RE: Antarvasna मेरे पति और मेरी ननद
उसके सीने की उठान.. यानि चूचियों उभर चुकी थीं.. लेकिन अभी बहुत बड़ी नहीं थीं। जाहिर सी बात है कि मुझसे तो छोटी ही थी.. बहुत ही सादा और मासूम सी लड़की थी।
मुझसे बहुत ही प्यार करती थी और बहुत ही इज्जत देती थी।
जब से घर में आई.. तो रसोई में भी मेरा हाथ बंटाती थी.. और मेरे साथ घर का काफ़ी काम करती थी। मैं भी डॉली की शक्ल में एक अच्छी सी सहेली को पाकर खुश थी।
उसके सोने का इंतज़ाम उस छोटी सी बैठक में ही एक सिंगल बिस्तर लगवा कर.. कर दिया गया था। वो वहीं पर ही पढ़ती थी और वहीं पर ही सोती थी। बाथरूम उसे हमारा वाला ही इस्तेमाल करना पड़ता था.. जिसका एक दरवाज़ा छोटे से टीवी लाउंज में खुलता था और दूसरा हमारे बेडरूम में खुलता था।
बस रात को सोते वक़्त हम लोग अपने बेडरूम वाला बाथरूम का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेते थे.. ताकि डॉली बाहर से ही उसे इस्तेमाल कर सके।
डॉली वैसे तो बहुत ही खूबसूरत लड़की थी.. लेकिन सारी ज़िंदगी गाँव में रहने की वजह से बिल्कुल ही ‘डल’ लगती थी। उसकी ड्रेसिंग भी बहुत ज्यादा ट्रेडीशनल किस्म की होती थी। सादा सी सलवार-कमीज़ पहनती थी.. कभी भी मॉड किस्म के कपड़े नहीं पहनती थी।
मुझे घर में लेगिंग पहने देखना शुरू किया.. तो वो बहुत ही हैरान हुई.. तो मैंने हंस कर कहा- अरे यार क्यों हैरान होती हो.. यह सब आज के वक़्त की ज़रूरत और फैशन है.. इसके बिना ज़िंदगी का क्या मज़ा है.. वैसे भी तो घर पर सिर्फ़ तुम्हारे भैया ही होते हैं ना.. और जब भी बाहर जाती हूँ.. तो उनके साथ ही जाती हूँ.. तो फिर मुझे किस चीज़ की फिकर है।
डॉली- लेकिन भाभी बाहर तो बहुत से लोग होते हैं.. वो आपको अजीब नजरों से नहीं देखते क्या?
मैं- अरे यार देखते हैं.. तो देखते रहें.. मेरा क्या जाता है.. वैसे इन लोगों की कमीनी नज़रों का भी अपना ही मज़ा होता है।
मैंने एक आँख मार कर डॉली से कहा.. तो वो झेंप गई।
मैं उसे हमेशा ही मॉड और न्यू फैशन के कपड़े पहनने को कहती.. लेकिन वो इन्कार कर देती।
‘मुझे शरम आती है.. ऐसी कपड़े पहनते हुए.. और फिर मुझे इन कपड़ों में देख कर भैया बुरा मान जाएंगे..’
शहर में आने के बाद चेतन ने उसे खूब शहर की सैर करवाई। हम लोग चेतन की बाइक पर बैठ कर घूमने जाते.. मैं चेतन के पीछे बैठ जाती और मेरे पीछे डॉली बैठती थी।
हम लोग खूब शहर की सैर करते.. और डॉली भी खूब एंजाय करती थी।
बाइक पर बैठे-बैठे मैं अपनी चूचियों को चेतन की बैक पर दबा देती और उसके कान में ख़ुसर-फुसर करती जाती- क्यूँ फिर फील हो रही हैं ना मेरी चूचियां तुमको?
मेरी कमर पर चेतन भी जानबूझ कर अपनी कमर से थोड़ा-थोड़ा हरकत देता और मेरी चूचियों को रगड़ देता। कभी मैं उसकी जाँघों पर हाथ रख कर मौका मिलते ही उसकी पैन्ट के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहला देती थी.. जिससे चेतन को बहुत मज़ा आता था।
हमारी इन शरारतों से बाइक पर पीछे बैठे हुई डॉली बिल्कुल बेख़बर रहती थी।
चेतन अपनी बहन से बहुत ही प्यार करता था.. आख़िर वो उसकी सबसे छोटी बहन थी ना.. कम से कम भी उससे 18 साल छोटी थी.. और वो मुझसे 10 साल छोटी थी।
रोज़ाना चेतन खुद ऑफिस जाते हुए डॉली को कॉलेज छोड़ कर जाता और वापसी पर साथ ही लेता आता था। मुझे भी कभी भी इस सबसे कोई दिक्कत नहीं हुई थी। जैसा कि ननद-भाभी में घरों में झगड़ा होता है.. मेरे और डॉली कि बीच में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था.. बल्कि मुझे तो वो अपनी ही छोटी बहन लगती थी।
फिर एक दिन वो वाकिया हुआ जो इस कहानी के आगे बढ़ने की वजह बना, उससे पहले ना कुछ ऐसा-वैसा हुआ हमारे घर में, और ना ही किसी के दिमाग में था.. लेकिन उस वाकिये के बाद मेरा दिमाग एक अजीब ही रास्ते पर चल पड़ा और मैंने वो सब करवा दिया जो कि कभी नहीं होना चाहिए था।
वो इतवार का दिन था और हम सब लोग घर पर ही थे। दोपहर के वक़्त हम सब लोग टीवी लाउंज में ही बैठे हुए टीवी देख रहे थे कि चेतन ने चाय की फरमाइश की.. इससे पहले कि मैं उठती.. आदत के अनुसार.. डॉली फ़ौरन ही उठी और बोली- भाभी आप बैठो.. मैं बना कर लाती हूँ।
मैंने उसे ‘थैंक्स’ बोला और दोबारा टीवी देखने लगी, चेतन भी मेरा पास ही बैठा हुआ था।
अचानक ही रसोई से डॉली की एक चीख की आवाज़ सुनाई दी और साथ ही उसके गिरने की आवाज़ आई। मैं और चेतन दोनों ही फ़ौरन ही उठ कर रसोई की तरफ चिल्लाते हुए भागे।
‘क्या हुआ है डॉली?’
जैसे ही हम लोग अन्दर गए तो देखा कि डॉली नीचे रसोई कि फर्श पर गिरी हुई है और अपने पैर को पकड़ कर दबा रही है और वो दर्द के मारे कराह रही थी।
हम फ़ौरन ही उसके पास बैठ गए और मैं बोली- क्या हुआ डॉली.. कैसे गिर गई?
डॉली- बस भाभी.. पता ही नहीं चला कि कैसे मेरा पैर मेरी पायेंचे में फँस गया और मैं नीचे गिर पड़ी।
चेतन- अरे यह तो शुक्र है कि अभी इसने चाय नहीं उठाई हुई थी.. नहीं तो गर्म-गर्म चाय ऊपर गिर कर और भी नुक़सान कर सकती थी।
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