RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अनुम भीगी पलकों से जीशान को जाता देखती रह जाती है। रज़िया उसके कंधे पे हाथ रखती है और उसे अपनी ममता के आूँचल में छुपा लेती है-“मेरे बच्चे तू रो मत, करने दे जालिम को कितने भी सितम। पर मेरी बात याद रखना… वो अभी तुझसे नफरत करता है और जहाँ नफरत ज्यादा होती है, वहीं मोहब्बतू भी शिद्दत से होती है…”
जीशान और लुबना समर कैम्प के लिए निकल जाते हैं। जब वो कालेज पहुँचते हैं तो सभी समर कैम्प जाने वाले स्टूडेंट्स वहाँ पहुँच चुके थे।
रूबी बड़ी बेताबी से जीशान का इंतजार कर रही थी। जैसे ही उसकी नजर जीशान पे पड़ती है, वो खुशी के मारे उछल पड़ती है और भागते हुये जीशान और लुबना के पास पहुँच जाती है-“कितनी देर कर दी आपने? मैं कब से आपका इंतजार कर रही हूँ …”
लुबना-“ना सलाम, ना कलाम बस आते ही मक्खी की तरह गुन-गुन शुरू कर दी तुमने रूबी…”
रूबी-“सलाम बाजी, सलाम जीशान, कैसे हैं आप?”
लुबना की बात रूबी के साथ-साथ जीशान को भी नागवार गुज़री थी पर जीशान बात को हँसी में टाल देता है।
कालेज के सर जो समर कैम्प में स्टूडेंट्स के साथ जाने वाले थे, सभी स्टूडेंट्स को बस में बैठने के लिए कहते हैं। रूबी सबसे पहले बस में चढ़ती है, और अपने पास की सीट पे किसी को बैठने नहीं देती। लास्ट में जब जीशान चढ़ता है तो वो जीशान को अपने पास बैठने के लिए कहती है।
जीशान तो बैठ जाता है पर लुबना के कलेजे पे साँप रेंगने लगता है। वो बुरा सा मुँह बनाकर जीशान और रूबी के पीछे वाली सीट पे बैठ जाती है। सफर शुरू हो जाता है और बस में हंगामा भी। फस्ट एअर के स्टूडेंट्स नाच गाना शोर मचाना शुरू कर देते हैं।
रूबी जीशान से इतनी चिपक के बैठी थी कि लुबना को ऐसे दिखाई दे रहा था, जैसे रूबी जीशान के गोद में बैठी हो।
लुबना के पास में एक लड़का बैठा हुआ था, जिसका नाम फ़राज़ था, देखने में अच्छा ख़ासा था। लुबना उसका कोई नोटिस नहीं लेती। उसकी नजर तो जीशान और रूबी की तरफ थी और कान गौर से उन दोनों की बातें सुनने में मसरूफ़।
फ़राज़-“ एक्सक्यूज मी, क्या मैं खिड़की की तरफ बैठ सकता हूँ , मुझे थोड़ा सिर दर्द हो रहा है…”
लुबना-“सर में दर्द हो रहा है तो मेरे सर पे बैठ जाओ। चुपचाप बैठे रहो वरना बाहर फेंक दूँगी …” वो इतने जोर से बोली थी कि आस-पास के स्टूडेंट्स ख़ौफ़ जदा से हो जाते हैं।
और बेचारा फ़राज़ तो भीगी बिल्ली की तरह दुबक जाता है।
जीशान एक नजर पीछे पलटकर लुबना की तरफ देखता है-“क्या बात है लुबु आर यू आल राइट?”
