Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:44 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अमन विला खामोश था और उसमें रहने वाले सभी जानदार भी गमगीन थे। उस वक्त उन सभी को सिर्फ़ एक चीज संभाल सकती थी और वो था वक्त। कहते हैं कि वक्त वो मरहम है, जो बड़े से बड़े जख़्म को ठीक कर देता है। मिनट घंटो में बदले और घंटे दिनों में। 

देखते ही देखते अमन और शीबा को गुजरे एक साल हो जाता है। अमन अपने कालेज की पढ़ाई करते हुये फॅक्टरी जाय्न कर लेता है। 

सोफिया और खालिद की शादी स्थगित कर दी जाती है। 

अनुम अब ज्यादातर खामोश रहने लगी थी। वही हाल रज़िया का भी था। ज्यादातर समय वो दोनों अपने रूम में गुजारते थे। 

सोफिया ने घर के सारे कामों की ज़िम्मेदार अपने सर ले ली थी। वो किसी भी तरह घर के काम करके अपनी यादों को भूल ना चाहती थी। मगर ये बात उसके लिए ना-मुमकिन साबित हो रही थी। 

फ़िज़ा और कामरान अपने घर में उसी तरह जिंदगी गुजार रहे थे। कुछ दिन उन्हें अफसोस रहा मगर फिर वो अपनी दुनियाँ में चले गये। 

लुबना भी जीशान के साथ फॅक्टरी का काम संभालने लगती है। और नग़मा अपने अम्मी अब्बू को खोने के बाद अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखती हुई कालेज जाय्न कर लेती है। सभी एक दूसरे के सामने मुश्कुराकर ये दिखाना चाहते थे कि वो खुश हैं, मगर दिल का हाल हर कोई बखूबी जानता था। 


***** *****अमन और शीबा के गुजरने के एक साल बाद-


अमन विला रात 7:00 बजे-

लुबना और जीशान फॅक्टरी से वापस आ चुके थे। लुबना सोफिया के साथ किचेन में खाना बनाने में मदद कर रही थी। जीशान टीवी देख रहा था। अनुम अपने रूम में लेटी हुई थी। 

रज़िया जीशान के पास आकर बैठ जाती है-कब आए बेटा फॅक्टरी से? 

जीशान-अभी आया दादी । 

रज़िया-“जीशान बेटा, मैं सोच रही थी कि सोफिया की बात जो अमन ने खालिद के साथ की थी उसे अंजाम तक पहुँचा देते हैं…” 

जीशान-“आप ठीक कह रही हैं दादी । आप बाजी से बात कीजिए मैं खालिद भाई से बात करूँगा…” 

रज़िया-“एक और बात बेटा, मैं चाहती हूँ तुम्हारे भी शादी अगर हो जाये तो…” 

जीशान-“दादी मुझे अभी शादी नहीं करनी…” 

सोफिया जिसके कानों तक ये बात पहुँच जाती है वो अपने आँसू पोंछते हुये रज़िया से कहती है-“दादी , मैं आपको छोड़कर इतनी जल्दी कहीं नहीं जाने वाली । मुझे भगाने के बारे में अभी सोचिएगा भी मत…” 

रज़िया-“सोफिया बेटा, कैसी बात कर रही है? तू तो इस घर की जान है। बस अमन का आख़िरी काम अधूरा ना रह जाये। मेरे मरने से पहले मैं तुझे दुल्हन बने देखना चाहती हूँ …” 

जीशान रज़िया के होंठों पे अपना हाथ रख देता है-“दादी , मैं बहुत कुछ खो चुका हूँ अब किसी को खोना नहीं चाहता। प्लीज़्ज़… ऐसी बात मुँह से कभी मत निकालना…” 

रज़िया की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो जीशान को अपनी बाहो में भर लेती है। एक साल बाद पहली बार रज़िया और जीशान इतने करीब आए थे। ना चाहते हुये भी दोनों को कुछ महसूस हुआ था, मगर दोनों अपने जज़्बात छुपा लेते हैं। 
पूरे एक साल बाद रज़िया की आँखों में जीशान ने वो चमक देखी थी जो उसके अब्बू के हयात के वक्त हुआ करती थी।


लुबना-“किसकी शादी की बात हो रह है दादी ?” लुबना अपने कमरे में बैठी हुई थी जब उसके कानों तक शादी की गूँज पहुँची तो उससे रहा नहीं गया। 

जीशान-मेरी शादी की बात हो रही है। 

लुबना-“ आपकी शादी भाई… फिर तो हमें जू वालों को बोलना पड़ेगा, कोई अच्छी सी बंदरिया देखने के लिए…” 

