RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान रज़िया के बेड पे लेट जाता है-मैं कहीं नहीं जाने वाला।
रज़िया उसका हाथ पकड़कर उसे उठाने लगती है-“कितना बड़ा हो गया है जीशान तू ?”
जीशान रज़िया का हाथ पकड़कर वापस उसे अपनी तरफ खींच लेता है।
और रज़िया जीशान के ऊपर गिर जाती है-“मार खायेगा जीशान तू किसी दिन मेरे हाथों…”
जीशान रज़िया के हाथ अपने हाथ में थाम लेता है-“इन हाथों से मारना चाहती हो ना दादी आप मुझे…”
रज़िया-हाँ इन्ही हाथों से।
जीशान रज़िया के हाथों को चूम लेता है और दो उंगलियाँ अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है-“गलप्प्प बहुत मीठी हो आप दादी …”
रज़िया की आँखें नशीली हो जाती हैं, बदन में अकड़न सी होने लगती है। जवान मर्द के पास उसे भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
जीशान-दादी मुझे आपको चूमना है।
रज़िया-“तेरे अब्बू ने भी पहली बार मुझसे यही कहा था और मैं उसके जाल में फँस गई। ये गलती मैं दुबारा नहीं करूँगी…”
जीशान रज़िया को अपने नीचे झुका लेता है-“मुझे नहीं पता… मैं आपके बारे में ऐसा कैसे सोच सकता हूँ , मगर सच यही है दादी कि मैं आपको अब बहुत पसंद करने लगा हूँ । मैं हमेशा आपके साथ रहना चाहता हूँ …”
रज़िया-“मैं तेरे अब्बू की अमानत हूँ उसमें ख्यानत नहीं कर सकती…”
जीशान-“बाप का सब कुछ बेटे का ही तो होता है, अब्बू की हर चीज पे मेरा भी उतना ही हक है…”
रज़िया-क्या चाहता है तू ?
जीशान-आपको चूमना बस और कुछ नहीं ।
रज़िया-“एक बूढ़ी औरत में तुझे क्या अच्छा लगने लगा है, जो तू मुझे चूमने के लिए बेसबरा हो रहा है?”
जीशान-“मुझे नहीं पता… मैं भी देखना चाहता हूँ इन होंठों की ताकत जिसने मेरे अब्बू को आपके इतना करीब कर दिया कि वो अपनी अम्मी के दिवाने हो गये थे…”
रज़िया-मैं कुछ नहीं दूँगी तुझे।
जीशान-मैं लेकर रहूँ गा।
रज़िया-मैं चिल्लाउन्गी।
जीशान-“चिल्ला…” और जीशान अपने होंठ रज़िया के होंठों पे रख देता है। दादी पोते आज अपने सीमा क्रॉस कर गए थे।
रज़िया का जिस्म तो उसी दिन जीशान का हो गया था जिस दिन जीशान ने अपनी दादी के निपल्स को अपने मुँह में लेकर चूसा था। जरा सी झिझक दिमाग़ में बाकी थी जो आज जीशान ने अपने होंठों से दूर कर दिया था। रज़िया हमेशा से ही एक सेक्सी औरत रही है। सही वक्त पे अगर अमन उसे हाँसिल नहीं करता तो वो शायद बाहर वाले से अपने जिस्म की आग बुझा लेती। उसके पहले शौहर और अमन के अब्बू ने कभी रज़िया की सेक्स अपील को समझा ही नहीं ।
अमन भी कुछ साल रज़िया के आगोश में सकून पाता रहा। मगर उसे भी अनुम और शीबा को संभालना पड़ता था। रज़िया अपने जिस्म की नुमाइश नहीं करती थी मगर वो थी नुमाइश के काबिल औरत। उमर के इस पड़ाओ में भी जिस्म पे कुछ झुर्रियों के अलावा उसके अरमान जवान थे। उस में अभी भी वही जज़्बा था जो कुँवारेपन में अमन के अब्बू के सामने और अमन के नीचे हुआ करता था। अपने मुँह को पूरी तरह खोलकर वो जीशान को जीभ और अंदर डालने की जगह देती जाती है और जीशान अपनी खूबसूरत दादी के जिस्म को अपने आगोश में लेकर उसे चूमता चला जाता है।
रज़िया-“बस अब और नहीं … तुझे जो चाहिए था मैंने दे दिया, आइन्दा और कोई भी डिमांड तेरी नहीं सुनने वाली मैं जीशान …”
जीशान-“बहुत-बहुत शुक्रिया रज़िया…”
रज़िया-क्या कहा तूने ?
