RE: Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में
मैं एक पल सहमी लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढाया अरे जरा अपने पति के जन्म भूमी का तो स्पर्श कर लो. उंगलीयां तब तक घुघराली रेशमी झांटों को छू चुकी थी ( ससुराल में कोयी पैंटी नहीं पहनता था, यहां तक की मैने भी छोड दिया). मूझे लगा की कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और...खुद बोलीं अरे स्पर्श क्या दर्शन कर लो बहू. और पता नहीं उन्होने कैसे खींचा की मेरा सर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई, जैसे वो अभी अभी ...कर के आयी हों और उन्होने...जब तक मैं सर निकालने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड के फिर अपनी भरी भरी जांघों से कस के दबोच लिया. उनकी पकड उनके लड़के के पकड से कम नहीं थी. मेरे नथुनो में एक तेज महक भर गयी और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थीं. हल्के से झुक के वो बोलीं दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोडा. जब मैं किसी तरह वहां से अपना सर निकाल पायी तो वो तीखी गंध...अब एक दम मत वाली सी, तेज मेरा सर घूम सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होने तडपाया था, बिना एक बार भी झडने दिये...और उपर से ये.
मेरा सर बाहर निकलते ही मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का ग्लास लगा दिया.. लबालब भरा, कुछ पीला सा और होंठ लगते ही एक तेज़ भभका सा मेरे नाक में भर
गया. “अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का होली की सुबह का पहला प्रसाद.” ननद ने उसे ढकेलते हुए कहा.सास ने भी उसे पकड़ रखा था. मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गयीं. ननद मुझे चिढ़ा रही थी की भाभी कल तो खारा शरबत पीना पडेगा, नमकीन तो आप हैं हीं वो पी के और नमकीन हो जायेंगी. सास ने चढाया अरे तो पी लेगी मेरी बहू, तेरे भाई की हर चीज सहती है तो ये तो होली की रसम है. जेठानी बोलीं ज्यादा मत बोलो, एक बार ये सीख लेगी तो तुम दोनों को भी नही छोडेगी. मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. मैं बोली, मैने सुना है की गांव में गोबर से होली खेलते हैं. बडी ननद बोली, अरे भाभी गोबर तो कुछ नहीं हमारे गांव में तो...
सास ने इशारे से उसे चुप कराया और मुझसे बोलीं, अरे शादी में तुमने पंच गव्य तो पीया होगा. उसमें गोबर के साथ गो मुत्र भी होता है. मैं बोली, अरे गोमूत्र तो कितनी आयुर्वेदिक दवाओं में पड़ता है, उसमें ...तो मेरी बात काट के बडी ननद बोली की अरे गो माता है तो सासू जी भी तो माता हैं और फिर इंसान तो जानवरों से उपर ही...तो फिर उस का भी चखने में...मेरे ख्यालों में खो जाने से ये हुआ की मेरा ध्यान हट गया और ननद ने जबरन ‘शर्बत मेरे ओंठों से नीचे, सास जी ने भी जोर लगा रखा था और धीरे धीरे कर के मैं पूरा डकार गयी. मैने बहोत दम लगाया लेकिन उन दोनों की पकड बडी तगडी थी. मेरे नथुनों में फिर से एक बार वही मङ्क भर गयी जो...जब मेरा सर उनकी जांघों के बीच में था. लेकिन पता नहीं क्या था...मैं मस्ती से चूर हो गयी थी. लेकिन फिर भी मेरे मुंह में...
किसी ने कहा अरे पहली बार है ना धीरे धीरे स्वाद की आदी हो जाओगी. जरा गुझिया खा ले, मुंह का स्वाद बदल जायेगा. मैंने भी जिस डब्बे में कल बिना भांग वाली गुझिया रखी थी, उसमें से । निकाल के दो खा ली ( वो तो मुझे बाद में पता चला, जब मैं तीन चार गटक चुकी की ननद ने रात में ही डिब्बे बदल दिये थे और उसमें डबल डोज वाली भांग की गुझिया थी). कुछ ही देर में उस का असर भी शुरु हो गया. जेठानी ने मुझे ललकारा, अरे रुक क्यों गयी. अरे आज ही तो मौका है सास के उपर चढायी करने का. दिखा दे की तूने भी अपनी मां का दूध पिया है. और उन्होंने मेरे हाथ में गाढे लाल रंग का पेंट दे दिया सासू को लगाने को.
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