रज़िया और सोफिया खिलखिला के हँसने लगती हैं। और जीशान लुबना के पीछे उसे मारने लपकता है। मगर हिरनी की तरह उछलती हुई लुबना उससे पहले अपने रूम में पहुँच जाती है। वो रूम का दरवाजा लाक करने ही वाली थी कि जीशान अपनी ताकत से दरवाजा खोल देता है। 

लुबना जीशान को अपनी तरफ बढ़ता देखकर अपने कान पकड़ लेती है-“हमका माफी दे दो मालिक, हमसे भूल हो गई…” 

जीशान-“मेरी शादी बदरिया से करवाएगी तू अच्छा?” वो अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसे पकड़ने लगता है। मगर लुबना पूरे कमरे में उसे चकमा देती जाती है 

रज़िया सोफिया को देखते हुये कहती है-“बहुत दिनों बाद इस घर में हँसी गूँजी है। बस मैं तो दुआ करती हूँ कि तुम सब इसी तरह हँसते खेलते रहो…” 

सोफिया-“हाँ अम्मी, आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं। बस मुझे फिकर अनुम फुफु की है, अपने कमरे में बहुत ज्यादा रहने लगी हैं वो…” 

जीशान लुबना के रूम का दरवाजा बंद कर देता है ताकी वो बाहर भाग ना सके। 

लुबना-“भाई आप मुझे छू भी नहीं सकते…” वो जीभ बाहर निकालकर जीशान को चिढ़ाती है। 

जीशान उसके बेड पे चढ़ जाता है और उसका हाथ पकड़कर उसे बेड पे गिरा देता है-“देख पकड़ी गई। अब बोल क्या बोल रही थी तू वहाँ?” 

लुबना-“सारी भाई, आपके लिए बंदरिया नहीं बल्की उल्ल की पट्ठी लाएँगे…” 

जीशान ये सुनकर और तिलमिला जाता है और लुबना के कान खींचने लगता है। 

लुबना-“अह्ह… भाई दर्द होता है ना… सारी सारी उल्ल की पट्ठी नहीं ?” 

जीशान-हाँ अब ठीक है। 

लुबना-“मैंने कहा उल्ल की पट्ठी नहीं बल्की कोई चम्पैन्जी की बेटी हेहेहेहे…” 

अब जीशान को बहुत गुस्सा आ जाता है और वो लुबना की नाक अपने हाथ से बंद करने लगता है, जिससे लुबना को साँस लेने में तकलीफ़ होने लगती है-“तब तक नहीं छोड़ूँगा जब तक तू कान पकड़कर उठक बैठक नहीं करती…” 

लुबना-करती हूँ ना। 

जैसे ही जीशान उसकी नाक छोड़ता है, लुबना जीशान को गुदगुदी करना शुरू कर देती है। उसकी देखा-देखी जीशान भी लुबना को गुदगुदी करने लगता है। दोनों एक दूसरे में इतने गुत्थम-गुत्था हो जाते हैं कि अचानक लुबना की टीशर्ट थोड़ा नीचे उतर जाती है। इससे पहले भी जीशान के साथ ऐसा ही हादसा हुआ था। लुबना जीशान की आँखों में देखने लगती है, और अपने दोनों हाथ जीशान की पीठ पे लेजाकर उसे अपने करीब करने लगती है। 

जीशान उठकर बैठ जाता है-“कपड़े ठीक से पहना कर लुबु…” 

लुबना अपने टीशर्ट ठीक करती है-“सारी , वो घर में थी तो…” 

जीशान उठकर बाहर जाने लगता है। मगर लुबना उसका हाथ पकड़ लेती है। आज कई दिनों बाद वो दोनों बिल्कुल अकेले थे, वरना जीशान तो काम-काम और बस काम। लुबना अपने भाई के करीब आती है-“जीशान भाई, मुझे अपने सीने से लगा लो मुझे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा है…” 

जीशान लुबना की तरफ देखता है। उसकी आँखें झुकी हुई थीं। उसे लगता है शायद लुबना को अब्बू की याद आ रह होगी। वो अपनी बाहें खोल देता है और लुबना उनमें समाते चली जाती है। 

लुबना-“भाई मुझे यहाँ बहुत सकून मिलता है… मैं जिंदगी भर यहीं रहना चाहती हूँ , मुझे अपने से कभी अलग मत करना भाई…” 

