RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रज़िया-“जीशान मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी। सोचा तुम फ्रेश हो तो चली आई…”
जीशान का चेहरा गंभीर हो जाता है। उससे पता था कि रज़िया क्या बात करने आई है। कमाल की बात तो ये थी कि जीशान को पता था कि ना सिर्फ़ अनुम ने बल्की उसकी दादी रज़िया भी अमन से शादी कर चुकी है। पर उसे इस बात पर बिल्कुल गुस्सा नहीं था। वो सिर्फ़ अनुम और अमन के रिश्ते को लेकर नाराज था।
जीशान कहता है-“हाँ दादी बोलिये, मैं सुन रहा हूँ …”
रज़िया-“मुझे पता है जीशान कि तुम भी समझ गये होगे कि मैं क्या बात करने आई हूँ …”
जीशान-“नहीं , मुझे नहीं पता…”
रज़िया कुछ देर चुप रहने के बाद खामोशी तोड़ती है-“अनुम तुम्हारी अम्मी है…”
जीशान-“जानता हूँ और आपके बारे में भी जान चुका हूँ आगे बोलिये?”
रज़िया-“देखो जीशान, मैं जानती हूँ कि तुम बहुत गुस्सा हो और तुम्हारा गुस्सा जायज़ भी है। पर अगर तुम एक बार मेरी बात सुन लोगे तो शायद तुम्हारे रवैये में कुछ बदलाव आ जाए, और तुम अनुम को और मुझे हमारी गलती के लिए माफ कर दो…”
जीशान सर झुकाए चुपचाप बैठा रहता है।
रज़िया-“आज से 20 साल पहले ये घर एक आम घर की तरह था। हर कोई खुश था मगर सिर्फ़ ऊपरी तौर पर। दिल का हाल तो सिर्फ़ ऊपर वाला जानता था। उस वक्त अमन ने मुझे समझा। तुम्हारे दादा तो हमेशा सऊदी में रहते थे। उनके पास किसी के लिए वक्त नहीं था। दुनियाँ में इंसान कुछ वक्त के लिए तो आया है जीशान और इस छोटी सी जिंदगी में इंसान हर चीज जीना चाहता है। मैं भी इंसान हूँ , मेरी भी कुछ ख्वाहिशें थीं, जो दिन-बा-दिन दफन होती जा रही थीं। उस वक्त अगर अमन मुझे नहीं संभालता तो शायद हम में से कोई यहाँ नहीं होता।
अमन ने ना सिर्फ़ मुझे संभाला, बल्की मेरी सोइ हुई तमाम ख्वाहिशों को भी पूरा किया। मुझे उसपे बहुत नाज़ है। ये दुनियाँ की नजर में गुनाह है। पर मैं इसे गुनाह नहीं मानती। तुम्हारी अम्मी अनुम एक बहुत समझदार औरत है बेटा। वो जब किसी से मोहब्बत करती है ना तो उसके लिए जान भी दे सकती है, ये मैं देख चुकी हूँ । वो पागल ने सिर्फ़ एक गलती की कि अपने भाई से मोहब्बत कर ली । जिस तरह मैंने अमन से की थी। अमन भी तुम्हारी अम्मी से बेपनाह प्यार करता है।
जीशान बेटा, दुनियाँ में हर कोई गुनाह करता है, कोई छुपकर करता है, कोई खुले आम करता है। अरे उस पागल को अमन से इतनी मोहब्बत थी कि उसने शादी नहीं की, ये जानते हुये भी कि अमन की शादी शीबा से होने वाली है। क्योंकी वो अमन के बगैर नहीं जिंदा रह पाती। बेटा वो रो-रोकर मर जाएगी। त ह तो उसकी मोहब्बत की निशानी है और अगर तू उससे ऐसे नाराज रहेगा तो कहीं वो खुद को कुछ कर ना बैठे।
जीशान सर उठाकर रज़िया की तरफ देखता है-“नहीं दादी , ऐसा नहीं होगा…”
रज़िया-“मुझे तुझसे यही उम्मीद थी जीशान…”
