Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:45 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान कुछ सोचते हुये अपने होंठों को अनुम के होंठों की तरफ बढ़ाता है। जीशान की साँसें अपने होंठों पे महसूस करके, अनुम आँखें खोल देती है और पीछे हटकर एक जोरदार थप्पड़ जीशान के गाल पे रसीद कर देती है। जीशान हक्का बक्का सा रह जाता है। 

अनुम-“अब तुम जो करने जा रहे हो, वो माँ बेटे के बीच नहीं होता, और हाँ आइन्दा मेरे इतने करीब भी आने की कोशिश मत करना, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। समझे?” 

जीशान अपने कान पकड़ने के बजाए अनुम के दोनों कान पकड़कर कहता है-सो सारी अम्मी और जान शब्द वो थोड़ा लंबा कहता है। 

अनुम जीशान को घूर ती हुई बाहर की तरफ चल देती है 

जीशान अपने गाल को सहलाने लगता है कि तभी उसे किसी के हँसने की आवाज़ सुनाई देती है। जैसे ही वो गर्दन मोड़कर खिड़की की तरफ देखता है तो चौंक जाता है। 

सोफिया अपने मुँह को दुपट्टे से छुपाए वहाँ खड़ी थी। जीशान को अपने तरफ देखता पाकर वो जल्दी से वहाँ से भाग जाती है। 

लुबना-“भाई भाई कहाँ हो आप?” लुबना जीशान को आवाज़ देती हुई अनुम के रूम में चली आती है-“आवाज़ भी नहीं देते कब से चिल्ला रही हूँ …” 

जीशान-“भैया नहीं कह सकती? भाई भाई लगा रखी है…” 

लुबना जीशान के हसीन चेहरे को अपने आँखों में बसाकर धीरे से कहती है-“आप मेरे भाई हो भैया नहीं …” 

जीशान-क्या मतलब? 

लुबना-“भाई मीन्स-बेस्ट पति अवलेवल इन इंडिया…” 

जीशान लुबना की तरफ बढ़ता है। मगर इस बार लुबना वहाँ से भागने के बजाए वहीं खड़ी रहती है 

लुबना-“बहुत हैंडसम लग रहे हो आज आप तो… भाई…” 

जीशान-“भूत नी की सूरत… मैंने तुझसे पूछा क्या कि मैं कैसा लग रहा हूँ ?” जब देखो अपना सड़ा सा मुँह उठाए मेरे पास चली आती है। नफरत है मुझे तुझसे…” 

लुबना नफरत लफ़्ज सुनकर सहम जाती है, उसकी आँखों में आँसू तैर जाते हैं। जिसे जीशान भी देख लेता है-“तो आपको मुझसे नफरत है भाई?” 

जीशान दाँत पीसकर उससे कहता है-“हाँ नफरत है मुझे तुझसे…” 

लुबना टेबल पे पड़ा हुआ चाकू हाथ में उठा लेती है और अपने हथेली पर रख कर फिर से जीशान से पूछती है-“ आख़िरी बार पूछ रही हूँ नफरत करते हो आप मुझसे?” 

जीशान-“जा जा मैं तेरी इन धमकियों में आने वाला नहीं हूँ …” 

लुबना वो तेज चाकू अपनी हथेल पे घुमा देती है, और खून की एक धार उसके हाथ से निकलने लगती है। 

जीशान-लुब , ये तूने क्या किया पागल? मैं तो मजाक कर रहा था। मैं तुझसे नफरत नहीं करता। 

लुबना-“नहीं बहने दो ये खून , मर जाने दो मुझे। जब आप मुझसे नफरत करते हो तो मैं क्यों जिंदा रहूं ? कई दिनों से देख रही हूँ कि आप मेरी तरफ देखते भी नहीं , मुझसे ठीक तरह से बात भी नहीं करते, इतनी ही बुरी हूँ तो मर जाने दो मुझे आज…” 

जीशान एक थप्पड़ लुबना के गाल पे जड़ देता है-“बेवकूफ़ कितना खून बह रहा है तेरा?” वो अपने पाकेट से रुमाल निकालकर उसके हाथ पे बाँधने लगता है-“मैंने मजाक में कहा था लुब , अम्मी के बाद तुझसे ही तो मैं सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ …” 

लुबना जीशान की छाती से चिपक जाती है-“सच भाई, आप मुझसे मोहब्बत करते हो?” 

