Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:46 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
दोपहर तक खालिद और उनका परिवार भी अमन विला में आ जाता है। 

सोफिया और नग़मा तैयार होकर बाहर आते हैं, मगर जीशान अभी भी अपने रूम में तैयार हो रहा था। 

लुबना जीशान के रूम में जाकर दरवाजा बजाती है-“चलिए नवाब साहब बाहर मेहमान आ गये हैं…” 

जीशान-“बस दो मिनट…” 

फिर वो अपने बाल सँवारता हुआ जब लुबना की तरफ पलटता है तो लुबना की आँखें चकाचौंध हो जाती हैं। बला का खूबसूरत बंदा था जीशान। हर तरह से एक मुकम्मल पठान की औलाद 

6 फिट से ज्यादा कद बड़े-बड़े नुमाया कंधे, मस्क्युलर बाडी और मुस्कुराता हुआ चेहरा, जो कोई एक बार देख ले बस देखता ह रह जाए। लुबना भी अपनी नेजरें जीशान पर से हटा नहीं पाती। 

जीशान-“उउहहो… नजर लगाने का इरादा है क्या मोटी ?” 

लुबना अपनी जुबान निकालकर जीशान को चिढ़ाती है-“नजर हुन्ने्ीं… मेरी जुती । ये मुँह और मसूर की दाल…”

जीशान-“हाहाहाहा… जानता था मैं अच्छा लग रहा हूँ । तूने बुरा कहा मतलब बहुत अच्छा लग रहा हूँ । थैंक्स फार द काज़म्प्लमेंट्स…” 

लुबना जीशान को घूर ती रह जाती है। मगर जीशान उसे आज सताने के मूड में नहीं था। वो लुबना के करीब आता है और उसका वो हाथ अपने हाथ में ले लेता है, जिसे उसने कल चाकू से काट लिया था -“अब कैसा है ये?” वो बड़े गम्भीर अंदाज में बोला था। 

लुबना-“बस ठीक है…” 

जीशान उसके हाथ को अपने होंठों से लगाकर चूम लेता है-“अगर आइन्दा ऐसी कोई भी हरकत तूने की लुब तो, मुझसे बुरा कोई नहीं , वो हाल करूँ…” 

लुबना-“जो करना है कर लीजिये , मैं कुछ भी नहीं कहूँ गी…” वो जीशान के शब्द पूरे होने से पहले ही बोल देती है। और जीशान उसके मासूम चेहरे को देखता रह जाता है। 

लुबना-अब चलिए भी सब आपका इंतजार कर रहे हैं। 

जीशान अपने लुबना के साथ मेहमानों के पास आ जाता है। 

अनुम की नजर जब जीशान पर पड़ती है तो एक पल को ऐसे महसूस होता है उसे कि अमन अपने तमाम खूबसूरतियों के साथ उसके सामने खड़ा है। मगर अगले ही पल उसे एहसास होता है कि ये अमन नहीं बल्की जीशान है, जो अपने खालिद से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है। 

जीशान अनुम को देखकर मुश्कुरा देता है, और सभी मेहमानों से एक-एक करके मिलने लगता है। घर के सभी मेंबर्स के सामने सोफिया और नग़मा की शादी की डेट फ़िक्स हो जाती है। अगले महीने की डेट फ़िक्स होती है। सभी एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। 

फ़िज़ा जो काफी वक्त से जीशान पर अपनी नजरें गढ़ाए बैठी थी, उसके करीब आती है-“बहुत-बहुत मुबारक हो जीशान बेटा आपको…” 

जीशान-आपको भी आंटी । 

फ़िज़ा-ऐसे नहीं , गले लगकर मुबारकबाद देते हैं। 

जीशान आगे बढ़ता है-“फ़िज़ा यहाँ नहीं , तुम्हारे रूम में मैं इंतजार कर रही हूँ तुम्हारा…” 

फ़िज़ा जीशान के रूम में चली जाती है और जीशान सभी से नजरें बचाते हुये अपने रूम में फ़िज़ा के पीछे-पीछे चला जाता है। जब जीशान अपने रूम में दाखिल होता है तो फ़िज़ा जल्दी से दरवाजा लाक कर देती है और अपना दुपट्टा एक तरफ रख कर जीशान की छाती से चिपक जाती है। 

फ़िज़ा-“ओह्ह… जीशान, जब भी तुम्हें देखती हूँ मुझे तुम्हारे अब्बू याद आ जाते हैं…” 

जीशान-“क्यों अब्बू ने आपकी भी ली थी क्या?” 