जीशान ये सुनकर उसे अपने से अलग कर देता है-“बचपना छोड़ लुबु, क्या पागलों जैसे बातें कर रही है? तेरे लिए मैंने रिश्ते ढूँढना शुरू कर दिया है…” 

लुबना-“मर जाउन्गी, मगर शादी नहीं करूँगी…” 

जीशान को लगने लगा था कि अमन और शीबा की मौत के बाद शायद लुबना का दिमाग़ ठिकाने आ गया होगा। मगर वो तो अभी भी वहीं थी, जहाँ जीशान उसे छोड़कर आगे बढ़ गया था। 

जीशान-“देख मुझे गुस्सा मत दिला लुबु, तू अच्छे से जानती है, अगर मुझे गुस्सा आ गया ना तो…” 

लुबना जीशान को देखती हुई अपने कपबोर्ड में से एक छोटा सा मगर तेज चाकू निकालकर जीशान के सामने आकर खड़ी हो जाती है। 

जीशान-क्या करेगी? मुझे मारेगी इस चाकू से? 

लुबना-“ये आपके लिए नहीं है। मैं आपको सिर्फ़ ये दिखाना चाहती हूँ कि अगर अपने मेरी शादी की बात दुबारा मुझसे किया तो…” वो उस चाकू को अपनी कलाई पे रखकरबस चलाने ह वाली थी कि जीशान उसका हाथ खींच लेता है। मगर फिर भी थोड़े सी चमड़ी कट गई थी। 

जीशान उसके हाथ से चाकू लेकर अपने पास रख लेता है-“अगर तूने दुबारा ऐसी कोई भी हरकत की ना लुबु तो मैं अम्मी को बोल दूँगा…” 

लुबना-“बोल दो, जो करना है करो। मगर आप मेरे दिल से मोहब्बत को कभी नहीं निकल पाओगे वो मोहब्बत जो मैं आपसे करती हूँ और मरते दम तक करती रहूंगी …” 

जीशान उसे बेड पे पटक के बाहर निकल जाता है। 

अमन के जाने के बाद तो लुबना की हिम्मत और भी ज्यादा बढ़ गई थी। उसे अपने आप पे और अपने मोहब्बत पे पूरा यकीन था। 
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रज़िया और सोफिया को बातें करता देखकर जीशान मूड ठीक करने उनके पास आकर बैठ जाता है। 

रज़िया-“जीशान बेटा, अपनी अम्मी को थोड़ा समझाकर देख दिन भर रूम में बंद रहने लगी है…” 

सोफिया-“हाँ जीशान , ऐसा कब तक चलेगा? वो जो हमें इस तरह बीच मझदार में छोड़ गये हैं उनकी यादों के सहारे हम ये लंबा सफर नहीं काट सकते। बस तुम्ह हो जिसकी बात फुफु सुनेंगी…” 

जीशान-“ठीक है…” कहकर वो अनुम के रूम में चला जाता है। 

अनुम चेयर पे बैठी हुई थी जीशान को देखकर वो हल्के से स्माइल देती है और उसे अपने पास बैठा देती है। 

जीशान-“अम्मी, मैं आपसे बहुत नाराज हूँ …” 

अनुम-“क्यों जीशान बेटा क्या हुआ?” 

जीशान-“अब्बू के जाने के बाद फॅक्टरी का सारा काम मेरे ऊपर आ गया है। लुबना तो किसी काम की नहीं है। मुझे आपसे उम्मीद थी क्योंकी आप तो ग्रेजुयेट हो और आपको फॅक्टरी के बारे में बहुत कुछ पता भी है। मैंने सोचा था कि आप मेरे साथ फॅक्टरी आएँगी और अब्बू की और आपकी फॅक्टरी को और आगे तक लेकर जाएँगी। मगर आपने मेरा और फॅक्टरी का कभी साथ नहीं दिया…” 

अनुम-“मुझे तूने ये बात पहले क्यों नहीं बताई?” 

जीशान-“तो क्या आप मेरे साथ फॅक्टरी चलेंगी रोज?” 

अनुम-हाँ चलूंगी । 

जीशान खुशी के मारे अनुम के हाथ चूम लेता है। 

अनुम-“बदमाश… तू बिल्कुल अपने अब्बू जैसा है। वो जब भी मुझे खामोश देखते थे तो इसी तरह गोल-मोल बातें करके मेरा दिमाग़ दूसरी तरफ भटका देते थे, और मैं वो बात भूल जाती थी। मगर तेरे अब्बू … मेरी जान थे। मुझे फॅक्टरी ले जाकर तुझे क्या लगता है कि मैं अमन के बारे में सोचना बंद कर दूँगी …” 
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