RE: Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में
मैने अपनी ननद से कहा अरे कुछ पानी वानी भी पिलाओगी बेचारे को या, छेडती ही रहेगी. वो हंस के बोली अब भाभी इस की चिंता मेरे उपर छोड़ दीजिये और ग्लास दिखाते हुये कहा, देखिये इस साले के लिये खास पानी है. जब मेरे भाई ने हाथ बढ़ाया तो उसने हंस के ग्लास का सारा पानी, जो गाढा लाल रंग था, उसके उपर उडेल दिया.
बेचारे की सफेद शर्ट...पर वो भी छोडने वाला नहीं था. उसने उसे पकड के अपन कपडे पे लगा रंग उसकी फ्राक पे रगडने लगा और बोला, “ अभी जब मैं डालूंगा ना अपनी पिचकारी से रंग तो चिल्लाओगी.”
वो । छुड़ाते हुए बोली,” एक दम नहीं चिल्लाउंगी, लेकिन तुम्हारी पिचकारी मेंकुछ रंग है भी की सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गये हो.”
वो बोला की सारा रंग तेरे लिये बचा के लाया हूँ, एक दम गाढा सफेद.
उन दोनों को वहीं छोड के मैं गयी किचेन में जहां होली के लिये गुझिया बन रही थी और मेरी सास, बडी ननद और जेठानी थीं. गुझिया बनाने के साथ साथ आज खुब खुल के मजाक, गालियां चल रही थीं. बाहर से भी कबीर गाने, गालियों की आवाजें, फागुनी बयार में घुल घुल के आ रही थीं.
ठंडाई बनाने के लिये भांग रखी थी और कुछ बर्फी में डालने के लिये. मैने कहा, हे कुछ गुझिया में भी डाल के बना देते हैं, लोगों को पता नहीं चलेगा, और फिर खूब मजा आयेगा.
मेरी ननद बोली, हां और फिर हम लोग वो आप को खिला के नंगे नचायेंगे. मैं बोली, मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूं, भांग वाली और बिना भांग वाली गुझिया अलग अलग डब्बे में रखेंगें. हम लोगो ने तीन डब्बों में, एक में डबुल डोज वाली, एक में नार्मल भांग की और तीसरे में बिना भांग वाली रखी. फिर मैं सब लोगों को खाना खाने के लिये बुलाने चल दी.
मेरा भाई भी उनके साथ बैठा था. साथ में बडी ननद के हसबेंड मेरे नन्दोयी भी...उनकी बात सुन के मैं दरवाजे पे ही एक मिनट के लिये ठिठक के रुक गयी और उनकी बात । सुनने लगी. मेरे भाई को उन्होने सटा के, आल्मोस्ट अपने गोद में ( खींच के गोद में ही बिठा लिया ), सामने नन्दोयी जी एक बोतल ( दारू की ) खोल रहे थे. मेरे भाई के गालों पे हाथ लगा के बोले,
* यार तेरा साला तो बडा मुलायम है.”
* और क्या एक दम मक्खन मलायी.” दूसरे गाल को प्यार से सहलाते वो बोले.
* गाल ऐसा है तो फिर तो गांड तो...क्यों साल्ले कभी मरायी है क्या” बोतल से सीधे घंट लगाते मेरे नन्दोयी बोले और फिर बोतल उनकी ओर बढा दी
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