लुबना-“जी भाई, मैं बिल्कुल ठीक हूँ , आप लगे रहो…”
जीशान लुबना को घूर ता हुआ फिर से रूबी से बातें करने लग जाता है।
लुबना का पारा इतना चढ़ा हुआ था की उसे कुछ अच्छा नहीं लगता और वो अपनी आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगती है। रास्ता काटना लुबना के लिए दुश्वार था। वो बस दुआ कर सकती थी कि किसी तरह वो जल्दी से जल्दी कैम्प पहुँच जाए।
3 घंटे बाद उनकी प्राइवेट बस समर कैम्प, जो एक छोटा सा मगर बहुत खूबसूरत टूरिस्ट स्पॉट भी था, वहाँ रुक जाती है। सभी स्टूडेंट्स नीचे उतर जाते हैं। उन लोगों के रुकने के लिए वहाँ एक होटेल में पहले से कमरे बुक्ड थे। लड़के एक तरफ और लड़कियाँ दूसरे तरफ के कमरे में रुकने वाले थे। पर होटेल में रुकने कौन आया था? सभी अपने-अपने दोस्तों के साथ कुदरत के नजारे देखने निकल जाते हैं।
रूबी और जीशान वहीं खड़े थे।
तभी वहाँ लुबना भी आ जाती है-“चलो ना भाई, घूमने चलते हैं…”
जीशान-“चलो, तुम चल रही हो रूबी?”
रूबी मुश्कुराते हुये उन दोनों के साथ चल देती है। तीनो खामोशी से चल रहे थे।
लुबना की वजह से रूबी और जीशान को प्राईवेसी नहीं मिल पा रह थी।
जीशान-“लुबु, देखो सामने इतना खूबसूरत झरना है (वॉटरफाल)…”
लुबना-“हाँ भाई, चलो जल्दी से मेरी एक अच्छी सी फोटो निकाल दो…”
जीशान लुबना को थोड़ा आगे जाने के लिए कहता है और उसके दो-तीन फोटोस निकाल देता है।
जीशान-“रूबी तुम भी निकाल लो ना…”
रूबी-“नहीं अभी नहीं , बाद में…”
लुबना को एहसास होता है कि वो कबाब में हड्डी बन रही है, क्योंकि जीशान और रूबी बातें तो लुबना से भी कर रहे थे पर उनकी नजरें एक दूसरे से हट नहीं रही थी । लुबना बहाना बनाकर वहाँ से निकल जाती है।
रूबी और जीशान आगे चलने लगते हैं, और लुबना दबे पाँव उनका पीछा करने लगती है।
रूबी-“जीशान, मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ …”
जीशान-हाँ बोलो ना।
रूबी-“तुम एक लड़के हो, पता नहीं तुम्हें ये बात कैसी लगे? आम तौर पे ये बात लड़के लड़कियों से कहते हैं। पर मैं क्या करूँ जीशान मेरे जज़्बात अब मेरे बस में नहीं हैं…”
जीशान रुक जाता है और रूबी की आँखों में देखने लगता है। वो धीरे से रूबी का हाथ अपने हाथ में ले लेता है-“बोलो भी, क्या कहना चाहती हो?”
रूबी-“मुझे शर्म भी आ रही है और मैं नर्वस भी महसूस कर रही हूँ जीशान। मगर फिर भी मैं तुम्हें कहना चाहती हूँ कि ‘आइ लव यू …” और वो शरमाकर जीशान के सीने से चिपक जाती है।
कुछ देर खामोशी रहने के बाद रूबी को जीशान के हँसने की आवाज़ सुनाइ देती है।
जीशान रूबी के इस तरह अचानक प्रपोज करने पे हँस रहा था।
रूबी की आँखें नम होने लगती हैं-“तुम्हें हँसी क्यों आ रही है ?”
जीशान-“हेहेहेहे… कुको-रुको, मैं इस बात पे नहीं हँस रहा हूँ कि तुम मुझसे प्यार करती हो। बल्की मुझे इस बात पे हँसी आ रही है कि ये पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी लड़की ने लड़के को प्रपोज किया हो…”
रूबी-“तुम मुझसे प्यार नहीं करते जीशान?”
