RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
फ़िज़ा-“तुम ना बिल्कुल अपने अब्बू जैसे हो…”
जीशान-“अरे वाह… ये तो मेरे लिए बड़े फख्र की बात है कि बेटा अपने अब्बू के जैसा दिखाई देता है…”
फ़िज़ा-“हाँ ऊपर से तो तुम बिल्कुल अपने अब्बू जैसे हो, पता नहीं अंदर क्या हाल है?”
जीशान का माथा ठनकता है-क्या मतलब?
फ़िज़ा-नहीं , कुछ नहीं ।
जीशान-कुछ तो है फुफु, बताइए ना?
फ़िज़ा-“अभी नहीं , वक्त आने पे सब कुछ बता दूँगी …”
जीशान-अभी बताइए ना मैं किसी को कुछ नहीं कहूँ गा।
फ़िज़ा-कहीं तुम डर ना जाओ?
जीशान-नहीं डरुन्गा, आप बताओ।
फ़िज़ा-“ठीक है, मैंने सुना है कि तुम और तुम्हारी शीबा अम्मी दोनों… …”
जीशान-“ह्म्म्म्मम… तो आपको अम्मी ने सब बता है दिया…”
फ़िज़ा-“बेटा, तुम्हें तो पता होगा ना कि औरतों के पेट में कोई भी बात नहीं टिकती…”
जीशान फ़िज़ा को ऊपर से नीचे तक देखने लगता है-“एक बात पूछूँ फुफु?”
फ़िज़ा-हाँ पूछो ना।
जीशान फ़िज़ा से कुछ पूछने ही वाला था कि जीशान का सेल फोन बजता है।
जीशान-हेलो… जी हाँ… मैं… हाँ जीशान ख़ान बोल रहा हूँ । आगे वो कुछ नहीं बोल पाता, और उसके हाथों से सेलफोन नीचे गिर जाता है।
रज़िया जो अपने रूम से बाहर निकल रही थी, जीशान को ऐसा देखकर घबरा जाती है और जीशान से पूछने लगती है-“क्या बात है जीशान, क्या हुआ सब ख़ैरियत तो है ना?”
जीशान की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो रज़िया की तरफ देखते हुये कहता है-“अब्बू की कार का एक्सीडेंट हो गया है…”
रज़िया का मुँह खुला का खुला रह जाता है-“क्याआअ?”
तीनों लड़कियाँ-फ़िज़ा, जीशान और रज़िया की आवाज़ सुनकर उनके पास चली आती हैं।
सोफिया-“क्या हुआ दादी , जीशान रो क्यों रहा है?”
रज़िया-“तेरे अब्बू की कार का एक्सीडेंट हो गया है।
सोफिया चीख पड़ती है-“कब? कहाँ? कैसे है वो सब?”
रज़िया जीशान का कंधा हिलाने लगती है-“जेशु बेटा, अमन कैसे हैं? अनुम शीबा कैसे है? कुछ तो बोल बेटा…”
जीशान-“उन्हें सिटी हॉस्पीटल ले जाया गया है। वहीं से काल आया था। हमें चलना चाहिए…”
सभी जीशान के साथ हॉस्पीटल के लिए रवाना हो जाते हैं। रास्ते में सभी औरतों तो का रो-रोकर बुरा हाल था। वहीं जीशान को बस एक फिकर सताए जा रही थी कि कोई ज्यादा घायल ना हो गया हो। जब वो हॉस्पीटल पहुँचते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि अमन, अनुम और शीबा आपरेशन थियेटर में हैं। अब वो सब बस इंतजार कर सकते थे।
तकरीबन एक घंटे बाद आपरेशन ख़तम होता है और डाक्टर बाहर आते हैं।
हॉस्पीटल के डाक्टर अमन और उसके परिवार को अच्छी तरह जानते थे।
रज़िया भागकर डाक्टर के पास जाती है-कैसे हैं मेरे बच्चे डाक्टर साहब?
डाक्टर-देखिये, हिम्मत से काम लीजिये ।
जीशान-डाक्टर बताइए ना मेरे अम्मी अब्बू कैसे हैं?
