RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रूम में चारो तरफ हल्की-हल्की जीरो लाइट की रोशनी बिखरी हुई थी। कामरान फ़िज़ा की नाइटी उसके जिस्म से निकाल देता है, और उसकी पैंट को साइड में सरका के अपनी दो उंगलियाँ फ़िज़ा की चूत में डाल देता है।
फ़िज़ा-“अह्ह… कम्म ऊऊओ…”
कामरान सर उठाकर शीबा की तरफ देखता है। शीबा की आँखें अभी भी बंद थीं। मगर हैरत की बात थी कि खर्राटे बंद हो चुके थे।
फ़िज़ा इतनी ज्यादा गरम हो चुकी थी कि वो कामरान के पैंट की जिप खोलकर उसके लण्ड को बाहर निकाल लेती है। अपने अब्बू अमन ख़ान के लण्ड की तरह खूबसूरत सा कामरान का लण्ड जैसे ही फ़िज़ा के हाथों में आता है, अपनी असल लम्बाई और मोटाई हाँसिल करने लगता है। फ़िज़ा कामरान के ऊपर चढ़ जाती है और उसके होंठों को बे-तहाशा चूमने लगती है।
कामरान फ़िज़ा की ब्रा खोल देता है और पैंट को एक झटके में टाँगों से अलग कर देता है।
कहते हैं जब एक चुड़दकड़ औरत किसी दूसरी औरत के सामने सेक्स करती है तो उसकी उत्तेजना का लेवल बहुत हाई हो जाता है। उस वक्त फ़िज़ा का भी यही हाल था।
उसे कामरान में उस वक्त जीशान नजर आ रहा था। वो कामरान की छाती को चूमती हुई नीचे खिसक जाती है और उसकी पैंट के साथ-साथ अंडरवेअर भी नीचे खींच लेती है। कामरान फ़िज़ा के बाल पकड़कर उसके मुँह को अपने लण्ड पे झुकाता है और फ़िज़ा बिना देर किए कामरान के लण्ड को मुँह में लेकर चूसने लगती है-“गलप्प्प गलप्प्प…”
कामरान थोड़ी देर बाद ह फ़िज़ा को अपने नीचे लेकर उसकी टाँगे खोल देता है और उसकी गर्दन को चूमते हुये धीरे-धीरे अपने लण्ड को फ़िज़ा की चूत में उतारता चला जाता है
फ़िज़ा-“अह्ह… कम्मो अह्ह…”
कामरान-“अम्मी जान, आपकी चूत … मुझे रोज चाहिए ऐसे हौ… अपने वादा किया था ना मुझसे रोज मुझे दोगे उम्ह्ह…”
फ़िज़ा-“हाँने् कामरान बेटा, चोद ना अपनी अम्मी को… ले ना मेरी … तेरी ही तो है मेरे बच्चे अह्ह…”
कामरान शीबा के चेहरे की तरफ देखते हुये फ़िज़ा की चूत में दनादन अपना लण्ड अंदर-बाहर करने लगता है।
शीबा की पलकें बंद थी मगर अंदर की पुतलियाँ एक जगह नहीं टिक रही थीं। दिल की धड़कन तेज होने की वजह से दोनों चुचियाँ जोर-जोर से ऊपर-नीचे होने लगती हैं।
कामरान अपना हाथ शीबा की तरफ बढ़ा देता है और फ़िज़ा को चोदते हुई अपनी दो उंगलियाँ शीबा के होंठों पे फेरने लगता है। शीबा एक पल के लिए आँखें खोलती है और कामरान को अपने चेहरे की तरफ घूर ता देखकर जल्दी से आँखें बंद कर लेती है। कामरान मुश्कुरा देता है और फ़िज़ा के होंठों को चूमते हुई लण्ड को जितना अंदर हो सके उतना अंदर तक घुसाता चला जाता है।
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उधर सोफिया के रूम में-
सोफिया अपने अब्बू अमन के ऊपर चढ़ि हुई थी। अमन अपनी जवान बेटी की कसी हुई चूत को अपने लण्ड से चौड़ी करने की पुरजोर कोशिश कर रहा था।
सोफिया-“अह्ह… अमन ख़ान आपका लण्ड अब बिल्कुल मेरी चूत के साइज का हो गया है…”
अमन मुश्कुराते हुये उसे अपनी छाती से चिपका लेता है और सटासट अपने लण्ड को सोफिया की चूत में घुसाने लगता है-“अभी तेरी चूत का साइज बड़ा हुआ है। सोफिया मेरी बच्ची, एक सुराख का साइज… बड़ा करना बाकी है…”
सोफिया अमन के कानो में अपनी जीभ डालकर उसके कान की लोलकी चूसने लगती है-“उम्ह्हने्… करो ना अमन… हर सुराख को आपके लण्ड के साइज का कर दो… आपकी सोफिया यही तो चाहती है…”
