RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अमन फ्रेश होकर सोफिया के रूम से अपने रूम में चला जाता है और सोफिया बेड पे लेटी हुई अपने और अपने अब्बू के सुनहरे लम्हों को याद करते हुये मुश्कुराने लगती है कि तभी उसके रूम में रज़िया दाखिल होती है। रज़िया को देखकर सोफिया बेड से खड़ी हो जाती है।
सोफिया- दादी , आप इस वक्त यहाँ?
रज़िया-“क्यों, जब अमन तुम्हारे रूम में दिन रात आ सकता है तो मैं इस वक्त क्यों नहीं ?”
सोफिया की पेशानी पे पसीने के कतरे आने लगते हैं। वो रज़िया के चेहरे के भाव से पता लगा सकती थी की रज़िया को कुछ-कुछ पता चल चुका है।
रज़िया-“खामोश क्यों हो गई सोफिया? बोलो क्या कर रहा था अमन तुम्हारे रूम में?”
सोफिया-“वो दादी … अब्बू के कमरे में पानी नहीं आ रहा था इसलिए वो मेरे बाथरूम में नहाने आए थे…”
रज़िया-“तुम्हें देखकर ऐसा लग रहा है जैसे तुम भी…”
सोफिया-“ये आप कैसी बातें कर रह हैं दादी ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा?”
सोफिया अपनी दादी से नजरें चुरा लेती है और गर्दन मोड़कर चेहरा दूसरी तरफ कर लेती है।
रज़िया सोफिया को घुमाकर उसका चेहरा अपनी तरफ कर देती है-“मुझसे नजरें मिलाकर बात करो सोफिया…”
सोफिया का जिस्म अंदर ही अंदर लरज जाता है, गला सूखने की वजह से वो ठीक तरह से बोल भी नहीं पाती, और आवाज़ लड़खड़ाने लगती है।
रज़िया-“देखो सोफिया, जो इस घर में हो रहा है वो मुझसे छुपा नहीं है। बेहतर होगा तुम मुझसे साफ-साफ बात करो। ये तुम्हारे लिए भी अच्छा होगा और अमन विला के लिए भी। क्या करके आए हो तुम दिल्ली से? तुम्हारे और अमन के बीच कौन सा नया रिश्ता पैदा हो गया है? बोलो मुझे। मेरी नजरें धोखा नहीं खा सकती। तुम्हें देखकर बता सकती हूँ कि तुम अपना सब कुछ अमन को सौंप चुकी हो। बोलो क्या मैं गलत हूँ ?”
सोफिया बेड पे बैठ जाती है और एकटक रज़िया को देखने लगती है।
रज़िया-“बेहतर होगा इस बात का जवाब तुम मुझे अमन के सामने रात में दो…” कहती हुई रज़िया अपने कमरे में चली जाती है।
और सोफिया डर और घबराहट के मारे पसीने-पसीने हो जाती है। उसे कुछ समझ में नहीं आता कि आखिर ये सब रज़िया को कैसे पता चला?
सुबह जब अमन रज़िया और अनुम के पास से सोफिया के कमरे में गया था, उसे रज़िया ने देख लिया था। और वो काफी देर उसके रूम के दरवाजे के पास खड़ी रहकर उन दोनों की सारे बातें भी सुन चुकी थी। वो सब बर्दाश्त कर सकती थी, मगर अमन को और किसी लड़की के साथ बर्दाश्त नहीं कर सकती थी… चाहे वो फिर उसकी अपनी सगी बेटी है क्यों ना हो।
कुछ देर बाद अमन ऑफिस के लिए निकल जाता है। और रज़िया दुबारा सोफिया के रूम में आती है। सोफिया कपड़े पहनकर बेड पे बैठी हुई थी।
रज़िया-चलो सोफिया मेरे साथ।
सोफिया-कहाँ?
रज़िया-अमन के ऑफिस?
