RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान-“अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिए जरा सी भी मोहब्बत हो, और अगर तुम मुझे अपने दिल के किसी कोने में महसूस करती हो तो तुम मुझे अपने होंठों को चूमने दोगी…”
सोफिया की दहलती गर्दन रुक जाती है और वो अपनी आँखें बंद कर लेती है।
जीशान उसके गुलाबी लबों का दीदार करता है और पहली बार सोफिया के होंठ अमन के अलावा किसी और से चिपक जाते हैं।
जीशान कोई जल्दीबाजी नहीं करता। वो धीरे-धीरे बड़ी मासूमियत से सोफिया के निच ले होंठों को चूसता रहता है और सोफिया भी बिना रुकावट के अपना मुँह खोलती चली जाती है।
जीशान-“गलप्प्प गलप्प्प…”
सोफिया-“गलप्प्प गलप्प्प उम्ह्ह…”
सोफिया जो जीशान को इनकार कर रही थी उसके जज़्बात ऐसे उमड़े जीशान पे कि वो अपनी जीभ को उसके मुँह में डालने लगती है, और जीशान अपनी बाजी सोफिया के नरम मखमली जिस्म को अपने आगोश में लेकर उसे अब पूरे तरह दबाते हुये चूमने लगता है। दोनों के मुँह से सलाइवा गिरने लगता है। 15 मिनट से वो एक दूसरे से चिपके होंठ चूम रहे थे।
बाहर से आती आवाज़ से दोनों होश में आते है और सोफिया जीशान को धक्का देकर बाथरूम में घुस जाती है। आईने के सामने खड़े रहने में भी उसे अब शर्म आ रही थी। सोफिया खुद से कहती है-“बस अब मैं जीशान को कभी कुछ नहीं करने दूँगी …”
और जीशान अपने मुँह को पोंछते हुये रूम से बाहर निकल जाता है। वो अपने रूम में आकर बेड पे लेट जाता है। आज सनडे था इसलिए वो देर तक सो सकता था।
……………………..
अनुम फ्रेश होकर जीशान के रूम के सामने से गुजरती है तो उसे जीशान सोया हुआ दिखाई देता है। उसके कदम उसकी तरफ बढ़ जाते हैं। वो बेचारी बहुत कम जीशान को देख पाती थी इस डर से कि कहीं उसे नजर ना लग जाए। जीशान के पास बैठकर वो उसे गौर से देखने लगती है।
तभी वहाँ लुबना आती है-“क्या हुआ अम्मी? भाई के तबीयत तो ठीक है ना? आप यहाँ क्यों बैठी हैं?”
अनुम उससे चुप रहने के लिए कहती है, और इशारे से उसे अपने पास बुला लेती है।
लुबना मुश्कुराती हुई अनुम के पास आकर बैठ जाती है।
अनुम धीमी आवाज़ में लुबना से कहती है-“देख कितने सकून की नींद सोया है जीशान …”
लुबना-“हाँ अम्मी, भाई सिर्फ़ नींद में ही अच्छे लगते हैं, वरना जागते हुये तो मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते…”
अनुम उससे हल्के से मारती है-“चुप कर, लाखों में एक है जीशान …”
लुबना दिल में सोचने लगती है-“मैं तो बचपन से जानती हूँ मगर ये कम्बख़्त मुझे रेस्पॉन्स ही नहीं देता…”
अनुम-क्या हुआ?
लुबना-“कुछ नहीं , अपने नाश्ता किया?”
अनुम-“हाँ मैं कर चुकी। तू क्या लेगी बता दे, मैं बना देती हूँ …”
लुबना-“नहीं , आज मैं नाश्ता बनाऊूँगी अपने और भाई के लिए…”
जीशान धड़ाम से उठकर बेड पे बैठ जाता है-“मुझे फाँसी दे दो, मगर इसके हाथ का खाना मैं नहीं खाउन्गा…”
दोनों बुरी तरह डर जाते हैं। वो जो गहरी नींद में सोया हुआ था अचानक से ऐसे उठा जैसे किसी ने उसे ये कहा हो कि उठो जलजला आ गया है।
लुबना-“कितना बुरी तरह डरा दिया मुझे आपने भाई। दिल अब तक धड़क रहा है मेरा। और नहीं खाना तो मत खाओ, मरो मेरी बला से। हुन्ने्…” और वो पैर पटकते हुये वहाँ से चली जाती है।
अनुम-गलत बात जीशान ।
जीशान उठकर बैठ जाता है और अनुम की आँखों में देखने लगता है।
अनुम-क्या देख रहा है?
जीशान-“देख रहा हूँ कि इन आँखों में किसका अक्स है?”
अनुम-तेरे अब्बू का।
जीशान-और अब्बू की आँखों में?