जीशान-“हाँ बहुत…” आज अपने दिल की बात ऐसे हालत में जीशान ने लुबना से कहा था कि उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि ये सब इतनी जल्दी कैसे हो गया। 

जीशान-अम्मी यहाँ जल्दी आएँ। 

अनुम-क्या हुआ? अरे लुबना बेटे ये क्या इतना खून ? 

जीशान-“बेवकूफ़ लड़की को चाकू लग गया। आप जल्दी से फर्स्ट एड किट ले आएँ…” 

अनुम कपबोर्ड में से पट्टी निकाल लेती है। तब तक वहाँ सोफिया, रज़िया और नग़मा भी आ चुकी थीं, सभी लुबना को ठीक से काम करने की नसीहतें देने लगती हैं। मगर उन सबमें से किसी की भी आवाज़ लुबना को सुनाई नहीं दे रही थी। उसके कानों में तो बस जी शान के वो शब्द गूँज रहे थे, जो उसने कुछ देर पहले उससे कहे थे। 

फ़िज़ा-“अरे भाई कहाँ हो सबके सब?” फ़िज़ा आज अमन विला आई हुई थी, साथ में कामरान भी था। 

रज़िया और अनुम उनके पास चले जाते हैं। 

फ़िज़ा-सलाम, कहाँ थे आप सब? पूरा घर वाली पड़ा है। 

रज़िया-बैठो फ़िज़ा बेटी । अरे कामरान भी आया है बैठो बैठो। वो लुबना के हाथ में चाकू लग गया था जीशान उसे पट्टी कर रहा था, वहीं थे। 

फ़िज़ा-ज्यादा तो नहीं लगा ना? 

अनुम-नहीं नहीं , बस थोड़ा सा कट गया है। 

नग़मा और सोफिया भी फ़िज़ा के पास आकर बैठ जाते हैं। कामरान की नजरें नग़मा से टकराती हैं, और दो जवान दिल जोर से धड़कने लगते हैं। इधर-उधर के बातें करने के बाद फ़िज़ा असल बात के तरफ आती है 

फ़िज़ा-“बाजी, भाई और भाभी को गुजरे अब एक साल से ऊपर हो गया है। आपको शायद पता नहीं मगर भाभी और मेरे बीच कुछ बातें हुई थी…” 

अनुम-कैसे बातें फ़िज़ा? 

फ़िज़ा-“वो मैं उनसे नग़मा का हाथ माँगी थी अपने बेटे कामरान के लिए। वो तो अब नहीं रहे मगर उन्होंने अपनी खुशी जाहिर की थी इस रिश्ते के लिए। कामरान के अब्बू अब कामरान की शादी करवा देना चाहते है। मैं उनसे साफ-साफ कह दी हूँ की बहू आएगी तो नग़मा…” 

फ़िज़ा की बात सुनकर जहाँ नग़मा शरमाकर अपने रूम में भाग जाती है, वहीं घर के सभी लोग खुश हो जाते हैं। कामरान एक सुलझा हुआ लड़का था। भला उससे अच्छा रिश्ता नग़मा के लिए और हो भी क्या सकता था? 

अनुम रज़िया और जीशान से पूछती है। वो दोनों फौरन हाँ कह देते हैं, और देखते ही देखते नग़मा और कामरान की बात पक्की हो जाती है। 

अनुम सोफिया की तरफ देखती है जो सिर झुकाए वहीं बैठी हुई थी। अपना हाथ सोफिया के सिर पर फेरती हुई अनुम फ़िज़ा से कहती है-“शादियाँ एक नहीं दो होंगी अमन विला में, हमारी गुड़िया सोफिया की भी अब मैं शादी करवा देना चाहती हूँ । खालिद बहुत अच्छा लड़का है। मैं अब इन दोनों को एक पाकीजा रिश्ते में बाँध देना चाहती हूँ …” 

सोफिया सिर उठाकर अनुम की तरफ देखती है और फिर मुश्कुराती हुई वो भी अपने रूम में भाग जाती है। 

जीशान-“अम्मी लगे हाथों इस मोटी की भी बात कहीं तय कर दीजिए ना?” 

