Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:24 PM,
#92
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सोफिया-“नहीं नहीं , मैं नहीं आउन्गि। मुझे अकेला छोड़ दीजिए । इस दुनियाँ में मैं अकेली रह गई हूँ । अब्बू , मेरा गुनाह सिर्फ़ इतना है कि मुझे आपसे मोहब्बत हो गई, अपने अब्बू से। रहने दो, मुझे अकेला मरने दो घुट-घुटकर, दफना देना मुझे…” और वो सिसक-सिसक के रोने लगती है। आज उसने चन्द लफ़्ज़ों में अपना हाल-ए-दिल अमन के सामने रख दिया था। 

अमन तो सोफिया से मोहब्बत करता ही था। पर वो इस रिश्ते को कभी अमल -जामा पहनना नहीं चाहता था। 

सोफिया रोते-रोते अब हिचक़ियों पे आ गई थी और जब वो ऐसी हालत में होती है तो उसे साँस लेने में मुश्किल होने लगती है, इस बात से अमन भली भाँति वाकिफ़ था। वो सोफिया को अपनी तरफ खींचता है पर सोफिया भी अपने बाप की बेटी थी जिद्दी । वो अमन का हाथ झटक देती है। 

अमन-सोफिया, इधर देख मेरी तरफ। 

सोफिया भीगी पलकों से अमन की तरफ देखती है। 

अमन-“आइ लव यू …” 

सोफिया जोर से हँसती है और फिर हँसती ही चली जाती है। अमन उसे अपने पास खींचकर उसके गुलाबी-गुलाबी होंठों को अपने होंठों से लगाकर चूमने लगता है। और सोफिया अपनी मोहब्बत को पाकर जन्नत की दहलीज पे पहला कदम रख देती है। 

सोफिया-“अह्ह… अब्बू , मुझे बेपनाह प्यार करिए ना अह्ह… अब्बू …” 

अमन-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोफिया-“अब्बू , जैसे आप पहली बार अम्मी को प्यार किए थे मुझे भी प्यार करिए ना… आपकी बेटी आपसे अपने कुँवारेपन को हमेशा-हमेशा के लिए ख़तम करने की भीख माँगती है। मुझे सब कुछ दे दो, अब्बू मुझे अपना बना लो। अपनी सोफिया की इतनी सी बात मान लो अब्बू …” 

अमन-“हाँ मेरी जान, तू तो मेरी जान की और मेरे प्यार की निशानी है, तेरे लिए तो सब कुछ कुर्बान…” और अमन सोफिया के बचे हुई कपड़े भी निकाल देता है। आज पहली बार वो सोफिया को इस हालत में देख रहा था। आज वो खुद को वही 18 साल वाला अमन महसूस कर रहा था, जिसने अपनी बर्थडे पर रज़िया से ऐसा गिफ्ट लिया था, जिसने इस खानदान की तकदीर बदलकर रख दी थी। और आज उसी दिन का अमन का बर्थ-डे गिफ्ट, रज़िया और अमन के प्यार की निशानी सोफिया अपनी तमामतर खूब सुरतियों के साथ अमन को अपना सब कुछ देने के लिए बेताब थी। 

अमन सोफिया को लेटा देता है और उसकी जाँघ पे चूमते हुये पहली बार अपनी बेटी की कुँवारी चूत का दीदार करता है। लाल गुलाबी होंठों वाली सोफिया की चूत अमन को रज़िया और अनुम की याद दिला देती है। जब पहली बार अमन ने अनुम की चूत पे अपने होंठ रखे थे, उस वक्त भी उसका दिल इतने ही तेजी से धड़का था जितने तेजी से आज धड़क रहा था। 


सोफिया की आँखें बंद थीं। उसे अपने अब्बू पे पूरा भरोसा था। वो हर काम अमन की मर्ज़ी के मुताबिक करवाना चाहती थी। 

अमन अपनी जीभ से जैसे ही सोफिया की गुलाबी चूत के अन्द्रुनी हिस्से को चूमता है, दोनों के जिस्मों में बिजली दौड़ जाती है। अपनी बेटी की चूत को चाटना… ये ख्याल ही अमन के जिस्म में सनसनी फैलाने के लिए काफी था। 

और सोफिया जो जज़्बात में अमन को सब कुछ देने का कह तो चुकी थी। पर जब अमन ने उसे वहाँ छुआ, जहाँ किसी ने नहीं छुआ था तो एक अजीब सा डर, कुँवारापन टूटने का डर, लड़की से औरत बनने का डर, चूत के अंदर तक चिर जाने का डर, सोफिया के जिस्म को थर्रा के रख देता है। पर मोहब्बत ही इतनी गहरी थी सोफिया की कि वो आज हर दर्द बर्दाश्त करने को तैयार थी। 

