RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
फ़िज़ा अमन की चाची रेहाना की बेटी थी। जो शादी के बाद बहुत कम अमन विला में आती थी।
अमन कुछ देर बाद अपने ऑफिस चला जाता है। आज वो रज़िया, अनुम या शीबा से मिलकर दुआ सलाम करके नहीं , बल्की सोफिया के लबों को गीला करके उसके रूम से सीधा ऑफिस के लिए निकला था।
जीशान और लुबना भी अपने कालेज के लिए निकल जाते हैं। लुबना जीशान की बाइक पे बैठ जाती है और उसे पीछे से कस के पकड़ लेती है।
जीशान-“अरे मोटी भैंस, अभी बाइक स्टार्ट भी नहीं किया मैंने और तू सींग मारने लगी। दूर हट…”
लुबना-“भाई मैंने रात में ना एक बहुत खौफनाक ख्वाब देखा उसमें ना मैं आपके बाइक से नीचे गिर गई थी। मुझे तबसे बहुत डर लग रहा है। मैं तो ऐसे ही बैठूँगी…”
जीशान-“तो तू ट्रक के नीचे गिरी थी या टैंकर के?
लुबना जीशान के कंधे पे मुक्का जड़ देती है-“ मरे मेरे दुश्मन भाई…”
जीशान मुँह ही मुँह में बड़बड़ाता हुआ बाइक कालेज की तरफ रवाना कर देता है।
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अनुम रज़िया के पास हाल में बैठी हुई थी-“अम्मी, अपने देखा ना आज क्या हुआ?”
रज़िया-क्या हुआ अनुम?
अनुम-“बनिये मत अम्मी, आपको सब पता है कि अमन क्या कर रहे हैं आजकल…”
रज़िया-“जब तू जानती है कि मुझे भी पता है तो पूछ क्यों रही है? हाँ देख रही हूँ सब मैं।
अनुम-“अमन ऐसा कैसे कर सकते हैं अम्मी?
रज़िया-“बेटी , ये मर्द भी उस चिड़िया की तरह होते हैं, जहाँ भी शख्स-ए-गुल दिखे झूला डाल देते हैं…”
अनुम-“अम्मी अगर अमन ने मेरा भरोसा तोड़ा ना तो सुन लीजिये … या तो वो रहेंगे इस दुनियाँ में या मैं…”
रज़िया अनुम को अपने रूम में जाता देखती रह जाती है और दिल ही दिल में सोचने लगती है-“मैं तो हमेशा दुआ करूँगी बेटी कि तेरा अमन, तुझे रुसवा ना होने दे…”
कालेज में रूबी जीशान के साथ एक बेंच पे बैठी अपना हाथ उसके बगल में दबाए बातें कर रही थी।
रूबी-आप घर कब आने वाले हैं?
जीशान-“हाहाहाहा… क्यों, तेरी अम्मी ने बुलाया है क्या?”
रूबी शरमा जाती है-“नहीं , मुझे तुम्हारी याद नहीं आ सकती क्या?”
जीशान-“अब इतने पास बैठी है, बातें कर रही है, गोद में बैठेगी मेरे?”
रूबी-नहीं आपके ऊपर।
लुबना-“क्या ऊपर-नीचे हो रहा है रूबी?”
अपने पीछे खड़ी लुबना की आवाज़ सुनकर रूबी बुरी तरह डर जाती है और झट से जीशान से अलग हो जाती है-“वो लुबना बाजी, मैं तो ऊपर के फ्लोर पे जो लाइब्रेरी है, वहाँ चलकर पढ़ने की बात कर रही थी…”
लुबना-“जितना ऊपर जाएगी ना रूबी, गिरने पे उतनी ही गहरी चोट लगेगी। जरा संभाल के। चल अब निकल ले, मुझे भाई से बात करनी है…”
रूबी जीशान को खुदा हाफिज़ करके वहाँ से चली जाती है।
जीशान-“बेशर्म तो तू थी ही , अब बदतमीज भी बन गई…”
लुबना अपने बड़े भाई जीशान की गर्दन पे अपने अंगूठे का नाखून जो उसने काफी हद तक बढ़ा लिया था, रख देती है-“गले में उतार दूँगी ये नाखून , भाई बोल देती हूँ … ज्यादा चिपको मत इस छिपकली से वरना आपके नाम का वारंट अब्बू के पास पहुँच जाएगा…”
जीशान लुबना के बाल खींचकर उसका सर अपनी गोद में गिरा देता है-“एनफ्फफ इज एनफ्फफ… लुबना, आइन्दा मेरे और मेरे पर्सनल मामलों के बीच में अपनी ये नाक अड़ाई ना तो बहुत बुरा होगा, बोल देता हूँ …”
लुबना-“अपनी ये धमकियाँ अपने पास रखना मिस्टर जीशान ख़ान … और एक औरत पे जुल्म करने से तुम्हारी मर्दानगी साबित नहीं हो जाएगी। मर्द वो होता है जो औरत की हिफ़ाजत में अपने जान दे दे। छोड़ो मेरे बाल…”
जीशान वहाँ से उठकर अपनी क्लास में चला जाता है।
इस तरह हर बार लुबना का बीच में आकर टाँग अड़ाना जीशान को बहुत टॉर्चर करने लगा था। वो उकता गया था लुबना की इन हरकतों से। मगर वो उसे मार भी नहीं सकता था। उसके दिल के एक कोने में वो भी कायम पज़ीर थी। दोपहर के खाने तक जीशान और लुबना कालेज से घर आ चुके थे। वो बस खाना खाने के लिए बैठ ही रहे थे कि फ़िज़ा घर में दाखिल होती है।
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