सोफिया फटी - फटी नजरों से रज़िया को देखने लगती है।
रज़िया सोफिया का हाथ पकड़कर उसे अमन के ऑफिस ले जाती है। अमन उस वक्त अपने केबिन में बैठा कुछ काम देख रहा था। रज़िया और सोफिया को देखकर वो चौंक जाता है-“अरे अम्मी, आप इस वक्त यहाँ? ख़ैरियत तो है ना? और ये सोफिया को यहाँ क्यों ले आए?”
रज़िया-“ख़ैरियत ही नहीं है अमन। मुझे सब पता चल गया है तुम्हारे और इस लड़की के बारे में। मैं सिर्फ़ ये जानने आई हूँ कि तुम आखिर चाहते क्या हो?”
अमन केबिन का दरवाजा बंद कर देता है, जिससे उन दोनों की आवाज़ बाहर ना जा सके।
सोफिया सिसकती हुई सोफे पे बैठ जाती है।
रज़िया-“देखो ये बात मैंने अभी तक अनुम को नहीं बताई, वरना तुम जानते हो कि वो पागल क्या कर देगी? खुद का भी और इस लड़की का भी। बेहतर होगा कि तुम और ये अपने जज़्बातों को यहीं दफन कर दो। इसी में अमन विला की और हम सबकी भलाई है।
सोफिया-“दफन कर दो? मेरे जज़्बात बेमानी नहीं हैं। अम्मी मैं भी जानती हूँ आपके और अब्बू के बारे में। एक बात आप भी सुन लीजिये कि मैं अब्बू से मोहब्बत करती हूँ और उनसे दूर नहीं रहूंगी । इसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ … कुछ भी…”
सोफिया के मुँह से ये लफ़्ज सुनकर एक पल के लिए रज़िया के दिल में सकून उतर आता है पर अगले ही पल वो खुद को संभाल लेती है। रज़िया आगे बढ़कर दो जोरदार चपत सोफिया के गाल पे रसीद कर देती है-“जब तुम जान ह चुकी हो हमारे हकीकत तो ये भी सुन लो कि मैं तुम्हारी अम्मी हूँ और एक माँ होने के नाते मैं ये कभी नहीं होने दूँगी कि तुम अपनी सारे जिंदगी ऐसे इंसान के लिए ख़तम कर दो जिससे सिर्फ़ तुम नहीं बल्की तीन औरतें भी बेपनाह मोहब्बत करती हैं। अमन सिर्फ़ तुम्हारा नहीं है उसपे तुमसे पहले मेरा, अनुम का और शीबा का हक है…”
अमन रज़िया का हाथ पकड़कर उसे सोफे पे बैठा देता है-“पहले आप सकून से बैठ जाओ और मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं जानता हूँ कि मुझपे सबसे ज्यादा आपका हक है और मैंने सच्ची मोहब्बतू भी की थी तो सिर्फ़ आपसे और अनुम से। दिल्ली में मुझे आपकी बहुत याद आती थी। सोफिया के चेहरे में मुझे आपका अक्स नजर आता है। इसलिए मैं बहक गया था और वो सब हो गया जो नहीं होना चाहिए था…”
अमन सोफिया से-“सोफिया बेटी मैं उमर के उस पड़ाओ पे पहुँच चुका हूँ , जहाँ मैं तुम्हारे ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकता। मुझपे पहले से ही तीन औरतों की ज़िम्मेदारी है और जिनमें से तुम्हारे अम्मी और अनुम से मैं बेपनाह मोहब्बत करता हूँ …”
अमन रज़िया का हाथ अपने हाथ में ले लेता है-“मुझसे गलती हो गई, बहुत बड़ी गलती और मैं जानता हूँ इस गलती को कैसे सुधारा जा सकता है…”
रज़िया-कैसे?