अमन अपनी बेटी को इस हद तक गंदे शब्द सिखा चुका था कि अब सोफिया अमन का लण्ड चूत में लेने के बाद उसे अब्बू नहीं , बल्की अमन कहने लगी थी और चूत गाण्ड जैसे शब्द पे वो शरमाती नहीं थी, बल्की उसकी चूत और गाण्ड ऐसे शब्द कहने से और खुलती चली जाती है। अमन का लण्ड अभी सोफिया की चूत को चौड़ा कर रहा था। अभी तो रात बाकी थी और इस रात में सोफिया अपनी गाण्ड को भी अमन से खुलवाने के फिराक में थी।
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रात गहरी हो चुकी थी। अनुम अपने और अमन के ख्वाबों में खोई हुई थी। मगर रज़िया को नींद नहीं आ रही थी। चूत की बेचैनी दिमाग़ पे हावी होने लगी थी। पास में बेटे का बेटा लेटा हुआ था, मगर दिल के हाथों मजबूर रज़िया कदम बढ़ाती भी तो कैसे?
जीशान के चेहरे से लग रहा था कि वो भी सो चुका है।
रज़िया अपनी नाइटी को ऊपर से खोल देती है और अपनी दोनों चुचियों को बाहर निकालकर जीशान के मुँह को अपने चुची पे लगा देती है। अचानक उसे झटका सा लगता है… जीशान अपना मुँह खोल देता है और रज़िया का एक निप्पल जीशान के मुँह में अंदर तक चला जाता है।
रज़िया उस वक्त मैदान छोड़ भी नहीं सकती थी और ना ही वापस हट सकती थी। वो बेचैन अमन की अमानत अपनी दोनों चुचियाँ उस वक्त जीशान के हवाले कर देती है और आँखें बंद करके जीशान के सर को और जोर से अपनी चुचियों पे दबाने लगती है।
जीशान भी जन्मों का प्यासा बनकर अपनी दादी की नरम -नरम चुचियों को जितना अंदर हो सके उतना अंदर लेकर चूसने लगता है। रज़िया के मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगतेी हैं, और थोड़ी देर बाद वो जीशान के मुँह को अपनी चुचियों से अलग कर देती है।
रज़िया-“बस…”
जीशान-“अपना काम निकल गया तो बस… मुझे और पीना है, वरना अम्मी को उठा दूँगा…”
रज़िया हल्की सी चपत जीशान के मुँह पे मारती है। कल रज़िया ने जीशान को अनुम का नाम लेकर डराया था और आज जीशान उसी नाम का सहारा लेकर रज़िया को मजबूर कर देता है, अपनी चुचियों को दुबारा जीशान के मुँह में डालने के लिए।
उस रात जीशान निचोड़-निचोड़ के रज़िया की चुचियों को चूसता रहता है और दोनों की आँखों से नींद गायब हो जाती है। आखिरकार जब रज़िया के दोनों निप्पल चुसाई से एकदम कड़क हो जाते है तो रज़िया निप्पल की जगह अपने होंठ जीशान के हवाले कर देती है। और जीशान अपनी दादी के होंठों पे पहली बार अपने होंठ लगा देता है। मगर जैसे ही वो रज़िया के होंठों को निप्पल की तरह अपने कब्ज़े में लेने लगता है, अनुम करवट बदल देती है और दोनों दादी पोते अलग हो जाते हैं
रज़िया मुश्कुराते हुये अनुम की तरफ सर करके लेट जाती है और जीशान अपना हाथ रज़िया के चूत ड़ों पे रख देता है।
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सुबह 7:00 बजे-
अमन सोफिया के रूम से निकलकर अपने और अनुम के रूम में चला जाता है। वो जानता था कि अनुम रज़िया के साथ सोई होगी। मगर वो ये नहीं जानता था कि जीशान को बहुत जोर से पेशाब आई हुई थी और वो जब रज़िया के रूम से बाहर निकलता है तो उसे अमन सोफिया के रूम से निकलता हुआ दिखाई देता है।
जैसे ही अमन अनुम के रूम में जाकर दरवाजा बंद करता है जीशान सोफिया के रूम का दरवाजा खटखटाता है। सोफिया को लगता है अमन वापस आया है। वो सिर्फ़ नाइटी पहने हुई थी। मुश्कुराते हुये वो दरवाजा खोल देती है, और सामने जीशान को देखकर हड़बड़ा जाती है।
सोफिया-“जीशान तुम?”
