RE: Antarvasna मेरे पति और मेरी ननद
मैं उसकी तरफ देख कर हँसी और बोली- अरे यार.. फिर क्या हुआ.. इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है.. कोई देखता है तो देखे.. जब मेरे पति को किसी के देखने से तो ऐतराज़ नहीं है.. फिर मुझे क्या?
मेरी बात सुन कर डॉली हँसने लगी और मैं भी हँसने लगी।
फिर हम लोग तीनों जा कर एक बैंच पर बैठ गए और इधर-उधर की बातें करने लगे। वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक कैन्टीन थी। कुछ देर के बाद चेतन ने अपना पर्स निकाला और उसमें से कुछ पैसे निकाल कर डॉली को दिए और बोला- जाओ डॉली.. वहाँ कैन्टीन से कुछ खाने-पीने की चीजें ले आओ।
डॉली अकेले कैन्टीन की तरफ जाते हुए झिझक रही थी.. मैंने उसे उत्साहित किया- हाँ हाँ.. जाओ.. कुछ नहीं होता.. हम लोग यहीं तो तुम्हारे सामने बैठे हैं।
डॉली उठी और कैन्टीन की तरफ बढ़ गई। चेतन जाते हुए उसकी गाण्ड को ही देख रहा था.. जो कि पूरी तरह इधर-उधर मटक रही थी।
कुछ देर चेतन उसी को देखता रहा फिर मुझसे बोला- यह तुम बाइक पर बैठे क्या शरारतें कर रही थीं।
मैं मुस्कुराई और अंजान बनते हुए बोली- कौन सी शरारत?
चेतन- वो जो मेरे लण्ड को दबा रही थी।
मैं हंस कर बोली- मैंने सोचा कि आज मैं अपनी चूचियों को तुम्हारी पीठ पर रगड़ नहीं सकती.. तो ऐसी ही थोड़ा सा तुम को मज़ा दे दूँ।
मैंने जानबूझ कर डॉली की चूचियों के उसकी पीठ पर लगने का जिक्र नहीं किया.. क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वो शर्मिंदा हो। लेकिन एक बात हुई कि जैसे ही मैंने अपनी चूचियों की उसकी पीठ पर लगाने का जिक्र किया.. तो फ़ौरन ही उसकी नज़र डॉली की तरफ उठ गई.. जैसे उसे एक बार फिर से याद आ गया हो कि कैसे डॉली अपनी चूचियों को उसकी पीठ के साथ लगा कर बैठी हुई थी।
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उसी वक़्त डॉली कैन्टीन से स्नैक्स और कोल्ड-ड्रिंक्स लेकर मुड़ी.. तो चेतन की नजरें डॉली की टाइट टी-शर्ट में उभरी हुई नज़र आ रही चूचियों पर घूम गईं।
मैंने भी कोई बात करके उसको डिस्टर्ब करना मुनासिब ना समझा और इधर-उधर देखने लगी।
हम तीनों ने बैठ कर स्नैक्स और ड्रिंक्स से एंजाय किया और फिर जब थोड़ा अँधेरा होने लगा.. तो हम लोग घर की तरफ वापिस लौटे। मैंने दोबारा डॉली को चेतन के पीछे बैठाया।
पूरे रास्ते फिर मेरी वो ही हरकतें चलती रहीं और डॉली अपनी चूचियों को अपने भाई की पीठ पर दबा कर बैठे रही। मैं भी चेतन का लंड आहिस्ता-आहिस्ता दबाती और सहलाती रही।
घर आकर मैंने अपने कपड़े बदल लिए। आज रात मैंने चेतन का एक बरमूडा पहन लिया था.. जो कि मेरे घुटनों तक का था और ऊपर से मैंने एक टी-शर्ट पहन ली।
कभी-कभी मैं घर में यह ड्रेस भी पहन लेती थी। अब मेरी गोरी-गोरी टाँगें घुटनों तक बिल्कुल नंगी हो रही थीं।
चेतन ने चाय के लिए कहा तो डॉली चाय बनाने चली गई और मैं चेतन के बिल्कुल साथ लग कर बैठ गई और टीवी देखने लगी।
चेतन भी जब से आया था.. तो वो गरम हो रहा था, उसने मौका मिलते ही मुझे अपने पास खींच लिया और मेरे गालों को चूमने लगा।
मैंने अपना हाथ उसकी पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर रखा और बोली- क्या बात है.. आज बड़े गरम हो रहे हो?
चेतन ने भी मेरा बरमूडा थोड़ा सा घुटनों से ऊपर को खिसकाया और मेरी जाँघों को नंगी करके उस पर हाथ फेरने लगा।
थोड़ी देर मैं जैसे ही डॉली चाय बना कर वापिस आई तो चेतन ने अपना हाथ मेरी नंगी जाँघों से हटा लिया। लेकिन मैं अभी भी उसके साथ चिपक कर बैठे रही।
डॉली ने हम पर एक नज़र डाली और जब मेरी नज़र से उसकी नज़र मिली.. तो वो धीरे से मुस्करा दी और मैंने भी उसे एक स्माइल दी।
फिर हम सब चाय पीने लगे और मैं उसी हालत मैं अपने पति के साथ चिपक कर बैठे रही। मेरी जाँघें अभी भी नंगी थीं लेकिन मुझे कोई फिकर नहीं थी कि मैं अपनी नंगी जाँघों को कवर कर लूँ।
डॉली भी मेरी नंगी जांघ और मेरे हाथों को अपने भाई की जाँघों पर सरकते हुए देखती रही।
फिर हम दोनों रसोई में गईं तो डॉली मुझे छेड़ती हुए बोली- भाभी आपको तो बिल्कुल भी शरम नहीं आती.. कैसे चिपक कर बैठे हुई थीं आप.. भैया के साथ?
मैं मुस्कुराई और बोली- जब तेरी शादी होगी ना.. तो देखना तेरा पति तुझे हर वक़्त अपनी साथ चिपका कर रखेगा।
डॉली- नहीं जी.. भाभी जी.. मैं आपकी तरह बेशर्म नहीं हूँ.. जो हर वक़्त चिपकी रहूँगी।
मैं- अरे तू ना भी चिपकेगी.. तो भी तेरी जैसे चिकनी लड़की को कौन सा मर्द होगा.. जो अपने साथ ना चिपकाना चाहेगा.. सच कहूँ.. यह तो तू चेतन की बहन है.. तो बची हुई है.. वरना चेतन ही कब का तुझे…
मैं यह बात कह कर हँसने लगी।
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