अमन-“मेरे ऑफिस में अकरम नाम का एक कर्मचारी काम करता है। खानदानी है, जवान भी है, उसके वालिद ने अकरम के लिए लड़की ढूँढने की ज़िम्मेदार मुझे सौंपी है और मुझे उसके लिए लड़की मिल गई है-“सोफिया…”
सोफिया गुस्से में खड़ी हो जाती है और अमन का गिरेबान पकड़ लेती है-“आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। मैंने आपसे सच्ची मोहब्बत की है। मैं किसी भी गैर के साथ कोई रिश्ता नहीं बनाऊूँगी। मैं शादी नहीं करूँगी, ये बात आप अच्छी तरह समझ लीजिये । रही बात आप बहक गये थे तो सुन लीजिये … मैंने आपको दिल से चाहा है और चाहती रहूंगी । अगर आपको अपनी गलती का मलाल है तो मैं आपकी गलती की सजा भुगतने को तैयार हूँ । मैं अपनी जान दे दूँगी …”
अमन सोफिया को अपने सीने से लगा लेता है-“तुम कैसी बात कर रह हो सोफी? मेरी बात समझो बेटा…”
सोफिया-“मुझे कुछ नहीं सुनना…” और वो रोती हुई वहाँ से चली जाती है। और रज़िया अमन एक दूसरे को देखते रह जाते है।
रज़िया-“तुम जानते हो अनुम को अगर ये बात पता चली तो क्या होगा?”
अमन-“अम्मी किसी को कुछ पता नहीं चलेगा और आप अनुम से कुछ नहीं कहेंगी। मुझसे वादा कीजिए। मैं सब संभाल लूँगा…”
रज़िया-“मैं वादा नहीं करूँगी उस आदमी से जिसने मुझसे ये वादा किया था कि वो मेरे और अनुम के सिवाय किसी और के साथ कोई जायज़ या नाजायज़ रिश्ता नहीं बनाएगा। जब तुम अपना वादा तोड़ सकते हो तो मैं तुमपे क्यों भरोसा करूँ?”
रज़िया भी अमन के केबिन से चली जाती है।
और अमन अपने सर को पकड़कर बैठ जाता है।
***** *****उधर समर कैम्प में।
जीशान बेहद परेशान सा अपने कमरे में बैठा हुआ था। उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। लुबना हाथ में खाने की प्लेट लिए उसके रूम में आती है और उसके पास आकर प्लेट -टेबल पे रख देती है-“खाना खा लो…”
जीशान-“मुझे नहीं खाना, चली जा यहाँ से…”
लुबना-“खाना खा लो…”
जीशान एक चपत लुबना के गाल पे जड़ देता है-“सुनाई नहीं देता तुझे? चली जा यहाँ से…”
लुबना-“खाना खा लो वरना मैं भी भूखी रह जाउन्गी…” उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। ये आँसू जीशान के थप्पड़ के नहीं बल्की उसके ना खाने से होने वाले दर्द की वजह से थे।
जीशान लुबना को घुरने लगता है-“ तू किस मिट्टी की बनी है लुबना?”
लुबना-“उसी मिट्टी की जिससे आप बने हो। अब बातें बाद में करना पहले कुछ खा लो…”
जीशान को लुबना पे गुस्सा भी आ रहा था और एक बहन के इस तरह टूटकर मोहब्बत करने पे प्यार भी। वो एक निवाला तोड़कर पहले लुबना को खिलाता है।
लुबना-“पहले आप खाओ, मैं बाद में खा लूँगी …”
जीशान चिल्लाते हुये-“मुँह खोल…”
लुबना जीशान की आँखों में देखते हुये मुँह खोल देती है और जीशान निवाला उसके मुँह में डाल देता है। लुबना एक निवाला तोड़कर जीशान को खिलाने लगती है पर जीशान उसे मना कर देता है।
लुबना-“मेरे हाथों में जहर नहीं लगा जो आप मना कर रहे हो? मुझे माफ कर दो, सुबह मैंने आपसे ऊूँची आवाज़ में बात की इसलिए…”
जीशान-“देख लुबु, मेरी बात अच्छे से समझ… जो तू चाहती है, वो गलत है। क्यों अपने जिंदगी बर्बाद करने पे तुली हुई है?”
