Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:54 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अनुम और रज़िया की हिम्मत नहीं थी कि वो लुबना का सामना कर सकें। अनुम एक प्लेट में खाना डालकर जीशान के हाथ में देती है-“वो सिर्फ़ तुम्हारे हाथों से खायेगी, जाओ खिला आओ उसे…” 

जीशान-तुम भी साथ चलो। 

अनुम-नहीं , उसे इस वक्त सिर्फ़ तुम्हारी ज़रूरत है। 

जीशान अनुम की बात मानते हुये लुबना के रूम के दरवाजा को नाक करता है। 
थोड़ी देर बाद दरवाजा थोड़ा सा खुल जाता है, और जीशान अंदर दाखिल होकर उसे दुबारा बंद कर देता है। लुबना बेड पर पेट के बल लेटी सिसक रही थी। 

जीशान-लुबना खाना खा ले। 

लुबना-नहीं खाना मुझे। 

जीशान-देख ज़िद मत कर खाना खा ले। क्या हुआ क्यों नाराज है? 

लुबना उठकर बैठ जाती है-ये आप पूछ रहे हैं मुझसे? 

जीशान लुबना के पास बैठकर उसका हाथ अपने हाथ में लेने लगता है। मगर लुबना गुस्से में हाथ झटक देती है। 

जीशान-“बस कर…” वो जबरदस्ती उसका हाथ कसकर पकड़ लेता है-“क्या हुआ तू इस बात से नाराज है ना कि मैं, अम्मी और दादी को चोद रहा था? हाँ तो क्या हुआ? शौहर मानती हैं वो मुझे, और तू भी मानती है। एक दिन तुझे भी ऐसे ही रगड़ के चोदुन्गा मैं। याद रख, और हाँ ये रोना धोना अगर मेरे सामने करेगी ना तो शादी करवा दूँगा किसी और के साथ। चुपचाप खाना खा और बाहर आ जा…” 

लुबना-मुझे नहीं खाना खाना वाना । 

जीशान उसे बेड पर पटक देता है और उसके ऊपर चढ़ जाता है-“क्या खायेगी फिर, मेरी लुबु?” 

लुबना आँखें बंद करके जीशान की तरफ से रुख़ मोड़ लेती है। 

जीशान-“मेरे जिस्म में तुझे अम्मी और दादी के जिस्म की खुश्बू आ रही होगी ना? 
उन्होंने इसे मुँह में भी लिया था” वो लुबना का हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख देता है। 

लुबना सिहर उठती है। 

जीशान-तुझे चखना है अपने शौहर का? 

लुबना-कुछ नहीं कहती। 

जीशान खड़ा हो जाता है और अपनी पैंट की जिप खोलकर लण्ड हाथ में पकड़कर लुबना के होंठों पर घिसने लगता है कि अचानक जीशान की उम्मीद के खिलाफ लुबना अपना मुँह खोलकर जीभ बाहर निकाल लेती है और पहली बार अपने भाईजान के लण्ड पर अपनी अम्मी और दादी की चूत का पानी चखने लगती है। 


मगर जीशान उसे और तड़पाना चाहता था। वो उसके रूम से बाहर चला जाता है ये कहते हुये कि सब शादी के बाद। 

लुबना खुद की बात को जीशान के मुँह से सुनकर मुश्कुरा देती है। 

अनुम जीशान को मुश्कुराते हुये आता देखकर समझ जाती है कि लुबना अब ठीक है। 

तभी जीशान का सेल फोन बजता है। काल सोफिया का था। 

जीशान-कैसे हो सोफी? 

उधर से रोने की आवाज़ सुनकर जीशान के चेहरे की हँसी गायब हो जाती है-“अरे रो मत, बात क्या है पहले बताओ तो? 

सोफिया दूसरी तरफ से रोती हुई-“मुझे यहाँ से ले जाओ जीशान , वरना मैं अपनी जान दे दूँगी प्लीज़्ज़… मैं इस जहन्नुम में नहीं रह सकती। तुम्हें मेरी कसम मुझे ले जाओ वरना… …” वो काल कट कर देती है। 

इधर सामने खड़ी रज़िया और अनुम के होंठों पर बस एक सवाल होता है-आखिरकार, हुआ क्या? 

जीशान-सोफिया आपी का काल था, रो रही थी। 

रज़िया-हाय हाय क्या हुआ मेरी बच्ची को? मेरा तो दिल बैठा जा रहा है। 

अनुम भी परेशान सी हो गई थी। 

जीशान-आप फिकर ना करें, मैं जाकर देखता हूँ कि आखिरकार, बात क्या है? 

अनुम-हम भी साथ चलते हैं। 

रज़िया-हाँ हाँ पता नहीं मेरी बच्ची ऐसे क्यों रो रही थी? सब ठीक नहीं लगता मुझे अनुम? 

अनुम-अम्मी आप भी ना… पहले चलकर देखते तो हैं। 

जीशान कार में रज़िया और अनुम को लेकर सोफिया के फ्लेट की तरफ चल देता है। सारे रास्ते रज़िया का रोते-रोते बुरा हाल था। जब वो तीनों फ्लेट पर पहुँचते हैं, तो वहाँ पहले से सोफिया के शौहर और उनके अम्मी अब्बू मौजूद थे। खालिद के अम्मी और अब्बू सोफिया को समझा रहे थे, मगर सोफिया थी की रोए जा रही थी। वो उनकी बात सुनने को तैयार ही नहीं थी। 

जीशान, रज़िया और अनुम को देखकर सोफिया का सबर का प्याला छलक पड़ता है, और वो दौड़ती हुई रज़िया से लिपट कर फूट -फूट कर रोने लगती है। 

रज़िया-“चुप हो जा मेरी बच्ची। मैं आ गई हूँ ना… बस बस कुछ नहीं । 

अनुम-क्या बात है, बच्ची इतनी परेशान क्यों है? 

ना खालिद कुछ बोल रहा था और ना उसके वालीलदान 


जीशान-“खालिद भाई बात क्या है? आखिरकार कोई कुछ बोलेगा भी की नहीं ?” वो थोड़ा गरजकर बोला था। 

सामने बैठा खालिद अपना सिर उठाकर जीशान की तरफ देखने लगता है। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसके मुँह में जीभ ही नहीं है। 

सोफिया चीखती हुई कहती है-“इस कम्बख़्त इंसान से क्या पूछ रहे हैं आप जीशान? ये आपको कुछ नहीं बताने वाले, मैं आपको बताती हूँ । ये ना मर्द हैं। मैं जिस दिन से मैं यहाँ आई हूँ , उस दिन से इन्होंने मुझे हाथ तक नहीं लगाया। पहले-पहले मुझे लगा शायद इन्हें लाइफ सेटल करने में थोड़ा टाइम चाहिए, मगर नहीं कल रात जब मैं इनके करीब आने लगी तो इन्होने मुझसे कहा कि इन्हें मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं है, इन्हें औरतों में दिलचस्पी नहीं है। ‘गे’ है ये ‘गे’…” 
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