RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अमन-“पहले मेरी बात पूरे होने दे। खालिद एक बहुत अच्छा लड़का है। मैं तुम दोनों की शादी करके तुम्हें यहाँ से 5 कि॰मी॰ दूर एक फ्लेट गिफ्ट करने वाला हूँ , जहाँ तुम और सिर्फ़ खालिद रहेंगे। खालिद के अम्मी अब्बू तो उनके बड़े बेटे के साथ रहते हैं। और मेरी बात के आगे वो कैसे जाएँगे मैं उनसे कह दूँगा कि खालिद और सोफिया को अकेले रहने दो। शादी के बाद खालिद जाएगा आउटडोर पे फॅक्टरी के काम से और मेरी बेटी अपने अब्बू की बाहो में होगी। हमेशा-हमेशा के लिए। यही चाहती थी ना तू ? बस बेटी तू शादी के लिए हाँ कह दे। देख। मैं नहीं चाहता कि तू बिना शादी के रहे…”
सोफिया-“मगर अब्बू , मैं अपने अंदर आपके सिवा और किसी का लेना नहीं चाहती…”
अमन उसे फिर से चूम लेता है-“जब दिल करे तब लेना खालिद का, वरना साफ मना कर देना। तेरी चूत तो मुझे लगता है दो से भी नहीं मानेगी इसे तो और चाहिए होंगे?”
सोफिया-“अब्बू , आपको मैं ऐसी लगती हूँ क्या? बाजारू औरत?”
अमन-“अरे नहीं … मैं तो इसलिए कह रहा था कि जब त बिस्तर पे होती है तो मुझे भी मात दे देती है। पता नहीं क्या खाकर पैदा किया है तुझे रज़िया ने?”
सोफिया-“हेहेहेहे… आपका मुँह में ज्यादा लेती होगी अम्मी, है ना अब्बू ?”
अमन-“हाँ… और अब तू लेगी इसे…” फिर कुछ ह देर में दोनों बाप-बेटी पूरे नंगे हो जाते हैं और सोफिया की बेचैन चूत में एक नई उमींग पैदा हो जाती है, अपने अब्बू के लण्ड को लेने की। वो अमन के लण्ड को पूरा मुँह में लेकर चूसने लगती है गलप्प्प गलप्प्प…”
अमन इतने दिन से सोफिया की चूत के बिना सो रहा था। उसका लण्ड तो सोफिया को छूते ही खड़ा हो गया था। वो ज्यादा सोफिया के मुँह को तकलीफ़ नहीं देता, बल्की उसे लेटाकर अपनी जीभ उसकी चूत में डाल देता है।
सोफिया-“अह्ह… अब्बू बस-बस… इसे मत छेड़ो, वो पहले से ही सिसक रही है। मुझे अपने अंदर ले लो मेरी जान, मेरे अमन ख़ान, मेरे ख़ान साहब अह्ह…”
अमन भी अब देर नहीं करना चाहता था। वो सोफिया की जाँघ के पास बैठ जाता है और अपने लण्ड को सोफी की चूत में बिना बोले डाल देता है। चीखते हुये सोफिया अपनी दोनों टाँगे अमन की कमर से लपेट लेती है।
अमन-“अह्ह… बोल सोफिया, करेगी ना शादी खालिद से… बोल?”
सोफिया-“उम्ह्ह… एक शर्त पे करूँगी?”
अमन-“बोल क्या शर्त है तेरी ?”
सोफिया-“आपको मुझे इसी तरह चोदना होगा, जब मैं कहूँ तब आना होगा मेरी लेने… और खालिद को ज्यादा से ज्यादा आउटडोर भेजना होगा… बोलो अमन ख़ान मंजूर है? तो मुझे भी शादी मंजूर है अह्ह…”
अमन-“सोफिया, तू आज से मेरी बेटी नहीं , बीवी हुई। मैंने तुझे क़ुबूल किया…”
सोफिया-“अह्ह… अमन, मैंने भी आपको क़ुबूल किया…”
दोनों बाप-बेटी अपने नये रिश्ते को और मजबूत करते हुये रात भर जागते रहते हैं।
अमन विला में शायद कोई रात नहीं सोता।
सुबह का सूरज अमन विला पे खुशियाँ लेकर आया था। सुबह से ही घर में तैयारियाँ शुरू थीं। सभी अपने-अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे। अनुम और शीबा किचेन संभाले हुई थी। और नग़मा लुबना के साथ सोफिया को और खुद भी तैयार हो रही थी। दोपहर में लंच पे खालिद और उसका परिवार सोफिया को देखने जो आने वाले थे।