जीशान बेशर्मों की तरह अंदर आ जाता है और अपने पीछे दरवाजा बंद कर देता है-“हाँ… मैं टाय्लेट जाने के लिए उठा था तो देखा अब्बू इस रूम से अपने रूम में जा रहे हैं…”
सोफिया-“तुम्हें धोखा हुआ होगा, अब्बू यहाँ कहाँ?”
जीशान आगे बढ़ता है-“मैंने अपने आँखों से देखा है बाजी…”
सोफिया की पेशानी पे पसीना आने लगता है। वो जानती थी कि जीशान को कुछ-कुछ पता है मगर वो सब कुछ उसे बताना नहीं चाहती थी। अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाकर सोफिया पसीना पोंछने लगती है।
जीशान जो सिर्फ़ जीन्स पैंट में था, सोफिया का हाथ पकड़कर अपनी तरफ घुमा देता है।
सोफिया ‘अह्ह’ करती हुई सीधा जीशान की नंगी छाती से जा टकराती है-“ये क्या बदतमीजी है जेशु?”
जीशान अपने दोनों हाथों में सोफिया का चेहरा थाम लेता है-“मोहब्बत है बाजी आपके लिए…”
सोफिया के होंठ काँपने लगते हैं। वो भी जवान थी और जीशान भी। दोनों की जवान धड़कनें एक दूसरे से जब भी मिलती, उन दोनों के बीच एक खिंचाव सा पैदा होने लगता। वही खिंचाव जो जीशान को अपनी अम्मी अनुम और लुबना के साथ महसूस होता था।
जीशान-“बाजी, क्या सिर्फ़ अब्बू का हक है तुमपे?”
सोफिया-“हाँ सिर्फ़ अब्बू का, और किसी का नहीं …”
जीशान-मेरा भी नहीं ?
सोफिया कोई जवाब नहीं देती।
जीशान-“मैं जानता हूँ कि हमारे खून में जो तपिश है वो दूसरों के खून में नहीं । हम अपनों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं, बाहर वालों की तरफ नहीं । मुझे भी आप बहुत अच्छी लगती हो, अभी से नहीं बचपन से जब हम साथ मिलकर खेला करते थे। और आपको पता है मुझे सबसे ज्यादा क्या पसंद है?”
सोफिया के काँपते हुये होंठ जीशान से पूछ बैठते हैं-क्या?
जीशान-“आपके ये होंठ… मैं इन्हें चूमना चाहता हूँ बाजी…”
सोफिया-“नहीं जीशान, मैं अमन की हो चुकी हूँ …”
जीशान-“जैसे रज़िया हुई थी, जैसे अनुम हुई थी, और जैसे मैं रज़िया और अनुम दोनों का होना चाहता हूँ ?”
सोफिया हैरतजदा सी रह जाती है, जीशान के मुँह से ये सुनकर कि वो अपनी दादी और अम्मी के तालुक से क्या सोचता है? रास्ता तो सोफिया ने भी ऐसा चुनी थी जहाँ उसे मोहब्बतू तो मिल सकती थी, मगर उतनी नहीं , जितनी की वो हकदार थी। सोफिया कहती है-“तुम जाओ यहाँ से जीशान …”
जीशान अपने दोनों हाथ सोफिया की पीठ के पीछे ले जाकर नीचे करते हुये कमर पे टिका देता है और उसकी कमर को अपनी तरफ धक्का देता है, जिससे सोफिया की चूत जो सिर्फ़ एक पतली सी पैंट और पारदश़ी नाइटी के पीछे छुपी हुई थी, जीशान के लण्ड से जा टकराती है।
सोफिया-“जीशान , छोड़ो मुझे प्लीज़्ज़… कोई आ जाएगा…”
जीशान-मुझे चूमने दो इन होंठों को।
सोफिया-“नहीं …” और वो अपने सर को इधर-उधर करने लगती है।
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