RE: Bhabhi ki Chudai देवर भाभी का रोमांस
मेरा प्लान कामयाब रहा, पुष्प्राज, गुस्से में अँधा हो चुका था, उसने अपनी माउज़र ली, और अकेले ही गाड़ी ड्राइव करके आँधी-तूफान की तरह दौड़ा कर अपने फार्म हाउस जा पहुँचा…
भड़ाक से गेट खोलते ही, उसकी आँखों के सामने अपनी बीवी और उसकी दोस्त को एक साथ 4-4 लोगों के साथ चुद’ते देखकर वो पागल हो उठा…!
सीन ही इतना आपत्तिजनक था, कोई भी सभ्य समाज का व्यक्ति इस तरह अपनी बीवी के साथ गॅंग-बंग होते देख सहन नही कर सकता था..,
दरवाजे की आवाज़ सुनकर भानु समेत उन लोगों का ध्यान दरवाजे की तरफ गया जहाँ पुष्पराज को गन हाथ में लिए खड़ा देख कर उनके होश उड़ गये..,
इस’से पहले कि वो लोग अपना चुदाई अभियान बंद करते, पुष्प्राज ने अपना मानसिक संतुलन खोते हुए उनपर गोलियों की बरसात करदी..,!
अंदर चुदाई अभियान में लिप्त 10 के 10 लोगों को उसने गोलियों से उड़ा दिया, और फिर लास्ट बची एक गोली से उसने गन अपनी कनपटी पर रख कर खुद को भी ख़तम कर लिया…!
ये सारा घटनाक्रम मे अपने ऑफीस में बैठा देख रहा था, मे अभी अपना सिस्टम बंद करने ही वाला था, कि वहाँ पड़े 11 निर्जीव मानव शरीरों में से एक के शरीर में हरकत हुई..!
उनमें से एक आदमी कराहते हुए अपने सिर को पकड़े खड़ा होने की कोशिश कर रहा था, शायद गोली निशाने से चूक गयी थी, उसके सिर के बीच में न लगकर उसके सिर के दायें तरफ घाव बनती हुई निकल गयी थी…!
वो किसी शराबी की तरह लहराता हुआ जैसे तैसे करके खड़ा हुआ और फिर जैसे ही उसका मुँह कैमरे के सामने आया, मे बुरी तरह चोंक पड़ा…!
ये कोई और नही बल्कि भानु ही था, किस्मत ने एक बार फिर उसका साथ दिया और गोली ठीक निशाने पर नही लगी थी,
लेकिन सिर से निकलने वाले खून को देखकर तो ऐसा लग रहा था कि घाव काफ़ी गहरा होना चाहिए…!
साला भानु भी बड़ा जीवट प्राणी था, अपने गोली के घाव को कस्के दबाए हुए वो खड़ा हुआ और एक बार वहाँ पड़े सभी निर्जीव लाशों को देखा जिनमें कहीं भी, किसी में भी कोई हलचल दिखाई नही दी…,
फिर उसने एक कोने में पड़े अपने कपड़े उठाए और अपनी हिम्मत बटोरकर किसी तरह उस हॉल से बाहर निकल गया..!
अब वो मेरी नज़रों से ओझल हो चुका था, इसी के साथ ही मेने भी अपना सिस्टम बंद किया और सब समान समेट कर अपना बॅग पॅक कर लिया…!
मेने भैया को पहले ही कॉल कर दिया था, सो उन्होने पूरी पोलीस फोर्स को ले जाकर फार्म हाउस अपनी कस्टडी में ले लिया…!
पोलीस के मुतविक सारा मामला एक दम आईने की तरह सॉफ था…! सेक्स की भूखी औरतों ने खुद ही उन लोगों के साथ सामूहिक सेक्स किया…!
किसी तरह श्वेता के पति को इस बात का पता चल गया और उसने मौकाए वारदात पर पहुँचकर सबको गोली से उड़ा दिया, और ज़िल्लत के कारण उसने खुद को भी गोली मार ली…!
इस तरह लगभग सारे गुनेहगारों को उनके अंजाम तक पहुँचाकर आज मुझे सकुन मिला था…!
रेखा का रेप केस यहाँ तक पहुचेगा ये किसी ने भी नही सोचा होगा..., लेकिन उसकी वजह से ये शहर अब अपराध मुक्त था, जो यहाँ की पोलीस के लिए एक बड़ी राहत की बात थी…!