अनुम चुप हो जाती है।
जीशान-सोफिया बाजी का।
अनुम जीशान के चेहरे को देखती रह जाती है-“बच्चा है बच्चों जैसे बातें ही अच्छी लगते हैं तेरे मुँह से…”
जीशान-“अम्मी इधर देखो, अब्बू आपको भूल ते चले जा रहे हैं…”
अनुम-“मैंने कहा ना जीशान बस कर…”
जीशान-“मैं सब कुछ देख सकता हूँ मगर आपको यूँ कुढ़ते मरते नहीं देख सकता। आप अब्बू से बात क्यों नहीं करते?”
अनुम सटाक्क से एक चपत जीशान के गाल पे मार देती है, और अगले ही पल उसे अपनी छाती से लगा लेती है।
जीशान-“ये गुस्सा मेरे लिए नहीं बल्की अब्बू के लिए है, मैं जानता हूँ । मगर आप जैसे अब्बू से प्यार करती हैं, वैसे मुझसे नहीं करती…”
अनुम आँसू वाली आँखों से जीशान को देखने लगती है-“वो प्यार मैं किसी के साथ नहीं कर सकती…”
जीशान-“और अगर आपके दिल में मैंने वो मोहब्बत जगा दिया तो?”
अनुम-“इम्पॉसिबल जीशान …”
जीशान-“अम्मी, ये ‘इम्पॉसिबल’ शब्द ख़ुद भी कहता है कि “आइ एम पॉसिबल…”
लुबना हाथ में प्लेट लिए रूम में दाखिल होती है और उसे देखकर अनुम बोलते-बोलते रुक जाती है।
जीशान-मेरे लिए नहीं लाई?
लुबना-“लो कल्लो बात… आप तो मेरे हाथ का नाश्ता खाने से अच्छा मरना पसंद करेंगे ना?”
जीशान-“अगर तू जहर भी खिला दे अपने हाथों से तो वो भी खा लूँ मैं…” ये जीशान अनुम की तरफ देखकर कहता है।
और अनुम वहाँ से चली जाती है।
लुबना का सारा गुस्सा ये सुनकर उड़न- छु हो जाता है और वो निवाला तोड़कर जीशान की तरफ बढ़ती है।
जीशान भी बिना कोई ह ला-हवाला किए मुँह खोल देता है।
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शीबा और फ़िज़ा रूम में बैठी हुई थीं। कामरान हाल में अमन के साथ बातें कर रहा था।
शीबा मुश्कुराते हुये-“रात भर मुझे नींद नहीं आई फ़िज़ा…”
फ़िज़ा हँस देती है-भला वो क्यूँ ?
शीबा को चिमटी काटते हुये-“माँ बेटे की कुश्ती देखती रही ।
फ़िज़ा इधर-उधर देखकर शीबा के निप्पल को जो उसने कमीज के नीचे ढक रखे थे मसल देती है-“ तू खेलेगी मेरे बेटे के साथ कुश्ती?”
शीबा का सर शर्म के मारे झुक जाता है और फ़िज़ा उसके कान में कुछ कहती है, जिससे शीबा के होंठ काँप जाते हैं। और दोनों एक दूसरे को गले लगा लेती हैं।
नाश्ता करने के बाद जीशान सीधा रज़िया के पास जाता है, जो अभी-अभी नहाकर आई थी और आईने के सामने बैठी बाल सँवार रही थी। जीशान के अक्स को आईने में देखकर उसके गालों पे लाली फैल जाती है, रात का मंज़र आँखों में घूम जाता है।
रज़िया-क्या है?
जीशान-कुछ नहीं ।
रज़िया-“इधर आ, पहले दरवाजा बंद कर दे…”
जीशान दरवाजा बंद करके रज़िया के करीब आ जाता है।
रज़िया पानी में गीले बालों को जीशान के मुँह पे मारते हुये वो जीशान से कहती है-“तेरी शैतानियाँ बढ़ती ही जा रही हैं शादी की बात करनी हो तो बता दे। कहीं बात करते हैं तेरे बारे में…”
जीशान-“दादी मुझे सेक्स के बारे में कुछ नहीं मालूम । पहले किसी मेच्योर औरत से ट्यूशन लेनी पड़ेगी, उसके बाद शादी करूँगा…”
रज़िया के होश उड़ जाते हैं। वो सोच भी नहीं सकती थी कि जीशान अपने बाप अमन से भी बड़ा बेशरम इंसान है। वो जीशान को घूर ती रह जाती है।
जीशान-“दादी कुछ खाने को मिले गा? बड़ी भूक लगी है…”
रज़िया-“निकल रूम के बाहर… सब जानती हूँ क्या चाहिए तुझे?”
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