जीशान-“रूबी तुम बहुत प्यारी लड़की हो, मुझे बहुत अच्छी लगती हो। पर सच कहूँ तो मैं प्यार व्यार को नहीं मानता। मुझे इन सब बातों में बिल्कुल विश्वास नहीं है। मुझे आज तक प्यार हुआ भी नहीं । मगर मैं तुम्हारे जज़्बात की कदर करता हूँ । तुम मुझसे प्यार करती हो, बहुत अच्छी बात है। पर अभी मैं तुमसे प्यार नहीं करता, हो सकता है किसी दिन हमारे बीच प्यार हो जाए, उस दिन देखेंगे। तब तक तुम मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड बनकर रह सकती हो…”
रूबी-“एक दिन मेरी मोहब्बत तुम्हारे दिल में ज़रूर पैदा हो जाएगी जीशान… और मुझे उस दिन दुनियाँ की हर चीज मिल जाएगी। मुझे इंतजार रहेगा उस दिन का…”
जीशान-मुझे भी, अब चलें।
रूबी का प्यार जीशान ने ठुकराया भी नहीं था और ना स्वीकार ही किया था। वो खुद को संभाल लेती है और दोनों हँसते हुये आगे बढ़ने लगते हैं। कुछ दूर चलने के बाद रास्ता थोड़ा पथरीला हो जाता है, और रास्ते में जगह-जगह काँटे भी बिछे हुये थे।
जीशान रूबी का हाथ पकड़ लेता है।
रूबी-क्या हुआ?
जीशान-तुम मुझसे प्यार करती हो ना?
रूबी-हाँ।
जीशान-“तो क्या तुम मेरे लिए नंगे पाँव इन काँटों पे चल सकती हो?”
रूबी-“क्या जीशान, कुछ भी कहते हो? मैं क्या पागल हूँ जो मोहब्बत दिखाने के लिए ऐसे काँटों भरे रास्ते पे चलूंगी । ये सब बातें लैला मजनूं को सूट करती थीं…”
जीशान रूबी को कुछ बोलने वाला था कि उसे पीछे से लुबना आती हुई दिखाई देती है उसने जीशान और रूबी की बातें सुन ली थी।
लुबना चुपचाप जीशान और रूबी के पास तक आती है और उनके पास पहुँचकर अपने सैंडल उतार देती है। तीनों के सामने काँटों भरा रास्ता था।
जीशान-क्या हुआ लुबु, तुमने सैंडल क्यों निकाल दी ?
लुबना एक नजर जीशान की आँखों में झाँकती है और फिर दूसरे ही पल वो अपने कदम उन काँटों भरे रास्ते पे बढ़ा देती है
जीशान देखता रह जाता है। साथ में खड़ी रूबी की आँखें फटी की फटी रह जाती है
लुबना पैरो में चुभते हुये काँटों का दर्द सहती हुई आगे बढ़ती रहती है और आखिरकार उसके पैरो में से खून निकलने लगता है। वो हर कदम के साथ लड़खड़ा जाती है पर वो आगे बढ़ना जारी रखती है।
जीशान-“पागल हो गई हो क्या लुबु? वहीं रुक जाओ…”
लुबना रुक जाती है।
जीशान भागता हुआ उसके पास पहुँचता है और उसे अपनी गोद में उठा लेता है।
आँसू लुबना की आँखों से लगातार बह रहे थे। ये दर्द के आँसू नहीं थे, बल्की खुशी के थे। उसे खुद पे फख्र महसूस हो रहा था। जीशान उसे अपनी बाहों में उठाकर रूम में ले आता है और भागकर सिर के पास से फस्ट-एड किट ले आता है। लुबना के पैर में अभी भी काँटे धसे हुये थे। वो उन्हें निकाल भी नहीं रही थी ।
जीशान लुबना को डाँटता हुआ एक-एक काँटा उसके पाँव से निकालने लगता है।
जीशान उससे क्या कह रहा था ये तो उसे जैसे सुनाई ही नहीं दे रहा था। वो एक टकटकी लगाए जीशान के हिलते होंठों को देख रह थी।
जीशान-“पागल लड़की, क्यों किया तुमने ऐसा?”