भानु का क्या हुआ वो बच पाया या नही इस बात की मुझे कोई फिकर नही थी, क्योंकि अब वो नितांत अकेला था और अपनी जिंदगी सार्वजनिक तौर पर नही जी सकता था..,
उसकी तरफ से बेफिकर होकर अब जल्द से जल्द मे अपने घर पहुँचना चाहता था,
अपनी इस कामयाबी को मे अपनी भाभी माँ के साथ मिलकर सेलेब्रेट करना चाहता था, जिनसे मुझे हर मुश्किल से लड़ने की प्रेरणा मिलती रहती थी……!
शहर की बुराइयों के अंतिम बीज़ की समाप्ति होने तक का सारा आँखों देखा हाल अपने सिस्टम पर देखने के बाद मेने अपने ऑफीस को बंद किया,
घर पहुँचकर अपना समान पॅक करने से पहले मेने प्राची को कॉल किया, और सारी बातों से अवगत कराया, वो ये सब सुनकर खुशी के मारे फोन पर ही चीखने लगी…!
फिर जब मेने उसे बताया कि मे अभी बस घर निकलने ही वाला हूँ, तो वो चहकते हुए बोली – अरे वाह… अकेले-अकेले सेलेब्रेट करने का इरादा है.., मुझे शामिल नही करेंगे..?
मेने फ़ौरन कहा – क्यों नही, लेकिन क्या तुम अभी 15 मिनट में यहाँ आ सकती हो..?
प्राची – आप गाड़ी लेकर यहीं आ जाइए ना, मे आपको रेडी मिलूंगी, उनको खबर कर देती हूँ, यहीं से साथ निकलते हैं…!
मेने अपना बॅग उठाया और आंटी को बोलकर गाड़ी एसएसपी आवास की तरफ दौड़ा दी…!
वहाँ मुझे प्राची एकदम रेडी मिली, फिर हम दोनो घर की ओर निकल पड़े…!
घर पहुँचते- पहुँचते हमें काफ़ी अंधेरा हो गया था, गाड़ी खड़ी करके जैसे ही घर के अंदर पहुँचे,
आँगन में बैठी रूचि जो अपने छोटे भाई सुवंश के साथ चारपाई पर खेल रही थी, हमें देखते ही हमेशा की तरह चीखती हुई मेरी तरफ दौड़ी…. चाचू…चाची…और उच्छल कर मेरे गले से लटक गयी…
प्राची ने मेरी गोद में लटकी प्राची के गाल को चूमकर उसे प्यार दिया, और फिर वो निशा के कमरे की तरफ बढ़ गयी…!
मेने अपने हाथ रूचि की पीठ पर कसते हुए उसे अपने सीने में कस लिया और उसके दोनो कोमल गालों पर किस करके बोला – कैसा है मेरा बेटा…?
रूचि – मे तो ठीक हूँ, लेकिन देखो ना चाचू ये भैया मुझे बहुत परेशान करता है…
मे उसे गोद में लिए चारपाई पर खेल रहे सुवंश के पास आया और बोला – वो तो बेचारा चुप चाप पड़ा खेल रहा है, फिर क्या परेशान किया तुम्हें इसने…?
रूचि – ये मम्मा..मम्मा तो बोलता है, लेकिन दीदी..दीदी नही कहता…!
रूचि की भोली भली बातें सुनकर मुझे बड़ा प्यार आया, और उसके माथे पर एक किस करके कहा – बेटा अभी भैया छोटा है ना, कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा आपको इसके मुँह से दीदी सुनने के लिए…
फिर मेने रूचि को नीचे उतार कर सुवंश को अपनी गोद में उठा लिया, मेने जैसे ही उसके गाल पर अपना गाल सटाया, उसने मुँह घूमाकर मेरे गाल पर किस कर लिया...
ये नज़ारा थोड़ी दूर खड़ी भाभी देख रही थी, जो रूचि की आवाज़ सुनकर रसोई से बाहर निकल आई थी, और मुझे बच्चों के साथ खेलते हुए देख रही थी…
मेरे पास आकर धीरे से बोली – देखा कैसा अपने बाप को झट से पहचान लेता है ये नटखट, रूचि के पापा की तो गोद में भी मुश्किल से जाता है…!
मे बस भाभी को देखता ही रह गया, फिर मेने अपने बेटे के माथे पर एक किस करके उसे भाभी की गोद में दे दिया…!