डाक्टर-“आई आम सारी … हम तुम्हारे अम्मी अब्बू को बचा नहीं सके… तुम्हारी फुफु की टाँग की एक हड्डी फ्रैक्चर हो गई है, मगर अब वो ख़तरे से बाहर हैं…”
पूरे खानदान के लिए ये एक शाकिंग ख़बर थी। अमन ख़ान और शीबा अब इस दुनियाँ में नहीं रहे थे। एक शेर का बहुत खौफनाक अंत हुआ था, जिसकी आवाज़ से पूरा अमन विला काँप उठता था। जिसने अपनी मोहब्बत को पाने के लिए दुनियाँ की भी कोई परवाह नहीं किया। अमन विला का वो शेर अब कभी अपनी आँखें खोलने वाला नहीं था।
रज़िया अंदर तक टूट जाती है। उसे यकीन नहीं हो रहा था। अभी-अभी जो शख्स उससे मिलकर गया था, जिसके चेहरे को देखकर रज़िया की सुबह होते थी, जिसके बाहो में उसकी रातें कटतेी थीं, वो कभी नहीं दिखाई देगा।
जीशान अपने अब्बू और अम्मी शीबा की मौत के गम में इस कदर गमगीन हो जाता है कि उससे कुछ बोला भी नहीं जाता, बेसुध वो हॉस्पीटल की जमीन पर बैठ जाता है। ना वो कुछ बोल पा रहा था और ना उसकी आँखों से कोई आँसू निकल रहे थे। बस एक टकटकी लगाए वो रज़िया के रोते चेहरे को देख रहा था।
कामरान और फ़िज़ा का भी बुरा हाल था।
नग़मा और लुबना बुरी तरह सिसक-सिसक के रो रही थी।
सोफिया के सारे अरमान टूटकर बिखर चुके थे। उसका अमन उसे बीच रास्ते में छोड़कर चला गया था।
अनुम बेड पर लेटी हुई थी, जब उसे अमन और शीबा की खबर मिलती है तो वो फूट -फूट के रो पड़ती है। आँसू लगातार आँखों से बह रहे थे। अपने महबूब को खोने का गम उससे ज्यादा भला कौन समझ सकता था। रज़िया जितना उसे समझाने की कोशिश करती, वो उतना रो पड़ती। साथ में रज़िया भी बिलख पड़ती।
नग़मा जिसने अभी दुनियाँ की खूबसूरती भी नहीं देखी थी, जिसके अरमान अभी तक जवान भी नहीं हुये थे, उसके लिए अपने अम्मी अब्बू को खो देना मौत से कम नहीं था। नग़मा को ऐसे महसूस हो रहा था जैसे किसी ने उसके जिस्म से रूह खींच ली हो।
अमन ख़ान और शीबा के मृत- शरीर को अमन विला लाया जाता है। खालिद और उसके अब्बू भी वहाँ पहुँच जाते हैं। सभी फॅक्टरी के स्टाफ, सभी वर्कर्स अमन के इस आख़िरी सफर में उसका साथ देने पहुँच जाते हैं। खालिद और कामरान जीशान को हिम्मत देते हैं मगर सब बेकार दिखाई देता है। वो सदमे की हालत में था, जहाँ इंसान बिल्कुल बेजान सा हो जाता है।
अनुम, रज़िया और घर की सारी औरतें अमन और शीबा के मुर्दा जिस्म पे लिपट -लिपट के रोये जा रहे थे।
मगर वो जो इस दुनियाँ से उस दुनियाँ में चले जाते हैं कभी वापस नहीं आते।
खालिद, कामरान और कुछ मर्द मिलकर अमन और शीबा के आख़िरी सफर की तैयारी करते हैं। जब अमन और शीबा का जनाजा अमन विला से निकलने लगता है तो रज़िया और अनुम की रूह भी जैसे अमन के साथ चली जाती है।
अमन और शीबा को सुपुर्द-ए- खाक कर दिया जाता है।
फ़िज़ा रज़िया के पास आकर बैठती है-“चाची बस भी कीजिए, आपके रोने से वो वापस तो नहीं आएँगे ना… अपने आपको संभालिए। अगर आप ऐसा करेंगी तो बच्चों को कौन संभालेगा? देखिये जीशान की हालत, उसके पास जाइए, उसे आपकी बहुत ज़रूरत है…”
जीशान चुपचाप अपने रूम में बैठा हुआ था।
रज़िया उसके पास जाकर बैठती है-“जीशान , मेरे बच्चे, तेरे अम्मी अब्बू मर गये बेटा। वो कभी वापस नहीं आएँगे। अमन चला गया मुझे, तुझे, अनुम और सबको छोड़कर। बेटा हम सब अकेले हो गये हैं जीशान । रज़िया जीशान के कंधे पे सर रख कर रो पड़ती है और जीशान के सबर का बाँध टूट जाता है और वो चीख-चीख के रो पड़ता है, उसके कलेजे से निकलती हुई हर आह्ह उस वक्त अमन विला में मौजूद हर एक शख्स के दिल को लरजा देती है।
जीशान-“अब्बू अब्बू अब्बू उउ… अम्मी जीईई मुझसे एक बार तो बात कर लेते? मुझे अपने सीने से लगा लेते, मुझे यतीम करके क्यों चले गये आप अब्बू उउ…”
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