Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:43 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान सोफिया का चेहरा अपनी तरफ करता है और उसकी बंद आँखों का फायेदा उठाकर उसके होंठों पे अपने होंठ रख देता है। थोड़ी देर चूमने के बाद वो उसके होंठों को आजाद कर देता है। 

जब सोफिया आँखें खोलकर देखती है तो जीशान वहाँ से जा चुका होता है। सोफिया के दिल में जीशान के लिए कुछ भी नहीं था। वो तो अमन से मोहब्बत का दावा करती थी। मगर क्या वो दावे सच थे? ये तो सिर्फ़ वक्त और हालात ही अच्छी तरह बता सकते थे। 

जीशान अपने रूम की तरफ जाने लगता है। तभी उसे लुबना और अनुम रूम में जाते दिखाई देते हैं। वो भी अनुम के रूम में घुस जाता है। 

अनुम-जीशान कुछ काम था? 

जीशान-क्यों, बिना काम के यहाँ आना मना है? 

लुबना-“जी हाँ… देख नहीं रहे दो औरतों बातें कर रही हैं। जाओ ना… अपने लफन्तु दोस्तों के साथ घूमने क्यों नहीं जाते?” 

जीशान-“तेरी जीभ बड़ी कैंची की तरह चलने लगी है, रुक जरा उसे काट के फेंक देता हूँ …” 

अनुम दोनों को डाँटती है-“जीशान, ये क्या शब्द इश्तेमाल करने लगे हो तुम लुबना के साथ? बहन है वो तुम्हारी , कुछ तो शर्म करो। घर में मेहमान हैं…” 

जीशान चुपचाप अनुम के पास बैठ जाता है-“आप इसे क्यों नहीं कहते?” 

अनुम-“उससे भी कहूँ गी और तुमसे भी कह रही हूँ कि दोनों प्यार मोहब्बत से रहो तो घर में सकून भी दिखाई देगा। जब देखो बिल्लियों की तरह लड़ते रहते हो…” 

लुबना-सारी भाई। 

जीशान लुबना को घुरने लगता है। 

अनुम-“अब वो सारी बोल रही है ना…” 

जीशान-“ठीक है, मगर अम्मी आपको ये जितनी भोली दिखाई देते है ना उतनी है नहीं …” 

लुबना-“अम्मी… तुमने अम्मी कहा अभी?” 

अनुम के चेहरे पे मुश्कान आ जाती है। जीशान अनुम को पहले अम्मी नहीं फुफो कहता था। 

जीशान-“हाँ अम्मी कहा मैंने। अब फुफो अम्मी जैसा ख्याल रखती हैं तो अम्मी ही कहूँ गा ना?” 


लुबना-“फिर तो मैं भी फुफो को अम्मी कहूँ गी आज से। क्यों फुफु आपको कोई ऐतराज तो नहीं है ना?” 

अनुम की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो उन्हें छुपाने के लिए दोनों को अपने सीने से लगा लेती है। जहाँ अनुम बहुत खुश थी अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाकर, वहीं जीशान भी अपनी अम्मी के इतने करीब महसूस करके पिघलने लगता है। 

जब दोनों अनुम से अलग होते हैं, उसी वक्त नग़मा लुबना को आवाज़ देती है और लुबना बाहर चली जाती है। 

अनुम-ऐसे क्या देख रहा है? 

जीशान-अम्मी आपके आँखों में आँसू ? 

अनुम-ये खुशी के आँसू है जीशान । 

जीशान-“अम्मी…” वो जज़्बात में अनुम को फिर से अपनी छाती से चिपका लेता है। मगर इस बार वो कुछ ज्यादा ही कसके अनुम से गले मिलता है। जिससे अनुम की दोनों चुचियाँ जीशान की छाती से चिपक जाती हैं। 

अनुम-“अह्ह…” 

जीशान-बहुत सकून मिलता है मुझे आपके पास अम्मी। 

अनुम-“हुींन्नने्…” 

जीशान अपने हाथों को अनुम की पीठ पे घुमाने लगता है। 
और उसकी नीयत को पहचान के अनुम उसे अपने से अलग कर देती है। अनुम उसे घुरने लगती है। उसकी आँखें साफ-साफ जीशान को वार्निग दे रही थी। 

मगर जीशान भी वो सख्श की औलाद था जिसने डरना तो जैसे सीखा ही नहीं था। 

रात के खाने के बाद सभी कमरे में सोने चले जाते हैं। शीबा के साथ उसके रूम में फ़िज़ा और कामरान सोए हुये थे। वही लुबना और नग़मा भी अपने-अपने कमरे में सोने चले जाते हैं। 

अमन सभी की नजरें बचाकर सोफिया के रूम में चला जाता है। 

जीशान हाल में बैठा टीवी देख रहा था तभी उसे रज़िया आवाज़ देती है-“जीशान, आज सर दर्द नहीं कर रहा है क्या?” 

जीशान खुश होकर रज़िया की तरफ देखता है-“हाँ, हो रहा है ना…” 

रज़िया-चल तेरा सर दबा देती हूँ । 

जीशान रज़िया के पीछे-पीछे उसके रूम में चला जाता है। अनुम बेड पे बैठी सोने की तैयार कर रही थी। जीशान को रज़िया के पीछे आता देखकर वो थोड़ा हैरत में पड़ जाती है। 

रज़िया अनुम की आँखों में उठते सवाल जा जवाब जीशान से पहले दे देती है-“अरे ये जीशान भी ना… पता नहीं रोज सर दुखा रहा है…” 

अनुम-जीशान सर दर्द कर रहा है तुम्हारा? 