फ़िज़ा जीशान की आँखों में देखने लगती है-“हाँ… तुम्हारे अब्बू ने मुझे और मेरी अम्मी दोनों को एक साथ एक बिस्तर पर रात भर कई रातें चोदा था…”

जीशान-उनकी जगह अब उनका बेटा है। 

फ़िज़ा-मतलब? 

जीशान-“मतलब ये कि अमन विला पर अब्बू की हर चीज पर मेरा हक है। उन्होंने जिस चीज को भी छुआ था, जो उनकी थी उसपर भी मेरा हक है। इस तरह आप पर भी मेरा हक है…” 

फ़िज़ा-चल हट बेशर्म। 

जीशान तो अपने बाप का भी बाप था बेशर्मी में। वो बखूबी जानता था कि फ़िज़ा की शलवार के अंदर क्या चीज है, जो उसे बेचैन किए हुई है? वो फ़िज़ा को बेड पर गिरा देता है और उसके संभलने से पहले ही उसके ऊपर सवार हो जाता है। फ़िज़ा की दोनों टाँगों को ऊपर उठा करके वो खोल देता है, और पूरी तरह फ़िज़ा के ऊपर आकर अपना हाथ फ़िज़ा की चूत के ऊपर रख कर हल्के से उसकी क्लोटॉरिस को मसल देता है। 

ये सब इतनी जल्दी में होता है कि फ़िज़ा कुछ कर भी नहीं पाती, और कुछ कह भी नहीं पाती। बस ‘उन्ह’ की एक सिसकी उसके मुँह से निकल जाती है 

जीशान अपनी फ़िज़ा की आँखों को चूमते हुये होंठों तक पहुँच जाता है-“जिस चूत में पहले वो रहते थे, अब मैं रहूँ गा यहाँ ना। हाँ यहाँ…” वो चूत को रगड़ते हुये फ़िज़ा से पूछने लगता है। 

फ़िज़ा तिलमिला जाती है-“हाँ जीशान , मैं भी तड़प रही हूँ । मेरे शौहर किसी काम के नहीं , और कामरान में वो बात नहीं जो मुझे संतुष्ट कर सके। बस तुझसे उम्मीद है मेरे बच्चे, अपनी आंटी को मुकम्मल कर दे आह्ह…” 

जीशान फ़िज़ा की शलवार का नाड़ा खोलकर उसकी पैंटी के अंदर हाथ डालकर दो उंगलियाँ चूत के अंदर डाल देता है-“फ़िज़ा आंटी इस चूत में पहली बार अब्बू ने डाला था ना?” 

फ़िज़ा-“हाँ आह्ह… इसमें तेरे अब्बू की मोहर लगी हुई है। मुँह पर तेरे अब्बू की मोहर है, और उस मोहर पर सिर्फ़ तुम मोहर लगा सकते है जीशान आह्ह…” 

जीशान-“तुम्हारे घर कल आऊूँगा मैं, और वहीं सारे हिसाब पूरे होंगे…” 

फ़िज़ा-“उन्ह… मैं इंतजार करूँगी…” और दोनों एक दूसरे को चूमने लगते हैं। तभी बाहर से किसी के दरवाजा नाक करने से दोनों झट से एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। 

बाहर अनुम खड़ी थी। जीशान जब दरवाजा खोलता है तो अनुम जीशान से फ़िज़ा के बारे में पूछती है। 