लुबना-“ये इश्क़ नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिये एक आग का दरिया है और डूब के जाना है…”
जीशान लुबना का चेहरा देखता रह जाता है।
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उधर दिल्ली में अमन सोफिया के लिए एक खूबसूरत साड़ी लेकर रूम पे आता है। सोफिया अमन का ही इंतजार कर रह थी। वो उछलकर अमन की गोद में चढ़ जाती है।
अमन सोफिया को चूमते हुये उसे साड़ी देता है-“जल्दी से इसे पहनकर मुझे दिखाओ …”
सोफिया हाथ में साड़ी लेते हुये-“अब्बू बाकी के अंडरगामेंटस कहाँ हैं?”
अमन सोफिया के कान में धीरे से कहता है-“मैं चाहता हूँ तुम सिर्फ़ इसे पहनो बिना पैंटी बिना ब्रा के, और हाँ साड़ी अपनी नाभि के एकदम नीचे और चूत के थोड़े ऊपर बाँधना…”
अमन के मुँह से निकले ये शब्द सोफिया की चूत में हलचल मचा देते हैं, और वो शरमाते हुई बाथरूम में घुस जाती है।
अमन सोफिया की सारी शर्म-ओ-हया निकालकर फेंक देना चाहता था।
कुछ देर बाद सोफिया साड़ी पहनकर बाहर आती है। अमन उसे देखता रह जाता है। जैसे उसने कहा था सोफिया ने बिल्कुल वैसे ही साड़ी पहनी थी। अमन अपनी बेटी को अपनी छाती से लगाकर चूमने लगता है। सोफिया भी अमन में पिघलते चली जाती है।
सोफिया-“अह्ह… अब्बू मुझे बेपनाह प्यार कीजिए ना…”
अमन सोफिया की चुचियाँ जो कि एकदम नंगी थीं, मसलने लगता है और सोफिया अमन की पैंट की जिप खोलने लगती है। कुछ देर बाद दोनों फिर से नंगे हो जाते हैं। आज सोफिया बिना अमन से पूछे नीचे बैठकर उसका मोटा लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसने लगती है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
अमन सोफिया के बाल पकड़कर लण्ड को और अंदर डालने लगता है। बाप-बेटी का रिश्ता कब का ख़तम हो चुका था। अब इसमें कुछ और रंग भरने लगे थे।
सोफिया अपनी चूत को सहलाते अमन के लण्ड को आंडो तक चूसने लगती है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
अमन सोफिया को गोद में उठाकर बिस्तर पे लेटा देता है और उसकी चुचियों को मुँह में लेकर चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
सोफिया-“अह्ह… अब्बू इनमें दूध भर दो, मैं आपको दूध पिलाऊूँगी। अह्ह… और जोर से चूसो अब्बू काटो ना जीईई…”
अमन निपल्स को काटता हुआ अपना लण्ड सोफिया की चूत में डाल देता है।
एक पल के लिए सोफिया साँस लेना भूल जाती है और दूसरे ही पल कमर उछाल-उछाल के अमन को अपने अंदर जाने देती है-“हाँने्… अब्बू ऐसे ही … अपनी बेटी को माँ बना दो जीईई… मुझे भी बच्चा दे दो मेरे अब्बू । अपने अब्बू का बच्चा चाहिए मुझे अह्ह…”
अमन दोनों चुचियों को मसलता हुआ सटासट अपना लण्ड सोफिया की चूत के अंदर तक उतारने लगता है। ऐसा लगता है जैसे मोहब्बत और हवस की ये रात कभी ख़तम नहीं होगी। दोनों एक दूसरे को चूमते चाटते नोंचते हुये एक दूसरे को मुकम्मल करने लगते हैं।
सोफिया की चूत को ज्यादा से ज्यादा देर तक लण्ड चूत में चाहिए था। और अमन को ऐसी ह टाइट चूत जो उसे अपनी जवानी के दिन याद दिलाती रहे। दोनों हाँफने लगते हैं पर ना अमन अपनी स्पीड कम करता है और ना सोफिया कमर उछालना बंद करती है
दोनों के होंठ एक दूसरे को चूमते -चूमते लाल हो चुके थे और चूत से कितनी बार पानी बाहर निकल चुका था ये सोफिया को भी याद नहीं था। रात कटती रही और सोफिया अपने अब्बू के पानी और प्यार से शराबोर होती रही ।
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