जीशान-हाँ अम्मी। 

अनुम-“इधर आ जा मेरे पास…” अनुम थोड़ा साइड में खिसक के जीशान को अपने पास बुला लेती है। जीशान अनुम की गोद में अपना सर रख देता है। अनुम पूछती है-“कुछ सोच रहा है क्या तू जिससे सर दर्द कर रहा है?” 

जीशान-“नहीं तो, ऐसी तो कोई बात नहीं है…” 

रज़िया भी बेड पे लेट जाती है और अनुम जीशान का सर दबाने लगती है। रज़िया की नजरें आज जीशान के जिस्म पे घूम रही थीं। सर से लेकर पाँव तक वो जीशान को गौर से देखने लगती है, और दिल ही दिल में सोचने लगती है-“बिल्कुल अपने अब्बू की तरह दिखता है जीशान । अगर अपने अब्बू की तरह देखता है तो आदतें भी… मतलब वो सब करने का तरीका भी अमन की तरह ही होगा जीशान का…” 
रज़िया बे-ख्याल में जीशान से पूछ बैठती है-“है ना जीशान ?” 

अनुम और जीशान रज़िया की तरफ देखने लगते हैं 

जीशान-क्या दादी ? 

रज़िया-“ना नहीं कुछ नहीं । मैं कह रही थी कि पढ़ाई की टेंशन से सर दर्द कर रहा होगा बच्चे का…” 

जीशान-दादी , मैं बच्चा नहीं हूँ । 

अनुम और रज़िया दोनों एक दूसरे को देखकर हँसने लगती हैं 

रज़िया-“उफफ्फ़ हो… जीशान बेटा, हमारी नजर में तो तुम अभी बच्चे ह हो ना…” 

जीशान रज़िया की चुची को देखने लगता है। 

रज़िया जीशान की आँखों की तपिश अपनी चुची पे महसूस करके सिहर उठती है। 

जीशान-बस अम्मी, मैं सो जाता हूँ । 

अनुम-ठीक है, तू यहाँ बीच में सो जा। 

जीशान-“नहीं , मैं दादी के पास सोऊूँगा। मुझे नींद में हाथ पैर चलाने की आदत है। आप दोनों को लग गई तो?” 

रज़िया-इधर आ जा मेरे लाल। 

और जीशान अपनी दादी के साइड में आकर लेट जाता है। जीशान उठकर रूम की लाइट बंद कर देता है। पूरे रूम में अंधेरा हो जाता है। 

अनुम-लाइट क्यों बंद कर दिया जीशान? 

जीशान-अम्मी, लाइट आँखों पे आने से और सर दर्द करता है। 

रज़िया-अब सो भी बच्चे। 

जीशान मुस्कुराता हुआ रज़िया के पास आकर बिल्कुल उससे चिपक के लेट जाता है। 
रज़िया भी उसे अपने पास इस तरह चिपक के सोने से मना नहीं करती, बल्की उसके घने बालों में उंगलियाँ फेरने लगती है। 
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उधर शीबा के रूम में-कामरान, फ़िज़ा और शीबा तीनों थोड़े-थोड़े फासले से सोये हुये थे। शीबा के हल्के-हल्के खर्राटे बता रहे थे कि वो गहरी नींद में सो चुकी है फ़िज़ा भी नींद की आगोश में जाने लगती है मगर उसे कामरान वापस उस ख्वाबों की दुनियाँ से हकीकत की दुनियाँ में खींच लाता है, अपना हाथ फ़िज़ा की चुची पे रख कर। 

फ़िज़ा आँखें खोलकर कामरान को देखती है और गर्दन हिलाकर उसे और कुछ करने से मना करती है। मगर कामरान के दिमाग़ में तो उस वक्त कुछ और ही चल रहा था। वो अपने हाथ को घुमाता हुआ फ़िज़ा के चूतड़ों पे रख देता है, और फ़िज़ा के मखमली चूतड़ों को मसलने लगता है। 

फ़िज़ा अपने बेटे के हाथों को अपने चूतड़ों पे घूमता देखकर पहले उसके हाथों को झटक देती है। मगर इरादे के पक्के कामरान को उस वक्त कोई नहीं रोक सकता था। 
कामरान फ़िज़ा की गर्दन खींचकर उसके होंठों को अपने करीब करता है। 

फ़िज़ा बिल्कुल धीमी आवाज़ में उससे कहती है-“शीबा जाग जाएगी कामरान बेटा…” 

कामरान-“मुझे अभी चाहिए…” और ये कहते हुये कामरान अपने होंठों को अपनी अम्मी फ़िज़ा के होंठों से मिला देता है। उसके दोनों हाथ बराबर फ़िज़ा के जिस्म के नाजुक हिस्सों को मसल रहे थे जिसकी वजह से आखिरकार फ़िज़ा अपनी आँखें बंद कर देती है और जो होगा देखा जाएगा सोचकर कामरान से थोड़ा और चिपक जाती है। दोनों माँ-बेटे अपनी जीभ को लड़ाने में लग जाते हैं। 
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