से छुपा लेती है-“तू जा अपनी शीबा के पास, मैं कौन हूँ? मैं कोई नहीं हूँ तेरी, जा तू…” 

अमन भी गम्भीर हो जाता है। वो अनुम को अपने में समेट लेता है-“देख अनुम, तू रोएगी तो मैं भी रो दूंगा। तू मुझे बोल तो सही बात क्या है? 

अनुम उसका हाथ पकड़कर उसकी उंगली में पहनी रिंग उसे दिखाती हुई-ये वजह है। बस अब जा यहाँ से और मुझे अकेला छोड़ दे…” 

अमन-“ओह्म्मह… तो ये बात है। इधर देख मेरी तरफ…” 

अनुम-मुझे नहीं देखना। 

अमन-तुझे मेरी कसम। 

अनुम गीली पलकों से अमन को देखने लगती है। अमन उसका हाथ पकड़कर अपने हाथ में की रिंग निकालकर उसे पहना देता है-“ये ले, बस आज से तू मेरी है…” 
अनुम उसे आँखें फाड़े देखे जाती है। उसे उसके सारे गिले-शिकवे याद ही नहीं रहे। वो तो एक पागल की तरह महसूस कर रही थी, जिससे उसका हमसफर जैसे कई सालों बाद दुबारा मिल गया हो। वो काँपते होंठों से-ये तूने क्या किया? 

अमन-“वही, वो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था…” और अमन अनुम के होंठों को चूमने लगता है। उसे अपने से कस लेता है। एक तरह से अनुम उसकी गोद में आ चुकी थी। 

अनुम अपना जिस्म ढीला छोड़ देती है। जोश और खुशी में वो सब कुछ भूल गई थी कि वो कहाँ है? और कोई उन दोनों को देख भी रहा है। 

रजिया दरवाजे की आड़ से उन दोनों को देख रही थी और दिल में सोच रही थी कितना होशियार है अमन। 

अमन 5 मिनट अनुम के होंठों का रस पीने के बाद उसे छोड़ देता है। 

अमन-“चल अब हँस दे, ऐसे तू बिल्कुल अच्छी नहीं लगती…” और अनुम के रूम से बाहर निकल जाता है। अमन जानता था कि अभी जल्दबाज़ी करना अच्छी बात नहीं है। मछली चारा निगल गई है। 

अनुम अपने उंगली में अमन की पहनाई हुए अंगूठी को देख-देखकर मुस्कुराने लगती है, और नाचते हुए अपने रूम से बाहर निकलती है। तभी वो रजिया से टकरा जाती है। 

रजिया-“औउच… आराम से बेटी इतनेी भी क्या जल्दी है?” 

अनुम-“वो अम्मी, मैं तो आप ही की तरफ आ रही थी। 

रजिया-अच्छा क्यूँ? 

अनुम-ऐसे ही अमन के लिये नाश्ता बनाना था ना। 

रजिया अनुम के गाल पे चींटी काटते हुए-“क्या बात है, तेरे तबीयत तो ठीक है ना बेटा?” 

अनुम शरमाते हुए-क्यों अम्मी, ऐसा क्यूँ पूछ रही हैं आप?” 

रजिया-“ऐसे ही… आज पहले बार तुझे अमन के नाश्ते के लिये पूछते देखा इसलिये… अच्छा वो सब छोड़, जा तेरे अब्बू का बैग पैक कर दे। वो दो हफ्ते के लिये सऊदी जा रहे हैं…” 

अनुम-“क्यूँ अम्मी, अभी तो वो आए हैं?” 

रजिया-“उन्हें कुछ काम निपटाने हैं। फिर वो आ जाएंगे। तू जा जल्दी कर उनकी फ्लाइट है 12:00 बजे की…” 

अनुम जाने लगती है। तभी 
रजिया-“एक मिनट रुक… ये तेरी उंगली में क्या है?” 

अनुम का दिल जोरों से धड़कने लगता है। उसे जिस चीज़ का डर था वही बात सामने आ गई थी-“क…कुछ नहीं अम्मी, ये तो रिंग है, ऐसे ही है…” वो बुरी तरह घबरा जाती है। 

रजिया-“ये रिंग तो शीबा ने अमन को इंगेज़मेंट वाले दिन पहनाई थी। तेरे पास कैसे?” हालांकि रजिया सब जानती थी पर वो अनुम के मुँह से कुछ सुनना चाहती थी। 

अनुम थूक निगलते हुए-“अम्मी वो… अमन ने मुझे दी है। उसके हाथ में टाइट हो रही थी ना इसलिये…” अनुम को अचानक ही ये जवाब सूझा था। 

रजिया-“ह्म्मम्म्म्म… अच्छा तू जा…” 

अनुम दिल में ऊपर वाले का शुकिया अदा करते हुए वहाँ से बिजली की तेजी से निकल जाती है, और उसके अब्बू के रूम में पहुँच जाती है। वहाँ पहले से अमन और ख़ान साहब बातें कर रहे थे। 

ख़ान साहब-“बेटा अमन, मैं कुछ दिनों के लिये वापस जा रहा हूँ। वहाँ से तुम्हारे अकाउंट में वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रान्स्फर कर दूंगा…” 

अमन-“जी अब्बू, आप यहाँ की बिल्कुल फिकर ना करें, मैं हूँ ना…” वो अनुम की तरफ देखते हुए स्माइल देता है। 

अनुम भी हल्के से स्माइल देते हुए-“अब्बू, आप वापस कब आएंगे?” 

ख़ान साहब-बस कुछ दिनों के बात है। बेटा, वहाँ का बिजनेस किसी को हैंड ओवर करके हमेशा के लिये आना है। तुम्हारे चाचू भी साथ चल रहे है। 

अमन दिल में-“वाह… फिर तो रेहाना और फ़िज़ा को यहाँ लाकर चोदना पड़ेगा… पर इस अनुम का क्या करूं? ह्म्मम्म्म्म… आइडिया…” 

दोपहर 12:00 बजे-

ख़ान साहब और मलिक दोनों एयरपोट़ के लिये सबसे मिलकर निकल जाते हैं। 

आज रेहाना और फ़िज़ा भी अमन के घर आई थीं। दोनों माँ-बेटी की चूत पनिया गई थी, ये सोच-सोचकर कि अब तो दिन रात बस अमन का लण्ड चूत में लेकर हम पड़े रहेंगे। पर अमन का तो कुछ और ही इरादा था। उन दोनों के जाने के बाद। 

रजिया-“बैठो फ़िज़ा बेटा, रेहाना तुम भी बैठो, मैं चाय बनाती हूँ…” 

रेहाना-“नहीं बाजी मैंने कपड़े भीगने डाले हुए हैं, उन्हें धोना है। मैं बाद में आती हूँ और वो ….और फ़िज़ा वहाँ से चली जाती हैं…” 

अनुम अपने रूम में थी और अमन के साथ आने वाले वक्त के सपने बुन रही थी। 
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