लुबना-“क्यों, क्या मैं आप पे बोझ हो गई हूँ भाई?” 

जीशान दाँत पीस के रह जाता है। 

रात के खाने के बाद सभी हाल में बातें करते बैठ जाते हैं। 

सोफिया अपने बाथरूम में फ्रेश होने जाती है और उसे जाता देखकर जीशान भी उसके पीछे-पीछे बाथरूम में घुस जाता है। सोफिया जीशान को अपने रूम के बाथरूम में इस तरह अचानक देखकर डर जाती है-“क्या है? यहाँ क्या कर रहे हो?” 

जीशान-मुबारक बाद देने और मुँह मीठा करने आया हूँ आपी। 

सोफिया-किस चीज के लिये? 

जीशान-लो जी अगले महीने आपकी शादी होने वाली है, और आप पूछ रहे हो किस चीज के लिये? 

सोफिया-“हाँ। मगर तुम यहाँ क्यों आ गये? जाओ यहाँ से अम्मी या आंटी ने देख लिया तो?” 

जीशान सोफिया का हाथ पकड़कर अपनी तरफ घुमा लेता है-“मुझे मुँह मीठा करना है…” 

सोफिया-यहाँ कैसे? 

जीशान-आपके होंठों से। 

सोफिया-पागल हो गये हो क्या? निकलो यहाँ से बेशर्म इंसान। 

जीशान एक हाथ सोफिया की गर्दन में डालकर उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाकर अपने होंठ उसके होंठों पे रख देता है। 

सोफिया-“उन्ह… घुऊऊन्ने्ीं… घ न्ने्ीं… क्या है? गलपप्प…” 

जीशान दुबारा फिर से अपने होंठ सोफिया के मुँह पे रख देता है। सोफिया अपने होंठों को जीशान के होंठों से अलग कर देती है, और घूमकर जीशान की आँखों में देखने लगती है। ऐसा लगता है जैसे वो जीशान को थप्पड़ मारने वाली है। मगर इसके बिल्कुल उलट वो खुद अपने होंठों को जीशान के लबों से लगा देती है और जीशान की चौड़ी छाती से चिपक जाती है। 

जीशान भी अपने दोनों हाथों को सोफिया की कमर पर रख कर दोनों हाथों से कमर को दबाते हुये अपनी जीभ सोफिया के मुँह में डालकर उसके होंठों को चूमने लगता है। दोनों एक दूसरे में खोए हुये थे। जीशान अपने एक हाथ से अपनी पैंट की जिप खोलकर लण्ड बाहर निकाल देता है। जैसे है जीशान का लण्ड बाहर निकलता है, वो सीधा सोफिया की जांघों में चुभने लगता है। 

सोफिया नीचे देखती है और हैरान रह जाती है। जीशान सोफिया का हाथ अपने लण्ड पे रखने लगता है, मगर सोफिया अपना हाथ हटा देती है। जीशान फिर से उसे अपने लण्ड पे रख देता है। इस बार सोफिया बड़ी मजबूती से जीशान के लण्ड को पकड़ लेती है। 

जीशान-आपी मुँह में लो ना। 

सोफिया-नहीं , कभी नहीं । 

जीशान अपना हाथ सोफिया की कमीज में डालकर उसकी नरम चुचियाँ मसलने लगता है-“प्लीज़्ज़… आपको मेरे कसम…” और ये कहते हुये वो सोफिया की कमीज जिस्म से अलग कर देता है। अंदर सोफिया ने कुछ भी नहीं पहना था। अपनी बहन की दोनों चुचियों को मसलते हुये वो पीछे से अपना लण्ड उसकी गाण्ड की दरार में चुभाने लगता है। 