जीशान रज़िया के गले लग जाता है। दोनों दादी पोते एक दूसरे की बाहो में ऐसे चिपकते हैं जैसे आख़िरी बार मिल रहे हो। दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे, कोई पछतावे के आँसू बहा रहा था, तो कोई खुशी के। पर इस सब में कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए थे।
रज़िया पिछले कुछ दिनों से अमन को बहुत मिस कर रही थी। जीशान के गले लगने के बाद वो कुछ पल के लिए ये भूल जाती है कि जीशान कौन है? और वो जीशान की गर्दन को चूम लेती है। अपनी जुबान से वो जीशान की गर्दन को चाट लेती है।
जीशान के जिस्म में भी कुछ होता है और वो रज़िया को और जोर से कस लेता है।
रज़िया-“अह्ह… जीशान मुझे अब चलना चाहिए…”
जीशान रज़िया को छोड़ देता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं।
रज़िया जीशान की पेशानी चूम लेती है, वो ऐसा हमेशा करती थी। पर आज जीशान को ऐसे लगा जैसे रज़िया ने उसकी पेशानी को चूमा नहीं बल्की अपनी जुबान से चाटा भी।
रज़िया जाते-जाते जीशान से लुबना के बारे में पूछ लेती है और जीशान हँसता हुआ उससे कहता है-“मैं नहीं ले जाउन्गा तो, वो तो मेरा जीना मोहाल कर देगी…”
रज़िया धड़कते दिल के साथ अपने रूम में चली जाती है। जहाँ लुबना उसी का इंतजार कर रही थी। लुबना फौरन उठकर रज़िया के पास आ जाती है।
लुबना- दादी , क्या कहा भाई ने?
रज़िया-हाँ वो ले जाएगा तुझे।
लुबना खुशी के मारे उछल पड़ती है।
कि तभी वहाँ नग़मा आती है-क्या हुआ बाजी, बड़ी खुश नजर आ रही हो?
लुबना-“अरे नग़मा खुशी की तो बात ही है। मैं समर कैम्प जा रही हूँ । हुरतरर…”
नग़मा-“अरे वाह… ये तो बड़ी अच्छी बात है। काश मैं भी जा पाती?”
लुबना-“मेरी जान, तू भी चले जाना। पहले 12 वीं के एग्जाम तो पास कर ले…”
नग़मा-“अरे, मैं तो भूल ही गई । प्लीज़… मुझे वो मेथ के प्राब्लम सॉल्व करवा दो ना, एग्जाम सर पे हैं बाजी…”
लुबना नग़मा का हाथ पकड़कर उसके रूम में चली जाती है। नग़मा 12 वीं के एग्जाम की तैयार करने में इतनी बिजी थी कि अपने रूम से कम ही बाहर निकलती थी।
जीशान घड़ी की तरफ देखता है। उससे कुछ याद आता है और वो उठकर बाहर निकल जाता है।
उसके जाने के बाद अनुम रज़िया के रूम में जाती है। जीशान और रज़िया के बीच जो बातें हुई, वो जानने के लिए।
जीशान का मूड कुछ हद तक ठीक हो चुका था। वो एक पढ़ा-लिखा लड़का था। जब वो खुद शीबा के साथ वो सब कर चुका था, जो बहुत कम घरों में होता है तो उसे अमन और अनुम के रिश्ते को समझने में देर नहीं लगी। पर दिल अब भी एक चीज चाहता था कि अनुम अमन की ना होकर उसकी हो जाये। वो दिल में एक पक्का इरादा कर लेता है। और बाइक से डाक्टर सोनिया के घर पर पहुँच जाता है।
रूबी बाहर गार्डन में बैठी चाय पी रही थी। जब वो जीशान को देखती है तो उठकर उसे अपने पास बुला लेती है और कहती है-“बड़े अच्छे लग रहे हो…”
जीशान-क्यों पहले नहीं लगता था क्या?”
रूबी-“नहीं नहीं ऐसे बात नहीं है। मेरा मतलब है बड़े खुश लग रहे हो…”
जीशान-“तुम्हें देखने के बाद चेहरे पे हँसे आ ही जाती है…”
रूबी-क्यों, क्या मैं तुम्हें जोकर लगती हूँ ?