जीशान उसकी आँखों में देखते हुये बड़ी जानदार से कहता है-“रज़िया…”
रज़िया उसे फिर से अपने ऊपर खींच लेती है-“चूम मुझे एक बार और खुलकर…”
जीशान फिर से अपने होंठ रज़िया के होंठों से मिला देता है। मगर इस बार रज़िया जीशान पे हावी हो जाती है और उसके होंठों को, जीभ को चाटने लगती है, अपना सलाइवा जीशान के मुँह में उड़ेलकर उसे भी अपना रस पिलाने लगती है। दोनों एक दूसरे को कस के पकड़कर अपने होंठों को सकून पहुँचाने लगते हैं।
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उधर अमन किसी से फोन पे बात कर रहा था। फोन रखने के बाद वो अनुम के पास जाता है।
अनुम-क्या हुआ जी, परेशान लग रहे हो?
अमन-“खालिद के अब्बू का फोन आया था। खालिद की अम्मी की तबीयत खराब है, उन्हें हॉस्पीटल में एडमिट किया है…”
अनुम-“क्या? हमें चलना चाहिए। मैं अम्मी को बता देती हूँ …” और वो रज़िया के रूम की तरफ बढ़ते है।
जीशान रज़िया के होंठों को आजाद करके खड़ा होता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे। रज़िया जीशान से कुछ कहने ह वाली थी कि अनुम दरवाजा खटखटाती है।
जीशान दरवाजा खोलता है तो अनुम रज़िया को सारा माजरा बताती है। रज़िया अमन शीबा और अनुम को हॉस्पीटल जाने के लिए कहती है। खालिद की अम्मी को हार्ट अटक आया था। अमन शीबा और अनुम के साथ हॉस्पीटल के लिए रवाना हो जाता है।
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जीशान अपने रूम में जाकर कंप्यूटर पे कुछ नोट्स बनाने लगता है। मगर उसका दिल उसमें नहीं लगता। उसे बार-बार रज़िया के होंठ नजर आते हैं।
वो उठकर रज़िया के रूम की तरफ जाने लगता है तभी उसे लुबना, नग़मा और सोफिया बातें करती हुई दिखाई देती हैं। वो बहुत जोर-जोर से हँस-हँस के बातें कर रहे थे।
जीशान को अच्छा नहीं लगता। खालिद इस घर का होने वाला दामाद था उसकी अम्मी के तबीयत खराब थी और ये तीनो लड़कियाँ हँसी मजाक कर रही थी वो उनके तरफ बढ़ जाता है, और कहता है-“चुप हो जाओ नालायकों, ये क्या खी - खी लगा रखी है तुम लोगों ने?”
सोफिया-क्या हुआ जीशान ?
जीशान-“आपको क्या हुआ है क्या आपको पता नहीं खालिद भाई की अम्मी की तबीयत खराब है और अम्मी अब्बू उन्हें देखने गये हैं…”
सोफिया को तो फिकर तब होती, जब उसे इस शादी की परवाह होती। वो तो अमन की हो चुकी थी-“हमें पता है, तुम्हें याद दिलाने के ज़रूरत नहीं …” सोफिया तड़क के कहती है।
जीशान-“जब ससुराल जाओगी ना, तब दाल आटे का भाव पता चलेगा आपको?”
लुबना-“काश लड़के अम्मी-अब्बू का घर छोड़कर बीवी के घर जा सकते? हाँ, क्या कहते हैं उसे-घर जमाई…” और तीनों लड़कियाँ खिलखिलाकर हँसने लगती हैं।
जीशान लुबना के सर पे चपत मारके वहाँ से रज़िया की तरफ चल देता है। वो सोफिया के रूम से बाहर निकलता ही है कि फ़िज़ा उससे टकरा जाती है।
फ़िज़ा-ऊऊचह।
जीशान-सारी आंटी ।
फ़िज़ा मुश्कुरा देती है-“बड़े जल्दी में हो जी। बेटा, अपनी फुफु के पास बैठने की भी फुरसत नहीं तुम्हारे पास…”
जीशान-अरे, ऐसी बात नहीं है फुफु।
फ़िज़ा-“अच्छा तो फिर चलो मेरे साथ…” और फ़िज़ा जीशान का हाथ पकड़कर उसे शीबा के रूम में ले जाती है। वहाँ कामरान बेड पे गहरी नींद में सो रहा था। वो दोनों सोफे पे बैठ जाते हैं फ़िज़ा उससे बिल्कुल सटकर बैठ जाती है। जीशान को थोड़ा अजीब ज़रूर लगता है मगर वो कुछ नहीं कहता।
फ़िज़ा-एक बात कहूँ जीशान ?
जीशान-हाँ, कहें ना फुफु।
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