Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:41 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सोफिया अपने अब्बू को देखते ही उनसे चिपक जाती है। 

अमन-“कैसे है मेरी शहज़ादी ?” 

सोफिया-“खुद देख लीजिये कैसे हूँ ? आपने तो मुझे घर से निकालने का पूरा इंतज़ाम कर ही दिया ना…” 

अमन-“घर से निकालने का नहीं गुड्डो, घर बसाने का… वो भी मेरे साथ…” 

सोफिया-“आप मुझे भूल तो नहीं जाएँगे ना अमन…” 

अमन-“बिल्कुल नहीं , वैसे आज तू बहुत बातें कर रही है …” 

सोफिया-“मुँह बंद कर दो मेरा…” 

अमन अपनी पैंट नीचे गिरा देता है और देखते ही देखते सोफिया भी कपड़ों से आजाद हो जाती है। अमन उसे बेड पे लेटाकर अपना लण्ड जैसे ही उसके मुँह में डालता है, हवस के मारे सोफिया उसे पूरा का पूरा मुँह में गटक जाती है। अमन का लण्ड बहुत कम इतने अंदर तक गया था। रज़िया कभी कभार उसे इतने अंदर ले पाती थी। मगर कुछ ही दिनों में ये लड़की अपनी अम्मी और वाला से हर मामले में आगे निकलती जा रही थी और इसी वजह से वो अमन के दिल पे बहुत तेजी से चढ़ती भी जा रही थी। 

थोड़े देर में ही अमन का लण्ड खड़ा हो जाता है। वो सोफिया को लेटाकर उसकी गुलाबी चूत की पंखुड़ियाँ चूमने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोफिया-“अह्ह… अमन अह्ह… मेरे शौहर आपने मुझे क़ुबूल कर लिया… मैंने आपको क़ुबूल कर लिया। मुझे आपसे एक तोहफा चाहिए अह्ह…” 

अमन सोफिया के ऊपर चढ़ जाता है और अपने लण्ड को उसकी चूत पे घिसने लगता है-“क्या चाहिए तुझे सोफिया बोल?” 

सोफिया-“मुझे हमारे प्यार की निशानी दे दो अमन। मुझे अपनी बेटी से अपने बच्चे की अम्मी बना दो। अपने शौहर के बजाए मैं आपसे अपना पहला बच्चा चाहती हूँ । मेरी कोख भर दो अमन। मुझे प्रेगनेंट कर दो…” 


अमन अपने लण्ड को किसी तलवार की तरह एक ही बार में सोफिया की चूत की गहराईयों में उतार देता है-“अह्ह… तुझे मैं इतना चोदुन्गा कि तू मुझसे प्रेग्नेंट हो जायेगी। बस एक बार शादी की तारीख फ़िक्स होने दे सोफिया। तुझे मैं ही ये तोहफा दे दूँगा अह्ह…” 

अमन अपने वादे का पक्का था ये बात घर में हर कोई जानता था। 
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सर दबाते-दबाते रज़िया को नींद आ जाती है। मगर जीशान नहीं सो पाता। वो धीरे से अपना एक हाथ अपने दादी की कमर पे रख देता है। जीरो लाइट की रोशनी में रज़िया का चेहरा गुलाब की तरह चमक रहा था अनुम दूसरी तरफ करवट लेकर सोई हुई थी। और रज़िया का चेहरा जीशान की तरफ था। रज़िया ने एक नाइटी पहने हुई थी अंदर ब्रा थी। 

जीशान अपने होंठ रज़िया की चुची पे रख देता है और ब्रा के ऊपर से ही उसे चूमने चूसने और काटने लगता है। रज़िया कुछ ही देर में अपने चुची पे किसी के होंठ महसूस करके उठ जाती है और जीशान को ऐसा करता देखकर पहले तो डर जाती है। रज़िया जीशान का मुँह अपनी चुची पे से हटा देती है और उसका मुँह दबाकर दाँत पीसती हुई धीमी आवाज़ में उसे कहती है-आइन्दा ऐसी हरकत मत करना। 

जीशान रज़िया की चुचियों को अपने हाथ के मजबूत पींजे में भर लेता है-“नहीं तो क्या करेंगी आप दादी ?” 

रज़िया जीशान की हिम्मत देखकर हैरान थी। कुछ पलों के लिए वो भूल गई थी कि जीशान किसका खून है। वो अपनी करवट दूसरे तरफ कर लेती है। उस वक्त जीशान से बात करना बेकार था। 

जीशान थोड़ी देर इंतजार करता है और फिर पूरी ताकत से बिना आवाज़ किए रज़िया को वापस अपनी तरफ घुमा लेता है। 

रज़िया-“क्या है, क्या चाहिए तुझे?” 

जीशान-“दूध पीना है, भूक लगी है…” 

रज़िया एक चपत जीशान के गाल पे मार देती है-और चाहिए? 