इन सबसे दूर रज़िया अपने रूम में बैठी अपने गुजरे हुये वक्त को याद कर रही थी। अपने और अमन की मोहब्बत को जिस तरह उन दोनों ने अंजाम पहुँचाया था, वो नाकाबिल बात थी। मगर आज उनकी मोहब्बत, उनके जज़्बे की जीती जागती निशानियाँ यहीं अमन विला में मौजूद थी। मगर कहीं ना कहीं रज़िया अमन से नाराज भी थी। उमर के इस पड़ाओ में जहाँ उसे सबसे ज्यादा अमन की ज़रूरत थी। उस वक्त में अमन नई-नई रंगरेलियाँ मनाने में लगा हुआ था।
आजकल अमन सोफिया के रूम का जिस तरह चक्कर लगा रहा था, ये बात रज़िया से छुपी हुई नहीं थी। आँखों से काजल चुरा लेने वाली रज़िया, दिल का हाल आँखों से पढ़ लेनी वाली रज़िया को पता था कि अमन अब उसमें वो दिलचस्पी नहीं ले रहा है जिसकी वो हकदार थी। मगर वो चुप थी, क्योंकी वो जानती थी कि अमन ने उसे जो खुशी उस वक्त दिया है, अगर वो ना होता तो शायद आज रज़िया भी नहीं होती।
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अमन सुबह जल्दी फॅक्टरी चला गया था और जीशान फ्रेश हो रहा था। जीशान अपने रूम में आकर कपड़े पहनने लगता है कि तभी उसके दरवाजे दस्तक होती है। वो दरवाजा खोलता है और सामने खड़ी लुबना को देखकर थोड़ा हैरान सा हो जाता है।
लुबना के चेहरे पे हमेशा की तरह मुश्कुराहट फैल हुई थी-अंदर आना है मुझे, हटो सामने से…”
जीशान जो लुबना को देखकर हैरान हो गया था, वो दरवाजे के सामने से हट जाता है-क्या है? क्यों आई हो?
लुबना-“आपको पता है ना आज कौन आने वाले हैं?”
जीशान-“हाँ पता है तो?
लुबना-“तो ये जनाब आपके कपड़े प्रेस करने थे मुझे, मेहमानों के सामने ऐसे जाएँगे आप?”
जीशान तौलिया में खड़ा हुआ था। उसकी छाती के घुंघराले बाल बहुत हसीन लग रहे थे-“तुम क्यों प्रेस कर रही हो? अम्मी कर देगी। जाओ तुम अपना काम करो…”
लुबना-“वही करने आई हूँ । जब से वापस आए हैं, देख रही हूँ कि ना मुझे देख रहे हैं, ना ठीक से बात कर रहे है। ऐसे नहीं चलेगा समझे आप?”
जीशान लुबना का हाथ पकड़कर अपनी तरफ घुमा लेता है-“ तू क्या मेरी बीबी है जो मुझसे इस टोन में बात कर रही है?”
लुबना-“हाई सदके जाऊं सुबह-सुबह इतनी खुशगवार बातें? मुझे संभालिए, कहीं मैं मर ना जाऊूँ?”
जीशान-“ज्यादा नौटकी नहीं चलेगी लुबना तेरी अब यहाँ पे। बहुत बर्दाश्त कर चुका हूँ मैं तुझे समर कैम्प में…”
लुबना जीशान के इतने करीब आ जाती है कि जीशान की आँखों की पुतलियों में उसे अपना अक्स दिखाई देने लगता है-“बर्दाश्त और अपने मुझे किया? अच्छा ठीक है। तो वहाँ आप क्या गुलछरे उड़ाकर आए हैं जरा ये अम्मी और अब्बू को बताना पड़ेगा…”
जीशान लुबना के बाल पकड़कर खींचता है-क्या कहा तूने ? अम्मी को बोलेगी? बोलकर देखा जरा और क्या किया है मैंने, जो तू मुझे धमका रही है…”
लुबना-“औउचह… जीशान , छोड़िए ना दर्द हो रहा है। अच्छा सॉरी सॉरी … नहीं बोलूँगी मगर छोड़िए तो पहले।
जीशान बाल छोड़ देता है। लुबना जीशान को बेड पे धक्का देकर उसके ऊपर चढ़ जाती है। दोनों टाँगें उसके इर्द-गिर्द डालकर वो उसकी गर्दन दबाने लगती है।
जीशान-“ओहुउऊउउ ओहुउउउ…” जीशान चाहता तो एक झटके में लुबना को अपने ऊपर से उठाकर नीचे फेंक देता। मगर शायद वो भी देखना चाहता था कि लुबना क्या करती है?
लुबना अपने दोनों हाथों से जीशान की गर्दन जोर से दबाने लगती है-“मुझे आपने कोई भीगी बिल्ली समझ के रखा हैं क्या जीशान? जान देने वाली लड़की नहीं हूँ मैं, ना ह आँसू बहा-बहा के तकिया गीला करने वाली लड़कियों में से हूँ । जान ले लूँगी आपकी, अगर दुबारा मुझसे ऐसे नागवार अंदाज में बात किया तो। अच्छे से बात कर रही हूँ आप भी अच्छे से करिए…”
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