दोनों एक दूसरे को देखकर हँसने लगते हैं कि तभी वहाँ सोनिया भी आ जाती है। सामने बैठे जीशान को देखकर उसके चूत और आँखों में चमक आ जाती है।
सोनिया-अरे जीशान तुम कब आए?
जीशान-बस अभी आया आंटी ।
सोनिया-ह्म्म्म्म… ये तो तुमने बहुत अच्छा किया जो चले आए।
जीशान सोनिया को और उसकी चुची को घुरने लगता है।
रूबी-अम्मी, जीशान आपसे कुछ बात करने आए हैं।
जीशान-“जी आंटी … वो बात दरअसल ये है कि हमारे कालेज से समर कैम्प पे ट्रिप जा रही है, मैं भी जा रहा हूँ तो सोचा रूबी भी अगर साथ चले तो…”
सोनिया-नहीं जीशान, रूबी कहीं नहीं जाएगी वो यहीं ठीक है।
जीशान चुप रह जाता है।
रूबी-मगर क्यों अम्मी? आखिर मैं क्यों नहीं जा सकती?
सोनिया-“मैंने कहा ना नहीं … मतलब नहीं …”
रूबी गुस्से से खड़ी हो जाती है-“आप हमेशा ऐसा करते हैं। ठीक है कहीं नहीं जाउन्गी। मैं कालेज भी नहीं जाउन्गी…” और वो पैर पटकते हुये अपनी स्कटी निकालकर घर से बाहर चली जाती है।
जीशान-आपको ऐसा नहीं ।
सोनिया-तुम उसे नहीं जानते जीशान चलो हम अंदर चलकर बात करते हैं।
जीशान-“नहीं , मुझे चलना चाहिए…”
पर सोनिया जीशान का हाथ पकड़कर उससे घर के अंदर ले जाती है-“क्यूँ तुम्हें मेरी याद नहीं आती है ना जीशान कितने काल किए पर जनाब के पास फ़ुर्सत नहीं हमारे लिए…”
जीशान-ऐसे बात नहीं है आंटी ।
सोनिया-क्या आंटी आंटी लगा रखा है सोनिया बोलो सिर्फ़ सोनिया।
जीशान-सोनिया।
जीशान का किस करने का तरीका ऐसा था कि सामने वाली लरज जाती थी।
जीशान सोनिया की जीभ को अपने मुँह में खींच के चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
सोनिया नीचे बैठ जाती है और जीशान की पैंट में बने तंबू को अपनी जीभ से कुरेदने लगती है। सोनिया जिप खोलकर जीशान का लण्ड बाहर निकाल लेती है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
जीशान-“सोनिया रूबी को मेरे साथ जाने दे…”
सोनिया-नहीं , वो नहीं जाएगी।
जीशान-मैं कह रहा हूँ तुझे।
सोनिया-“कुछ नहीं कहते गलप्प्प…” और चूसती रहती है।
जीशान अपनी टीशर्ट और पैंट नीचे खिसका के चेयर पर बैठ जाता है और सोनिया के बाल पकड़कर अपने लण्ड पे उसका चेहरा झुका देता है- तू मेरी बात नहीं सुन रही ।
सोनिया-“वो नहीं जाएगी कहीं गलप्प्प…”
जीशान-“ तू ऐसे हाँ नहीं कहेगी। मैं जानता हूँ तुझसे कैसे हाँ करवाना है? चल चूसजोर से…” वो अब सोनिया पे जुल्म करने लगता है। एक झटके में वो सोनिया के कपड़े जिस्म से अलग कर देता है और उसकी गर्दन को दोनों हाथों से पकड़कर अपना लण्ड पूरा का पूरा गले के अंदर घुसा देता है।
सोनिया साँस नहीं ले पाती, दम घुटने लगता है उसका। पर जीशान लण्ड बाहर नहीं निकालता। जीशानने कहा-“बोल जाने देगी की नहीं उसे?”
