RE: Antarvasna मेरे पति और मेरी ननद
मैंने उसे तसल्ली से समझाया- देख तू मेरी बहन की तरह है.. तो मुझे ही तेरा ख्याल रखना है ना.. कि तू वक़्त के साथ-साथ चले.. ताकि कल को तेरा भी किसी अच्छी जगह पर रिश्ता हो जाए और तू अपने पति के साथ अपनी ज़िंदगी एंजाय कर सके। अरे यह जो थोड़ा बहुत जिस्म को शो करना होता है ना.. यह तो बस ऐसे ही है और अब तो एक रुटीन ही बन गया है.. इस बात को कोई भी माइंड नहीं करता।
डॉली- लेकिन भाभी वो भैया?
मैं- तू क्या समझती है कि यह जो लड़कियाँ बाहर इतनी टाइट जीन्स और लेग्गी पहन कर फिरती हैं.. तो क्या उनके घर में उनके बाप या भाई नहीं होते क्या? अरे पगली सब ही होते हैं.. लेकिन वो लोग अब इस चीज़ को माइंड नहीं करते और वक़्त कि मुताबिक़ चलते हैं.. ऐसे ही तू भी बस अपने भाई से डरती रहती है.. मैं तुमको यकीन दिलाती हूँ कि वो कुछ नहीं कहेंगे तुझे. और अगर कोई ऐसी-वैसी बात की.. तो मैं खुद उनको सम्भाल लूँगी.. और फिर अपना घर तो इस सबकी प्रैक्टिस करने के लिए सबसे अच्छी जगह है..
डॉली शायद मेरी बात समझ गई थी.. मैंने उससे कहा- अभी आज तू मेरी वाली यही लेग्गी पहन ले.. फिर मैं तुझे तेरी साइज़ की और भी प्यारी प्यारी सी नई ला दूँगी।
डॉली शर्मा गई लेकिन कुछ बोली नहीं। फिर मैं उसे लेकर रसोई में आ गई और हम लोग खाना तैयार करने लगे.. क्योंकि चेतन के आने का टाइम भी हो रहा था। काम करते हुए डॉली थोड़ा घबरा भी रही थी.. एक-दो बार उसने मुझसे कहा भी कि भाभी मैं चेंज करना चाहती हूँ.. लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से उसे मना ही लिया कि वो आज अपने भाई के सामने भी यह लेग्गी पहनेगी।
जैसे ही डोर पर चेतन की बेल बजी.. तो डॉली ने मुझसे कहा- जाओ दरवाज़ा आप ही खोलो।
खुद वो रसोई मैं ही रुक गई। मैंने मुस्करा कर उसे देखा और फिर दरवाजा खोलने बाहर आ गई। मैंने दरवाज़ा खोल कर जैसे ही चेतन अपनी बाइक पार्क कर रहा था.. तो मैंने उसे बताया।
मैं- चेतन.. देखो आज डॉली ने बहुत मुश्किल से हिम्मत करके लेग्गी पहनी है.. तुम से बहुत डर रही थी.. बस तुम को उसकी तरफ कोई तवज्जो नहीं देनी और ना ही उससे कुछ कहना.. ना कोई कमेंट देना है.. और उसकी तरफ ऐसे ही नॉर्मल रहना है.. जैसे कि रोज़ उससे व्यवहार करते हो.. ताकि वो थोड़ी सामान्य हो जाए और आहिस्ता-आहिस्ता इस नई ड्रेसिंग की आदी हो सके। अगर तुमने कोई ऐसी-वैसी बात की.. तो फिर वो दोबारा से अपनी पहली वाली जिंदगी में चली जाएगी।
मुझे पता था कि चेतन के लिए अपनी बहन की टाँगों को टाइट लेगिंग में देखने से खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा.. लेकिन मैं तो खुद ही उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी और दूसरी बात यह भी है कि सच में मैं डॉली को थोड़ा कंफर्टबल भी करना चाहती थी ताकि आइन्दा भी उसे ऐसे और इससे भी थोड़ा ज्यादा ओपन कपड़े पहनने में आसानी हो सके।