फिर जैसे उनको कुछ याद आया हो, सो निशा को आवाज़ देकर बोली – अरे निशा जल्दी से आरती की थाली तो सज़ा, देख अपना अर्जुन महाभारत का युद्ध जीतकर आया है…
मेने कहा – क्या कहा आपने, अर्जुन ? और कोन्से महाभारत की बात कर रही हो..?
भाभी – मुझे प्राची ने निकलने से पहले फोन कर दिया था, तुमने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि वो सबके सब उसमें फँस गये और अपने आप ही सब ख़तम हो गये…!
निशा आरती की थाली ले आई, साथ में प्राची भी, दीपक जलाकर निशा ने मेरे माथे पर विजय तिलक किया और मेरी आरती करने लगी…!
मे – लेकिन भाभी इसमें आपका भी तो बड़ा योगदान रहा है, अगर आप प्रेरित ना करती तो मे तो सब छोड़ ही चुका था…, एक तरह से आप इस युद्ध की कृष्ण हैं..
भाभी – नही इस महाभारत के अर्जुन भी तुम हो और कृष्ण भी, प्रेरणा देने वाले तो और भी बहुत थे अर्जुन को, जिसमें साथ दिया था बासुदेव कृष्ण ने, पर यहाँ तो तुम अकेले ही थे…!
फिर उन्होने सुवंश को रूचि की गोद में देकर निशा के हाथ से थाली लेकर मुस्कराते हुए बोली – कुछ रिस्ता मेरा भी है तुम्हारी आरती उतारने का, ये कहकर उन्होने भी मुझे तिलक किया और मेरी आरती उतारने लगी…..!
डिन्नर के समय बड़े भैया और बाबूजी भी आ गये, सब मिलकर डिन्नर करने लगे, तभी भाभी ने पुछा – हां तो कृष्णा-अर्जुन अब बताओ अपने आख़िरी युद्ध की कथा…!
सब लोग भाभी की तरफ देखने लगे, उन्होने हँसते हुए कहा – अरे आप लोग ऐसे क्या देख रहे हो मेरी ओर, आप खुद ही सुन लो कि मेने लल्ला जी को ये नाम क्यों दिया है…!
फिर मेने सबको शुरू से लेकर अंत तक का सारा वृतांत कह सुनाया, खाली चुदाई की बातें एस्कॅप करके,
भाभी और प्राची के अलावा वाकी लोग मुँह फेड मेरी बातें सुन रहे थे…और वो दोनो मंद मंद मुस्करा रही थी..
अंत में भाभी बोली – क्यों बाबूजी, मेने सही नामकरण किया है ना…!
बाबूजी और भैया प्रशंसा भरी नज़रों से मुझे देख रहे थे, उनका सीना अपने बेटे और भाई के कारनामों की वजह से गर्व से दुगना हो रहा था…!
फिर बाबूजी बोले – मोहिनी बेटा लाओ, दूध भी दे ही दो, सोते हैं, सुवह जल्दी पंचायत के लिए भी जाना है तुम्हें भी…!
मे – कैसी पंचायत बाबूजी…?
भाभी – वो मे तुम्हें बाद में बताती हूँ…,
निशा ने लाकर सबको दूध दिया, जिसे पीकर वो दोनो सोने चले गये, और भाभी मुझे लेकर मेरे कमरे में आ गयी और कल होने वाली पंचायत के बारे में बताने लगी…!
कुछ देर बाद निशा और प्राची भी वहीं आ गयी, और हम चारों मिलकर देर रात तक बातों में लगे रहे..,
भाभी ने मेरा और प्राची के रिस्ते का टॉपिक छेड़ दिया, और बातों बातों मे हमें बताना पड़ा कि हमारी दोस्ती किस लेवेल तक की थी..!
भाभी को ये पता लगना ही था कि मे और प्राची पहले ही चुदाई का मज़ा लूट’ते रहे थे कि फ़ौरन चुटकी लेते हुए बोली…!
तुम्हारे अंदर तनिक भी लाज शर्म है कि नही लल्ला - अपने सगे भाई और वो भी पोलीस का इतना बड़ा ऑफीसर उसे तुमने अपनी झूठन पकड़ा दी…!
उनकी ये बात सुनकर प्राची ने शर्म से अपना सिर झुका लिया, वहीं मेने उन्हें अपनी गोद में खींचर उनके होठों को चूमते हुए कहा…!
अच्छा देवर की बड़ी फिकर हो गयी आपको, और अपने पति का तनिक भी ख्याल नही आया…?
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