जीशान-मुझे क्या पता आंटी कहाँ हैं? शायद बाथरूम में गई होंगी। 

अनुम वहाँ से चली जाती है, और फ़िज़ा बाथरूम से बाहर निकलकर जीशान को चूमते हुये रूम से बाहर निकल जाती है। 

मेहमानों के जाने के बाद रात में सभी बहुत थक चुके थे। अनुम अपना काम निपटाकर सोने चली जाती है। नग़मा भी लुबना के साथ बातें करती हुई उसके रूम में सोने चली जाती है। 

सोफिया अपने रूम में बैठी हुई थी, जीशान उसके पास आता है-“चलो मेरे साथ…” वो सोफिया का हाथ पकड़कर उसे उठा देता है। 

सोफिया-कहाँ जीशान ? 

जीशान-“जब तुमने खुद को मेरी बेगम मान है लिया है तो मैं तुम्हें अपनी पहली बेगम से मिलवाना चाहता हूँ …" 

और इधर रज़िया अपने रूम में जीशान का इंतजार करने लगती है कि तभी रूम का दरवाजा खुलता है और जीशान के साथ-साथ सोफिया भी रूम में दाखिल होती है। 

जीशान और सोफिया जब रज़िया के रूम में पहुँचते हैं तो रज़िया उन्हें बेड पर बैठी नजर आती है। 

रज़िया-अरे क्या बात है दोनों भाई-बहन एक साथ? नींद नहीं आ रही है क्या सोफिया बेटी ?” 

जीशान रूम का दरवाजा बंद करके रज़िया के पास आकर बैठ जाता है। उसकी आँखों में मस्ती साफ नजर आ रही थी, जिसे रज़िया भाँप गई थी। मगर वो उस वक्त सोफिया के सामने कोई भी ऐसी हरकत नहीं करना चाहती थी। वो जीशान को बातों में उलझाने लगती है। 

जीशान सोफिया को अपने पास बैठा देता है। 

रज़िया-जीशान आज तुम बहुत खूबसूरत लग रहे थे। 

जीशान-दादी । 

रज़िया-हाँ, क्या बात है जीशान ? 

जीशान-मैं आपको अपनी दूसरी बेगम से मिलवाना चाहता हूँ । 

रज़िया की पेशानी पर पसीना आने लगता है-“क्या? मैं समझी नहीं ?” 

जीशान-“उठो और यहाँ बैठो नीचे…” वो बड़े रुख़ाब से बोला था। 

रज़िया की आँखें झुक जाती हैं। 

जीशान-सुनाई नहीं देता, यहाँ बैठो नीचे? 

रज़िया चुपचाप जमीन पर बैठ जाती है 

जीशान सोफिया के चेहरे को दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों को बुरी तरह चूम लेता है ऐसे कि सोफिया की साँसे उखड़ने लगती है। सोफिया के मुँह से जब जीशान के होंठ अलग होते हैं तो वो जज़्बात के रौ में इस कदर बह चुके थे कि ऊपर के साँसे ऊपर होने लगती है। 

जीशान-इनसे मिलो ये हैं सोफिया, मेरी दूसरी बेगम। 

सोफिया अपनी नजरें झुका लेती है। वो उठकर वहाँ से जाने लगती है। मगर जीशान उसका हाथ पकड़कर उसे वापस बैठा देता है। 

सोफिया खुद को बहुत अनकंफटेबल महसूस कर रही थी। अपनी अम्मी के सामने अपने भाई के साथ ये सब करने में उसे बहुत डर लग रहा था। मगर जीशान भी अपने बाप का बेटा था, शर्म-ओ-हया के पर्दे गिराना उसे बखूबी आता था।

रज़िया खड़ी होने लगती है मगर जीशान आँखें दिखाकर उसे बैठने के लिए कहता है। जीशान रज़िया के सामने खड़ा हो जाता है और अपनी पैंट की जिप खोलकर पैंट नीचे गिरा देता है। पैंट के नीचे गिरते ही जीशान का खूबसूरत लण्ड दोनों माँ बेटी की आँखों के सामने आ जाता है। 

सोफिया तिरछि नजरों से जीशान के लण्ड को देखने लगती है। 

रज़िया-ये क्या बदतमीजी है जीशान? 