अमन सोफिया की चूत को अंदर से बाहर से हर तरफ से चाटता चला जाता है। सोफिया का जिस्म पहला झटका खाता है और पानी के कुछ छीटे अमन के चेहरे को गीला कर देते हैं। सोफिया झट से उठकर बैठ जाती है और अमन को नीचे करके काँपते हाथों से पहली बार उस तलवार को थामती है, जिससे ना जाने कितने बेगुनाह कतल हो चुके थे। वो खूबसूरत अमन का लण्ड जब सोफिया की नरम -नरम मुट्ठी में आता है तो उसे सोफिया के मुँह में जाते देर नहीं लगती। 

अमन-“अह्ह… सोफिया बेटी … तू बिल्कुल अपनी अम्मी पे गई है अह्ह… वो भी ऐसे ही चूमते हुये चूसती है…” 

सोफिया-“अब्बू , मैं अम्मी की बेटी ज़रूर हूँ पर मैं हर काम ऐसे करूँगी कि आप अम्मी को भूल जाओगे…” और सोफिया अमन के लण्ड को गले के अंदर तक घुसाकर इतने जोर से खींचती है कि अमन बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसकी कमर अपने आप ऊपर उठती चली जाती है। वो सोफिया के मुँह में लण्ड अंदर-बाहर करने लगता है। सोफिया गलप्प्प घ न्न गलप्प्प, ना साँस ले पा रही थी, ना ठीक से बोल पा रही थी। पर लण्ड को इस कदर चूस रही थी, जैसे उसने जिंदगी में कई लण्ड खाये हैं। 

अमन सोफिया के मुँह से लण्ड बाहर निकाल लेता है और उसे लेटा देता है-“बेटी थोड़ा दर्द होगा, तुम सह लोंगी ना?” 

सोफिया-“अब्बू , आप मेरी फिकर मत करो। बस जल्दी करो अब्बू , जल्दी से अह्ह…” 

अमन पहले थोड़ा रगड़ता है और फिर सोफिया की चूत के पर्दे तक लण्ड को घुसा देता है। अब तक सोफिया खुश थी। अमन सोफिया की आँखों में देखता है और अपने होंठ उसके होंठों से मिलाकर दोनों हाथों से उसकी चुचियों को दबाते हुये जोर से एक झटका अंदर देता है, और सोफिया अमन के मुँह के अंदर चीखती चली जाती है। 

खून से लथफथ चूत के अंदर अमन अपने लण्ड को नहीं रोकता, वो धीरे-धीरे लण्ड अंदर-बाहर करने लगता है और सोफिया तड़पती रहती है, मचलती रहती है। थोड़ी देर बाद जब अमन अपने होंठ सोफिया के होंठों से अलग करता है, तब सोफिया रो भी रही थी और हँस भी रही थी-“अह्ह… अम्मी, मैंने आपके शौहर को अपना बना लिया। अब उन्हें मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता… अमन ख़ान आज से मेरे हैं। आप सुन रही हो ना अम्मी… अब्बू आराम से अन्न्नने्…” 

अमन कुँवारी चूत खोलने में महारत रखता था। पर आज सोफिया की चूत के पर्दे को हटाने में उसका दिल भी एक पल के लिए धड़कना बंद कर चुका था। वो सोफिया को ऐसे चोदने लगता है जैसे रज़िया और अनुम को चोदा करता था। वो ये भी भूल गया था कि सोफिया की चूत अब तक इतनी खुली नहीं है। पर अमन ख़ान तो अमन ख़ान था। 

सोफिया अपनी दोनों टाँगे खोलकर अमन का साथ देने लगती है। रात तो अभी जवान हुई थी। 

सुबह 7:00 बजे-दिल्ली होटल रूम 

अमन बाथरूम से नहाकर बाहर निकलता है। रात उसे सोफिया ने बहुत कम आराम करने दिया था। पर कहते हैं जवान चूत हो या लण्ड जितना चुदाई करे उतना और करने को दिल चाहता है और यही हाल सोफिया का था। वो बेड पे ब्रा और पैंटी में लेटी हुई अमन के बाहर निकलने का इंतजार कर रही थी। 

जैसे ही अमन बाहर निकलता है, उसकी नजर सोफिया पे पड़ती है। सोफिया की खूबसूरत जवानी का मजा तो वो रात में ले ही चुका था। अपने बेटी को इस तरह मचलता देखकर उसका दिल भी झूम उठता है। 

सोफिया-“अब्बू क्या बात है, बड़े थके-थके से लग रहे हैं?” 

