RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
मैंने देखा कि डॉली के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून था।
थोड़ी देर में डॉली कमरे में आई.. उसने मुझे बिस्तर पर पटका और अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था।
आखिर ये लड़की चाहती क्या है? उधर अपने मम्मी-पापा को ये कह कर आई कि आप जहाँ कहोगे.. मैं शादी करूँगी और इधर मेरी बांहों में… क्या कोई ये बताएगा मुझे… कि लड़कियों को समझा कैसे जाए।
मैं डॉली की आँखों में अपने सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करने लगा.. पर शायद मैं भूल गया था कि ये वहीं आँखें हैं.. जिसने मुझे कभी ऐसे कैद किया था.. किस जादू से.. कि मैं आज तक बाहर नहीं आ पाया हूँ।
जितना मैं उसे देखता गया.. उतना ही उसका होता चला गया। हमारी साँसें तेज़ होती गईं.. हम दोनों एक-दूसरे में खोते चले गए।
आज पहली बार मैं उसके इतने करीब होते हुए भी उससे खुद को कोसों दूर पा रहा था.. पर अब भी शायद थोड़ी ये उम्मीद बाकी थी कि वो मेरी अब भी हो सकती है।
मैं उसके इंच-इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था कि चाह कर भी वो किसी और की ना हो पाए। आज मैं उसे खुद से किसी भी हाल में दूर नहीं होना चाहता था। जब-जब वो मुझे खुद थोड़ा अलग करती.. मैं उसे खींच कर फिर से अपने सीने से लगा लेता।
हमारे कपड़े वहीं कमरे के कोने में पड़े हुए थे.. हमारी साँसें एक हो गई थीं।
पर आज जैसे मुझे किसी भी काम में भी मन नहीं लग रहा था। मेरे सीने की आग इतनी ज्यादा बढ़ी हुई थी कि ये तन की आग भी उसे काबू में कर पाने में असमर्थ थी।
डॉली मेरी इस हालत को समझ गई.. उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे पूरे जिस्म पर अपने होंठों की छाप छोड़ने लग गई। वो मुझे चूमते हुए मेरे लिंग के पास पहुँची और उसने मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया।
मेरे लण्ड को चूसते हुए उसके नाख़ून मेरे जिस्म को खरोंच रहे थे।
आखिरकार मेरे अन्दर भी शैतान जाग उठा। मैंने उसी अवस्था में उसे बिस्तर पर पटका और अपने लिंग को उसके गले तक पहुँचाने लगा।
फिर उसे घोड़ी वाले आसन में उसके पिछले छेद में अपनी तीन ऊँगलियाँ अन्दर तक घुसा दीं और उसकी योनि को अपने लिंग से भर दिया।
अब मैं उसे बिस्तर के किनारे तक ले आया था। अपने लिंग और उँगलियों को उसी जगह पर रख अपने पैर के अंगूठे को उसके मुँह में दे दिया।
इसी अवस्था में थोड़ी देर में मेरी भावनाओं का ज्वार शांत हुआ और मैं निढाल होकर- उसके साथ बिस्तर पर गिर पड़ा।
जब एक तूफ़ान शांत हुआ.. तो मेरे अन्दर जो भावनाओं का तूफ़ान था.. वो सामने आ गया।
मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
अब तक मैंने उसे कस कर पकड़ा हुआ था.. मानो कोई उसे मुझसे जबरदस्ती दूर ले जा रहा हो। मैं अब तक इसी उम्मीद में था कि शायद वो मेरी हो जाए।
डॉली ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- आज मेरे पास ही रह जाओ न.. मैं अपना हर लम्हा तुम्हारी बांहों में जीना चाहती हूँ।
मैंने उसे रोकते हुए कहा- अधूरी बातों से दिलासा देने की ज़रूरत नहीं है। कहो कि शादी तक मैं तुम्हारी बांहों में रहना चाहती हूँ और शादी के बाद..
यह कहते-कहते मैं रुक गया.. मेरा गला भर आया था.. अब कुछ भी कहने की हिम्मत बची भी नहीं थी।
मैं- अब मुझे जाना होगा।
डॉली- अभी ना जाओ छोड़ के.. कि दिल अभी भरा नहीं..
उसकी बातें मुझे गुस्सा दिला रही थीं।
मैंने उसके बाल पकड़ अपने पास खींचा- जान लेने का कोई नया अंदाज़ है क्या यह?
डॉली- इस्स्स्स.. जनाब आपका ये गुस्सा.. आपकी जान जाए या न जाए.. पर इतना तो पक्का है.. आपके ये गुस्सा होने का अंदाज़ हमारी जान जरुर ले लेगा।
यह कहते हुए फिर से उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
मुझे गुस्सा आ रहा था और उसे ये सब मज़ाक लग रहा था। मैंने उससे कहा- मुझे अब घुटन सी हो रही है, प्लीज मुझे थोड़ी देर अकेला छोड़ दो। मैं अभी यहाँ नहीं रह सकता।
डॉली- ठीक है तो फिर कल मिलने का वादा करो।
मैं- ठीक है..
डॉली मेरा हाथ अपने सर पर रखते हुए- ऐसे नहीं मेरी कसम खा कर कहो.. तुम्हें हर रोज़ मुझसे मिलोगे।
मैं- जिससे शादी हो रही है.. उससे मिल न.. मुझे क्यों तकलीफ दे रही हो। जो करना है.. करो उसके साथ.. मेरी जान छोड़ दो अब.. बस..
डॉली- मुझसे प्यार करने की सज़ा ही समझ लो.. या फिर यही कह दो कि तुमने कभी भी मुझसे प्यार किया ही नहीं.. मैं कुछ नहीं कहूँगी।
मैं अब उसे कुछ भी नहीं कह सका।
‘ठीक है जैसा तुम कहो!’
डॉली- ऐसे नहीं.. मेरी कसम खा कर कहो कि तुम मुझसे हर रोज़ मिलोगे.. भले ही मुझे डांटो.. मारो या मेरी जान ले लो.. लेकिन मुझसे हर रोज मिलोगे।
‘हाँ मैं कसम खाता हूँ.. अब तो जाने दो।’
डॉली ने मुस्काते हुए कहा- ह्म्म्म.. अब ठीक है.. अभी बंदोबस्त करती हूँ आपको बॉर्डर पार करवाने का..
वो बाहर गई.. उसके घर का माहौल अब सामान्य हो चुका था, उसने छत की चाभी उठाई और छत पर चली गई।
थोड़ी देर में वो वापिस कमरे में आई और मुझे पीछे-पीछे चलने का इशारा किया।
शायद उसके मम्मी-पापा अपने कमरे में थे। मैं अब छत पे आ चुका था। मैं दीवार पार करने जैसे ही आगे बढ़ा.. डॉली मुझसे लिपट गई, थोड़ी देर रुक के वो मुस्कुरा के मुझसे अलग हो गई। पता नहीं आज उसकी आँखें मुझसे बहुत सी बातें कहना चाह रही थीं.. पर इस सैलाब को अपने अन्दर ही समेटे रह गई।
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