जीशान-“जीशान… नाम लेती है मेरा? तुझे पता नहीं है क्या कि शौहर का नाम नहीं लिया करते…” कहकर वो रज़िया के बालों को इतने बुरी तरह से खींचता है कि रज़िया की आँखों में आँसू तैर जाते है। फिर जीशान कहता है-“माफी माँग…” 

रज़िया-“मुझे माफ कर दो जीई…” 

जीशान-“मुँह खोल…” 

रज़िया सोफिया की तरफ देखने लगती है। सोफिया उसे ही देख रही थी। 

जीशान-“रज़िया, क्या कहा मैंने?” 

रज़िया अपना मुँह खोल देती है। 

जीशान अपने लण्ड को हाथ में पकड़कर रज़िया के मुँह पर मारने लगता है-“ साली शौहर का नहीं सुनती? जो मैंने कहा उसे बिना सोचे पूरा करना एक बीवी का फर्ज़ है। आइन्दा जब भी मैं कुछ कहूँ वो तुम्हें करना होगा, बिना कुछ सोचे। सुना न क्या कहा मैंने?” 

रज़िया आँखें बंद कर लेती है-“हाँ जान करूँगी ना… आप जो कहोगे वही मैं करूँगी उन्ह…” 

जीशान अपने लण्ड को रज़िया की जीभ पर रख देता है और रज़िया उसे अपने मुँह में खींच लेती है-“गलपप्प गलपप्प-गलपप्प…” 

जीशान अपने दोनों हाथों से रज़िया की गर्दन पकड़कर दबाने लगता है, जिससे रज़िया की साँस रुकने लगती है, और सटासट अंदर-बाहर होते लण्ड की वजह से मुँह से साँस लेना भी दुश्वार हो जाता है। उसके आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। मुँह में से लार बाहर गिरने लगती है। 

मगर रज़िया भी वो औरत थी, जिसके सामने अमन भी पानी भरता था। जो अगर अपनी पूरी औकात पर आ जाए तो मर्द अपने लण्ड को गाण्ड में घुसाकर भाग जाए। आज तक किसी ने भी रज़िया का वो रूप नहीं देखा था, ना अमन ने और ना उसके अब्बू ने। मगर पता नहीं आज क्यों जीशान की हरकतों ने रज़िया को ऐसे उकसाया था कि वो आज जीशान को किसी कीमत पर छोड़ने वाली नहीं थी। 
शायद रज़िया खुद को बेबस महसूस कर रही थी, और जब औरत बेबस हो जाती है तो वो कुछ ऐसा कर जाती है जो सामने वाला सोच भी नहीं सकता। 

रज़िया जीशान के आंडो को मुट्ठी में पकड़कर मरोड़ते हुई लण्ड को गले तक अंदर करने लगती है, उसे साँस लेने में दुश्वार हो रही थी, मगर वो जीशान को ये नहीं कह रही थी कि मेरा गला छोड़े, बल्की इसके खिलाफ वो और अंदर तक घुटि साँसों के साथ लण्ड को मुँह में लिए जा रही थी। 

आंडो के मरोड़े जाने से जीशान को मीठा-मीठा दर्द होने लगता है और वो रज़िया का गला छोड़कर अपने लण्ड को थोड़ी देर के लिए बाहर निकाल लेता है 

फूली हुई साँसों के साथ रज़िया जीशान की आँखों में देखने लगती है। लण्ड का पानी और मुँह से निकलता थूक रज़िया की चुची पर गिरने लगता है। रज़िया मुश्कुराती हुई जीशान और सोफिया को देखने लगती है। सोफिया के जिस्म में भी अपनी अम्मी की तरह जोश बढ़ने लगा था। बस उसे चिंगारी की ज़रूरत थी और वो चिंगारी जीशान नहीं बल्की रज़िया लगा देती है। वो सोफिया का हाथ पकड़कर उसे नीचे अपने पास बैठा लेती है। 
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