अमन सोफिया की खुली हुई ब्रा को निकालकर फेंक देता है और नरम मुलायम चुचियों को मसलने लगता है। 

सोफिया-“अब्बू , एक रात में आपने मुझे क्या से क्या कर दिया। देखिये ना मेरा जिस्म कुछ और कह रहा है और रह कुछ और…” 

अमन-“मुआह्ह… मेरी जान, बहुत खूबसूरत जिस्म है तेरा। दिल तुझसे अलग होने को करता ही नहीं …” 

सोफिया-“तो मत होइये अलग, कौन आपको कह रहा है? बस इसी तरह अपनी बाहों में समेटे रखिए, अपनी बेटी को प्यार कीजिए ना अब्बू …” 

अमन सोफिया की चुचियों को मुँह में लेकर चूमते हुए, चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोफिया का जिस्म फिर से ढीला होने लगता है। वो खुद को अमन के हवाले कर देती है-“अब्बू , मैं घर नहीं जाना चाहती। हम कुछ दिन और यहाँ नहीं रुक सकते?” 

अमन सोफिया की पैंटी निकालकर फेंक देता है और गुलाबी पंखुड़ियाँ अमन के मुँह के सामने आ जाती हैं। मैं भी कुछ दिन अपनी बेटी के साथ गुजारना चाहता हूँ । आखिरकार मुझपे तेरा भी तो हक उतना ही है जितना औरों का है। 

सोफिया-“अह्ह… अब्बू जी क्या करते है? उसे ऐसे मत सहलाइए ना अह्ह…” 

अमन सोफिया को उल्टा लेटा देता है और चूत के साथ-साथ सोफिया की साफ चिकनी गाण्ड को भी चाटने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोफिया बेडशीट को जोर से पकड़ लेती है-“अब्बू जी नहीं ना अह्ह… अब्बू जी मुझे क्या कर रहे हैं? मेरे अब्बू अह्ह…” 

अमन-“गलप्प्प तेरी चूत चाट रहा हूँ मेरे बच्ची…” अमन सोफिया को भी रज़िया, अनुम और शीबा की तरह गंदी -गंदी बातें करते हुये चोदना चाहता था। वो जानता था कि सोफिया भी रज़िया का खून है और जिस तरह रज़िया को पीछे से गाण्ड में लेना बहुत अच्छा लगता था, उसी तरह सोफिया भी कहीं ना कहीं ये ज़रूर चाहती होगी। पर गुलाब अभी पूरी तरह नहीं खिला था। थोड़ी पंखुड़ियाँ खुलना बाकी थीं और अमन के पास सबर बहुत था। वो सोफिया की चूत के अंदर तक जीभ घुसाकर सोफिया की चूत को तर-बतर कर देता है…” 

सोफिया की चूत से पानी का एक-एक कतरा बाहर निकलकर अमन के मुँह में गिरने लगता है। और जितना अमन चाटता है, उतना सोफिया की चूत पानी छोड़ती है। आखिरकार सोफिया से बर्दाश्त नहीं होता और वो अमन से बदला लेने के लिए उसका तौलिया निकाल देती है। चमकता हुआ खूबसूरत अमन का लण्ड सोफिया की आँखों की रोशनी और बढ़ा देता है। वो उसे अपनी नाजुक से मुट्ठी में लेकर सहलाने लगती है। 

अमन सोफिया को अपनी आँखों के इशारे से कुछ कहता है। 

और सोफिया अपने अब्बू की बात मानते हुये उसे अपने मुँह में ले लेती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन-“अह्ह… सोफी बेटी … तेरी अम्मी भी ऐसे नहीं चूसती है अह्ह…” 

सोफिया-“गलप्प्प मैंने आपसे कल रात ही कह थी अब्बू , मैं आपको इतनी मुहब्बत करूँगी कि आप सबको भूल जाओगे गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन-“अह्ह… इधर आ जा, अपने अब्बू के पास मेरी जान अह्ह…” 

सोफिया-“अभी नहीं … अभी मुझे इसे प्यार करने दीजिए गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन-“अह्ह… बस कर गुड़िया अह्ह…” 