सोफिया-“उन्ह… स्शस्स्स्स्सी… जीशान आह्ह…” 

जीशान-जल्दी लो ना आपी, कोई देख लेगा। 

सोफिया-“मुझे नहीं करना, छोड़ मुझे…” वो हल्की आवाज़ में बोल रही थी। 

जीशान-“ऐसे कैसे नहीं लेगी? चल बैठ नीचे…” अपने पठानी रुख़ाब का इश्तेमाल करते हुये जीशान सोफिया को नीचे बैठा देता है और अपना गुलाबी लण्ड का सुपाड़ा सोफिया के नरम होंठों पे घिसने लगता है। 

सोफिया जीशान की -आँखों में आँखें डालकर अपना मुँह खोल देती है-“गलपप्प-गलपप्प…” 

आखिरकार, सोफिया भी तो रज़िया की बेटी थी। अपनी अम्मी रज़िया को जब से उसने ये लण्ड चूसते देखा था तब से उसका मुँह इसे अपने मुँह लेने के लिए तड़प रही थी गलपप्प। 

सोफिया अपना मुँह खोल देती है और जीशान का तना हुआ लण्ड उसके मुँह की गहराईयों में चला जाता है। अब तक सोफिया सिर्फ़ अपने अब्बू अमन ख़ान के लण्ड को चुसी थी। मगर आज पहली बार वो अपने भाई के लण्ड से, उसकी महक से, उसके मीठे-मीठे पानी से सराबोर हो रही थी। जीशान के लण्ड की खुश्बू सोफिया को इतनी पसंद आती है कि वो उसे चूसती ही चली जाती है। 

जीशान-“आह्ह… आपी मार डालोगी क्या? आह्ह…” 

सोफिया-“हुन्ने्ीं… गलपप्प-गलपप्प मुझे जो चीज पसंद आ जाती है वो मेरी हो जाती है और मैं उसे अपने से कभी अलग नहीं होने देती गलपप्प-गलपप्प…” 

जीशान के लण्ड की नशें और ज्यादा मोटी होने लगती हैं। लाल चमकता हुआ सामने का सुपाड़ा और ज्यादा टमाटर की तरह लाल हो जाता है। जीशान अपने आँखें बंद कर लेता है और जैसे उसकी आँखें बंद होती हैं, उसकी आँखों के सामने अनुम का चेहरा आ जाता है। अनुम को देखते ही जीशान के लण्ड से तेज गाढ़े-गाढ़े पानी की एक धार सीधा सोफिया के मुँह में गिरने लगती है। 

जीशान-“आह्ह… अम्मी आह्ह…” 

वो पानी इतना ज्यादा था कि सोफिया के मुँह से बाहर छलकने लगता है और पूरा चेहरा गीले चिपचिपे पानी से भर जाता है। सोफिया अपने भाई की आँखों में देखती हुई अपने होंठों पर जीभ फेरने लगती है गलपप्प-गलपप्प। 

जीशान-कैसा लगा आपी? 

सोफिया मुश्कुराती हुई-मीठा-मीठा। 

जीशान अपने लण्ड को हाथ में पकड़कर उसे सोफिया के गाल पे पोंछने लगता है। सोफिया जग में पानी लेती है और जीशान के लण्ड को साफ करती है। 

सोफिया-अब जा मुझे नहाने दे। 

जीशान-मेरे साथ नहा लो ना आपी। 

सोफिया-नहीं जीशान , मेहमान घर में हैं। तू जा ना अभी कोई सच में देख लेगा। 

जीशान हाथ पकड़कर सोफिया को उठाता है और अपने होंठ उसके गीले होंठों पर रख कर उसके मुँह से अपना वीर्य चखने लगता है। सोफिया अपनी जीभ जीशान के मुँह में डाल देती है और दोनों एक दूसरे की लार एक दूसरे के मुँह से पीने लगते हैं। 
थोड़े देर एक दूसरे को कस के मसलने के बाद जीशान बाथरूम से बाहर निकल जाता है और सोफिया शावर के नीचे खड़ी हो जाती है। 
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