बहरहाल चेतन ने मेरी बात मान ली और बोला- अच्छा ठीक है।
अन्दर आ कर चेतन ने अपने कमरे में जाकर चेंज किया। फिर वो फ्रेश होकर वापिस आया और लंच करने कि लिए बैठ गया।
मैं रसोई में गई और कुछ बर्तन ले आई और फिर डॉली को भी खाना लेकर आने का कहा। मैं चेतन के पास बैठ गई और डॉली का वेट करने लगी।
थोड़ी देर के बाद डॉली खाने की ट्रे लेकर आई.. तो उसका चेहरा शर्म से सुर्ख हो रहा था.. लेकिन जैसे ही वो बाहर आई तो चेतन ने उसकी तरफ से अपनी नज़र हटा लीं और अख़बार देखने लगा।
फिर डॉली ने खाना टेबल पर रखा और मेरे साथ ही बैठ गई। हम तीनों ने हमेशा की तरह खाना खाना शुरू कर दिया और इधर-उधर की बातें करने लगे।
चेतन डॉली से उसकी पढ़ाई और कॉलेज की बातें करने लगा।
आहिस्ता-आहिस्ता डॉली भी नॉर्मल होने लगी। उसके चेहरे पर जो परेशानी थी.. वो खत्म होने लगी और वो काफ़ी रिलेक्स हो गई.. क्योंकि उसे अहसास हो गया था कि उसका भाई उससे कुछ नहीं कह रहा है।
सब कुछ वैसा ही हो रहा था.. जैसे कि यह सब एक रुटीन में ही हो।
खाने के दौरान मैंने एक-दो बार डॉली को पानी और कुछ और लाने के लिए रसोई में भी भेजा.. ताकि चेतन का रिस्पॉन्स देख सकूँ और वो भी अपनी बहन को पहली बार चुस्त लेग्गी में देख सके।
हुआ भी ऐसा ही कि जैसे ही डॉली उठ कर गई.. तो फ़ौरन ही चेतन की नजरें उसकी तरफ चली गईं और वो अपनी बहन की लेग्गी में नज़र आती हुई टाँगों को देखने लगा।
मैं दिल ही दिल में मुस्कुराई और बोली- अच्छी लग रही है ना.. इस पर लेग्गी.. यह तो मैंने उसे अभी अपनी पहनाई है.. अब एक-आध दिन में मैं उसे उसकी साइज़ की ही ला दूँगी।
चेतन थोड़ा सा चौंका और बोला- हाँ ला देना उसे भी..
वो ज़ाहिर यह कर रहा था कि उसे इसमें कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है कि उसकी बहन ने क्या पहना हुआ है.. लेकिन मैं जानती थी कि उसे भी अपनी बहन को ऐसी ड्रेस में देखने का कितना शौक़ है।
मैंने सारी बातें अपनी और चेतन की कल्पनाओं में ही रहने दीं और खाना खाने लगी.. तभी डॉली भी वापिस आ गई।
खाना खाकर मैं और चेतन अपने कमरे में आ गए और डॉली अपने कमरे में चली गई।
शाम को हम कमरे से बाहर आए तो डॉली चाय बना चुकी हुई थी। वो चाय ले आई और हम लोग टीवी देखते हुए चाय पीने लगे। एक चीज़ देख कर मुझे खुशी हुई कि डॉली ने लेग्गी चेंज नहीं की थी और अभी भी उसी लेग्गी में थी। शायद अब वो कंफर्टबल हो गई थी कि इस ड्रेस को पहनने में भी कोई मसला नहीं है।
जब वो टीवी देख रही थी तो उसकी शर्ट भी बेख़याली में उसकी जाँघों तक आ गई थी और मैं नोट कर रही थी कि चेतन की नज़र भी बार-बार उसकी लेग्गी की तरफ ही जा रही थी.. और वो उसकी टाँगों और जाँघों को देखता जाता था।
मैं दिल ही दिल में मुस्करा रही थी कि कैसे एक भाई अपनी बहन के जिस्म को ताक रहा है और इस चीज़ को देख कर मेरे अन्दर एक अजीब सी लज़्ज़त की लहरें दौड़ रही थीं।
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