सोफिया-“नहीं अब्बू , ये मेरे अब्बू की सबसे खूबसूरत चीज है। इसे मैं इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली । इसे मैं हमेशा ऐसे ही प्यार करती रहूंगी गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन का दिल सोफिया की इन बातों से इस कदर बदलने लगा था कि उसे अब ना रज़िया याद आ रही थी, और ना शीबा। वो अपनी नई दुल्हन, बेटी के प्यार में डूबा हुआ महसूस कर रहा था खुद को। जब सोफिया अमन की बात नहीं सुनती और अमन से एक-एक लम्हा इस तरह सोफिया के मुँह में गुजारना मुश्किल हो जाता है तो अमन सोफिया को अपने तरफ खींच लेता है और उसकी कमर को दोनों हाथों में लेकर पीछे से अपना लण्ड उसकी चूत में बिना सोफिया को कुछ कहे डाल देता है। 

सोफिया-“अब्बू उुउउ जीईई… मेरे अब्बू अह्ह…” 

अमन-“जो मेरी बात नहीं सुनते, मैं उसे ऐसी ही सजा देता हूँ सोफिया अह्ह…” 

सोफिया-“अगर ऐसी बात है तो मैं आपकी बात बिस्तर पे कभी नहीं सुनूँगी । ताकी आप इसी तरह… मुझे सजा देते रहें अह्ह… ये सजा मुझे हमेशा इसी तरह चाहिए… जीईई अब्बू अह्ह…” 

अमन के लण्ड के नीचे हर औरत और लड़की पनाह माँगती थी। सोफिया ही वो लड़की थी जो अमन के लण्ड से भी नहीं घबराई। सोफिया को चोदते हुये अमन को खुद पे बहुत नाज होने लगता है। आखिरकार एक ख़ूँख़ार शेर और मजबूत कलेजे वाली रज़िया के मिलाप से वजूद में आई थी सोफिया। उसमें दोनों के खून की झलक साफ-साफ नजर आती थी। 

जितने जोर से अमन सोफिया को चोद रहा था उतने ताकत से सोफिया अपनी कमर को पीछे अमन के लण्ड की तरफ धकेलने लगती है। 

***** ***** 

इधर अमन विला में जीशान शीबा के रूम में चला जाता है। 

आज दोपहर में वो और लुबना समर कैम्प जाने वाले थे। इसी लिए जीशान शीबा को चलते-चलते लण्ड की सलामी देने की नीयत से उसके बेड पे उसके पीछे जाकर शीबा से चिपक जाता है। शीबा गहरी नींद में सोई हुई थी। पर जैसे ही जीशान उसकी चूत को पैंट के ऊपर से छूता है, वो अपने आँखें खोल देती है। 

जीशान-गुड मॉर्निंग अम्मी। 

शीबा-“गुड मॉर्निंग मेरे सरताज। आज इतनी सुबह-सुबह अम्मी की याद… ख़ैरियत तो है ना?” 

जीशान शीबा के निप्पल को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है-“भूक लगी थी अम्मी। घर में दूध ठंडा है, सोचा सीधा ताजा ताजा, गरम दूध पिया जाए गलप्प्प गलप्प्प…” 

शीबा-“अह्ह… पी ले ना, तुझे रोका किसने है? अह्ह… तू आज समर कैम्प जाने वाला है ना? अह्ह…” 

जीशान-हाँ अम्मी दोपहर में। 

शीबा-“मुझे एक हफ्ते के लिए छोड़कर जा रहा है…” 

जीशान-“बस एक हफ्ते की तो बात है अम्मी…” 

शीबा-“मैं तुझे रोकूंगी नहीं , पर मुझे एक हफ्ते का कोटा अभी चाहिए…” 

जीशान शीबा के होंठों को चूमते हुये-“जो हुकुम मालकिन…” 

शीबा अपनी नाइटी के बटन खोल देती है और जीशान अपना अंडरवेअर निकाल देता है। उनके पास वक्त की कमी थी, और मोहब्बत और हवस की शिद्दत बहुत ज्यादा। बिना देर किए जीशान अपने लण्ड को शीबा की चूत की गहराईयों में उतार देता है। 

शीबा-“अह्ह… जीशान बेटा ऐसा कर अपनी अम्मी को कि मुझे तेरे अब्बू के पास ना सोना पड़े… भुला दे मुझे कि मैं अमन ख़ान की बीवी हूँ । बस मुझे याद रहे तो सिर्फ़ तू अह्ह…” 

जीशान-“अम्मी इस चूत पे अब सिर्फ़ जीशान ख़ान का हक है और आप पूरी की पूरी मेरी हो, मेरी अम्मी जान्नने्…” 

दोनों एक दूसरे को चूमने लगते हैं। देखते ही देखते दोपहर भी हो जाती है। जीशान और लुबना घर के सभी लोगों से मिलकर समर कैम्प के लिए निकल जाते हैं।
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