लुबना-“जिसके साथ जिंदगी आबाद हो, आप उसे बर्बाद कह रहे हैं। मैंने आपसे कुछ नहीं माँगा, ना आपको किसी चीज के लिए फोर्स किया। आप मेरी तरफ से इतमीनान रखिये। मैं आपसे कभी कुछ नहीं माँगूंगी । बस जैसे आप सबसे हँसकर बात करते हैं, क्या उसी तरह मुझसे बात नहीं कर सकते? आप ही तो कहते थे कि आपको मुझसे बहुत प्यार है…”
जीशान-“वो एक पाक रिश्ते की मोहब्बत है लुबु, तू समझती क्यों नहीं ?”
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लुबना-“समझ तो आप नहीं रहे भाई, क्या मैंने आपसे कभी कोई नाजायज़ डिमांड की? क्या मैंने आपसे कहा कि आप भी मुझसे मोहब्बत करो? ये मेरे जज़्बात हैं, मुझे अपनी यादों में, अपने जज़्बातों के साथ जीने का हक है ना? जब कभी मैं आपसे कोई गलत बात के लिए कहूँ गी, उस वक्त आप मेरा गला घोंटकर मुझे मार देना। मगर इस तरह घुट-घुटकर मत रहो। प्लीज़्ज़…” वो रुकी नहीं , अपने आँसू पोंछते हुई बाहर भाग गई।
और जीशान को सोचने पे मजबूर कर गई कि वो जो कह रही है कुछ गलत तो नहीं कह रही ।
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अमन रात में परेशान जब घर आता है तो अनुम उसे अपने रूम में लेजाकर उसपे टूट पड़ती है। रज़िया ने अपना बड़ा सा मुँह अनुम के सामने खोल दिया था। अनुम अमन का गिरेबान पकड़कर उससे सवाल करने लगती है जिसका जवाब अमन के पास नहीं था।
अनुम-“आखिर हमारी मोहब्बत में आपको ऐसी कौन सी कमी नजर आई जो आपने सोफी की जिंदगी खराब कर दिया। आपको कोई हक नहीं बनता अमन कि उसके साथ ऐसा करो। अपने ऐसा करके ना सिर्फ़ मेरी बल्की अम्मी की मोहब्बत की भी तौहीन की है। मैं आपको कभी माफ नहीं करूँगी।
अमन-“मुझसे भूल हो गई अनुम, प्लीज़्ज़… समझो। हालात ऐसे थे कि मैं खुद को काबू में नहीं रख पाया…”
अनुम-“अगर ऐसे हालात मेरे साथ पेश आ जाएँ और मैं उस शख्स के साथ वही करूँ जो आपने सोफी के साथ किया तो आपको कैसा लगेगा?
अमन आँखें निकालकर अनुम को देखने लगता है-“खामोश हो जाओ…”
अनुम-“क्यों खुद पे आई तो खामोश हो जाओ और जो मेरे और अम्मी के दिल पे गुजर रही है वो कुछ नहीं ?”
अमन-क्या चाहती हो तुम?
अनुम-“सोफिया की जल्दी से जल्दी शादी और एक वादा मुझसे कि आप आइन्दा ऐसी कोई भी हरकत नहीं करेंगे और अगर करेंगे ना अमन तो मैं आपके सर की कसम खाकर कहती हूँ कि मैं आपके कदमो में अपनी जान दे दूँगी …” वो रो पड़ती है।
और साथ में अमन की आँखों में भी आँसू आ जाते हैं।
अनुम कुछ देर सिसक-सिसक के रोने के बाद अपने रूम में चली जाती है और पीछे छोड़ जाती है अमन के लिए तनहाईयाँ और खामोशियाँ, जिसका सामना अमन को खुद अकेले करना था।
दूसरे दिन सुबह अमन बिना नाश्ता किए फॅक्टरी चला जाता है।
ऐसा नहीं था कि शीबा अमन के इस रवैये से अंजान थी, मगर वो चुप थी। वो जानती थी कि ये खामोशी किसी बड़े तूफान के पहले की है और वो इस तूफान में खुद को शामिल नहीं करना चाहती थी। क्योंकी जो हो रहा था इसमें उसी का फायेदा था।
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