जीशान एक बार और जोर से रज़िया की चुची मरोड़ देता है-हाँ और चाहिए। 

रज़िया समझ जाती है की इसे समझाया नहीं जा सकता। वो अपनी नाइटी के ऊपर के दोनों बटन खोल देती है, और दोनों चुचियों को बाहर निकालकर एक करवट लेट जाती है-“ले पी मनहूस कहीं का… कभी नहीं सुधरेगा…” 

जीशान अपना मुँह रज़िया के एक निप्पल पे लगाकर दूध के नाम पर चुची को मसलने लगता है। रज़िया अपने होश में रहने की पूरी कोशिश करती है। मगर जिस अंदाज में जीशान उसकी निपल्स को काट-काट के चूसरहा था, उसका संभालना बहुत मुश्किल था। रज़िया को जब महसूस होता है कि अब वो बर्दाश्त नहीं कर पायेगी वो जीशान के मुँह में से निप्पल को खींच लेती है। और जल्दी से दूसरी तरफ करवट मार लेती है। 

इससे पहले कि जीशान कुछ कर पाता, वो जीशान को धमका देती है-अनुम के नाम से। 

अनुम का नाम सुनते ही जीशान भीगी बिल्ली के तरह चुपचाप सो जाता है। 
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सुबह 7:00 बजे-अनुम जब नींद से जागती है तो रज़िया के पास में जीशान को देखकर हैरान हो जाती है। थकान की वजह से अनुम आज लेट उठी थी। जीशान गहरी नींद में सोया हुआ था उसका एक पैर रज़िया के पैर पे था और घुटना रज़िया की जाँघ में घुसा हुआ था। 

रज़िया की नाइटी के बटन खुले हुये थे। ये सब अनुम को अजीब लगता है वो रज़िया को धीरे से जगा देती है। रज़िया आँखें खोलकर जब जीशान को अपने पास इस तरह लेटा हुआ देखती है तो फौरन खुद के कपड़े ठीक करती है। 

अनुम-“अम्मी जीशान यहाँ कब आया था?” 

रज़िया मुश्कुराते हुये-“ये पगला रात में आया था। तू सो गई थी। मुझसे बोला दादी मुझे नींद नहीं आ रही है और सर भी दर्द कर रहा है। कुछ देर इसका सर दबाने के बाद पता नहीं मुझे कब नींद लग गई। 


अनुम-“ओह्ह… अच्छा मैं फ्रेश हो जाती हूँ …” और अनुम अपने रूम में फ्रेश होने चली जाती है। 

रज़िया जब जीशान के चेहरे की तरफ देखती है तो उसे उसके भोले से चेहरे में अमन की झलक नजर आती है। उसके जजबात उसे कमजोर कर रहे थे। उसकी मोहब्बत जिसका वो दावा करती थी कि सिर्फ़ अमन के लिए है कम होती जा रही थी। 

एक दादी की मोहब्बत अपने पोते के लिए सिर्फ़ पोते तक ही रहते तो ठीक था। मगर ये अमन के जर्खीज जमीन में जिसमें अमन ने तकरीबन हर रोज हल चलाया था और बीज बोया था, आज उस जमीन में हलचल सी होने लगी थी। वो दिल जो सिर्फ़ अमन के लिए धड़कता था। आज क्यों जीशान को देखने के बाद उस नाजुक दिल में फिर से 20 साल पहले वाले जज़्बात अंगड़ाइयाँ लेने लगे थे। उसकी मनमौजी हरकतों पे नाराज होने के बजाए उस नामुराद दिल को उन हरकतों पे प्यार क्यों आने लगा था? यही सारे सवालात रज़िया को परेशान करने लगे थे। 
और कहीं ना कहीं इन सवालों के जवाब रज़िया बखूबी जानती भी थी। मगर वो अपनी मोहब्बत और अमन की बेरुख़ी की इंतिहा देखना चाहती थी। रज़िया जीशान की पेशानी को अपने लबों से तर करके बाथरूम में चली जाती है। 


जीशान आँखें खोल देता है और उसके लबों पे एक दिलफरेब मुस्कान फैल जाती है। 
नाश्ते के टेबल पर आज पूरा परिवार साथ बैठकर नाश्ता कर रहा था। कई दिनों से अंधेरे को अपना आशियाना बनाने वाली सोफिया ने भी सूरज की पहली किरण की हँसते हुये खुशामदीद की थी। अपने अब्बू के बगल की चेयर पे बैठी सोफिया का हुश्न आज अपनी चमक से अमन विला में एक अलग ही रोशनी बिखेर रहा था। 

नाश्ता करते-करते कई बार जीशान और सोफिया की नजरें टकरा जाती और हर बार दोनों के दिल कुछ और रफ़्तार से धड़कने लगते। 

अमन-“अरे जीशान बेटा, जरा अपने आंटी फ़िज़ा को फोन लगाना तो…” 

जीशान फ़िज़ा को काल करता है और बेल बजने के बाद फोन अमन को दे देता है। 

अमन-“वालेकुम अस्सलाम…” 

अमन के हेलो कहने के बाद उसकी आवाज़ पहचानकर फ़िज़ा सलाम करती है-“आज हम ग़रीबों की कैसे याद आ गई जनाब को?” 

अमन हँसते हुये-“वो आपको और आपके परिवार को इन्वाइट करने के लिए काल किया था। सोफिया की इंगेजमेंट तय हो गई है तो आप जल्दी से जल्दी यहाँ आ जाए। 

फ़िज़ा-कहाँ? किससे? 

अमन-“यहाँ आएँ तो सही पहले, सार बातें आराम से करेंगे। अच्छा खुदा हाफिज़…” 
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