सोनिया-“घ गोंगों -घ गोंगों नहीं …”
जीशान सोनिया को बेड पे पटक देता है और अपने लण्ड को उसकी चूत पे घिसने लगता है-“अह्ह… बोल साली जाने देगी या नहीं ? अह्ह…”
सोनिया-“नहीं … एक बार कहा ना मैंने नहीं , मतलब नहीं …”
जीशान-“तो ठीक है। ये भी तेरी चूत में नहीं जाएगा…” और जीशान अपनी अंडरवेअर पहनने लगता है।
सोनिया उठकर बैठ जाती है और जीशान का अंडरवेअर नीचे खींच लेती है। इससे पहले जीशान कुछ कर पाता वो जीशान को बेड पे धकेल देती है, और कहती है-“जालिम इतने बड़ी सजा… अरे इसे अंदर लेने के लिए तो मैं कुछ भी कर लूँ । जा ले जा उसे अपने साथ। मगर आइन्दा ऐसी हरकत किया ना तो मुझसे बुरा कोई नहीं समझा…”
जीशान सोनिया को अपने नीचे दबा लेता है और लण्ड को उसकी चिकनी चूत में एक झटके में घुसाकर सटासट चोदने लगता है-“अह्ह… मुझे पता था, तू साली कैसे मानेगी अह्ह…”
सोनिया-“मर्द हो ना… औरत की कमज़ोरी पता है तुम्हें उम्ह्ह… आराम से ना… फाड़ देते हो तुम अह्ह… माँ…”
जीशान-“ तेरी चूत इतनी टाइट है कि मैं क्या करूँ मेरे रानी अह्ह…”
सोनिया-“रोज चोदने आ जाया करो ना… पूरा खोलकर रख दो अह्ह…”
जीशान अपनी पूरी ताकत से सोनिया को चोदने लगता है। इस बात से अंजान कि रूबी खिड़की में से ये सब देख रही है।
सोनिया कमर उछालने लगती है-“अह्ह… जल्द -जल्द करो जीशान रूबी आ जाएगी अह्ह…”
जीशान सोनिया के होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है। वो अपने आख़िरी मुकाम पे था, किसी भी वक्त सोनिया की चूत जीशान के पानी से लबरेज हो सकती थी।
बाहर खड़ी रूबी ये नजारा देखकर सकते में पड़ जाती है। वो जिसे पहली नजर में अपना दिल दे बैठी थी, आज वो शख्स उसी की अम्मी को चोद रहा था।
जीशान दो तीन जोरदार धक्कों के बाद सोनिया पे गिर जाता है। पसीने में लथफथ दोनों एक दूसरे के जिस्म में लगी आग को बुझाने लगते हैं।
सोनिया-“जीशान, तुम रोज भी तो आ सकते हो ना यहाँ?”
जीशान-“मेरी जान, रूबी घर पे रहती है और अगर उसे पता चल गया तो?”
सोनिया-“ह्म्म्म्म… बात तो सही है। मेरा एक फ्लेट शहर के बाहर भी है, हम वहाँ मिला करेंगे…”
जीशान सोनिया के मखमली होंठ चूम लेता है। कुछ देर बाद जीशान अपने कपड़े पहनकर घर चला जाता है। और सोनिया नहाने चली जाती है। जब सोनिया नहाकर वापस बेडरूम में आती है तो उसे रूबी बेड पे बैठी मिलती है।
रूबी सोनिया की तरफ देखती है।
सोनिया-“क्या हुआ, नाराज है मुझसे? मैंने जीशान से बात कर ली है। तू समर कैम्प जा सकती है। पर ध्यान रखना यहाँ वहाँ घूमने मत निकल जाना…”
रूबी-“अरे वाह… मैंने कहा तो आपने मना कर दिया था और जीशान की बात झट से मान गये…”
रूबी के ताने वाले शब्द कहीं ना कहीं सोनिया समझ गई थी। पर वो खुद को नॉर्मल करके कपड़े पहनने लगती है। रूबी वहाँ से उठकर अपने रूम में चली जाती है और अपने रुके हुये आँसू बहाने लगती है।
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